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महाराष्ट्र में कांग्रेस की हार की वो असली वजह जिसे न सोनिया समझना चाहती और न राहुल 

Ajay Khemariya अजय खेमरिया
Updated Fri, 25 Oct 2019 07:01 AM IST
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Maharashtra Election Results 2019  reason of Congress's defeat 
सवाल कांग्रेस की हार का फडणवीस की वापसी से भी बडा है क्योंकि महाराष्ट्र साधारण राज्य नही है कांग्रेस नेतृत्व की उर्वरा भूमि रहा है यह राज्य।
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कांग्रेस महाराष्ट्र में चुनाव हार गई। वह राष्ट्रवादी कांग्रेस से भी पीछे चौथे नम्बर की पार्टी हो गई। असल में यह होना ही था सभी पूर्वानुमान इसकी मुनादी कर रहे थे। यूं तो 2014 से शुरू हुआ कांग्रेस का चुनावी राजनीति में पराजय का सिलसिला अब कतई  आश्चर्य  महसूस नही कराता है लेकिन महाराष्ट्र से लगातार दूसरी हार औऱ चौथा नम्बर विस्मयकारी है। इसके निहितार्थ कांग्रेस आलाकमान के स्तर पर तलाशे जाने ही चाहिये। क्योंकि महाराष्ट्र देश में कांग्रेस राजनीति का सबसे सशक्त शक्ति केंद्र रहा है।

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अपने ही गढ़ में कांग्रेस के हारने के निहितार्थ
फड़नवीस से पहले सिर्फ एक बार ही यहां शिवसेना बीजेपी की सयुंक्त सरकार गैर कांग्रेस के नाम पर रही है यानी यह राज्य कांग्रेस का गढ़ रहा है। जिन परिस्थितियों में  इस बार एक नई उम्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने यहां गैर बीजेपी दलों को अप्रसांगिक करके रख दिया है वह सियासी जानकारों के लिए शोध का विषय है। इस जीत के लिए देवेंद्र फडणवीस अभिनंदन के अधिकारी हैं। सवाल कांग्रेस की हार का फडणवीस की वापसी से भी बडा है क्योंकि महाराष्ट्र साधारण राज्य नही है कांग्रेस नेतृत्व की उर्वरा भूमि रहा है यह राज्य। इसलिये आज यहां की हार को गहरे विश्लेषण की दरकार है।
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महाराष्ट्र में कांग्रेस की हार 2019 की मोदी सुनामी के पूरे पांच महीने बाद हुई। क्या इस अवधि में कांग्रेस ने अपने पुनरुद्धार के लिए मोदी को कोसने के अलावा कुछ  ठोस काम करने  की कोशिशें की है?  इस पर ईमानदारी से आत्ममंथन की आवश्यकता है। संसदीय राजनीति में चुनावी हार जीत सामान्य अंतर्निहित घटनाक्रम होता है लेकिन लगातार यही हालात बने रहे तब इस सबसे बड़ी सियासी पार्टी के लिए उसके अस्तित्व पर सवाल उठना लाजिमी है।

Maharashtra Election Results 2019  reason of Congress's defeat 
हकीकत यह है कि आज कांग्रेस आलाकमान न नेहरु को समझता है न इंदिरा गांधी को।

महाराष्ट्र की हार असल में मौजूदा नेतृत्व को बेताल की तरह लादकर चलने की कांग्रेस नेताओं की भीरुता औऱ वैचारिक दिवालियेपन का  परिणाम है। हकीकत यह है कि आज आलाकमान न नेहरु को समझता है न इंदिरा गांधी को। शेष अधिकतर कांग्रेसी सिर्फ सत्ता के लिए नेहरू-गांधी टेग पर निर्भर हैं। वे नए भारत के जनमन को समझने के लिये तैयार ही नहीं हैं।ऐसा लगता है मानो इस ऐतिहासिक पार्टी को आउटसोर्सिंग पर चंद वामपंथी बुद्धिजीवियों के सुपुर्द कर दिया गया है।इस वाम आवरण ने भारत की आजादी के इस  प्रेरणादायक लोकमंच (कांग्रेस) को पहले चाटुकार जमात के साथ युग्म बनाकर सत्ता औऱ चुनावी मंच में बदला औऱ अब इस अखिल भारतीय दल को जेएनयू  जैसे सीमित औऱ अस्वीकृत  परकोटे में सीमित कर देने पर आमादा है।

महाराष्ट्र में वीर सावरकर को लेकर जो स्टैंड कांग्रेस ने अख्तियार किया वह जेएनयू की  बौद्धिक जुगाली के लिए तो रोचक हो सकता था लेकिन मराठी वोटर के लिये यह उनकी अस्मिता पर हमले की तरह अहसास करा रहा था। मोदी और अमित शाह के प्रति नफरत की बेइंतहा हद ने विपक्षियों को लगता है दिमागी तौर पर पूरी तरह से विचलित करके रख दिया है। सावरकर के मामले में यह साबित हो चुका है वामपंथी विचारों पर टिके कांग्रेस के नेताओं ने अपने ही पुरखों को लाल बस्ते में स्थाई रुप से बांध कर रख दिया है।

अनुच्छेद 370 का मामले में भी यही हुआ। एयर स्ट्राइक,सर्जिकल स्ट्राइक,राफेल की शस्त्र पूजा,कमलेश तिवारी का मर्डर,या राम मंदिर पर बहस हर मामले में कांग्रेस उस टुकड़े टुकड़े औऱ खान मार्केट गैंग के यहां वैचारिक रूप से गिरवी रखी हुई दिखी जिसका विस्तार सिर्फ जेएनयू या गोपाल भवन तक सिमटा है। 'सारे भारत से नाता है सरकार चलाना आता है' यह नारा कभी कांग्रेस का मंत्र था आज कांग्रेस चुनावी मैदान से गायब हो चुकी है और उसका फोकस नई आजादी के उन लड़ाकों से नजर आता है जो भारत की बर्बादी औऱ हर घर से अफजल निकालने की बातें करते हैं।
 

Maharashtra Election Results 2019  reason of Congress's defeat 
राहुल गांधी आज भी जेएनयू औऱ विदेश से तालीम लेकर आए अपने जीन्स झोलाछाप सलाहकारों से घिरे रहते हैं जिनको भारत के अंतर्मन की कोई समझ नहीं है।

महान विरासत की पूंजी रखने वाली इस पार्टी को यह समझना ही होगा की नया भारत अब तुष्टीकरण को बर्दाश्त नहीं कर सकता है। बहुलतावाद के लिए उसकी परम्पराओं को तिरोहित नहीं किया जा सकता है। राफेल की शस्त्र पूजा पर 24 अकबर रोड़ में मजाक उड़ाया जाना आज भारत के बहुसंख्यक समाज को नागवार गुजरता है। इंदिरा गांधी ने कभी अपनी रूद्राक्ष की माला को तन से ओझल नहीं होने दिया था। राजीव गांधी ने रामलला के ताले खुलवाये, सरदार पटेल ने सोमनाथ का वैभव लौटाया, राजेन्द्र बाबू  ने नेहरू की मनाही को दरकिनार कर सोमनाथ की प्राण प्रतिष्ठा में गर्व के साथ शिरकत की।

इन पीढ़ियों के कांग्रेस नेताओं को कभी अपनी हिंदू औऱ सनातनी पहचान पर लज्जा या असुरक्षा महसूस नहीं हुई और यही इनकी अखिल भारतीय लोकप्रियता एवं विश्वसनीयता का आधार था। आज का कांग्रेस नेतृत्व इस मामले में बहुत ही कृपण औऱ असुरक्षा की मार से पीड़ित है। उसे गुलामनबी, शशि थरूर, मणिशंकर अय्यर,औऱ अधीर रंजन जैसे बुद्धिहीन नेताओं ने बंधक बना रखा है। राहुल गांधी आज भी जेएनयू औऱ विदेश से तालीम लेकर आए अपने जीन्स झोलाछाप सलाहकारों से घिरे रहते हैं जिनको भारत के अंतर्मन की कोई समझ नहीं है।

उनका एजेंडा तो सिर्फ भारत की सनातन परम्पराओं, शिवाजी, सावरकर,राणा प्रताप की जगह टीपू सुल्तान, अकबर महान और औरंगजेब की शासनकला को श्रेष्ठ साबित करना है। प्रधानमंत्री मोदी ने इस मानस को बहुत करीने से पढ़ लिया है इसलिए वे करोडों भारतीयों के मन और मस्तिष्क के नजदीक महसूस होते है। वे वोटिंग से पहले केदारनाथ में मत्था टेकते हैं, कहीं पशुपतिनाथ तक नंगे पैर परिक्रमा में नजर आते हैं। वे नवरात्र में अपने व्रत का पालन अमेरिका में जाकर भी करते हैं। भारत हजारों साल से बीसियों आतताइयों के आक्रमण के बाबजूद इन्ही परम्पराओं पर गौरवबोध के साथ अबलंबित है।  इंदिरा गांधी इसे समझती थी और आज मोदी भी इसे अपनाए हुए हैं।

यही तत्व मोदी को दिग्विजयी बनाए हुए है। बेहतर होगा इस हार से कांग्रेस पार्टी कुछ सबक सीखने की कोशिश करे।हकीकत यह है कि समाज एक जीवंत इकाई होती है उसकी चेतना के स्तर और विषय वक्त के साथ बदलते रहते है।  भारतीय समाज आज मार्क्सवादी नेहरु मॉडल को खारिज कर रहा है क्योंकि यह मॉडल उसे उसकी ऐतिहासिक उपलब्धि से वंचित कर औरंगजेब जैसे क्रूर शासक के नजदीक जाने को विवश करता रहा है।  67 साल तक इस मनोविज्ञान ने समाज को परिचालित किया पर अब नया भारत इतिहास, विज्ञान,साहित्य से लेकर लोकजीवन के हर क्षेत्र में अपनी मौलिक निधि को खोजने औऱ उसके गौरवगान में भरोसा करता है। आज सूचना के उन्नत तकनीकी साधनों ने उसके विमर्श के फलक को नया आकार दे दिया है। कांग्रेस इसे जितना जल्द समझ ले उतना ही भारत की संसदीय राजनीति के लिये बेहतर है,क्योंकि मजबूत विपक्ष से ही जम्हूरियत जनोन्मुखी बनी रह सकती है।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें blog@auw.co.in पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।

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