मुश्किल में इमरान, पैसे-पैसे को मोहताज गृहयुद्ध के मुहाने पर खड़ा पाकिस्तान
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान अब बेबस और असहाय नज़र आने लगे हैं। बजट के बाद देर रात अवाम के नाम संदेश में उन्होंने माना कि मुल्क़ की आर्थिक सेहत काबू से बाहर है। सारे उपाय एक के बाद एक दम तोड़ते जा रहे हैं। मुल्क़ कंगाली के उस मुहाने पर है,जहां सामने विकराल खाई है और पीछे लौटने के सारे रास्ते बंद हैं।
पाकिस्तान का क़र्ज़ 30 हज़ार अरब डॉलर तक पहुंच गया है। इसे आप देश के लिए आर्थिक आत्महत्या जैसी हालत मान सकते हैं, जिस देश में कुल बजट का क़रीब 54 फ़ीसदी केवल फ़ौज़ पर और क़र्ज़ चुकाने में जाता हो ,वह कैसे आगे बढ़ेगा? यह संसार भर के अर्थशास्त्रियों के लिए पहेली है।
आखिर क्यों परेशान है पड़ोसी मुल्क?
भारत के इस पड़ोसी ने दशकों से हिन्दुस्तान में आतंक फैलाने के लिए फ़ौज़ और आईएसआई के मार्फ़त जितना पैसा बहाया है उतने में तो अनेक देश मालामाल हो जाते। अपने हाथों-पैरों पर कुल्हाड़ी मारने का यह विश्व में अनूठा उदाहरण होगा। मंगलवार को जब पाकिस्तान की संसद में बजट पेश हुआ तो जनता के लिए तय करना कठिन था कि उस पर हंसे या आंसू बहाए।
वैसे तो इमरान ख़ान नवाज़ शरीफ़ को पटखनी देने के लिए चुनाव प्रचार में एक ही राग अलापते रहे हैं कि अगर वे सत्ता में आए तो ख़ुदकुशी कर लेंगे, लेकिन किसी भी क़ीमत पर क़र्ज़ नहीं लेंगे। मगर हुआ उल्टा। अब वे क़र्ज़ की ख़ातिर दर-दर भटक रहे हैं और घी भी पीते जा रहे हैं। मिस्टर यू टर्न प्राइम मिनिस्टर से अब आत्महत्या की बात कौन पूछ सकता है? अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष सैद्धांतिक तौर पर पाकिस्तान को तेरहवीं बार 6 अरब डॉलर का ऋण देने के लिए राजी हो गया है।
हालांकि अभी उसके निदेशक मंडल को इस पर भी औपचारिक सहमति देनी है। पाकिस्तान के लिए मुद्राकोष की शर्तें गले की फांस जैसी हैं। उसे कम से कम सात सौ अरब रुपए का ख़र्च कम करना होगा और नए टैक्स लगाकर ख़ज़ाने में डालने होंगे। पाकिस्तानी वित्त मंत्रालय के अफसरों का कहना है कि क़र्ज़ जाल में रोम-रोम बिंधे देश के लिए ये शर्तें एक तरह से गले का फंदा हैं। इन्हें पाकिस्तान कभी भी मान नहीं पाएगा। अगर नए टैक्स लगाए गए तो उससे गैस, बिजली, पानी सप्लाई,सब्ज़ियां, स्टील, किराना और कपड़ा जैसे सामानों का उपभोक्ता बाज़ार उच्च मध्यम वर्ग की पहुंच से भी बाहर हो जाएगा ।
गीज़र और एसी जैसे उपकरण वहां ज़रूरत की नहीं,बल्कि विलासिता की वस्तुएं बन चुकी हैं। सरकार ने औपचारिक सूचना जारी कर इससे बचने की सलाह दी है। जिस मुल्क़ में सत्तर फीसदी आबादी रात होते ही अंधेरे में डूब जाती हो, वहां आम अवाम किस तरह बसर कर रही होगी,कल्पना की जा सकती है। यही हाल गैस का है। एक बार फिर चूल्हा और भट्टी युग लौट रहा है। पहले ही उपभोक्ता वस्तुओं की क़ीमतें आसमान छू रही हैं। अब नए टैक्स लगेंगे तो लोग सड़कों पर उतर आएंगे ।
कितने खर्चों में कटौती करेगा पाकिस्तान?
दूसरी बात ख़र्चों में कटौती की है। मुल्क़ के सरकारी ख़ज़ाने का साठ फीसदी पैसा कर्मचारियों के वेतन और दफ्तरी रख-रखाव पर खर्च होता है। इस पर कटौती का मतलब बड़ी तादाद में नौकरियों में छंटनी करना है। पहले ही जरूरत के मान से आधे पद ख़ाली पड़े हैं। बचे-खुचे पदों पर तैनात कर्मचारियों की संख्या में छंटनी हुई तो देश की व्यवस्था लड़खड़ा जाएगी।
चरम पर बेरोज़गारी झेल रहे पाकिस्तान में गृहयुद्ध के हालात की आशंका खड़ी हो जाएगी। पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइंस और कराची स्टील्स के कर्मचारियों ने तो पहले ही सरकार को आगाह कर दिया था। कर्मचारी यूनियनों में भी कटौती ने डर पैदा कर दिया है। ऐसे में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की शर्तों का पालन पाकिस्तान के लिए एक तरह से अपने अस्तित्व के साथ समझौता करने जैसा है।
पाकिस्तान के सामाजिक हालात
इनदिनों पाकिस्तान में सामाजिक-आर्थिक नज़रिए से दो धाराएं बह रही हैं। एक धारा यह मानती है कि मुल्क़ की रग-रग में फैले भ्रष्टाचार को रोकना बहुत ज़रूरी है, इसलिए प्रधानमंत्री इमरान ख़ान वित्तीय हालत सुधारने के साथ साथ भ्र्ष्टाचार के सफाए पर भी जोर दे रहे हैं।
प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के प्रमुख आर्थिक सलाहकारों में से एक इफ्तिख़ार दुर्रानी इस भ्रष्टाचार विरोधी अभियान के अगुआ हैं। उनका मानना है कि एक बार भ्रष्टाचार समाप्त हो जाए तो नए निवेश लाना आसान हो जाएगा। पूंजी निवेश करने वालों में यह विश्वास पैदा हो सकेगा कि अब वे पाकिस्तान में पैसा लगा सकते हैं। मुश्किल यह है कि आज के पाकिस्तान से भ्रष्टाचार मिटाना बड़ी टेढ़ी खीर है।
दूसरी धारा इस मत की है कि मौजूदा परिवेश में रातोंरात यह महामारी समाप्त नहीं हो सकती। बाज़ार और देश को पैसा चाहिए और बिना बेईमानी देश की गाड़ी आगे नहीं बढ़ सकती। पीपुल्स पार्टी के सुप्रीमो तथा पूर्व राष्ट्रपति आसफ़ अली ज़रदारी ने तो साफ़-साफ़ कहा है कि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था सुधारने और भ्र्ष्टाचार मिटाने का काम एक साथ नहीं चल सकता।
अनेक प्रतिपक्षी पार्टियों और उद्योगपतियों ने इसे क्रूर सच्चाई बताते हुए ज़रदारी के सुर में सुर मिलाया है। याने इमरान ख़ान को अब वही करना चाहिए, जिसके लिए वे अपने पूर्ववर्ती नवाज़ शरीफ़ को निशाना बनाते रहे हैं।
क्या कहते हैं इमरान के सलाहकार?
इमरान के आर्थिक सलाहकार अब्दुल हफीज खान भी कह चुके हैं कि टैक्स चोरी सख्ती से रोकनी पड़ेगी। ताज्जुब की बात है कि इन दिनों पाकिस्तान के बड़े कारोबारी, किसान तथा प्रॉपर्टी दिग्गज टैक्स नहीं देते। केवल एक फ़ीसदी आबादी टैक्स भरती है। जब भी वहां टैक्सचोरी के खिलाफ कड़े कानून की बात चली तो जैसे पूरा देश ही उसके विरोध में उतर आया, जिस मुल्क़ में पढ़े-लिखे लोग टैक्स चुकाने को शान में गुस्ताखी मानते हों, वहां कोई भी आर्थिक सुधार आसानी से संभव नहीं होता। इसी कारण अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष समेत अनेक प्रतिष्ठित वित्तीय एजेंसियां कई बार आगाह कर चुकी हैं कि अधिक से अधिक लोगों को टैक्स के दायरे में लाया जाना चाहिए। व्यापार घाटे के कारण भुगतान असंतुलन बढ़ता ही जा रहा है। आयात बढ़ रहा है और निर्यात शून्य जैसा है।
पिछले वित्तीय वर्ष के आख़िर तक व्यापार घाटा 60.898 अरब डॉलर तक पहुंच गया था। आर्थिक जानकारों का मानना है कि पाकिस्तान ने चीन और सऊदी अरब के साथ बिना विचारे इकतरफा कारोबारी समझौते किए हैं। जिनसे दोनों देशों को तो लाभ है लेकिन पाकिस्तान को कुछ नहीं मिलने वाला है। लब्बोलुआब यह कि इमरान के तरकश में तीर नहीं बचे हैं। देखना है नियति का कौन सा चमत्कार पाकिस्तान को उबार सकता है।
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