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कांग्रेस और तुष्टिकरण की राजनीति: आखिर वोट के लिए सियासत को कहां ले जाना चाहते हैं दल
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सार
बिहार के गांधी मैदान में जब इमारत-ए-शरीया की सभा में तेजस्वी यादव और पप्पू यादव शरीयत को सर्वोपरि बताते हुए वक्फ सुधार कानून का विरोध करते हैं, तब वह केवल कानून का नहीं बल्कि भारतीय गणराज्य की मूल आत्मा का भी अपमान कर रहे होते हैं।

राहुल गांधी।
- फोटो : Instagram/rahulgandhi
विस्तार
देश एक ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में "सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, सबका प्रयास" के मंत्र के साथ आत्मनिर्भरता और राष्ट्र पुनर्निर्माण की ओर अग्रसर है, तो दूसरी ओर कांग्रेस और उसका इंडी गठबंधन देश को सांप्रदायिक कट्टरपंथ, तुष्टिकरण और वोट बैंक की आग में झोंकने की साज़िश रच रहे हैं। एक ओर मोदी भारत को विश्वगुरु बनाने में जुटे हैं, तो दूसरी ओर कांग्रेस संविधान की आड़ मे गुपचुप सौदे कर रही है।
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केरल के नीलांबुर उपचुनाव में कांग्रेस ने खुलकर जमात-ए-इस्लामी जैसे कट्टर इस्लामी संगठन का समर्थन लिया। यह वही संगठन है जो कश्मीर में अलगाववादियों की हिमायत करता है, भारत की संप्रभुता को चुनौती देता है और शरीयत कानून लागू करने की खुलकर वकालत करता है। ज़रा सोचिए, जो पार्टी खुद को "पंथनिरपेक्ष" कहती है, वह उन्हीं ताक़तों की गोद में बैठी है जो इस देश के संविधान को अस्वीकार करती हैं।
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बिहार के गांधी मैदान में जब इमारत-ए-शरीया की सभा में तेजस्वी यादव और पप्पू यादव शरीयत को सर्वोपरि बताते हुए वक्फ सुधार कानून का विरोध करते हैं, तब वह केवल कानून का नहीं बल्कि भारतीय गणराज्य की मूल आत्मा का भी अपमान कर रहे होते हैं। लेकिन कांग्रेस पूरी तरह चुप है – न कोई विरोध, न कोई दूरी, न कोई शर्म। क्या यही है वह पार्टी जो खुद को संविधान की रक्षक बताती है? सच्चाई यह है कि कांग्रेस अब एक राजनीतिक दल नहीं, बल्कि कट्टरपंथी विचारधारा की ढाल बन चुकी है।
कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार तुष्टिकरण की जीवंत प्रयोगशाला बन चुकी है। सरकारी योजनाओं में मज़हब के आधार पर आरक्षण, कट्टरपंथी हिंसा में लिप्त लोगों की रिहाई और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध की माँग—यही है उनकी असली राजनीति। देश सेवा में जुटे राष्ट्रवादी संगठनों की तुलना आतंकी संगठनों से करना और कट्टरपंथियों को ‘समुदाय के प्रतिनिधि’ के रूप में पेश करना कांग्रेस की समाज-विरोधी मानसिकता को उजागर करता है।
जब मोदी सरकार ने ट्रिपल तलाक जैसे सामाजिक कलंक को खत्म करने के लिए ऐतिहासिक क़दम उठाया, तब कांग्रेस ने उसका विरोध किया। जब अनुच्छेद 370 को समाप्त कर जम्मू-कश्मीर को देश की मुख्यधारा से जोड़ा गया, तो कांग्रेस ने पाकिस्तान की भाषा बोलनी शुरू कर दी। शाहबानो केस से लेकर शायरा बानो तक, कांग्रेस ने हमेशा तुष्टिकरण को प्राथमिकता दी है। जब भी देशहित, गरीबों के हक या महिलाओं के सम्मान की बात आती है, कांग्रेस तुष्टिकरण का रास्ता चुनती है।
वक्फ संपत्तियों की लूट और भ्रष्टाचार पर रोक लगाने के लिए लाया गया नया कानून कांग्रेस को खटक रहा है। क्यों? क्योंकि इससे उनके मौलाना-माफिया गठजोड़ का खेल बिगड़ जाएगा। कांग्रेस को गरीब मुसलमानों की भलाई से कोई लेना-देना नहीं है; उन्हें चाहिए वोट बैंक और वक्फ की ज़मीनों पर राजनीतिक कब्ज़ा।
राहुल गांधी की दोहरी राजनीति अब छुपी नहीं है। दिल्ली में हाथ में संविधान लेकर नाटक करना, और केरल व कर्नाटक में जमात-ए-इस्लामी, एसडीपीआई और पीएफआई जैसे संगठनों के वैचारिक वारिसों के साथ मंच साझा करना—यही है कांग्रेस की असली सोच।
मोदी सरकार जब-जब राष्ट्रहित में कोई निर्णायक कदम उठाती है, कांग्रेस उसका विरोध करने के लिए खड़ी हो जाती है। ट्रिपल तलाक के मामले में कांग्रेस मुस्लिम महिलाओं के साथ नहीं खड़ी होती है। अनुच्छेद 370 पर देश के साथ नहीं, बल्कि पाकिस्तान की बात दोहराती है। वक्फ पारदर्शिता के मुद्दे पर कांग्रेस गरीब मुसलमानों के साथ नहीं, बल्कि भ्रष्टाचारियों के साथ खड़ी होती है। राम मंदिर, सिंदूर, समान नागरिक संहिता—हर विषय पर कांग्रेस असहज हो जाती है, जैसे भारत की संस्कृति उन्हें चुभती हो।
पहलगाम में निर्दोष हिंदुओं से उनका धर्म पूछकर पाकिस्तान समर्थित आतंकियों ने जिस निर्ममता से उनकी हत्या की, वह मानवता को झकझोर देने वाला कायरतापूर्ण हमला था। इस घटना के बाद पूरे देश में पाकिस्तान के खिलाफ जबरदस्त आक्रोश था, और हर भारतीय नागरिक बदला लेने की मांग कर रहा था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार ने ‘ऑपरेशन सिन्दूर’ के माध्यम से आतंक के संरक्षक पाकिस्तान को करारा जवाब दिया। इस ऑपरेशन के तहत भारतीय वायुसेना ने आतंकियों के ठिकानों को चुन-चुनकर निशाना बनाया और सैकड़ों आतंकियों का सफाया किया। यह कार्रवाई इतनी प्रभावशाली थी कि पाकिस्तान की सेना को भी घुटनों पर आना पड़ा।
लेकिन दुःखद बात यह रही कि ऐसे गंभीर मौके पर भी कांग्रेस ने तुष्टिकरण को प्राथमिकता दी। बजाय देश के साथ खड़े होने के, कांग्रेस नेताओं ने पाकिस्तान की भाषा में बयान दिए और वहां की मीडिया में सुर्खियाँ बटोरीं। यह न सिर्फ राष्ट्रीय भावना का अपमान था, बल्कि शहीदों के बलिदान का भी अनादर था।
मोदी सरकार के लिए नागरिक धर्म प्राथमिक है, कांग्रेस के लिए मजहबी तुष्टिकरण। भाजपा के लिए भारत पहले है, कांग्रेस के लिए वोट पहले। मोदी के लिए संविधान सर्वोपरि है।
अब देश तय कर चुका है—तुष्टिकरण की राजनीति नहीं, राष्ट्र निर्माण को समर्थन मिलेगा। कांग्रेस आग से खेल रही है, लेकिन भारत अब जलने नहीं देगा। अब चलेगा तो केवल संविधान, और चलेगा तो केवल मोदी का विकसित भारत।
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