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विश्व साहित्य का आकाश: एली विजेल, होलोकास्ट और नोबेल पुरस्कार

Dr. Vijay Sharma डॉ. विजय शर्मा
Updated Mon, 18 Aug 2025 05:33 PM IST
सार

एलि विजेल (Elie Wiesel) ने कलम चलाई और अपने क्रूरतम अनुभवों को आत्मकथात्मक संस्मरण में पिरो दिया। किताब का नाम बहुत संक्षिप्त है, मात्र एक शब्द का नाम, ‘नाइट’। 

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history of literature Elie Wiesel Nobel Prize holocaust novel
किताबों की दुनिया - फोटो : Adobe Stock
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विस्तार
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होलोकास्ट बीसवीं सदी का सर्वाधिक भयंकर हादसा है। नाजियों ने सोची-समझी रणनीति के तहत साठ लाख यहूदियों को भूनकर, गैस चैम्बर में डाल कर मौत के घाट उतार दिया। जो थोड़े से बच रहे, उनमें से अधिकांश मौन ही रहे। मनोविज्ञान के अनुसार व्यक्ति बड़े हादसों की स्मृति को भुला देना चाहता है, यह जीवित रहने के लिए आवश्यक है। बचे लोग स्तंभित थे, क्योंकि जो यातना शिविर में थे, उन्हें किसी व्याख्या की जरूरत नहीं है।

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जो यातना शिविर में नहीं थे वे, भीतर के हादसों, अनुभवों को कभी समझेंगे नहीं। बचे हुए बहुत थोड़े-से लोगों ने साक्षात्कार दिए, अपने अनुभव को शब्दों में दोहराया। कुछ ने फिल्म बनाई, कुछ ने संस्मरण लिखे, उसमें से कुछ लोग साहित्य की विभिन्न विधाओं की ओर गए। दु:खद हादसों-अनुभवों को साझा करने से व्यक्ति कड़वाहट से छूट जाता है। कलम चलाना साझा करने का एक माध्यम है।

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होलोकास्ट- एलि विजेल का अपना अनुभव

इस भयंकर हादसे से किसी तरह जिंदा बचे हुए एलि विजेल (Elie Wiesel) ने कलम चलाई और अपने क्रूरतम अनुभवों को आत्मकथात्मक संस्मरण में पिरो दिया। किताब का नाम बहुत संक्षिप्त है, मात्र एक शब्द का नाम, ‘नाइट’। नाम भले छोटा है, मगर जब आप एली विजेल के किशोर जीवन में हुए नाजी अत्याचारों की शृंखला को पढ़ते हैं, तो ये घटनाएं अंतहीन रात्रि का रूप धारण कर लेती हैं।


30 सितम्बर 1928 को ट्रान्सिलवेनिआ में पैदा हुए एली ने 57 किताबें लिखीं, मगर वे जाने जाते हैं, अपनी किताब ‘नाइट’ के लिए। उन्होंने इंग्लिश एवं फ्रेंच दोनों भाषाओं में लेखन किया। यिद्दिस अपनी मातृभाषा में तो लिखते ही थे। यह रोमैनियन यहूदी बाद में अमेरिका में जा बसा। होलोकास्ट से बच रहे एली मात्र एक लेखक न होकर एक प्रोफेसर, राजनैतिक एक्टिविस्ट भी थे।  

मई 1944 में उनके माता-पिता एवं तीन बहनों के साथ उन्हें भी ऑश्वित्ज यातना शिविर में भेज दिया गया। मां और बहनों को यहां गैस चेम्बर में डाल कर मार डाला गया। पिता-पुत्र को बुनामोनोविट्ज स्लेव लेबर कैंप में भेज दिया गया। करीब आठ महीने बाद उन्हें ‘डेथ मार्च’ के लिए बुचेनवाल्ड की ओर कूच करने का आदेश दिया गया। यहां उनके पिता क दर्दनाक मृत्यु हुई।

एली को अप्रैल 1945 में कैंप से रिहा कर लिया गया। इसके बाद वे एक लंबे समय तक जीवित रहे। न्यूयॉर्क में 2 जुलाई 2016 को 87 साल की पकी उम्र में उनकी मृत्यु हुई।

‘एंड द वर्ल्ड हैज रिमेंड साइलेंट’

द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद वे फ्रांस में बस गए। वहीं उन्होंने शिक्षा ग्रहण की, तथा वहां फ्रेंच एवं इजरायली अखबारों के लिए लिखने लगे। पर कुछ वर्षों बाद 1956 में वे अमेरिका चले गए और 1963 में वे अमेरिकी नागरिक बन गए। एली ने चार साल (1972-1976) न्यूयार्क के सिटी कॉलेज में पढ़ाया। फिर वे बोस्टन विश्वविद्यालय में पढ़ाते हुए ह्युमनिटीज विभाग में एंड्रू ड्बल्यू. मेलोन प्रोफेसर बने।

‘द टाउन बियोन्ड द वाल, ‘सोल्स ऑन फायर’, ‘मेसेन्जर ऑफ गॉड: बिबलिकल पोर्ट्रेट्स एंड लेजेन्ड्स’, ‘द टेस्टामेन्ट’, ‘द फिफ्थ सन’, ‘ट्वलाइट’, ‘इविल एंड एक्जाइल’, ‘द फॉरगोटन’ आदि उनकी कुछ किताबों के नाम हैं।

मगर फ्रांस में रहते उन्होंने जिस पहली किताब को यिद्दिस भाषा में लिखना प्रारंभ किया, वह थी, ‘एंड द वर्ल्ड हैज रिमेंड साइलेंट’ बाद में यही किताब संक्षिप्त रूप में इंग्लिश भाषा में ‘नाइट’ (1958) में प्रकाशित हुई। उनकी सारी किताबें उनके यातना शिविर में रहने और बचे रहने के कथानक पर आश्रित हैं।

होलोकास्ट से निकला व्यक्ति भला और क्या लिखेगा! लेकिन उनकी ये किताबें मात्र उनके व्यक्तिगत संस्मरण न रह कर वैश्विक कथानक में परिवर्तित हो जाते हैं। और होलोकास्ट क्यों हुआ, नैतिक यातना जैसे विषय पर गहन चिंतन-मनन बन जाते हैं तथा आध्यात्मिक ऊंचाई तक जाते हैं। वे वैश्विक अत्याचार की निंदा करते हैं। इन्हीं गुणों के कारण एली विजेल को 1968 का शांति का नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ।

history of literature Elie Wiesel Nobel Prize holocaust novel
एलि विजेल नॉवेल - फोटो : Freepik.com

ऑस्ट्रिया में जन्मी मैरियन (27 जनवरी 1931-2 फरवरी 2025) भी एली की भांति होलोकास्ट से जीवित बची स्त्री हैं। इस अनुवादक ने अपने पति एली विजेल की कई किताबों का फ्रेंच से इंग्लिश में अनुवाद किया है। हाल में उनके द्वारा अनुवादित ‘नाइट’ का नया संस्करण प्रकाशित हुआ है।

जहां एली ने अपनी किताब अपने माता-पिता एवं अपनी छोटी बहन को समर्पित की है, वहीं मैरियन ने यह अनुवाद अपने ग्रैंडपैरेंट्स को समर्पित की है, जो उस रात में गायब हो गए। किताब की भूमिका पढ़ते हुए आप प्रत्येक वाक्य पर ठहर जाते हैं। फिर जब आगे बढ़ते हैं, तो यह निष्कपट, मार्मिक एवं भयंकर गद्य आपको जकड़ लेता है। हर वाक्य आपको उस खौफनाक दुनिया में ले जाता है।

पेज 29 पर वे अपनी मां और छोटी बहन को आखिरी बार देखने की बात लिखते हैं, ‘गदा भांजता हुआ एक एसएस हमारी ओर आया। उसने आदेश दिया: आदमी बांए! औरतें दांए!’ (मैन टू द लेफ्ट! वीमेन टू द राइट) ठंडे लहजे में बोले गए इन आठ शब्दों के बाद उन्होंने अपनी मां-बहन दोनों को फिर कभी नहीं देखा। आप आगे पढ़ते जाते हैं और सिहरते जाते हैं।

यह मास्टरपीस यातना शिविर में होने वाले मात्र दिन-प्रतिदिन के अत्याचार से बहुत आगे की बात करता संस्मररण है। यह तमाम व्यक्तिगत दार्शनिक प्रश्नों से टकराता चलता है, जो अंतत: वैश्विक जीविजिषा के प्रश्न हैं।

146 पन्नों की यह किताब पिता-पुत्र के करीबी संबंध के अलावा जीवित रहने केलिए कुछ भी करने को तैयार लाचार इंसानों की गाथा है। एक अन्य घटना देखिए: ‘फादर! फादर! उठो। वे आपको बाहर फेंकने वाले हैं...’

उनका शरीर निष्चल पड़ा रहा।
दो कब्र खोदने वालों ने मेरी गर्दन पकड़ कर कहा: उसे छोड़ दो। देखते नहीं वह मर चुका है?’ (पेज 99)
पिता अभी मरे नहीं थे, वे जीवित थे।

संवेदनशील लोगों को यह किताब अवश्य पढ़नी चाहिए। बल्कि हर आदमी को एली विजेल की किताब ‘नाइट’ पढ़नी चाहिए ताकि वह किसी पर त्याचार करने से पहले कम-से-कम एक बार कांप जाए।



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डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें blog@auw.co.in पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।

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