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विश्व साहित्य का आकाश: माया एंजेलो का संसार और कला की जिजीविषा

Dr. Vijay Sharma डॉ. विजय शर्मा
Updated Mon, 21 Jul 2025 01:23 PM IST
सार

  • माया एंजेलो सेन फ्रैंसिस्को की पहली अश्वेत महिला स्ट्रीटकार कंडक्टर बनी, बिना कॉलेज गए विश्वविद्यालयों में शिक्षण किया। 60 ऑनेररी डॉक्टरेट की डिग्रियां पाईं।
  • माया ने उस समय संघर्ष किया जब अमेरिका के दक्षिण में अश्वेत जीवन दहशत भरा था। श्वेत मनमाने ढंग से उन्हें सताते,‘कू क्लक्स क्लान’ के सदस्य आते, घरों में आग लगा देते, मारते-पीटते, हत्या कर देते।

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history of world literature Maya Angelou American memoirist and poet
विश्व साहित्य का इतिहास - फोटो : Freepik.com
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विस्तार
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‘मैं स्त्री हूं। श्यामा, मरम्मत की हुई, स्वस्थ-चंगी हो गई हूं, आपको सुन रही हूं। मैं मनुष्य की नस्ल को केवल आशा दूंगी। मैं स्त्री हूं, जुड़वां जड़ों वाले दो फूल न्याय और आशा, आशा और न्याय समर्पित कर रही हूं। चलो शुरुआत करें...’

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माया एंजेलो यह बात कह रही हैं। उनका जन्म अमेरिका के दक्षिण भाग के सेंट लूइ मिसौरी में 4 अप्रैल 1929 (मृत्यु 28 मई 2014) को हुआ। माया का पूरा नाम मार्गरीटा ऐनी जॉनसन था। स्टेज पर काम करते हुए अपना जन्म का नाम बदल कर माया एंजेलो कर लिया था। माता-पिता ने तलाक के बाद तीन साल की माया तथा उनके बड़े भाई बैली को उनकी दादी के पास स्टैम्प्स भेज दिया।
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छ: साल की उम्र में मां के बॉयफ्रेंड मिस्टर फ्रीमैन ने माया का बलात्कार किया। उस आदमी ने धमकी देते हुए कहा, वह किसी को बताएगी तो बेली को मार डालेगा। माया ने बात अपने भाई को बताई। माया के मामाओं ने उस आदमी को मार डाला। माया को लगा उसके कारण वह मरा है। बच्ची ने खुद के बोलने पर पाबंदी लगा ली। बच्ची समझदार, संवेदनशील थी। क्रूर, अमानुषीय एवं नष्ट करने वाले अनुभव से निकल आई, पुरस्कार जीते।

सेन फ्रैंसिस्को की पहली अश्वेत महिला स्ट्रीटकार कंडक्टर बनी, बिना कॉलेज गए विश्वविद्यालयों में शिक्षण किया। 60 ऑनेररी डॉक्टरेट की डिग्रियां पाईं।

माया एंजेलो और उनकी आत्मकथाएं

उस समय अमेरिका के दक्षिण में अश्वेत जीवन दहशत भरा था। श्वेत मनमाने ढंग से उन्हें सताते,‘कू क्लक्स क्लान’ के सदस्य आते, घरों में आग लगा देते, मारते-पीटते, हत्या कर देते। गरीब श्वेत स्त्रियां, बच्चे भी दुष्टता करते थे।

माया ने पत्रकारिता, टेलीविजन स्क्रिप्ट लिखना, अभिनय आदि विभिन्न काम किए। वे अपनी कविताओं, आत्मकथाओं के लिए जानी जाती हैं। जी हां, एक नहीं उन्होंने छ: ‘आई नो व्हाई द केज्ड बर्ड सिंग्स’, ‘गैदर टूगेदर इन माई नेम’, ‘सिंगिंग एंड स्विंगिंग एंड गेटिंग मेरी लाइक क्रिसमस’, ‘द हार्ट ऑफ अ वूमन’, ‘ऑल गॉड्स चिल्ड्रन नीड ट्रेवलिंग शूज़’ तथा ‘ए सांग फ्लंग अप टू हेवन’ आत्मकथाएं लिखीं। आत्मकथा उन्होंने एक चुनौती मान कर लिखना शुरू किया।

पहला भाग ‘आई नो व्हाई द केज्ड बर्ड सिंग्स’, एक लड़की के स्त्री बनने की गाथा है। उनकी आत्मकथाएं अफ्रो-अमेरिका की आत्मकथाएं हैं। बीसवीं सदी के छठवें दशक में वे अश्वेत आंदोलन में जुड़ी हुई थीं, अश्वेत अस्मिता, रंगभेद नीति के खिलाफ आंदोलन तथा अन्य सामाजिक कार्यक्रमों में अंत तक सक्रिय रहीं।

आत्मकथा के पहले भाग की शुरुआत एक ईस्टर संडे को चर्च में होती हैं, माया एक बच्ची के रूप में त्योहार की पोशाक पहने अपनी मोमा (दादी) का पल्लु पकड़े खड़ी है। खुद को बदसूरत मानती-जानती है, चाहती है, किसी तरह एक गोरी बच्ची में बदल जाए। क्योंकि गोरी बच्ची को सब चाहते है। वह जीसेस की तरह दोबारा जीवित होना चाहती है। जब यह संभव नहीं हुआ, रोती हुई घर भागती है। राह में पेशाब निकलती जाती है, कपड़े खराब हो जाते हैं। पर बच्ची आत्मकथा के अंत में आत्मविश्वासी, स्वाभिमानी, खुश स्त्री के रूप में आती है।

एक गर्वीली मां है, अश्वेत बच्चे को लेकर कोई शर्म नहीं है। सोलह साल की, अनब्याही मां अपने नवजात को निहार रही है। आहत है, नष्ट नहीं हुई है। मासूम है, बेवकूफ नहीं। त्रासदी से मरी नहीं।

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साहित्य का इतिहास - फोटो : Freepik.com

आत्मकथाओं में दहशत, दु:ख, चिंता का मिश्रण

यह एक स्त्री की संघर्ष गाथा है, सच्ची दास्तान। बीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध में अमेरिका में अश्वेत होना बहुत बड़ा अभिशाप था, कानूनन गुलामी समाप्त हो चुकी थी, पर समाज लोगों की मान्यताओं से चलता है। इस समय अमेरिका में श्वेत समुदाय के लोग अश्वेत नागरिकों को मनुष्य मानने को राजी न थे। अमेरिका के दक्षिण हिस्से में नस्ल भेदभाव व्याप्त था। आज भी दावे के साथ नहीं कहा जा सकता है, नस्लवाद, रंग भेदभाव, लिंग भेदभाव पूरी तरह से समाप्त हो गया है।

उनकी आत्मकथा दहशत, दु:ख, चिंता और इसके विरोध में उठ खड़े होने का चित्रण है। उन्होंने एक बार अपनी मित्र लेखिका रोजा गे को लिखा, बचपन में वे सोचती थीं, बेहद कुरूप हैं और किसी ने उनकी इस सोच का खंडन नहीं किया। उनकी मोमा (दादी) ने भी कभी इस गलती को नहीं सुधारा, जबकि वे उन्हें बहुत प्यार करती थीं। उनकी दादी एक बहुत ही साहसी स्त्री थीं। उन्होंने आत्मकथा कैसे लिखी, अपने साक्षात्कारों, अपने लेखन में इसे वे विस्तार से बताती हैं।

एक दिन वे अपने मित्र प्रसिद्ध अफ्रो-अमेरिकन लेखक जेम्स बॉल्डविन, जूल्स एवं जूडी फेफर के साथ खाना खाने गईं। वहां उन्होंने जीवन के कुछ अनुभव सुनाए। जूडी फेफर ने रैंडम हाउस के एक एडीटर बॉब लूमिस को फोन किया, कहा, क्यों नहीं वे लोग माया से आत्मकथा लिखवाते हैं। बॉब लूमिस ने माया एंजेलो को फोन लगा कर आत्मकथा लिखने के लिए कहा। माया ने मना कर दिया। उस समय वे व्यस्त थीं, अफ्रीका और अश्वेत अमेरिकन संस्कृति पर काम कर रहीं थीं। इंकार के बाद वे कैलीफोर्निया चली गईं। बॉब ने बार-बार फोन किया, माया ने मना किया।

जेम्स बॉल्डविन को मालूम था, माया को चुनौती दी जाए, तो वे पीछे नहीं हटेंगी। बॉब ने फोन पर कहा, मैं अब तुम्हें और अधिक तंग नहीं करूंगा। मुझे लगता है, तुमसे नहीं होगा। माया को यह चुनौती लगा। वे बोलीं, क्या कह रहे हो? मैं क्यों नहीं लिख सकती हूं? मैं जरूर लिखूंगी।

शुरू में माया एंजेलो का विचार था कि वे छोटा-सा कुछ लिख देंगी। काम खतम हो जाएगा, वे फिर से अपने नाटक, स्क्रिप्ट और काव्य की दुनिया में लौट जाएंगी। शुरु किया तो छ: भाग में आत्मकथा लिखी।

माया की आत्मकथा का पहला भाग ‘आई नो व्हाई कैज्ड बर्ड सिंग्स’ अश्वेत होने की दहशत, अपमान और दर्द को बड़ी मार्मिकता से चित्रित करता है। विस्थापन के दर्द को दर्शाता है। माया और भाई का विस्थापन किसी प्राकृतिक आपदा के कारण नहीं हुआ है। उनके माता-पिता जीवित थे। कैलीफोर्निया से अराकांसा के स्टैम्प कस्बे तक की लम्बी यात्रा बच्चे अकेले करते हैं, जिस आदमी के साथ उन्हें भेजा गया था, अरिजोना में उतर कर कब का जा चुका था।

बच्चों के पास उनका पता टैग था। वे नहीं जानते थे, उन्हें क्यों और कहां भेजा जा रहा है। इनका कई बार विस्थापन होता है। बाद में उनका पिता एक बार फिर उन्हें उनकी जड़ों अराकांसा से उखाड़ कर उनकी मां के पास सेंट लुई में छोड़ आता है। फिर वहां दुर्घटना के बाद उनकी मां को लगता है, वह उन्हें ठीक से नहीं रख सकती है। एक बार फिर उन्हें मोमा के पास अराकांसा भेज दिया जाता है। इस तरह बचपन में उनकी कई बार शंटिंग होती है।


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डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें blog@auw.co.in पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।

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