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क्या स्वाद है जिंदगी में: ताकतवर किस्सागो थे पीयूष पांडे, 31 साल पहले उनके इस एड ने बदला विज्ञापन जगत का स्वाद

Vibhas Sane विभास साने
Updated Fri, 24 Oct 2025 01:03 PM IST
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piyush pandey iconic ads kya swaad hai zindagi mein Asli swaad zindagi ka 90s Cadbury Dairy Milk Ad
विज्ञापन गुरू पीयूष पांडे - फोटो : अमर उजाला ग्राफिक्स
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साल 1994...। वह दौर, जब भारतीय अर्थव्यवस्था ने सुधारों की करवट बस ली ही थी। क्रिकेट युवाओं के बीच पहले से भी ज्यादा पैठ जमा चुका था। वह दौर दूरदर्शन का था। तभी छोटे पर्दे पर एक विज्ञापन नजर आया। क्रिकेट का मैच चल रहा है। एक युवती दर्शक दीर्घा में बैठी है। हाथ में चॉकलेट है। बल्लेबाज 99 के स्कोर पर नॉट आउट है। जीत करीब है। वह पुल शॉट लगाता है। युवती प्रार्थना करती है कि फील्डर कैच न पकड़े। गेंद बाउंड्री लाइन के बाहर चली जाती है। युवती एक पुलिसवाले को चकमा देते हुए मैदान के अंदर दौड़ लगाती है। खुशी से झूमने लगती है। बल्लेबाज झेंप जाता है। खुशी से हंसने लगता है।
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....ये तो बात हुई स्क्रीनप्ले की, लेकिन लोगों ने सिर्फ इसे याद नहीं रखा। असल में इस विज्ञापन के दृश्यों के पीछे मधुर संगीत के साथ सुनाई देती पंक्तियों की छाप उनके दिलों पर बरसों तक जमी रही। 
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ओगिल्वी एंड माथर का बनाया यह विज्ञापन असल में कैडबरी का था। इसका नाम था- असली स्वाद जिंदगी का। विज्ञापन बनाने वाली शख्सियत थे पीयूष पांडे, जिन्हें देश ने शुक्रवार को खो दिया। 70 वर्ष की उम्र में पीयूष पांडे ने अंतिम सांस ली। उनके बनाए तमाम व्यावसायिक विज्ञापनों के बीच कैडबरी के विज्ञापन की लाइनें आज भी सबसे आइकॉनिक कही जाती हैं। ये लाइनें थीं...

कुछ खास है हम सभी में
कुछ बात है हम सभी में
बात है... स्वाद है...
क्या स्वाद है जिंदगी में...


अब इन पंक्तियों को जब आप ऊपर बताए गए दृश्यों से जोड़कर पढ़ेंगे और इसका वीडियो तलाशेंगे, तब इसके पीछे के संदेश को समझ पाएंगे। आखिरी पंक्ति 'क्या स्वाद है जिंदगी में...' पर खुशी से झूमती युवती के दृश्य ने भारतीय जनमानस के उन जज्बात को छुआ, जो तमाम मुश्किलों के बीच जिंदगी पर भरोसा रखना चाहते थे, बच्चों की तरह खुशी का इजहार करना चाहते थे। 

अपनी-अपनी नजर और समझ से देखने-समझने पर लोगों ने पाया कि 'जिंदगी का स्वाद' बताती इन पंक्तियों में अध्यात्म भी छुपा है, जीवन का उत्सव भी, बच्चों की तरह जीने की उमंग भी और हर इंसान के अंदर कुछ खास होने की अनुभूति भी। इस विज्ञापन के पहले तक चॉकलेट को बच्चों का विषय माना जाता था, लेकिन इस एड ने हर व्यक्ति के अंदर छिपे बच्चे को आकर्षित किया। पीयूष पांडे का यह विज्ञापन चॉकलेट बेचने वाला नहीं, बल्कि जज्बात को सामने लाने वाला माना गया। 

हिंदी जिंगल और अलग सोच
पीयूष पांडे ने इस विज्ञापन के बहाने ऐसी हिंदी जिंगल बनाई, जो न तो उबाऊ थी और न ही शुरुआत से किसी ब्रांड को प्रदर्शित कर रही थी। उनकी यही सोच आगे जाकर एशियन पेंट्स और फेविकॉल के विज्ञापनों में नजर आई। यह भी दिलचस्प है कि कैबडरी ने 2021 में इसी विज्ञापन को अलग तरह से बनाया। पटकथा वही थी, लेकिन इस बार बल्लेबाज एक महिला थी और दर्शक दीर्घा में चॉकलेट खाते एक पुरुष बैठा था, जो विजयी शॉट पर खुश होकर मैदान में दौड़ लगाता है।

बाद में अलग-अलग साक्षात्कारों में पीयूष पांडे ने इसके पीछे की सोच के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि पहले चॉकलेट के 70 फीसदी ग्राहक बच्चे ही थे। बड़े लोगों को भी चॉकलेट पसंद थी, लेकिन वे इसे खुलकर नहीं खाते थे। सोच यह थी कि हर व्यक्ति के अंदर छिपे बच्चे को सामने लाया जाए। यह गाना पहले अंग्रेजी में बना। बाद में इसे हिंदी में बनाया गया। एक युवती को मैदान पर झूमते हुए दिखाने के पीछे भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सोच थी। कास्टिंग में भी ध्यान रखा गया कि ऐसे चेहरों को चुना जाए, जो सहजता के साथ खुशी के भाव दिखा सकें। 

ये भी पढ़ें: Piyush Pandey: 'मिले सुर मेरा तुम्हारा' से 'दो बूंद जिंदगी की' तक, पीयूष पांडे की विरासत जो हमेशा जीवित रहेगी

अपनी जुबान का जायका
पीयूष पांडे के निधन पर कई हस्तियों ने उन्हें याद दिया, लेकिन क्रिकेट कमेंटेटर हर्ष भोगले ने जो लिखा, वह इस एड गुरु की सोच को सही तरीके से सामने लाता है। भोगले ने लिखा- पीयूष पांडे एक ऐसे पेशे में थे, जो खूबसूरत अंग्रेजी में अपनी बात कहता था, लेकिन उन्होंने उसमें अपनी जुबान का खूबसूरत जायका पेश किया। वे विज्ञापन जगत की ऊंचाइयों तक गए, लेकिन उनके कदम इस संस्कृति से कभी अलग नहीं हुए। वे संवाद की परतों को खोलते थे और उसे इतनी आसानी से सुलझाते थे कि हम सब 'वाह' करते रह जाते थे। अगर आप किसी पेशे में अपनी छाप छोड़ना चाहते हैं तो पीयूष पांडे बनिए। वे विज्ञापन जगत का सोना थे।
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