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विश्व साहित्य का आकाश: डोरिस लेसिंग की 'गोल्डेन नोटबुक'

Dr. Vijay Sharma डॉ. विजय शर्मा
Updated Sun, 24 Aug 2025 08:01 PM IST
सार

  • ‘गोल्डेन नोटबुक’ एक साथ कई कथानक लेकर चलती है। यहां हमें नारीवाद मिलता है, साथ ही इसमें समाज द्वारा स्त्री से की गई वैवाहिक एवं मातृत्व संबंधी तमाम अपेक्षाएं चित्रित हैं। स्त्री अस्मिता, स्त्री संपूर्णता की खोज, प्रेम एवं उससे जुड़े संबंध यहां शामिल हैं। 

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history of world literature The Golden Notebook Novel by Doris Lessing
डोरिस लेसिंग की गोल्डेन नोटबुक (सांकेतिक) - फोटो : Freepik.com
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विस्तार
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डोरिस लेसिंग का बचपन बड़ा कष्टकर था। उन्होंने 15 साल की उम्र में घर छोड़ दिया, टेलीफोन ऑपरेटर तथा नर्स का काम किया। पहली शादी 19 वर्ष की उम्र में फ्रेंक चार्ल्स विस्डम से की, दो बच्चे जॉन और जीन हुए। पर वैवाहिक जीवन से तंग आ, पति बच्चों को छोड़ गोटफ्राइड लेसिंग से विवाह किया। मगर एक बेटा होने के बावजूद यह जीवन भी उन्हें रास न आया, तो बेटा पीटर और एक पांडुलिपि लिए 1949 में ब्रिटेन (लंदन) आ गईं। कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हुईं। मोह भंग होने पर उसे छोड़ा। खूब आलोचना सही।

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बचपन में उन्होंने श्वेत-अश्वेत संस्कृति की टकराहट और नस्लीय भेदभाव देखा था, कुछ समझदार होने पर लैंगिक विभेद को भी जाना-समझा। वह अपनी पहली किताब ‘द ग्रास इज सिंग्गिंग’ (1950) में इस सबको विस्तार से दिखाती हैं। दक्षिण अफ्रीका में कोई इस किताब को प्रकाशित करने को राजी न था, बाद में इसके कई संस्करण हुए।

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‘द गोल्डेन नोटबुक’ (1962)

डोरिस में टेलर का जन्म 22 अक्टूबर 1919 को ईरान (उस समय के फारस) में हुआ। मां एमिली मैकवी टेलर नर्स थी तथा पिता किसान का बेटा अल्फ्रेड कुक टेलर थे। प्रथम विश्वयुद्ध में युद्ध एक टांग गंवा बैठे पिता शाररिक और मानसिक दोनों रूप से घायल थे। मां को पार्टियां पसंद आतीं, वे पियानो पर बिथोवन और चोपिन बजाने में कुशल थीं।


पिता किसान का जीवन शांत बिताना चाहते थे। पिता ने खेती करनी चाही पर असफल रहे। डोरिस स्कूल नहीं गईं। उन्होंने स्वाध्याय द्वारा स्वयं को खूब शिक्षित किया। यह सब लेखा-जोखा उनकी किताबों में आया है।

लंदन आकर वे अपनी ‘गोल्डेन नोटबुक’ की पाण्डुलिपि पर लगातार काम करती रहीं। ‘द गोल्डेन नोटबुक’ (1962) लिखते समय लेसिंग को मालूम नहीं था कि वह एक नारीवादी किताब लिख रही है। अपनी इस किताब में वे औरतों के जीवन को लिख रही थी। अत: जब किताब पाठकों और समीक्षकों के हाथ में पहुंची तो हाथों-हाथ ली गई। लोगों ने कहा डोरिस लेसिंग ने कमाल का काम किया है। असल में यह अपनी तरीके की एक निराली किताब है।

पहली बार किसी किताब में नारीवादी विचार आए थे। इस किताब के लोकप्रिय होने का एक और कारण भी था। डोरिस लेसिंग ने इसे खूब ऊर्जा के साथ लिखा था। इसमें एना बुल्फ की कहानी है, नायिका स्त्री जो स्वतंत्र रूप से जीना चाहती है। असल में यह डोरिस लेसिंग की अपनी कहानी है, ‘द गोल्डेन नोटबुक’ में उन्होंने स्त्री का अपने अधिकारों के लिए उठ खड़े होने, अपनी अस्मिता के प्रति सचेत होने का चित्रण किया है।

उन्होंने खुलकर स्त्रियों के गुस्से और आक्रमता के विषय में लिखा था, अत: उन पर ‘अनफेमिनाइन’ होने का ठप्पा भी लगा। जवाब में डोरिस लेसिंग ने इस बारे में लिखा, ‘जाहिरा तौर पर बहुत सारी औरतें जो सोच रही थीं, अनुभूति कर रही थी, तजुर्बा कर रही थीं, वह एक अचरज के रूप में आया है।’

नारीवाद को लेकर चर्चित पुस्तक

स्त्रियों के आंतरिक जीवन के विषय में उन्होंने खुले तौर पर लिखा और इस विचार को नकार दिया कि उन्हें शादी और बच्चों के लिए अपना जीवन छोड़ देना चाहिए, नष्ट कर देना चाहिए। इन विचारों से तहलका मच गया। हालांकि उन्हें नारीवाद की प्रारंभिक नायिका माना गया, पर बाद में उन्होंने इस ठप्पे को भी खुद के ऊपर से उतार फेंका, जिस कारण उन्हें कई ब्रिटिश आलोचक तथा अकादमिक लोगों की आलोचना का शिकार बनना पड़ा।

‘द गोल्डेन नोटबुक’ की नायिका एना बुल्फ स्त्री, प्रेमिका, रचनाकार, सक्रिय राजनैत्तिक कार्यकर्ता मतलब कई भूमिका निभाती है और इनमें तालमेल बिठाने के चक्कर में मानसिक रूप से बीमार हो जाती है। लेकिन यह बिखरन उसे नष्ट नहीं करके एक तरह की समग्रता देती है। वह मनुष्य-मनुष्य के बीच समानता के लिए संघर्ष करती है।

समानता का स्वप्न डोरिस लेसिंग के लेखन की मजबूती है। इस कारण कहीं-कहीं उनकी आलोचना हो रही थी, तो कहीं-कहीं नारीवादी इस गंभीर चित्रण से अत्यंत प्रसन्न हो उन्हें सर्वोच्च नारीवादी लेखिका के पद से विभूषित करते हैं। उनके कई कार्य पर फिल्म बनी हैं।

ऐसी निर्भीक, संघर्षरत महिला, डोरिस लेसिंग के 88वें जन्मदिन से ठीक 11 दिन पहले नोबेल पुरस्कार मिलने की घोषणा हुई। वे नोबेल प्राप्त करने वाली 11वीं महिला साहित्यकार थीं। कई वर्षों से वे इसकी उम्मीदवार मानी जा रही थीं। यह पुरस्कार पाने वाली वे सबसे अधिक उम्र की साहित्यकार थीं। वे खुद भी सोच रहीं थीं कि या तो मेरे मरने से पहले वे इसे मुझे दे देंगे या फिर कभी नहीं। उन्होंने कहा भी मैं वास्तव में चकित हूं, क्योंकि उन्होंने कई साल तक नकारा मुझे है।

94 साल की उम्र में विश्व साहित्य को 55 किताबें उपहार में दे कर, 2007 की नोबेल पुरस्कृत डोरिस लेसिंग 17 नवम्बर 2013 को दुनिया से चल बसीं। तीन सप्ताह पहले उनके बेटे पीटर (जिसे गोद में लिए वे लंदन आई थीं) की मृत्यु हुई थी।

पुरस्कार प्राप्ति के बाद उनकी एक किताब ‘एल्फ्रेड एंड एमिलि’ 2008 में प्रकाशित हुई। हार्पर कॉलिंस के उनके एडीटर के अनुसार डोरिस लेसिंग ने तमाम विधाओं में लिखा और विशाल सांस्कृतिक प्रभाव डाला। परन्तु वे सबसे अधिक ‘द गोल्डेन नोटबुक’ के लिए स्मरण की जाती हैं। यह किताब एक पूरी पीढ़ी की हैंडबुक बनी। उनकी कई किताबें बिल्कुल भिन्न हैं। उन्होंने फंतासी, विज्ञान कथाएं, कहानियां लिखीं।

‘गोल्डेन नोटबुक’ एक साथ कई कथानक लेकर चलती है। यहां हमें नारीवाद मिलता है, साथ ही इसमें समाज द्वारा स्त्री से की गई वैवाहिक एवं मातृत्व संबंधी तमाम अपेक्षाएं चित्रित हैं। स्त्री अस्मिता, स्त्री संपूर्णता की खोज, प्रेम एवं उससे जुड़े संबंध यहां शामिल है।

कम्युनिज्म से उसके जटिल संबंध एवं उससे मोहभंग भी यहां नजर आता है। इतना ही नहीं यह किताब लेखन प्रक्रिया, सृजन की चुनौतियों एवं लेखक तथा उसके काम के संबंध पर भी प्रकाश डालती है।


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डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें blog@auw.co.in पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।

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