World Environment Day: प्रकृति पर्यावरण संकट के प्रति आगाह कर रही है, हम सावधान नहीं हो रहे
देशभर में पिछले कुछ दिनों से लोग गर्मी से परेशान हैं। दिल्ली की बात करें तो जून की शुरुआत में ही यहां तापमान सामान्य से ज्यादा रह रहा है। हम क्या कर रहे हैं? पंखे से राहत नहीं तो कूलर लगा लिया, कूलर से राहत नहीं मिली तो एसी का सहारा लिया! लेकिन क्या ये मशीनी उपाय, इस समस्या का स्थाई समाधान है? हममें से कितने ऐसे लोग हैं, जिन्होंने अपने जीवन में कम से कम एक पेड़ भी लगाया हो? शायद 10 में से एक भी बड़ी मुश्किल से। आज पर्यावरण दिवस है तो हमें पर्यावरण की बड़ी चिंता होगी, जगह-जगह सेमिनार होंगे, सम्मेलन होंगे और यह विशेष दिवस एक दिन का उत्सव मात्र बनकर रह जाएगा।
क्या साल के सिर्फ एक दिन हम इस मुद्दे पर बात करना, चर्चा करना और एक-दूसरे को जागरूक करना जरूरी समझते हैं? बाकी के 364 दिन हमें इस विषय पर बात करने तक की जरूरत नहीं महसूस होती? करीब पांच दशक पहले तो पर्यावरण दिवस मनाने की आवश्यकता नहीं महसूस की जाती थी। 70 के दशक से आखिर हम किस अघोषित विनाश की ओर बढ़ने लगे कि पर्यावरण संरक्षण को लेकर गंभीर बहस और सम्मेलनों की जरूरत पड़ने लगी! साल 1972 में मानव पर्यावरण विषय पर स्टॉकहोम में संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन हुआ था। इसी की याद में पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरणीय चेतना और पर्यावरण आंदोलन की शुरुआत इसी सम्मेलन से मानी जाती है। स्टॉकहोम सम्मेलन के बाद ही पर्यावरण के प्रति चिंताएं अंतरराष्ट्रीय चर्चा का विषय बन गई।
पर्यावरण दिवस मनाने के पीछे कुछ उद्देश्य रखे गए हैं:
- पर्यावरण की समस्याओं को एक मानवीय चेहरा प्रदान करना
- लोगों को टिकाऊ और समता पूर्ण विकास का कर्ताधर्ता बनाना और उनकी जिम्मेदारी सुनिश्चित करना
- पर्यावरण की समस्याओं के प्रति लोगों में रुचि जगाने में समुदाय विशेष की अहम भूमिका होती है, यह धारणा स्थापित करना
- पर्यावरण संरक्षण के लिए विश्व के सभी देशों औद्योगिक संस्थाओं और लोगों की सहभागिता बढ़ाना आदि
प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध प्रयोग क्यों?
वर्तमान समय में प्रकृति के संसाधनों का हम इतना अंधाधुंध प्रयोग करते जा रहे हैं कि हमें अपनी आगामी पीढ़ियों की चिंता ही नहीं है। पेयजल की बात करें तो हमारी आने वाली पीढ़ी तो दूर, हमारे खुद के लिए वर्तमान में इसकी कमी विकराल समस्या बनती जा रही है। पेड़, कोयला, रेत जैसे अन्य प्राकृतिक संसाधनों का भी यही हाल हो रहा है।
प्रकृति हमें खुद भविष्य के खतरों के प्रति आगाह कर रही है, लेकिन हम सावधान नहीं हो रहे। पर्यावरण से जुड़े कुछ तथ्यों पर गौर करें तो यह न केवल हमें चौंकाती है, बल्कि सावधान भी करती है।
- सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट की रिपोर्ट के अनुसार गंगा और यमुना नदी की दुनिया की 10 सबसे प्रदूषित नदियों में गिना जाता है।
- एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में 13 शहर सिर्फ भारत के हैं।
- हम जो टॉयलेट पेपर इस्तेमाल करते हैं, उसके लिए हर साल करीब 27000 पेड़ काटे जाते हैं।
- अगर एक टन कागज को रिसाइकिल किया जाए तो 20 पेड़ और 7000 गैलन पानी बचाया जा सकता है।
- यही नहीं, इससे जो बिजली बचेगी, उससे 6 महीने तक घर को रोशन किया जा सकता है।
- एक रिपोर्ट के अनुसार भारत वर्ष प्रदूषण के कारण करीब दो लाख करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ता है।
हमको, आपको समझना होगा, ताकि देर न हो जाए
पर्यावरण संरक्षण को लेकर अब केवल चर्चा का समय नहीं रह गया है। जागरूकता अभियानों के बीच सेमिनार और सम्मेलनों से आगे बढ़ते हुए हमको-आपको यह समझना ही होगा पर्यावरण संरक्षण हमारे लिए कितना महत्वपूर्ण है। फिर से मैं वहीं आना चाहूंगी, जहां से मैंने अपनी बात शुरू की थी। हमें अपनी आवश्यकता और विलासिता का अंतर समझना होगा।
हमें जीवन के लिए ऑक्सीजन चाहिए तो हमें पेड़ भी लगाना चाहिए। हमें पीने के लिए पानी चाहिए तो जल संरक्षण भी करना होगा। हमें अपने लिए घर बनाना है, तो बेडरूम, किचन और टॉयलेट की तरह 'रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम' को भी मकान निर्माण में जगह देनी होगी। जल संकट न हो, इसके लिए भूजल स्तर को बनाए रखना होगा। प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग में सावधानी बरतनी होगी।
...और सबसे जरूरी बात इन सारी चर्चाओं को केवल आज के दिन नहीं बल्कि सालों भर जेहन में रखना होगा और अमल में लाना होगा। तभी हम रोजमर्रा की जिंदगी में अपने छोटे-छोटे प्रयासों से पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभा सकते हैं।