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Traffic Jam In Uttarakhand: उत्तराखण्ड में ट्रैफिक जाम तीर्थयात्रियों और पर्यटकों पर भी भारी

Jay singh Rawat जयसिंह रावत
Updated Tue, 01 Jul 2025 12:09 PM IST
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सार

चारधाम यात्रा मार्ग पर चौड़ीकरण से सड़कें कुछ खुली तो अवश्य हुई हैं लेकिन बस अड्डों की हालत अब भी अत्यंत दयनीय बनी हुई है। बस अड्डे वाले नगरों में स्थानाभाव और भारी तंगी के कारण सामान्यतः वाहनों को रुकने नहीं दिया जाता।

Traffic jam in Uttarakhand is also a big problem for pilgrims and tourists
उत्तराखंड में लगे जाम की एक तस्वीर। - फोटो : संवाद न्यूज एजेंसी

विस्तार
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उत्तराखण्ड में ज्यों-ज्यों यात्रियों, पर्यटकों और वाहनों की संख्या निरन्तर बढ़ती जा रही है, त्यों-त्यों सड़कें भी तंग होती जा रही हैं। इस असन्तुलन के कारण इस नैसर्गिक छटा से भरपूर देवभूमि में ट्रैफिक जाम की समस्या भी गंभीर से गंभीरतम् होती जा रही है। ट्रैफिक जाम के कारण तीर्थ यात्रियों को घटों तक रास्ते में ही आगे खिसकने का इंतजार करना पड़ता है और प्रकृति के दिव्य एवं भव्य दर्शन के लिये पहुंचे पर्यटकों को पहाड़ों की रानी मसूरी और नैनीताल जैसे पर्यटक स्थलों तक पहुंचने में भारी मशक्कत करनी पड़ रही है।

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इस समस्या से केवल तीर्थयात्री और पर्यटक ही त्रस्त नहीं हैं। आम शहरी के लिये समय से अपने गन्तव्य तक तक पहुंचना कठिन होता जा रहा है और गंभीर मरीजों और घायलों की जानें समय से अस्पताल न पहुंच पाने के कारण संकट में रहती है।
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चारधाम यात्रा मार्ग पर चौड़ीकरण से सड़कें कुछ खुली तो अवश्य हुई हैं लेकिन बस अड्डों की हालत अब भी अत्यंत दयनीय बनी हुई है। बस अड्डे वाले नगरों में स्थानाभाव और भारी तंगी के कारण सामान्यतः वाहनों को रुकने नहीं दिया जाता। ट्रैफिक की इस गंभीर समस्या के कारण आम जनजीवन तथा यात्री या पर्यटक तो प्रभावित हो ही रहे हैं साथ ही संवेदनशील पर्यावरण को भी अपूरणीय क्षति हो रही है। बरसात में भूस्खलनों ने इस समस्या को और गंभीर बना दिया है।

अगर सरकारी आंकड़ों पर गौर करें तो इस साल यात्रा शुरू होने के दिन 30 अप्रैल से लेकर 30 जून तक 37,07,589 तीर्थ यात्री चारधाम यात्रा पर पहुंच चुके थे। ये यात्री कुल 9,32,188 वाहनों से बदरीनाथ सहित चारों धामों तक पहुंचे हैं। ये जनसंख्या और वाहन संख्या फ्लाटिंग है, मूल आबादी को  जोड़ा जाय तो सड़कों की तंगी का अहसास हो सकता है।

इन्हीं आंकड़ों के अनुसार इस साल 1 जून से लेकर 30 जून तक की केवल एक माह की अवधि में सभी 13 जिलों में हुयी सड़क दुर्घटनाओं में 45 लोगों ने जानें गंवाई, 157 घायल हुये और 9 अब तक लापता हैं। लापता का मतलब मलबे में या नदी किनारे उनके शव बरामद नहीं हुये।

तंग सड़कें बेतहासा ट्रैफिक और विषम भौगोलिक परिस्थितियों के कारण दुर्घटनाओं में भी निरन्तर वृद्धि हो रही है और इन दुघटनाओं की चपेट में न केवल स्थानीय निवासी बल्कि पर्यटक और तीर्थ यात्री भी आ रहे हैं। हाल ही में रुद्रप्रयाग जिले के घोलतिर में अलकनन्दा में गिरे टैम्पो ट्रैवलर के 12 लापता यात्रियों में से अब तक केवल 6 के ही शव बरामद हो सके हैं। वाहन को तो अलकनन्दा ने ऐसे निगला कि उसका कहीं नामोनिशान तक नहीं।

संकरी सड़कें और अपर्याप्त बुनियादी ढांचा

उत्तराखंड के अधिकांश पर्यटक स्थल, जैसे मसूरी, नैनीताल, और चारधाम मार्ग, संकरी और घुमावदार सड़कों से युक्त हैं। ये सड़कें भारी वाहन यातायात को संभालने के लिए डिजाइन नहीं की गई हैं। इसके अतिरिक्त, पार्किंग सुविधाओं की कमी और सड़कों की खराब स्थिति इस समस्या को और बढ़ाती है।

पहाड़ी क्षेत्रों में  मानसून के इस सीजन में जहां जहां भूस्खलन और सड़कों की क्षति के कारण ट्रफिक की समस्या को और अधिक गंभीर बना दिया है। भूस्खलन से यातायात बाधित होने पर या तो वाहनों को घटों सड़क खुलन का इंजार करना पउ़ता है या फिर लम्बे संकरे मागों का किल्प तलाशना पड़ता है।

आपातकालीन सेवाओं में बाधा

देहरादून, नैनीताल और हरिद्वार जैसे नगरों और महानगरों में यातायात जाम के कारण एम्बुलेंस और अग्निशमन जैसे आपातकालीन वाहनों की आवाजाही में देरी होती है। हाल के वर्षों में कई मामले सामने आए हैं, जहां मरीजों को समय पर अस्पताल नहीं पहुंचाया जा सका, जिसके परिणामस्वरूप जानलेवा परिणाम हुए। उदाहरण के लिए, मसूरी में 2023 में एक एम्बुलेंस के जाम में फंसने के कारण एक मरीज की मृत्यु हो गई थी।

आर्थिक प्रभाव

यातायात जाम स्थानीय अर्थव्यवस्था पर भी नकारात्मक प्रभाव डालता है। माल परिवहन में देरी, दुकानों तक ग्राहकों की पहुंच में कमी, और पर्यटकों की असुविधा के कारण स्थानीय व्यवसाय प्रभावित होते हैं। हाल ही में मसूरी और नैनीताल जैसे पर्यटक स्थलों में होटल और रेस्तरां मालिकों ने जाम के कारण ग्राहकों की संख्या में कमी की शिकायत की है।

बड़ी संख्या पर्यटक देहरादून या हल्द्वानी तक आ तो जाते हैं लेकिन ट्रैफिक की समस्या के चलते मसूरी या नैनीताल आसानी से नहीं पहुंच पाते। पार्किग और स्थानाभाव के कारण वाहनों को दूर रोक दिया जाता है। जो पर्यटक वाहन नगर के अंदर धुसने में सफल हो जाते हैं वे वहीं फंस जाते हैं।

पर्यावरणीय क्षति

बढ़ा हुआ यातायात, विशेष रूप से पर्यटक मौसम के दौरान, उच्च उत्सर्जन और खराब वायु गुणवत्ता का कारण बन सकता है। वाहनों से होने वाला वायु प्रदूषण पहाड़ी क्षेत्रों में एक महत्वपूर्ण समस्या है, जो इलाके, मौसम के पैटर्न और उन क्षेत्रों में आम वाहनों के प्रकार जैसे कारकों से और बढ़ जाती है। वाहनों से निकलने वाले उत्सर्जन, जिनमें हानिकारक गैसें और कण पदार्थ शामिल हैं, खराब वायु गुणवत्ता में योगदान देते हैं और निवासियों के लिए स्वास्थ्य जोखिम पैदा करते हैं।

वाहन हानिकारक गैसें जैसे कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, और वाष्पशील कार्बनिक यौगिक (वीओसी), साथ ही कण पदार्थ (पीएम2.5 और पीएम10) छोड़ते हैं। ये प्रदूषक श्वसन संबंधी समस्याएं, हृदय संबंधी समस्याएं और अन्य स्वास्थ्य जटिलताएं पैदा कर सकते हैं।

अभिषाप के एक नहीं कई उदाहरण

मसूरी और नैनीताल, दोनों पहाड़ी नगर पर्यटकों के बीच अत्यधिक लोकप्रिय हैं। ग्रीष्मकाल में इन स्थानों पर वाहनों की संख्या सड़कों की क्षमता से कहीं अधिक हो जाती है। मसूरी की माल रोड और नैनीताल की झील के आसपास की सड़कों पर जाम आम बात है, जिसके कारण स्थानीय लोग और पर्यटक दोनों परेशान होते हैं। राज्य की राजधानी देहरादून और योग नगरी ऋषिकेश में स्थानीय और पर्यटक यातायात का मिश्रण यातायात जाम को बढ़ावा देता है।

विशेष रूप से पीक आवर्स में, इन शहरों की सड़कें वाहनों से अटी पड़ी रहती हैं। चारधाम यात्रा के मार्ग, विशेष रूप से केदारनाथ और बद्रीनाथ को जोड़ने वाली सड़कें, संकरी और भूस्खलन की दृष्टि से संवेदनशील हैं। भारी भीड़ और खराब मौसम के कारण ये सड़कें अक्सर जाम हो जाती हैं, जिससे यात्रियों को घंटों इंतजार करना पड़ता है।

अनियमित यातायात व्यवहार

पर्यटकों और स्थानीय चालकों द्वारा यातायात नियमों की अनदेखी, जैसे कि ओवरटेकिंग, गलत पार्किंग, और तेज गति से वाहन चलाना, जाम की स्थिति को और गंभीर बनाता है। कई बार पर्यटक अपनी सुविधा के लिए सड़कों पर अनुचित तरीके से वाहन रोक देते हैं, जिससे यातायात बाधित होता है।

समस्या समाधान के उपाय

यातायात को सुव्यवस्थित और सुचारू बनाये रखने के लिये यातायात नियमों का उल्लंघन करने वालों पर भारी जुर्माना और सजा लागू की जानी चाहिए। ट्रैफिक सिग्नल, सीसीटीवी कैमरे और डिजिटल ट्रैफिक मॉनिटरिंग सिस्टम का उपयोग यातायात को सुचारू करने में मदद कर सकता है। पर्यटकों को बसों और साझा टैक्सियों का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करना निजी वाहनों की संख्या को कम करेगा।

इसके साथ ही संकरी सड़कों को चौड़ा करने और वैकल्पिक मार्गों का निर्माण करने की आवश्यकता है। पर्यटक स्थलों पर बहु-मंजिला पार्किंग स्थल बनाए जाने चाहिए। सड़कों को भूस्खलन से बचाने के लिए उचित इंजीनियरिंग और रखरखाव की आवश्यकता है और सबसे जरूरी है कि पर्यटकों और स्थानीय लोगों को जिम्मेदार यात्रा और यातायात शिष्टाचार के बारे में शिक्षित करने के लिए जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए।

सोशल मीडिया, होर्डिंग्स और स्कूलों में कार्यशालाओं के माध्यम से इस दिशा में प्रयास किए जा सकते हैं। इसके साथ हीपर्यटकों को गैर-पीक सीजन में यात्रा करने के लिए प्रोत्साहित करने से भीड़ कम होगी। पर्यावरण-अनुकूल पर्यटन को बढ़ावा देना, जैसे कि ट्रेकिंग और ग्रामीण पर्यटन, पहाड़ी क्षेत्रों पर दबाव को कम करेगा।

जरूरी है कि चारधाम यात्रा जैसे आयोजनों में प्रतिदिन तीर्थयात्रियों की संख्या को सीमित करने के लिए ऑनलाइन पंजीकरण प्रणाली को और प्रभावी बनाया जा सकता है। इस समस्या का समाधान तभी संभव है जब सरकार, स्थानीय प्रशासन, और नागरिक मिलकर सख्त यातायात प्रबंधन, बुनियादी ढांचे के विकास, और सतत पर्यटन प्रथाओं को अपनाएं।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें blog@auw.co.in पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।

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