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जीवन धारा: संयम से दृढ़ होता है आत्मबल

महात्मा गांधी Published by: लव गौर Updated Thu, 25 Dec 2025 06:26 AM IST
सार

क्रोध व अहंकार तात्कालिक संतोष दे सकते हैं, लेकिन वे भीतर रिक्तता छोड़ जाते हैं। जीवन में वास्तविक प्रगति न तो शोर करती है, न ही दिखावा, वह भीतर से मजबूत बनाती है।
 

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True progress in life makes no noise, nor does it show off; it strengthens you from within
प्रतीकात्मक तस्वीर - फोटो : अमर उजाला प्रिंट
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विस्तार
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मैं जीवन को किसी तैयार निष्कर्ष की तरह नहीं देखता। यह मेरे लिए एक निरंतर प्रयोग है, जिसमें हर दिन स्वयं को समझने, परखने और सुधारने का अवसर छिपा होता है। जब समय एक पड़ाव पर ठहरता हुआ-सा महसूस होता है, तब मन स्वाभाविक रूप से पीछे भी देखता है और आगे भी। यही वह क्षण है, जब मनुष्य को बिना किसी भय के अपने भीतर झांकना चाहिए और यह स्वीकार करना चाहिए कि जो बीत गया, उसने हमें कुछ न कुछ अवश्य सिखाया है।
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मैंने अनुभव से जाना है कि भूलें जीवन की शत्रु नहीं होतीं। वे हमारी सबसे ईमानदार शिक्षक होती हैं। समस्या तब पैदा होती है, जब हम उन्हें स्वीकार करने से इन्कार करते हैं। जो व्यक्ति अपनी गलती को समझ लेता है, वही उसे दोहराने से बच सकता है। बीते अनुभव अगर केवल पछतावे बन जाएं, तो वे बोझ बन जाते हैं, लेकिन अगर सीख बन जाएं, तो वही हमारी सबसे बड़ी ताकत बनते हैं। ऊर्जा को मैं शोर और उत्तेजना में नहीं खोजता। असली ऊर्जा भीतर की स्पष्टता से जन्म लेती है-यह जानने से कि मुझे क्या करना है और क्यों करना है? जब उद्देश्य साफ होता है, तब कठिन परिश्रम भी बोझ नहीं लगता।
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मैंने देखा है कि अधीरता अक्सर हमें भटका देती है, जबकि संयम हमें स्थिर रखता है। धीरे चलना कमजोरी नहीं है, यदि दिशा सही हो। उम्मीद मेरे लिए कोई कल्पनालोक नहीं है। यह एक सचेत चुनाव है, जिसे हर सुबह दोहराना पड़ता है। छोटे, शांत और ईमानदार प्रयास समय के साथ बड़े बदलाव की नींव रखते हैं। मैं यह भी मानता हूं कि सच्चा परिवर्तन बाहर नहीं, भीतर से शुरू होता है। दुनिया, व्यवस्था और लोग-इन सब पर प्रश्न उठाना सरल है, पर स्वयं से प्रश्न करना कठिन। जब तक विचार और आचरण के बीच दूरी बनी रहती है, तब तक कोई सुधार टिकाऊ नहीं हो सकता।

आत्ममंथन एक कठिन प्रक्रिया है, पर वही सबसे विश्वसनीय मार्ग भी है। धैर्य ने मुझे यह सिखाया है कि जो स्थायी होता है, वह शांति से बनता है। क्रोध और अहंकार तात्कालिक संतोष दे सकते हैं, लेकिन वे भीतर रिक्तता छोड़ जाते हैं। संयम और अनुशासन धीरे-धीरे चरित्र का निर्माण करते हैं। जीवन में वास्तविक प्रगति न तो शोर करती है, न ही दिखावा चाहती है, वह भीतर से मजबूत बनाती है। आत्मसंयम को मैंने कभी बंधन नहीं माना। जब इच्छाएं मूल्यों से जुड़ जाती हैं, तब ऊर्जा व्यर्थ नहीं जाती। इच्छाओं का त्याग नहीं, बल्कि उनका परिष्कार जरूरी है। आकांक्षा वही सार्थक है, जो मनुष्य को ऊंचा उठाकर उसे उसके विवेक से जोड़े।

अंततः, मैं यही अनुभव करता हूं कि हर सुबह-हर दिन अपने साथ एक मौन प्रश्न लेकर आती है कि क्या आज मैं स्वयं को थोड़ा और बेहतर बना सकता हूं? यदि यह प्रश्न हमारे कर्म में बदल जाए, तो किसी बड़े उद्घोष की जरूरत नहीं रहती। जब मनुष्य अपने भीतर परिवर्तन की जिम्मेदारी स्वीकार कर लेता है, तब वह अपने-आप रास्ता खोज लेता है, और जीवन एक नई ऊर्जा के साथ आगे बढ़ने लगता है।

सूत्र: हर दिन खुद को बेहतर बनाएं
जीवन हर दिन किया जाने वाला ईमानदार प्रयोग है। जो बीत गया, वह बोझ नहीं, अगर उससे सीख ली जाए। गलतियां हमें तोड़ने नहीं, बल्कि तराशने आती हैं। असली ऊर्जा शोर में नहीं, उद्देश्य की स्पष्टता में जन्म लेती है। धैर्य दिशा देता है और संयम गति को स्थिर रखता है। हर सुबह खुद से बेहतर बनने का प्रण करना ही सच्ची आशा है।
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