विश्व साहित्य का आकाश: हाईपेशिया- विद्रोहिणी फिलॉस्फर
कुछ किताबें आपके साथ लंबे समय तक सफर करती हैं, ‘हाईपेशिया’ उनमें से एक ऐसी ही किताब है। मात्र 225 पन्नों की एडवर्ड जे. वाट्स की किताब ‘हाईपेशिया: द लाइफ एंड लेजेंड ऑफ एन एंसियेंट फिलॉसफर’ (ऑक्सफोर्ड युनिवर्सिटी प्रेस) एक लंबे शोध का परिणाम है। किताब के अंतिम 60 पन्नों में दिए संदर्भ इसे आधिकारिक बनाते हैं।
सत्य बोलने की सजा सुकरात को भुगतनी पड़ी, सत्य का पक्ष लेने के लिए गैलेलियो को नहीं बक्शा गया, तो एक औरत भला कैसे माफ की जा सकती है। मिले कितनी भी सजा, सत्य कहने वाले हर युग में हुए हैं, हर युग में होते रहेंगे। फिर औरत तो हर युग में सताई जाती है, इसमें कौन-सी नई बात है। ऐसी ही एक औरत हुई चौथी सदी में, रोमन-मिश्र में। गैलेलियो से काफी पहले। उसका नाम है, हाईपेशिया।
पिता की लाड़ली हाईपेशिया अपने पिता थिओन की शिष्या है, उनके यहां आने वाले अन्य छात्रों की गुरु भी। यह प्रतिभाशालिनी युवती एक साथ कई विषयों में पारंगत थी, शोध और तर्क उसके अस्त्र-शस्त्र थे। हाईपेशिया का पिता थिओन स्वयं प्रकांड विद्वान, कई विषयों का ज्ञाता और कुशल शिक्षक थे। अपने समय का एक सबसे बड़ा गणितज्ञ। मगर वह उनसे भी बड़ी विदुषी है।
ज्ञान-विज्ञान की खोज और शिक्षण
हाईपेशिया किसी धर्म विशेष में विश्वास नहीं रखती है, उसका एक ही धर्म है, ज्ञान-विज्ञान की खोज और शिक्षण। यहां तक कि जब बाहर सब कुछ जल रहा है, वह अपने शोध में व्यस्त है। उसके लिए तर्क-विचार ही उसका जीवन है। बाहर सब एक-दूसरे के दुश्मन बने हुए हैं, मार-काट मची हुई है, हाईपेशिया नक्षत्र और ग्रहों की गति तथा सूर्य-पृथ्वी की गति के अध्ययन में रत है।
वैज्ञानिक, गणितज्ञ, दार्शनिक, आकाशीय पिंडों का अध्ययन करने वाली हाईपेशिया को उसके छात्र बहुत सम्मान देते हैं। कई छात्र उसकी आराधना करते, उससे प्रेम भी करते, पर हिम्मत न है, बोल पाने की। उसका रुतबा ही कुछ ऐसा है। उसके शिष्यों में स्वतंत्र नागरिक और गुलाम दोनों शामिल हैं।
जीवन को ज्ञान के प्रति समर्पित हाईपेशिया के तीन शिष्य खास उसके मुरीद हैं। एक गुलाम और दो स्वतंत्र नागरिक- साइनेसियुस और ओरेस्टस तीनों उसे चाहते हैं, तीनों के मन में उसे पाने की लालसा है। युवा गुलाम और वृद्ध गुलाम एसपासियस दोनों हाईपेशिया को उसके अध्ययन-शोध-शिक्षण में सहायता देते हैं।
हाईपेशिया के मन में यौनिकता को लेकर अगर कोई भाव है, तो यही कि उसके पेशे, उसके जीवन में संभोग का कोई स्थान नहीं है। वह ओरेस्टस के प्रस्ताव को अभद्र तरीके से ठुकरा देती है। प्रश्न उठता है, क्यों उसके साथ ऐसा अमानवीय व्यवहार किया गया? क्या उसकी प्रतिभा से वास्तव में धर्म को खतरा था? उसकी सुंदरता को हासिल न कर पाने की सजा उसे दी गई?
ओरेस्टस सोचता है कि वह ईसाइयों को मार भगाएगा, उसे मालूम नहीं था कि वे टिड्डी दल की तरह चले आ रहे हैं। उसके बाकी शिष्य उसे क्यों न बचा सके? उसके शिष्य विशेष रूप से स्वतंत्र नागरिक शिष्य, उसकी तरह साहसी क्यों न हुए? उसके शिष्यों ने ईसाई धर्म क्यों स्वीकार कर लिया? भय से? अपने मत पर पूर्ण विश्वास न होने के कारण? या फिर पद-सत्ता लोभ में आकर? शिष्य उसकी तरह ज्ञान-विज्ञान को ले कर जुनूनी क्यों न हुए?
ओरेस्टस ईसाई बन जाता है, आगे चल कर एलेक्जेंड्रिया का प्रीफेक्ट बनता है। चाह कर भी पोप के कोप से हाईपेशिया को नहीं बचा पाता है।
ईसाई धर्म नया-नया उदय हुआ है और तीसरी ईसवी में वे वह सब कुछ नष्ट कर रहे हैं, जो उन्हें अपने अनुकूल नहीं लग रहा है। विज्ञान उनमें से एक है। इसीलिए नवईसाइयों ने एलेक्जेंड्रिया की लाइब्रेरी को जला डाला। जो भी ईसाई बनने को राजी न हुआ उसे नष्ट कर डाला। ज्ञान से धर्म और धर्म से ज्ञान का उदय होना चाहिए। काश ऐसा सदैव होता! ईसाई खोज-खोज कर विधर्मी-नास्तिकों तथा यहूदियों को मार रहे हैं।
जीसेस क्राइस्ट के वचनों का मनमाना अर्थ लगाया जा रहा है। सदा से यही होता आया है, बुद्धपुरुष कुछ कहता है, उसके अनुयायी उसका कुछ और अर्थ निकालते हैं, अर्थ का अनर्थ करते हैं।
‘हाईपेशिया’ किताब यूनानी और रोमन पैगनिज्म और नए ईसाई धर्म टकराव दिखाती है। किताब लाइब्रेरी का चित्रण करती है, जिसका आज नामोनिशान नहीं है, खंड़हर बताते है, इमारत बुलंद थी। आग से इस राजसी लाइब्रेरी का एक बड़ा हिस्सा जल कर राख हो गया। कितनी पुस्तकें थी, इसे ले कर विवाद है। प्राचीन दुनिया की सबसे बड़ी लाइब्रेरी नौ कलाओं की देवी म्युसेस को समर्पित थी। इसी ‘म्युसेस’ शब्द से इंग्लिश का म्यूजियम शब्द बना है।
हाईपेशिया विद्वान है, वह जमीन पर प्रयोग करके तय करती है, पृथ्वी सूर्य का चक्कर काटती है, चक्कर गोलाकार नहीं है, अंडाकार है। पृथ्वी नहीं वरन सूर्य विश्व का केंद्र है। वह पानी के बीच जाकर प्रयोग करके अपनी बात सिद्ध करती है। कहा तो यहां तक जाता है, उसने हाड्रोमीटर बनाया, जिससे पानी तथा अन्य द्रवों का घनत्व नापा जा सके। जिसका प्रयोग आज भी हो रहा है।
हाईपेशिया और इसका संघर्ष
हाईपेशिया को शिक्षण बंद करने का आदेश ईसाइयों से मिलता है। उनके अनुसार वह जो पढ़ाती है, वह धर्म के खिलाफ है, इसकी इजाजत नहीं दी जा सकती है (क्या इसमें आज के तालिबानी हुकुम की बू नहीं आ रही है?)। तनिक भी प्रतिभावान स्त्री को नीचा दिखाने में लोगों को बड़ा मजा आता है। हाईपेशिया का तीसरा शिष्य साइनेसियस भी ईसाइयत स्वीकार कर के बिशप के पद पर जा बैठा है। सशर्त हाईपेशिया की सहायता करना चाहता है। शर्त है, वह भी ईसाई बन जाए। वह इंकार कर देती है। नतीजा वही होना था जिसकी अपेक्षा है। ईसाई धर्म उसे खतरनाक मानता है और उत्तेजित भीड़ उसे मार डालती है।
हाईपेशिया के जीवन पर ‘अगोरा’ नाम से फिल्म बनी है।
इस किताब को पढ़ा जाना चाहिए ज्ञान पिपासा के जुनून में मरने वालों के लिए। जलती हुई लाइब्रेरी, उसे बचाने की जद्दोजहद के लिए। भीड़ के मनोविज्ञान के लिए। भीड़ खूब चीख-चिल्ला रही होती, मगर उसकी कोई आवाज नहीं होती है। उसका कोई अपना सोचा-समझा विचार नहीं होता है।
इसे पढ़ा जाना चाहिए, धर्म के कट्टरवादी चेहरे को उजागर करने के लिए। शब्दों को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत करने के लिए। सत्ता के संघर्ष के लिए। और इस किताब को पढ़ा जाना चाहिए ,जीवन की विडम्बनाओं के लिए।
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