...और इतिहास की दीर्घा में विराजित हो जाएगा भारत का पुराना संसद भवन
राष्ट्रपति भवन से 750 मीटर की दूरी पर, यह ऐतिहासिक इमारत संसद मार्ग पर स्थित है जो सेंट्रल विस्टा को पार करता है और विजय चौक, इंडिया गेट (अखिल भारतीय युद्ध स्मारक), राष्ट्रीय युद्ध स्मारक (भारत), उपराष्ट्रपति के घर से घिरा हुआ है।
विस्तार
पूरे 96 सालों तक अतीत के अनुभव के आधार पर भारत के वर्तमान और भविष्य पर चिन्तन-मनन के साथ शासन चलाने के लिए विधान निर्माण का केन्द्र रहा संसद भवन 28 मई को नए संसद भवन के उद्घाटन के साथ ही भूतपूर्व हो जाएगा। उसी दिन वास्तुकला के इस बेजोड़ नमूने के साथ ही भारत का संसदीय इतिहास भी एक नया मोड़ ले लेगा। अपने अतीत के साथ इतिहास बन रहे भारत के संसद भवन ने 1927 से लेकर 1952 तक ब्रिटिश राज के लिए भारत के विधान तय किए और सन् 1951-52 में सम्प्रभुता सम्पन्न भारत गणराज्य के पहले चुनाव से लेकर 2019 तक चुनी गई 17 लोकसभाओं को विराजमान किया। निरन्तर 71 सालों तक संसद का स्थाई सदन राज्यसभा भारत के भविष्य को लेकर चिन्तन करती रही।
इसी भवन में 14 और 15 अगस्त की मध्य रात्रि को पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का वह कालजयी भाषण हुआ था जो ‘‘ट्रीस्ट विद डेस्टिनी’’ याने कि नियति के साथ साक्षात्कार, के नाम से विख्यात हुआ। आजादी के बाद इस संसद भवन ने राष्ट्र निर्माण की दिशा में कई ऐतिहासिक विधान बनाए जिनसे भारत को विश्व पटल पर नई सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और सामरिक पहचान मिली तथा देश बैलगाड़ी युग से अन्तरिक्ष युग तक पहुंच गया।
सन् 1927 में बना था सेंट्रल एसेंबली भवन
सर्व विदित ही है कि भारत की ब्रिटिश राजधानी कालकत्ता थी जो कि प्रशासनिक सहूलियत के लिए 1911 में दिल्ली स्थानान्तरित हुई। ब्रिटिश शासन व्यवस्था दिल्ली आ जाने के बाद दिल्ली में ही वायसराय, उनके प्रशासन और विधायिका के लिए दिल्ली में ही भवन बनने लगे। इन सबके डिजाइन की जिम्मेदारी सर एडविन लुटियन और हरबर्ट बेकर को सौंपी गई। इन्होंने अपनी विलक्षण प्रतिभा का प्रदर्शन कर भारत के शासन के संचालन के लिए इन तीनों भवनों के डिजाइन तैयार किए।
इनमें सेंट्रल एसेम्बली भवन 1927 में और वायसराय हाउस 1929 में बनकर तैयार हुआ। वायसराय हाउस आजादी के बाद राष्ट्रपति भवन और केन्द्रीय एसेंबली स्वतंत्र भारत का संसद भवन कहलाया। ब्रिटिश उपनिवेश की याद दिलाने वाले चिन्हों को मिटाने के अभियान में कुछ अन्य इमारतों के साथ ही केन्द्रीय एसेंबली भवन (संसद भवन) की जगह बहुचर्चित सेंट्रल बिस्टा के अन्तर्गत नया संसद भवन तो मिल गया मगर अंग्रेजों की याद दिलाने वाले वायसराय हाउस (राष्ट्रपति भवन) के भविष्य को लेकर भी लोक जिज्ञासा स्वाभाविक ही है।
संसद मार्ग पर पुराना संसद भवन
राष्ट्रपति भवन से 750 मीटर की दूरी पर, यह ऐतिहासिक इमारत संसद मार्ग पर स्थित है जो सेंट्रल विस्टा को पार करता है और विजय चौक, इंडिया गेट (अखिल भारतीय युद्ध स्मारक), राष्ट्रीय युद्ध स्मारक (भारत), उपराष्ट्रपति के घर से घिरा हुआ है। हैदराबाद हाउस, सचिवालय भवन, प्रधानमंत्री कार्यालय और निवास, मंत्रिस्तरीय भवन और भारत सरकार की अन्य प्रशासनिक इकाइयां। अब पता नहीं संसद मार्ग का नाम क्या होगा?
इसी भवन में भारत का संविधान भी बना
संसद भवन का निर्माण 1921 और 1927 के बीच किया गया था। इसे जनवरी 1927 में इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल के आसन के रूप में खोला गया था। भारत में ब्रिटिश शासन के अंत के बाद, इस भवन में सन् 1946 से जनवरी 1950 तक 2 साल 11 महीने और 18 दिन संविधान सभा चली और फिर 1950 में भारत का संविधान लागू होने के बाद भारतीय संसद द्वारा इसे अपने अधिकार में ले लिया गया। भारत में पाए गए चौसठ योगिनी मंदिरों को इसकी प्रेरणा माना जाता है। जबकि नया संसद भवन बुद्ध की कर्ण मुद्रा पर आधारित है।
कुल 83 लाख में बना था संसद भवन
अब अतीत के पन्नों में अपनी जगह बनाने जा रहा संसद भवन कुल 83 लाख की लागत से 24,281 वर्गमीटर क्षेत्र में बना था। जिसमें लोकसभा के 552 सदस्यों और राज्यसभा के 245 सदस्यों वाले सदनों के साथ ही 436 सीट वाला एक सेंट्रल हॉल भी था। सेंट्रल हॉल संसद भवन में एक महत्वपूर्ण स्थान है जहां विशेष अवसरों पर दोनों सदनों के संयुक्त सत्र आयोजित किए जाते हैं। इसका उपयोग भारत के राष्ट्रपति द्वारा औपचारिक कार्यों और महत्वपूर्ण अवसरों के लिए भी किया जाता है।
इसके अलावा संसद भवन में कई समिति कक्ष हैं जहां संसदीय समितियां अपनी बैठकें आयोजित करती हैं और कानून और निरीक्षण से संबंधित विभिन्न मामलों पर चर्चा करती हैं। इसी में संसद पुस्तकालय भी है जो कि संसद भवन का एक अनिवार्य हिस्सा है और संसद के सदस्यों के लिए संसाधन और शोध सामग्री प्रदान करता है। इसी इमारत में लोकसभा के अध्यक्ष और राज्य सभा के सभापति के कक्ष होते हैं। संसद भवन में ही विभिन्न मंत्रियों के अपने आधिकारिक कर्तव्यों और बैठकों को पूरा करने के लिए उनके कक्ष होते हैं। इन विशिष्ट कमरों के अलावा, संसद भवन परिसर के भीतर कार्यालय, स्वागत क्षेत्र, प्रशासनिक स्थान और अन्य सहायक सुविधाएं भी हैं।
नए भवन में लोकसभा के लिए 888 सीटें
दिल्ली में ब्रिटिश राजधानी स्थापित होने के लगभग एक सदी बाद 2011 में स्थानाभाव के कारण नए संसद भवन की आवश्यकता महसूस की गई थी। इसके लिए तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष श्रीमती मीरा कुमार द्वारा 2011 में एक समिति का गठन किया गया था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2019 में दूसरी बार सत्ता में आने पर सेंट्रल बिस्टा परियोजना शुरू की जिसका भाग नया संसद भवन भी था।
नए संसद भवन का 28 मई को उद्घाटन होने वाला है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसका उद्घाटन करेंगे। हालांकि, प्रमुख विपक्षी दल इसका उद्घाटन राष्ट्रपति के माध्यम से चाहते थे। यह संसद भवन भारतीय स्थापत्य शैली के आधार पर बना है। इसमें लोकसभा के लिए 888 सीटें होंगी। तो सवाल उठता है कि क्या अगले परिसीमन में लोकसभा की सीटें बढ़ेंगी? नया संसद भवन 65 हजार स्क्वेयर मीटर में बना है।
इसे त्रिकोण आकार में बनाया गया है। नए संसद भवन में लोकसभा की 888 सीटें होंगी, जबकि राज्यसभा के लिए 384 सीटें रखी जाएंगी। यही नहीं संयुक्त सत्रों की स्थिति में 1,272 सीटों की व्यवस्था की गई है। इसे राष्ट्रीय पक्षी मोर की थीम पर बनाया गया है। जानकारों का कहना है कि इसे त्रिकोण आकार में इसलिए बनाया गया है ताकि जगह का सही इस्तेमाल किया जा सके। भारतीय संसद में राष्ट्रपति तथा दो सदन-राज्य सभा (राज्यों की परिषद) एवं लोकसभा (लोगों का सदन) होते हैं। राष्ट्रपति के पास संसद के दोनों सदनों में से किसी भी सदन को बुलाने या स्थगित करने अथवा लोकसभा को भंग करने की शक्ति है।
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