विश्व साहित्य का आकाश: ‘द हार्ट डिवाइडेड'- विभाजन और हृदय का बंटवारा
कविताएं लिखने वाली मुमताज शाह हुसैन का उपन्यास ‘द हार्ट डिवाइडेड’ उनकी मृत्योपरांत 1957 में प्रकाशित हुआ क्योंकि 1948 में वे यूएन में कश्मीर पर बोलने के लिए न्यूयॉर्क जा रही थीं तब प्लेन क्रैश में मात्र 35-36 साल की उम्र में उनकी मृत्यु हो गई।
एक बार ‘द हार्ट डिवाइडेड’ अवश्य पढ़ा जाना चाहिए।
विस्तार
विभाजन पर कई लोगों ने कलम चलाई है। हिन्दी साहित्य में अक्सर पश्चिमी भारत के बंटवारे का दर्द उभरा है। बंगाल का दर्द बांग्ला भाषा में दिखता है। हां, एकाध कार्य हिन्दी में पूर्वी भारत के इस दर्द को बयां करता है, जैसे गरिमा श्रीवास्तव का ‘आउशवित्ज: एक प्रेम कथा’। इस विषय पर इंग्लिश में भी लिखा गया है। यह जानना रोचक होगा कि पाकिस्तान के इंग्लिश साहित्य में इसे कैसे चित्रित किया गया है। आज बात करती हूं मुमताज शाहनवाज के उपन्यास ‘द हार्ट डिवाइडेड’ की।
बंटवारे के बाद चालीस के दशक में पहले हमारे यहां उपलब्ध नहीं था, असल में यह पाकिस्तान के बाहर कहीं उपलब्ध न था। हाल में कृष्ण कुमार के फॉरवर्ड के साथ 2003 में नए संस्करण में (464 पन्ने) प्रकाशित हुआ है।
कृष्ण कुमार के अनुसार, भारत का बंटवारा पहले ही हो चुका था...हृदय में, उदाहरण के लिए भावनाओं और संबंधों में।
मुमताज शाह नवाज का जन्म 12 अक्टूबर 1912 में भारत के लाहौर में हुआ था। पुकारु नाम ‘ताजी’। लाहौर के उच्च खानदान की थी अत: बुर्का उतार पढ़ने के लिए लंदन गईं। वे दिल्ली और लाहौर में स्त्री अधिकारों की प्रमुख प्रवक्ता थीं। चालीस के दशक तक कांग्रेस की सपोर्टर थीं, बाद में मुस्लिम लीग की सदस्य बन गईं।
शाह हुसैन का उपन्यास ‘द हार्ट डिवाइडेड’
कविताएं लिखने वाली मुमताज शाह हुसैन का उपन्यास ‘द हार्ट डिवाइडेड’ उनकी मृत्योपरांत 1957 में प्रकाशित हुआ क्योंकि 1948 में वे यूएन में कश्मीर पर बोलने के लिए न्यूयॉर्क जा रही थीं तब प्लेन क्रैश में मात्र 35-36 साल की उम्र में उनकी मृत्यु हो गई। उपन्यास में भी कांग्रेस से मोहभंग दिखाया गया है।
वे उपनिवेशवाद के विरोध में थीं। प्रारंभ में ब्रिटिश शासन खत्म कर कई अन्य राजनैतिक लोगों की भांति यूनाइटेड इंडिया बनाने के पक्ष में थीं। बाद में मुसलमानों के अलग देश के विचार का समर्थन करने लगीं और उनके उपन्यास का शीर्षक भी वहीं से आता है। उपन्यास में वे दिखाती हैं कि देश के बंटवारे के पहले लोगों के दिलों का बंटवारा हो चुका था। भले ही पहले वे मिलजुल कर रहते थे पर दोनों समुदायों के विचार, आचार-व्यवहार भिन्न थे। उनमें विवाह संबंध संभव नहीं था। दोनों समुदाय के लोगों के मध्य युवक-युवती का प्रेम स्वीकार्य न था।
यह आत्मकथात्मक उपन्यास जमींदार परिवार के शेख जमालुद्दन अर उनकी बीवी मेहरुनिस्सा, उनके बेटे एवं बेटियों अर्थात उच्च वर्ग की कथा है। दो मुस्लिम स्त्रियों जोहरा-सुगरा के निजी जीवन और राजनीतिक परिवर्तन की कहानी कहता है। उनकी हवेली ‘निशात मंजिल’ जनानखाना और मर्दानखाना में बंटी हुई है। औरतें पर्दा करती हैं।
ब्रिटिश हुकूमत से निकलने के संघर्ष काल में पढ़ी-लिखी दोनों बहनों जोहरा और सुगरा तथा उनके भाई हबीब जमालुद्दीन की कहानी उस काल की कहानी भी है। तीनों अपने-अपने तरीके से हिन्दु-मुस्लिम एकता कायम करने की कोशिश करते हैं। वे कांग्रेस और मुस्लिम लीग की विशिष्टताओं पर बहास करती हैं। प्रत्येक राष्ट्र की अपनी अंदुरूनी जटिलताएं होती हैं।
इतिहास वही नहीं होता है जो इतिहास की किताबों में दर्ज होता है। वह प्रतिपल घटित होता है, उसे साहित्य भी दर्ज करता है, वह इस उपन्यास में भी दर्ज है। तीस के दशक में पाकिस्तान का बीज बोया जाने लगा था। लोगों के विचार परिवर्तित होने लगे थे। राजनीतिक हलचल 1938 लीग के पटना सत्र, लाहौर रिजोलूशन आदि घटनाओं के मार्फ़त दिखाए गए हैं।
कई मुद्दों को उठाने वाले इस उपन्यास का कथानक परम्परा और आधुनिकता के इर्द-गिर्द घूमता है। विभाजन पूर्व हिन्दुओं और मुसलमानों में दोस्ती थी, परिवार भी संबंध कायम करते थे। सारी बातें युवाओं के माध्यम से की गई हैं। इनके अपने आदर्श हैं, अपनी प्रेरणाएं हैं। वे अपने अभिभावकों तथा अपने आसपास के समाज के परपम्परागत मूल्यों को चुनौती देते हैं। जोहरा पूछती है, ‘क्या समुदायों के कानून से बड़ कोई और कानून नहीं है?
मनुष्यता का कानून जो आदमी और आदमी के बीच बाधाओं को नकारे...’ समान समाज की बात करते हैं। अपनी तरह से समाज परिवर्तन का ख्वाब देखते हैं। निजी महत्वाकांक्षाओं, प्रेम, राजनीति के द्वारा वे यह करना चाहते हैं। राष्ट्रीय मुद्दों पर बहस करते हैं। उनकी ख्वाइश है कि कॉन्ग्रेस और मुस्लिम लीग एक होकर काम करे।
यहां आदर्शवाद है और उसकी सीमाएं भी नजर आती हैं। हालांकि तमाम बौद्धिक बहस अर आदर्शवाद के बावजद उनके पास उनके देश के भविष्य की कोई व्यवहारिक योजना नहीं है। यथार्थ काफी कटु और कठोर है। उनका स्वप्न कभी पूरा नहीं होता है। अंतत: मनुष्यता एवं मनुष्यों की अकूत कीमत पर देश का विभाजन हो जाता है।
मोहिनी की कहानी
उपन्यास में एक हिन्दू एक्टिविस्ट लड़की मोहिनी भी है। ब्राहम्ण लड़की मोहिनी एवं हबीब में लगाव है, जाहिर-सी बात है, परिवारों को यह पसंद नहीं, मोहिनी परिवार के दबाव में है वह प्रेमी और माता-पिता के अपने प्रेम के बीच झूलती रहती है। उपन्यासकार मोहिनी को उन दिनों के राजरोग टीबी से समाप्त कर देती है क्योंकि उपन्यास में लिखा है, ‘तुम दोनों दोनों परिवारों केलिए बेइज्जती लाओगे अर सदा केलिए उन्हें जुदा कर दोगे।’ मुमताज अपने उपन्यास में स्त्री संबंधित मुद्दे उठाती हैं, खासकर मुस्लिम समाज की लड़कियों/औरतों से संबंधित मुद्दे।
जोहरा की सहेली नजमा अपने खानदान की इज्जत केलिए कुर्बान होती है, उसके घर वाले उसकी मर्जी के खिलाफ़ उम्र में 35 साल बड़े दुहाजू नवाब वकरुद्दीन के बेटे नसिरुद्दीन से उसकी सगाई करा देते हैं। जोहरा जिस आदमी को पसंद करती है, घर वालों की नजर में वह नीची जाति/वर्ग का है। वह नौकरी करती है और शादी से इंकार कर देती है। खानदान केलिए उसके ये निर्णय किसी झटके से कम नहीं हैं। औरतों का काम करना मतलाब खानदान की नाक कटना।
पढ़ी-लिखी सुगरा और उसके पति मंसूर की दुनिया बिल्कुल अलग है। मंसूर को उसके शरीर से मतलब है उसकी भावनाओं से नहीं। सुगरा मुस्लिम स्त्री के आदर्श को आत्मसात किए हुए सोचती है वह पति को अपनी सेवा से खुश रखेगी, उसका विश्वास है, घर ही औरत की जन्नत है। लेकिन शादी के बाद वह खुश नहीं है।
मुमताज दिखाती हैं कि विभाजन पूर्व हिन्दू-मुस्लिम एक इलाके में रहते हुए भी अपने-अपने रीति-रिवाज, संस्कृति से बंधे हुए थे। धर्म परिवर्तन के बिना इनमें शादियां नहीं हो सकती थीं। वे इन्हीं घरेलू नियमों, संस्कृति की भिन्नता, धार्मिक असहष्णुता, विचारों में भेद, राजनीतिक विभाजन को देश विभाजन केलिए उत्तरदायी मानती हैं।
एक बार ‘द हार्ट डिवाइडेड’ अवश्य पढ़ा जाना चाहिए।
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