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मासिक धर्म और सोशल ट्रेंड: 'प' से पीरियड का 'प' से प्रोपेगेंडा !

Swati shaiwal Sharma स्वाति शैवाल
Updated Thu, 22 Dec 2022 04:46 PM IST
सार

बीते 3-4 वर्षों से लगातार यह सामान्य प्राकृतिक चक्र चर्चा में बना हुआ है। मैं बार-बार सामान्य प्राकृतिक चक्र इसलिए कहूंगी क्योंकि यह जीवन का एक सहज अंग है, कोई समस्या नहीं। तो चर्चा इस बात की है कि पीरियड्स के दौरान महिलाओं को जो तकलीफ होती है उसे लेकर तमाम तरह के ट्रेंड्स चल पड़े हैं।

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Periods and social trend: are we showing the right picture?
पीरियड्स में असहजता का होना आम है - फोटो : pixabay
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विस्तार
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हाल ही में रिटायर हुई वेटरन क्रिकेटर झूलन गोस्वामी ने एक इंटरव्यू में कहा था कि, शरीर में पीरियड्स के दौरान होने वाली असहजता और दर्द, मैच के दौरान एक कठिन परिस्थति होती है। इस सिचुएशन में कई घंटे फील्ड में रहकर खेलना बहुत साहस की बात है। सभी महिला खिलाड़ी इसके लिए सम्मान और श्रेय की अधिकारी हैं।

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कमरे में बैठे रहकर आराम करने की बजाय खेल में अच्छा प्रदर्शन उनके लिए मायने रखता है। पीरियड्स एक सामान्य प्रक्रिया है, हमने इस बात को स्वीकार कर लिया है और खुद को इसी तरह तैयार करते हैं। शरीर से ज्यादा यह दिमाग की लड़ाई है।
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आप पीरियड्स के लिए एक्सक्यूज़ नहीं दे सकते और यही हमारी महिला खिलाड़ियों की खूबसूरती है। हां, इस संबंध में उन शोध कार्यों की जरूरत जरूर है जो मासिक के समय महिला खिलाड़ियों की मदद कर सकें।  
 

चर्चा में मासिक चक्र 

बीते 3-4 वर्षों से लगातार यह सामान्य प्राकृतिक चक्र चर्चा में बना हुआ है। मैं बार-बार सामान्य प्राकृतिक चक्र इसलिए कहूंगी क्योंकि यह जीवन का एक सहज अंग है, कोई समस्या नहीं। तो चर्चा इस बात की है कि पीरियड्स के दौरान महिलाओं को जो तकलीफ होती है उसे लेकर तमाम तरह के ट्रेंड्स चल पड़े हैं।


ये ट्रेंड्स ज्यादातर महानगरों और बड़े शहरों में हैं। फिलहाल, मेरी नजर में जो प्रमुख ट्रेंड्स आये मैं उनकी बात करूंगी। 
 

इंटरनेट पर चले ट्रेंड्स 

पहला ट्रेंड है मशीनों या सिम्युलेटर्स के जरिए पुरुषों का पीरियड पेन या दर्द को सहन करना। ऐसे वीडियो इंटरनेट पर ढेर सारे हैं। देश विदेश हर जगह के पुरुष इन मशीनों के जरिए पीरियड्स के दर्द को सहने का प्रदर्शन करते हैं। इनमें सेलिब्रिटीज भी शामिल हैं। इनके वीडियोज़ पर लाखों लाइक्स और कमेंट्स मिलेंगे और लोग इनको सराह भी रहे हैं। जिनके मनोबल और सहनशक्ति से ज्यादा तारीफ इस बात की है कि ये पुरुष, महिलाओं की तकलीफ को समझ रहे हैं। 
 
दूसरा ट्रेंड है पीरियड्स के दौरान महिलाओं को दफ्तर के काम से छुट्टी देने का। इससे सम्बंधित कई वीडियो और शॉर्ट फिल्म्स भी आपको इंटरनेट पर ढेरों मिल जाएंगी। इनमें से कुछ महिलाओं को बीमार बताकर उनके प्रति सहानुभूति दर्शाने का काम करती हैं, कुछ में महिलाओं के स्वास्थ्य की बात होती है तो कुछ में पुरुष महिलाओं को इस चीज के लिए क्रिटिसाइज करते भी नजर आते हैं।

इंटरनेट पर सर्च कीजिए तो आपको बाकायदा पीरियड पेन संबंधी छुट्टी के आवेदन के लिए 'सिक लीव' के सुझाव देने वाली कई साइट्स मिल जाएंगी।
 

Periods and social trend: are we showing the right picture?
संसाधनों की अनुपलब्धता अधिक बड़ी समस्या - फोटो : istock

अब आते हैं मुद्दे पर। पीरियड्स एक बहुत ही सामान्य प्रक्रिया है। जिसकी अवधि एक-दो महीनों की नहीं, बल्कि महिलाओं के पूरे जीवन के एक बड़े हिस्से जितनी होती है। हर महिला के लिए इसकी अनुभूति अलग हो सकती है। कुछ तो इनके दौरान थोड़ी असहजता हो सकती हैं, कुछ को न्यूनतम तकलीफ हो सकती है तो कुछ को थोड़ी ज्यादा।

बहुत थोड़ा प्रतिशत उन महिलाओं या युवतियों का होता है जिन्हें इतनी तकलीफ हो कि दवाई लेना पड़े या बेड रेस्ट करना पड़े। ज्यादातर मामलों में गर्म पानी के सेक, सही और संतुलित खान-पान, थोड़ा व्यायाम और नियमित दिनचर्या से पीरियड के दौरान की असहजता में राहत मिल जाती है।

प्रचारित पीरियड्स  

जिस तरह से पीरियड्स के इस प्रोपेगैंडा को लोगों के सामने लाया जा रहा है, उससे कई सारी ऐसी परिस्थितियां सामने आएंगी जो आने वाले समय मे महिलाओं के लिए मुश्किल खड़ी करने वाली साबित हो सकती हैं।

पहले ही महिलाओं की शादी, गर्भावस्था, देर रात तक काम न कर पाने की समस्या और उनका परिवार से जुड़े रहना उनके करियर की तरक्की में बाधक बनाकर साथ चलता रहा है। उसपर पीरियड्स को बीमारी या हौव्वा बनाकर जोड़ना और भारी पड़ने लगेगा। इससे भी कहीं आगे अगर हर महिला पीरियड्स को लेकर इतनी कमजोर बनने लगे तो देश में महिला सैनिकों, खिलाड़ियों, कामगारों आदि को मौका मिलेगा ही कैसे? 

मासिक धर्म  शुरू होने की उम्र यूं सारी महिलाओं में अलग हो सकती है लेकिन इसे आमतौर पर 11-15 के बीच माना जा सकता है। पिछले कुछ वर्षों में बच्चियों में प्यूबर्टी यानी किशोरावस्था की शुरुआत माने जाने वाले इस प्राकृतिक चक्र के आने की उम्र घटकर 9 वर्ष तक पहुंच गई है। इसके पीछे कई वजहें हैं।  खान पान में बदलाव, भौगोलिक परिस्थितियां, पर्यावरण जैसे कई कारक भी इससे जुड़े हैं।
 
सैनेटरी पैड्स की उपलब्धता भी है चुनौती 

ज्यादा नहीं केवल 5 साल पुरानी बात है। हम 7-8 मित्र महिला स्वास्थ्य सम्बन्धी एक सेमिनार में सालों बाद मिले। सेमिनार में स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं, अधिकारियों के अलावा ग्रामीण क्षेत्र से आई कुछ महिलाएं भी थीं। हम सब लंच के बाद घेरा बनाकर दुनिया जहान की बातें करने लगे और बातों-बातों में मासिक चक्र भी विषय के तौर पर सामने आ गया।

इसी कड़ी में महिलाएं अपने अपने सेनेटरी पैड्स के ब्रांड्स की बातें करने लगीं। इन्हीं बातों के बीच ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं से साथ बैठी एक दीदी ने पूछा- आप लोग कपड़ा इस्तेमाल करती हैं या सरकारी अस्पताल से कॉटन मिलता है? उस महिला ने यह सवाल पहले समझा, फिर मुस्कुराते हुए बोली- दीदी घर के पुराने कपड़े ही लेते हैं लेकिन वो नहीं मिलते तो पत्तियों में कपास रखकर भी काम चलाते हैं।कई बार कपास भी नहीं मिलता। फिर मुश्किल होती है। 

उसके वाक्य पूरा करने तक हमारे चेहरों पर झेंप, शर्मिंदगी और दुख के सम्मिलित भाव थे। माफी मांगने तक की हिम्मत नहीं थी। लेकिन उस उदारमना ने खुद ही हमें उबारते हुए माफ भी कर दिया। वह सहजता से आगे बताने लगी कि किस तरह उसके ही गांव की एक नवविवाहिता ने घर के पीछे एक अंधेरे कोने में मासिक के कपड़े सुखाए थे और लगातार उन कपड़ों के इस्तेमाल से कैसे फंगल इन्फेक्शन इतना बढ़ गया कि उसकी जान पर बन आई।

उसने आगे कहा कि हां, अब जो महिलाएं स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़कर काम कर रही हैं, उनको फिर भी पैड्स मिल जाते हैं। 
 
दादी बताया करती थीं कि उनके समय में एक बड़ा कॉटन का घाघरा पहनाकर घर के एक छोटे से कमरे में युवतियों को लगभग बन्द कर दिया जाता था। तीन चार दिन जब तक बाल न धुल जाएं (मासिक के दौरान तीन-चार दिनों तक अब भी महिलाओं के लिए यही नियम होते हैं) तब तक उन्हीं कपड़ों में एक समय का खाना खाकर उस कमरे में बंद रहना पड़ता था।

यह तो बात हुई उन संभ्रांत घरों की जहां अलग कमरे हुआ करते थे। गरीब महिलाओं के लिए यह सुविधा भी नहीं थी।  

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पीरियड्स औरतों को मजबूती देने वाली प्रक्रिया - फोटो : iStock

स्वीमिंग में पार्टिसिपेट कर रही एक मित्र से उस दिन मैंने जानना चाहा कि 'उन खास दिनों' में क्या उसे दिक्कत नहीं होती? कैसे मैनेज करती है वो? तो उसने तुरन्त जवाब दिया- देख ये तो नहीं कहूंगी कि तकलीफ नहीं होती। लेकिन अगर मैं तकलीफ को देखूंगी तो आगे नहीं बढ़ पाऊंगी। दूसरे मेरी मां भी स्विमर रही हैं और उनके समय से अब तक साधन बहुत अच्छे हो गए हैं। तो बहुत फर्क पड़ गया है।

वैसे भी अब तक मैं कई प्रतियोगिताओं में पार्टिसिपेट कर चुकी हूं लेकिन मैंने अपनी किसी भी प्रतिद्वंदी को पीरियड का हवाला देकर छुट्टी मांगते नहीं देखा। कुछ लड़कियों को थोड़ी तकलीफ ज्यादा होती है तो उनके लिए सिकाई और फिजियो जैसे सेशन होते हैं। क्योंकि हम तो सामान्य दर्द की दवा भी बिना सोचे समझे नही ले सकते। छोटे लेवल पर चल भी जाएं तो आगे बैन होने का खतरा हो सकता है। 
 
मुझे याद है अपने पहले एनसीसी कैंप के दौरान जब मैंने परेड न करने के लिए पीरियड्स का हवाला दिया तो हमारी ट्रेनिंग स्टाफ ने हंसते हुए कहा था- तुम तो फौज में जाना चाहती हो न! दुश्मन सामने आया तो क्या उसको बोलोगी, आज मेरे पीरियड्स हैं इसलिए गोली मत मारना? ये तो हर महीने की बात है डियर इससे क्या घबराना। चलो फॉल इन।'

मैंने झेंपकर नजरें झुका लीं और चुपचाप लाइन में लग गई। और सच में उन दस दिनों की ट्रेनिंग में की गई एक्सरसाइज और संतुलित खान पान का असर था कि पीरियड्स के दौरान मुझे आमतौर पर होने वाला पेटदर्द भी नहीं हुआ। उनके वे शब्द मेरे लिए आज भी हर मुश्किल वक्त में हिम्मत बढ़ाने का काम करते हैं। 
 
विशेषज्ञ कहते हैं-

विशेषज्ञ मानते हैं कि अधिकांश मामलों में पीरियड्स के वक्त होने वाला पेटदर्द या पेट सम्बन्धी अन्य दिक्कतें, हाथ पैरों में दर्द या जकड़न आदि जैसे लक्षण सही दिनचर्या, पौष्टिक भोजन और सामान्य एक्सरसाइज वाले रूटीन से लगभग समाप्त हो जाते हैं। बहुत कम मामलों में दवाई लेने या  बेड रेस्ट लेने की जरूरत पड़ती है।
 
तो ध्यान देने की जरूरत कहाँ है? 

दुर्भाग्य यह है कि पीरियड को लेकर की जाने वाली ज्यादातर बातें सजावटी होती हैं। इनमे से वे मुद्दे गुल होते हैं जिनपर वाकई बात करने की जरूरत है। जैसे कि-
 

  • सेनेटरी पैड्स की उपलब्धता और हर महिला तक उनकी पहुंच।
  •  महिलाओं में पीरियड्स सम्बन्धी अनियमितता पर बात करने की सहजता। 
  •  देह की शर्मिंदगी के बोझ को दूर करने लायक वातावरण महिलाओं को देना। 
  • निचली बस्तियों, गांवों व छोटे शहरों में भी महिलाओं को पीरियड्स और मेनोपॉज सम्बन्धी तमाम स्वास्थ्य से जुड़ी जानकारियां प्रदान करने का प्रतिशत बढ़ाना। 
  • पीरियड्स को आगे बढ़ाने वाली गोलियों, हार्मोनल असंतुलन बनाने वाली दवाओं के खतरे और यौन संक्रमण से जुड़ी जानकारियों को हर महिला/ युवती तक पहुंचाना। 
  •  वैज्ञानिक तरीके से पीरियड्स के दौरान खिलाड़ियों, योद्धाओं, कामकाजी महिलाओं आदि के शरीर को मजबूती व आराम देने वाली तकनीकों का अधिक विकास करना। 


इन बातों पर चर्चा करना जरूरी है। जिस दिन यह ट्रेंड हैशटैग के साथ मिलियन लाइक्स पायेगा, उस दिन समझ लीजिए महिलाओं के लिए उन 'कुछ दिनों' का होना  बदल जाएगा।  

 
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें blog@auw.co.in पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।

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