सब्सक्राइब करें
Hindi News ›   Columns ›   Blog ›   Political analysis of election results 2024 shows how the Modi government's overconfidence failed its planning

आम चुनाव 2024: जीतकर भी हारे सूरमा, घायल हुए शूरवीर, भरोसे की इमारत में जा घुसा जाति का तीर

Jaideep Karnik जयदीप कर्णिक
Updated Wed, 05 Jun 2024 06:32 PM IST
सार

जिस ब्रांड मोदी ने विधानसभा चुनावों में कमाल कर दिया था वही ब्रांड मोदी लोकसभा में वैसा करिश्मा क्यों नहीं दोहरा पाया? अचानक से मोदी की बजाय उम्मीदवार कैसे अधिक महत्वपूर्ण हो गए। भाजपा के लिए ये गहरे चिंतन का विषय है। ‘इंडिया शाइनिंग’ के बाद ये दूसरा और करारा झटका है, पर इस बार कश्ती जैसे-तैसे किनारा तलाश रही है। इस चुनाव में भाजपा ने एक सुनहरा अवसर खोया है। देश को एक अलग तरह की राजनीति और लोकतन्त्र देने का अवसर।

विज्ञापन
Political analysis of election results 2024 shows how the Modi government's overconfidence failed its planning
भारत के चुनाव बाहर से जितने सीधे, स्पष्ट और आसान नज़र आते हैं, अंदर से उतने ही पेचीदा, उलझन भरे और भरमाने वाले हैं। - फोटो : Amar Ujala
विज्ञापन

विस्तार
Follow Us

आत्मविश्वास की अति, रणनीति की गति और बुरे समय की मति

Trending Videos

 

अब धुंध छंट गई है। तस्वीर साफ है। लंबे, तपा देने वाले और थका देने वाले चुनाव खत्म हो गए। परिणाम भी आ गए। सारे किन्तु-परंतु हट गए, प्रश्न चिन्ह मिट गए। 2024 के आम चुनाव कई मायनों में महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक रहे। ये देश की दशा और दिशा को तय करने वाले चुनाव थे। भारत के लोकतंत्र और चुनाव प्रक्रिया के अध्ययन में अकादमिक दिलचस्पी रखने वालों के लिए भी ये चुनाव एक महत्वपूर्ण अध्याय, एक केस स्टडी साबित होंगे।


भारत के चुनाव बाहर से जितने सीधे, स्पष्ट और आसान नज़र आते हैं, अंदर से उतने ही पेचीदा, उलझन भरे और भरमाने वाले हैं। पिछले चुनावों के ऐसे कई उदाहरण हैं जहां जनता ने चौंका दिया। इंदिरा गांधी, मधु दंडवते, अटल बिहारी वाजपेयी चुनाव हार जाते हैं और शाहाबुद्दीन, फूलन देवी और मुख्तार चुनाव जीत जाते हैं। कब जाति हावी हो जाएगी, कब धर्म और कब सर्जिकल स्ट्राइक, ये एकदम तय ही नहीं है।

विज्ञापन
विज्ञापन


किसी एक बड़े मुद्दे के उफान से बनी लहर कब कोरे झाग में तब्दील हो जाए और कब मंच से दिया पानी के बुलबुले सा छोटा सा नारा बड़े तूफान में बदल जाए, कोई भरोसा नहीं। इसीलिए तो धारा 370, राम मंदिर और ब्रांड मोदी की प्रचंड लहर पर सवार भाजपा को पूरे चुनाव में कभी इस बात को लेकर आश्वस्ति नहीं थी कि भारी बहुमत के लिए बस इतना ही काफी है। ऐसा होता तो ना जात और क्षेत्र के आधार पर थोक में भारत रत्न बांटे जाते और न ‘म’ की महिमा का उजाला मंगलसूत्र, मुसलमान और मुजरे की अंधेरी गलियों से गुजरता।



आखिरी पड़ाव पर ज़रूर संगमों के संगम और उत्तिष्ठत जागृत की तपोस्थली, भारत के दक्षिणी कोने से उगते सूर्य को दिए गए अर्घ्य से उस ग्रहण को छुपाने की कोशिश की गई जो नए भारत की संभावनाओं के सूरज की रोशनी को कुछ धूमिल कर रहा था। पर ग्रहण तो लग चुका था और उसका प्रभाव परिणामों में दिखाई दे रहा है। इंडिया देट इज भारत को भारत देट इज इंडिया करने के प्रयत्न कुछ अल्प विराम में चले गए हैं। ‘भारत’ की अवधारणा पर फिलहालइंडिया (I.N.D.I.A.) का ब्रेक लग गया है।

Political analysis of election results 2024 shows how the Modi government's overconfidence failed its planning
2024 के आम चुनाव भाजपा के लिए उसी गहरे आत्मविश्लेषण का आदेश लेकर आए हैं। - फोटो : अमर उजाला

नायक की तलाश और जन का मानस 

भारत का अधिसंख्य मानस शुरु से नायक और मसीहा की तलाश में भटकता रहा है। अज्ञान, गरीबी, शोषण, अत्याचार, नासमझी और संपूर्ण स्वार्थ के बियाबांं में भटकता ये बड़ा वर्ग हमेशा से एक ऐसी खूंटी की तलाश में रहता है जिस पर वो अपनी सारी चिंताएँ टांग कर निश्चिंत हो सके। बहुत हद तक बेपरवाह। इतना अधिक बेपरवाह कि उसी मसीहा को अपने हाल पर छोड़ कर वोट देने की बजाय लंबे सप्ताहांत पर निकाल पड़े!!


दरअसल, इसी मानस की नब्ज़ को पकड़ कर 2014 में नरेंद्र दामोदर दास मोदी का उदय हुआ था। इसी मानस को आश्वस्त कर 2019 में प्रधानमंत्री मोदी की प्राण प्रतिष्ठा हुई थी। भारत के चुनावों की अवधारणा बदल गई थी। अचानक से हमारी चुनावी व्यवस्था अध्यक्षीय प्रणाली में बदल गई थी। 2019 के उसी जबर्दस्त समर्थन की लहर पर सवार होकर नए ‘ब्रांड मोदी’ का उदय हुआ।

विदेशों में धूम मची, धारा 370 हटी, अयोध्या में राम-लला की प्राण प्रतिष्ठा हुई। 2023 के विधानसभा चुनावों ने इसी ब्रांड मोदी को और विराट, और भव्य बना दिया। नोटबंदी अच्छी नीयत से लिया गया गलत निर्णय था। पर जनता ने माफ कर दिया। नीयत ठीक लगे तो गुनाह माफ हैं। पर सारे गुनाह नहीं। कार्यकर्ताओं की उपेक्षा माफ नहीं होगी, गलत उम्मीदवारों का चयन माफ नहीं होगा। मुद्दों से भटकाव माफ नहीं होगा। जीत के जुनून में वास्तविकता से मुंह मोड़ना माफ नहीं होगा।

और जब मसीहा का ये वोटर बेफिक्र और बेपरवाह होकर ‘लॉन्ग वीकेन्ड’ मनाने चला गया तो विपक्ष ने उसकी उसी खूंटी से उन्हीं चिंताओं और मुद्दों को निकाल कर हवा में उछाल दिया। मुद्दों ने खूंटी छोड़ दी। मालिक को सोया पाकर किसी ने गाय खोल दी। नाव ने किनारा छोड़ दिया, फिर उसे बहाव से बचा कर लाना मुश्किल हो गया। संविधान के बदल जाने का भय काम कर गया। जाति की इमारत में लगा हिन्दुत्व का गारा बह गया। बेपरवाह मानस या तो वीकेन्ड मनाता रह गया या फिर जाति, नौकरी या उम्मीदवार से नाराज़ी को वोट का नाम दे गया। ये भी सच है कि इसी मानस की चुनावी-स्मृति ‘गज़नी’ वाली है। जी वही, शॉर्ट टर्म मेमोरी लॉस..!
 
सच्ची तस्वीर देखें तो भाजपा हारी नहीं है। लेकिन जीती भी नहीं है। 272 तो अपने दम पर नहीं ही पहुंची ही है, 400 पार के अपने दावे से भी बहुत दूर रह गई। मेरिट लाने वाला छात्र अगर द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण होगा तो बात तो होगी।

आत्ममंथन का दौर और विपक्ष का विश्वास 

पिछले कई चुनाव परिणाम कांग्रेस के लिए गहरे आत्ममंथन का संदेश लेकर आए थे। 2024 के आम चुनाव भाजपा के लिए उसी गहरे आत्मविश्लेषण का आदेश लेकर आए हैं। कहां और किस स्तर पर चूक हुई ये सोचा जाना चाहिए। छ: महीने पहले एकतरफा दिखाई देने वाले चुनाव कैसे कांटे की टक्कर में बदल गए? विपक्ष ने आपके ही हथियार से आपको खटाखट, खटाखट घेर दिया। खासतौर पर उत्तर प्रदेश में सपा द्वारा की गई सोशल इंजीनियरिंग को श्रेय देना होगा। 

खासतौर पर उत्तर प्रदेश में सपा द्वारा की गई सोशल इंजीनियरिंग को श्रेय देना होगा। सपा ने अपनी यादव छवि को बदल कर जो पीडीए, यानी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक पर काम किया वो कमाल कर गया। कांग्रेस के साथ और दस वर्ष से स्थापित सरकार के प्रति नाराजगी को अच्छे से भुनाया गया। बंगाल में ममता ने भाजपा की उम्मीदों पर पानी फेर दिया तो राजस्थान में पायलट अपनी सीटें ले उड़े। हां उड़ीसा और आंध्र ने जरूर भाजपा को कुछ सुकून दिया है। दक्षिण का द्वार कुछ तो खुला है। मध्यप्रदेश में पूरी 29 पर कमल खिला है।

जिस ब्रांड मोदी ने विधानसभा चुनावों में कमाल कर दिया था वही ब्रांड मोदी लोकसभा में वैसा करिश्मा क्यों नहीं दोहरा पाया? अचानक से मोदी की बजाय उम्मीदवार कैसे अधिक महत्वपूर्ण हो गए। भाजपा के लिए ये गहरे चिंतन का विषय है। ‘इंडिया शाइनिंग’ के बाद ये दूसरा और करारा झटका है, पर इस बार कश्ती जैसे-तैसे किनारा तलाश रही है। इस चुनाव में भाजपा ने एक सुनहरा अवसर खोया है। देश को एक अलग तरह की राजनीति और लोकतन्त्र देने का अवसर। जैसे पद्म पुरुस्कारों की समूची अवधारणा ही बदल दी गई और छुपी प्रतिभाओं को सम्मानित किया गया वैसे ही वो अच्छे लोग जो राजनीति को बुरा मान कर इससे दूर रहते हैं, पर काम करना जानते हैं, उन्हें ब्रांड मोदी की आड़ में टिकट देते तो तस्वीर शायद दूसरी होती।


इस चुनाव में कांग्रेस को अपने लिए ऑक्सीज़न मिल गई है, सपा को ताकत, तृणमूल के लिए संतुष्टि, नीतीश के लिए उम्मीद और भाजपा के लिए सबक। इन सब राजनीतिक दलों के कुल हासिल से देश का लोकतन्त्र अधिक मजबूत हो इसी उम्मीद के साथ नई सरकार की प्रतीक्षा की जानी चाहिए।
 

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें blog@auw.co.in पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।

विज्ञापन
विज्ञापन
विज्ञापन
विज्ञापन

एड फ्री अनुभव के लिए अमर उजाला प्रीमियम सब्सक्राइब करें

Next Article

Election
एप में पढ़ें

Followed