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गुजरात चुनाव 2022: भाजपा की रणनीति में विपक्ष का चेहरा और चुनावी जीत का गणित

Sumit Awasthi सुमित अवस्थी
Updated Wed, 30 Nov 2022 01:06 PM IST
सार

सीएम मोदी के नेतृत्व के बगैर 2017 में पहली बार बीजेपी लड़ी और पार्टी को करीब पचास फीसदी (49.05 %) वोट आने के बावजूद मात्र 99 सीटें ही आईं यानी बहुमत से मात्र 8 ज्यादा, जबकि कांग्रेस को 77 सीटें (41.44% वोट शेयर) मिल गई थीं। इस साल तो आम आदमी पार्टी भी मुकाबले में है और वो शहरी इलाकों खासकर सूरत, राजकोट, अहमदाबाद, बड़ौदा में बीजेपी को कड़ी टक्कर दे सकती है क्योंकि इन जिलों में वो स्थानीय स्तर पर अच्छा प्रदर्शन कर बीजेपी और कांग्रेस  दोनों को परेशान कर चुकी है।

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इस बार गुजरात विधानसभा की सभी 182 सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला हो रहा है।
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विस्तार
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अधिकारिक तौर पर अब तक का सबसे छोटा चुनाव प्रचार इस बार गुजरात में हुआ है। ये अवधि रही महज 27 दिनों की। तीन नवंबर को ही तो चुनाव आयोग ने दो चरणों के मतदान का एलान किया था और अब गुरुवार एक दिसंबर को पहले चरण की वोटिंग भी हो रही है। 5 तारीख को दूसरा चरण है और 8 दिसंबर को गुजरात व हिमाचल दोनों प्रदेशों के नतीजे आएंगे। 

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प्रत्याशियों की बात की जाए तो उन्हें इस साल के चुनावों में प्रचार का सबसे कम वक्त मिला है। जबकि जाहिर तौर पर वो इस बार ज़्यादा वक्त चाह रहे थे। उसकी सबसे बड़ी वजह थी कि इस बार गुजरात विधानसभा की सभी 182 सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला हो रहा है। आज तक कभी तीन बड़ी पार्टियां इस तरीके से ट्रायंगुलर कॉन्टेस्ट में नहीं फंसी थी। बीजेपी बनाम कांग्रेस की लड़ाई में इस बार आम आदमी पार्टी ने भी जोरदार लड़ंगी लगाई है।
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इधर, जब मुकाबला कांटे का हो और ट्रायंगुलर भी हो तो जीत-हार के वोटों का फासला कम हो जाता है और जब दो विपक्षी दल आपस में ही भिड़ रहे हों और किसी एक के भी पक्ष में जोरदार लहर न हो तो, सत्तापक्ष के लिए रास्ता आसान हो सकता है, इसलिए कहा जा रहा है कि 2017 विधानसभा चुनाव में सीट के हिसाब से सबसे ख़राब प्रदर्शन करने वाली बीजेपी 2022 में सीटों के लिहाज से सबसे बेहतरीन प्रदर्शन कर सकती है।
 

सीएम मोदी के नेतृत्व के बगैर 2017 में पहली बार बीजेपी लड़ी और पार्टी को करीब पचास फीसदी (49.05 %) वोट आने के बावजूद मात्र 99 सीटें ही आईं यानी बहुमत से मात्र 8 ज्यादा, जबकि कांग्रेस को 77 सीटें (41.44% वोट शेयर) मिल गई थीं। इस साल तो  आम आदमी पार्टी भी मुकाबले में है और वो शहरी इलाकों खासकर सूरत, राजकोट, अहमदाबाद, बड़ौदा में बीजेपी को कड़ी टक्कर दे सकती है क्योंकि इन जिलों में वो स्थानीय स्तर पर अच्छा प्रदर्शन कर बीजेपी और कांग्रेस  दोनों को परेशान कर चुकी है।

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गुजरात चुनाव: भाजपा अपनी तैयारी के लिए लंबी भूमिका बनाती है। - फोटो : अमर उजाला

भाजपा के लिए गुजरात और रणनीति 

दरअसल, इस बार सत्तारूढ़ बीजेपी के लिए राज्य में करीब तीन दशकों की और केन्द्र सरकार के आठ सालों की एंटी-इनकम्बेसी है। जाहिर है बीजेपी के उलझन की एक वजह आम आदमी पार्टी का तेजी से भारतीय राजनीति में उदय होना भी था। केजरीवाल की पार्टी ने पंजाब में शानदार प्रदर्शन किया था और कांग्रेस, बीजेपी व अकाली जैसी पुरानी पार्टियों को घुटने पर ला दिया था।  AAP ने गुजरात में भी दिल्ली व पंजाब की तर्ज पर सस्ती बिजली-पानी का वादा जनता से कर दिया था। करीब सालभर पहले से ही केजरीवाल- सिसोदिया और उनकी टीम ने गुजरातियों से सीधा संवाद स्थापित कर मुख्य विपक्षी कांग्रेस की जगह हथियाने की कोशिश शुरू कर दी थी।


ये सब बातें बीजेपी की टॉप लीडरशिप देख रही थी, समझ रही थी कि जमीन पर युवा वोटरों में AAP पैर जमाने लगी है और तभी एक बहुत ही क्रांतिकारी फैसला मोदी-शाह की जोड़ी ने अपने गुजरात में किया और अब से करीब चौदह महीने पहले सीएम समेत पूरी कैबिनेट बदल कर बिल्कुल ‘युवा’ रूप दे दिया।

पहली बार के विधायक भूपेन्द्र पटेल को सीएम की कुर्सी सौंपी और दो बार के विधायक और एक बार के सांसद विजय रुपानी को सियासी रिटायरमेंट दे दिया गया। ये सब इसलिए ताकि सत्ता विरोधी लहर को दबाया जा सके और फर्स्ट टाइम वोटर को अपने पाले में लाया जा सके।

ये सब बीजेपी तब कर रही थी जब वो 2019 के लोकसभा चुनावों में सभी 26 सीटें (63.11% वोट शेयर) जीत चुकी थी और कांग्रेस के पास महज 32.6% वोट ही थे और AAP की हालत तो कहीं की नहीं थी। लेकिन मोदी-शाह की जोड़ी ने AAP के उदय और कांग्रेस के विघटन को पढ़ लिया और बीजेपी नहीं चाह रही थी कि मामला इस बार AAP के साथ बायपोलर कॉन्टेस्ट का हो जाए यानी केजरीवाल बनाम मोदी की सीधी टक्कर।

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गुजरात विधानसभा चुनाव अब बीजेपी बनाम आप पर केंद्रित हो गया है। - फोटो : अमर उजाला

याद रहे कि हर रैली या भाषणों या इंटरव्यू में बीजेपी के दोनों बड़े नेता कांग्रेस से ही मुकाबले की बात कर रहे थे। AAP को तो कहीं गिन ही नहीं रहे थे। ये विरोधी वोटरों में कन्फ्यूजन पैदा करने की रणनीति थी ताकि विरोधी वोटों में विभाजन किया जा सके। लेकिन इसके बावजूद भी मोदीनॉमिक्स और विकास के एजेंडे पर चुनाव लड़ने वाली बीजेपी के लिए चुनाव के ठीक पहले एक नहीं दो-दो मुसीबतें आईं।

मोरबी पुल हादसे की वजह से विकास मॉडल पर सवाल खड़े हुए, और गोधरा दंगों की पीड़िता बिल्किस बानो के तमाम अपराधियों को राज्य सरकार ने ‘बाइज़्ज़त’ बरी कर दिया..यानी हिंदुत्व की प्रयोगशाला कहे जाने वाले गुजरात चुनाव में सांप्रदायिकता के तड़के अंदेशा बढ़ गया। इन दो बड़े मुद्दों के हाथ में लगने के बाद विपक्ष यानी AAP और कांग्रेस को बीजेपी की स्थानीय सरकार को घेरने का मौका मिला।

महंगाई, बेरोजगारी, और छात्रों के पर्चा लीक के मामले पहले ही बहुत गरम थे, लेकिन अब जब प्रचार खत्म होने को है तो तमाम ओपिनियन पोल की बिनाह पर कह सकते हैं कि इन मुद्दों का बीजेपी ने जोरदार तरीके से मुकाबला किया है और AAP हो या कांग्रेस या फिर बीजेपी के अपने ही बागी हों, ये सब इस चुनावी बिसात में मुहाने पर ही दिख रहे हैं!

बीजेपी की कारपेट बॉमबिंग वाले प्रचार के शोर में ये सभी मुद्दे सुनाई नहीं दे रहे हैं। पीएम मोदी के जबरदस्त प्रचार ने पूरी हवा का रुख पलटने की कोशिश की है। अब विमर्श में भावनात्मक मुद्दे पीएम मोदी ने उछाल दिए हैं कि कांग्रेसी उन्हें औकात दिखाने की बात कर रहे हैं।  कांग्रेस  के मधुसूदन  मिस्त्री ने पीएम मोदी को औकात दिखाने वाली बात एक इंटरव्यू में की थी, साथ ही मोदी अब रैलियों में कहते हैं कि उन्हें हर रोज दो-ढ़ाई किलो गाली खानी पड़ती है। इसी के साथ चुनावों में 'रावण' की भी एंट्री हो ही गई।  और साथ ही साथ 'सद्दाम' की भी। जहां एक ओर मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि पीएम मोदी छोटे से लेकर बड़े हर चुनाव में दिखाई देते हैं और वो सौ सिरों वाले रावण की तरह हो गए हैं वहीं असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा ने कहा कि बढ़ी हुई दाढ़ी में राहुल गांधी सद्दाम हुसैन की तरह दिखाई दे रहे हैं। इस तरह के बयान चुनावों को विकास के मुद्दों से भटका कर भावनात्मक स्तर पर ले जाते हैं। 
 

बीजेपी के स्टार प्रचारक मोदी ये भी कहते हैं-

कांग्रेस गुजरात में मेधा पाटकर के साथ हाथ पकड़कर चलती हैं। वो मेधा पाटकर जो गुजरात के विकास की विरोधी रही हैं। मेधा पाटकर ने राहुल गांधी के साथ भारत जोड़ो यात्रा में शिरकत की थी। पीएम मोदी और एचएम अमित शाह की रैलियों में बाटला हाउस, सर्जिकल स्ट्राइक और पाकिस्तानी आतंकवाद का ज़िक्र भी आख़िरी चरण के प्रचार में जमकर दिखा, और तो और बीजेपी ने रेवड़ी बांटकर चुनाव जीतने के AAP के फॉर्मूले का भी तोड़ निकाल दिया है।  गुजराती अस्मिता से जोड़कर .. ये कहते हुए कि गुजरातियों को मेहनत की कमाई पसंद है, मुफ्तखोरी की नहीं। 

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राजकोट में रोड शो करते अरविंद केजरीवाल। - फोटो : अमर उजाला

कैसे मिलेगा भाजपा को फायदा?

चुनावी पंडित बताते  हैं कि बीजेपी को एक और फायदा मिलेगा और वो है अल्पसंख्यक और साधारण तबके का वोट कांग्रेस और आप में बंटने के कारण। मुसलमानों में AAP की बढ़ती ताकत पर ब्रेक लगाने का काम बहुत हद तक 11-12 सीटों पर लड़ने वाले औवेसी भी कर रहे हैं। उनकी पार्टी  AIMIM भी पहली बार गुजरात के चुनावी मैदान में है, और उनपर ये इल्ज़ाम भी लग रहा है कि मुसलमानों के वोट बैंक में सेंध लगाकर वो बीजेपी की ही मदद कर देते हैं।

2017 के बीते चुनाव में कांग्रेस के सियासी सुपरस्टार रहे हार्दिक पटेल और अल्पेश ठाकोर अब बीजेपी से चुनाव लड़ रहे हैं। ऐसे में बीजेपी के पास इस बार पाने के लिए बहुत कुछ है और ऐसे में इस बार अब तक के इतिहास में सबसे ज्यादा सीटें अगर बीजेपी ले आए और नया रिकॉर्ड बना ले तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

सब जानते हैं कि चुनाव के बाद राज्य में या तो भूपेन्द्र पटेल या इसूदान गधवी या कोई स्थानीय कांग्रेसी ही सीएम बनेंगे ना कि मोदी या केजरीवाल या राहुल गांधी, तो भी चुनाव स्थानीय मुद्दों के बजाए राष्ट्रीय मुद्दों और चेहरे पर ही लड़ा जा रहा है। ऐसे में मोदी का गुजराती नागरिक होने के साथ 12-13 साल तक मुख्यमंत्री होने का उनका सफल अनुभव दोनों विरोधियों पर भारी पड़ जाता है।

  • सीएम मोदी के पहले नेतृत्व में ही बीजेपी ने गोधरा दंगों के बाद 2002 में सबसे शानदार प्रदर्शन किया था जब  49.8% के साथ  अब तक की सबसे ज्यादा 127 सीटें बीजेपी जीती थी, जबकि कांग्रेस 51 सीटों पर ही सिमट गई थी!
  • 2007 में बीजेपी का वोट शेयर लगभग समान ही रहा लेकिन सीटें घटकर 117 (49.12%) पर आ गई।
  • 2012 में भी बीजेपी के आंकडों में कमी आई और वो 115 सीटें (47.85%) पर रह गयी, जबकि कॉंग्रेस आगे बढ़ी और उसे 61 सीटें (38.93%) के साथ मिलीं।
  • 2017 में मोदी पीएम बनकर दिल्ली आ चुके थे और उनकी गैरहाजिरी में राज्य में  पाटीदारों और आदिवासियों के आंदोलन हुए।
  • उसी के साए में चुनाव भी हुए।  बीजेपी गिरकर डबल डिजीट यानी 99 सीटों पर आ गई लेकिन उसका वोट शेयर करीब दो फीसदी बढ़ा और (49.05% ) तक पहुंच गया।


इस बार गुजरात कांग्रेस में बड़े और प्रभावी नेताओं की कमी भी महसूस की जा रही है। अहमद पटेल का कोरोना की वजह से स्वर्गवास हो चुका है। सोनिया- प्रियंका ने गुजरात में प्रचार किया ही नहीं और राहुल ने मात्र एक दिन का वक्त दिया प्रचार के लिए। ऐसे में चुनाव प्रचार पूरी तरह से बीजेपी बनाम AAP रहा।


वैसे, आम आदमी पार्टी को जो अभी तक दो बड़ी सफलताएं मिली हैं वो उन राज्यों में मिली हैं जहां पर कांग्रेस शासन में रही है और बीजेपी बेहद कमजोर रही है। दिल्ली और पंजाब में केजरीवाल ने राहुल गांधी की सत्तारुढ पार्टी को शिकस्त देकर वहां की सत्ता संभाली है। बीजेपी की सरकारों पर झाड़ू लगाने का दायित्व अभी केजरीवाल के लिए अधूरा ही है। 

ऐसे में आप गुजरात में मोदी का किला छीन पाएगी वो संदेह के ही घेरे में है। यही बात तमाम सर्वे में निकल कर आ रही है। ऐसे में त्रिकोणीय संघर्ष  बीजेपी के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकता है और ताजा ओपिनियन पोल की मानें तो 130 का आंकड़ा कोई दूर की कौड़ी नहीं दिखती। 

 

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें blog@auw.co.in पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।

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