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विश्व साहित्य का आकाश: गॉन विद द विन्ड- गृहयुद्ध,भूख, गुलामी और बलात्कार

Dr. Vijay Sharma डॉ. विजय शर्मा
Updated Tue, 30 Sep 2025 05:48 PM IST
सार

  • ‘गॉन विद द विन्ड’- बस यही एकमात्र किताब लिखी मार्ग्रेट मिशल ने और अमर हो गई। हालांकि उसके जाने के बाद एक और पाण्डुलिपि मिली, जो बाद में प्रकाशित भी हुई, पर दुनिया भर के पाठक मार्ग्रेट मिशेल को ‘गॉन विद द विन्ड’ लिए ही जानते-मानते हैं।

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history of world literature Gone with the Wind Novel by Margaret Mitchell
नॉवेल- ‘गॉन विद द विन्ड’ - फोटो : Freepik.com
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विस्तार
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कई बार अजीब संयोग घटित होते हैं। एक स्त्री अपने टखने की चोट के कारण बिस्तर पर पड़ी हुई है अत: समय व्यतीत करने केलिए लगातार पढ़ती रहती है और किताबों की आमद केलिए अपने पति पर निर्भर करती है। इतना ही नहीं किताबें पढ़ कर उनकी खामियां निकालती है। और ये लो! एक दिन उसकी किताब की मांग के स्थान पर उसे क्या मिलता है?

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एक टाइपराइटर! टाइपराइटर देते हुए पति मजाक में कहता है, ‘अगर मनमाफिक किताब चाहिए, तो तुम खुद क्यों नहीं लिखती?’

नतीजा हुआ ‘गॉन विद द विन्ड’ बस यही एकमात्र किताब लिखी मार्ग्रेट मिशल ने, और अमर हो गई। हालांकि उसके जाने के बाद एक और पाण्डुलिपि मिली, जो बाद में प्रकाशित भी हुई। पर दुनिया भर के पाठक मार्ग्रेट मिशेल को ‘गॉन विद द विन्ड’ लिए ही जानते-मानते हैं। यह कल्ट किताब 1936 में प्रकाशित हुई। इसे पुलित्जर पुरस्कार प्राप्त हुआ और आज भी यह सर्वाधिक बिकने और पढ़ी जाने वाली किताबों की सूचि में शामिल है।
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एक सूत्र के अनुसार आज भी यह बाइबिल के बाद सबसे अधिक बिकने वाली किताब है। प्रकाशित होने पर द न्यूयॉर्क टाइम्स ने इसे ‘बुक ऑफ द टाइम्स’ का खिताब दिया। और उसी साल इसे अमेरिकन बुकसेलर्स एसोसियेशन का नेशनल बुक अवॉर्ड भी मिला। इस उपन्यास को ‘महान अमेरिकन उपन्यास’ का खिताब प्राप्त है।

कई बार केवल एक रचना से ही लेखक अमर हो जाता है। अब तक इसकी करीब 30 मिलियन प्रतियां बिक चुकी हैं। 1949 में गुजर जाने वाली मार्गरेट मिशेल ने कभी न सोचा होगा कि वे लेखक बनेंगी और एक सर्वाधिक प्रसिद्ध लेखक बन जाएंगी।

बिना किसी ताम-झाम के सरल तरीके से कही बात भी बहुत असरदार होती है, दशकों, सदियों तक अपना प्रभाव डालती है। सरलता के साथ सुंदरता का योग साहित्य में सदा से सराहा गया है। पाठक ऐसे साहित्य पर खूब मुग्ध होता है, उसे यह बहुत अपना-सा लगता है। नायक-नायिका के साहस, प्रेम, प्रेम की तड़फ और जीवन की जद्दो-जहद में कहीं उसे अपना भी संघर्ष नजर आता है। वह ऐसी रचनाओं की बहुत कद्र करता है, क्योंकि ऐसी रचनाएं उसे भीतर तक स्पर्श करती हैं।

‘गॉन विद द विन्ड’ पर बनी फिल्म

आसानी से इस उपन्यास की रचना नहीं हुई। 1900 में अमेरिका के अटलांटा में पैदा हुई मार्गरेट मिशल ने दस वर्ष के कठिन परिश्रम के बाद अपना एकमात्र उपन्यास ‘गॉन विद द विन्ड’ समाप्त किया। साक्षात्कार से परहेज करने वाली लेखिका का इरादा इसे ‘टुमारो इज अनादर डे’ शीर्षक देने का था। यही उपन्यास का अंतिम वाक्य भी है। लेकिन बाद में उसने एर्नेस्ट डॉसन की कविता की पंक्ति ‘गॉन विद द विन्ड’ से लेकर शीर्षक रखा। 1939 में इस उपन्यास पर इसी नाम से एक फिल्म बनी, फिल्म ने भी सारे रिकॉर्ड तोड़े, आठ ऑस्कर पाए।

इस कलात्मक, क्लासिकल, कल्ट उपन्यास के विषय में इसिहासकारों का कहना है, इसने युद्ध पूर्व के साहित्य को पूरी तरह से उलट कर रख दिया। लेकिन मिशेल अपनी पाण्डुलिपि किसी को दिखाना नहीं चाहती थीं, दोस्तों के आने पर छिपा देतीं। उन्होंने इस उपन्यास में गृहयुद्ध, भूख, हत्या, बलात्कार, प्रेम, हृदय भग्न, गुलामी तमाम बातों को समेटा है।

अक्सर ऐसे विषय के इर्द-गिर्द घूमने वाली किताबें निराशा से भरी होती हैं, लेकिन यहां सारी कठिनाइयों के बावजूद नायिका स्कारलेट ओ’हारा का हृदय आशा से भरा हुआ है। उसका हृदय और उसकी जिजीविषा इस रचना का केंद्र है। स्कारलेट हद दर्जे की आशावादी स्त्री है।

यह गाथात्मक उपन्यास एक काल्पनिक चरित्र स्कारलेट ओ’हारा के इर्द-गिर्द बुना गया है। स्कारलेट एक धनी खेतीहर की लाड़ली बेटी है। लेकिन अब गृहयुद्ध के बाद उसके चारों ओर का समाज भहरा रहा है, लोग हाथ खड़े कर चुके हैं। अटलांटा नष्ट हो चुका है, मगर वह निराश नहीं है। इसके लिए वह साम, दाम, दंड, भेद कोई भी नीति अपनाने को तैयार है, अपनाती है। वह स्वार्थी बन जाती है, सिर्फ और सिर्फ खुद और अपने आसपास के लोगों के हित के बारे में सोचती है। बाकी सब उसके लिए अप्रासंगिक हो जाता है।

नाजों में पली नायिका का शाश्वत तकरार करने वाला साथी कहता है, ‘शहर के सबसे भले लोग भूखे हैं’ और नायिका का उत्तर शब्द में नहीं, उसके कार्य में फलित होता है। अटालांट के जलने, भहराने के बाद जब स्कारलेट ओ’हारा अपनी जमीन, अपने पैतृक घर तारा लौटती है और जो कुछ वह कर गुजरती है, उसका सटीक चित्रण इस रचना में हुआ है। ऐसा विरल, ऐसा जीवंत चित्रण विश्व साहित्य की थाती है। उसका जो नष्ट हो गया है, सारा जो कुछ उसने खो दिया है, उस सबका सोग मनाने केलिए वह खुद को मात्र एक रात की मोहलत देती है।

अगली सुबह वह एक दूसरी स्त्री है। मजबूत, भविष्य से जूझने केलिए दृढ़ प्रतिज्ञ स्त्री। अब वह लड़कों के ध्यानाकर्षण केलिए लालायित, ईर्ष्या-द्वैष से भरी एक किशोरी नहीं बल्कि दायित्वबोध से संचालित वयस्क है। यह उपन्यास ‘कमिंग ऑफ एज’ का उपन्यास है। मार्ग्रेट मिशेल के शब्दों में, ‘स्कारलेट पीछे मुड़ कर देखने वाली न थी।’ कितना महत्वपूर्ण संदेश है जीवन केलिए!

उसका साथी रेट बटलर का यह कथन कितना अर्थपूर्ण है, ‘साम्राज्य बनाने में पैसा है, लेकिन भग्न साम्राज्य में भी उससे अधिक है।’ और स्कारलेट भग्न साम्राज्य से जो कर दिखाती है वह कहने की बात नहीं है, इसे खुद पढ़ कर देखना होगा। यह कथन बहुत लोगों को उत्साहित नहीं करेगा, आशा से नहीं भर देगा। परन्तु इसने स्कारलेट को नई दिशा दी। स्कारलेट ओ’हारा, रेट बटलर, मेलनी, एशले, मैमी इसके सारे चरित्र कई पीढ़ियों के लिए अमेरिकन चेतना में शामिल हो गए हैं।

कुछ लोग उपन्यास की सफलता का सेहरा एक स्त्री के सिर नहीं बांधना चाहते थे, ऐसे लोगों ने हवा चलाई, उपन्यास तो असल में उसके पति ने लिखा है। जॉर्जिया में स्थापित यह अनोखा कथानक हजार से ऊपर पन्नों में चलता है। मेरे पास पॉकेटबुक संस्करण 1968 का 26वां प्रिन्ट है, जिसमें केवल 862 पन्नें हैं। 1936 में मात्र 3 डॉलर की मूल किताब 1,037 पन्नों की है।

आज भी मनुष्य के लचीले स्वभाव, राख से भी उठ खड़े होने की क्षमता, आशावादिता, आश्चर्यजनक चित्रण और भाषा के लिए ‘गॉन विद द विन्ड’ का उदाहरण दिया जाता है। अब तक विभिन्न भाषाओं में 155 संस्करण हो चुके हैं। उन्नीसवीं सदी के प्रारंभ में अमेरिकी सिविल वार और रिकंस्ट्रक्शन के दिनों की इस क्लासिक किताब को एक बार शुरू करने पर बिना पूरा किए छोड़ना कठिन है।


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डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें blog@auw.co.in पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।

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