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नए दलाई लामा की घोषणा: कौन होगा दलाई लामा का उत्तराधिकारी? नजरें मैकलोडगंज पर
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सार
दलाई लामा, तिब्बती बौद्ध धर्म के गेलुग संप्रदाय के सर्वोच्च नेता, करुणा के बोधिसत्त्व अवलोकितेश्वर के अवतार माने जाते हैं। यह उपाधि पहली बार 1578 में मंगोल शासक अल्तान खान द्वारा तीसरे दलाई लामा, सोनम ग्यात्सो को दी गई थी। 17वीं शताब्दी में पांचवें दलाई लामा ने गदेन फोड़्रांग सरकार के माध्यम से तिब्बत में आध्यात्मिक और राजनीतिक सत्ता स्थापित की।

तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा।
- फोटो : संवाद
विस्तार
तिब्बती बौद्ध धर्म की आत्मा मानी जाने वाली दलाई लामा की परंपरा आज एक ऐतिहासिक मोड़ पर खड़ी है। परंपरागत रूप से दलाई लामा का चयन वर्तमान लामा की मृत्यु के बाद पुनर्जन्म के सिद्धांत के आधार पर होता है, लेकिन चीन के हस्तक्षेप के खतरे ने इस प्रक्रिया को नया आयाम दिया है। 14वें दलाई लामा, तेनजिन ग्यात्सो, ने संकेत दिया है कि अगले दलाई लामा की घोषणा उनके जीवनकाल में भी हो सकती है, ताकि चीनी दखल से बचा जा सके।
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इस संदर्भ में, 6 जुलाई 2025 को उनके 90वें जन्मदिवस पर धर्मशाला में होने वाले महायोजन में कोई महत्वपूर्ण घोषणा होने की संभावना है। यही कारण है कि न केवल चीन और भारत, बल्कि अमेरिका जैसे अन्य देशों की निगाहें इस तारीख पर टिकी हैं। यह घोषणा न केवल तिब्बती अस्मिता और धार्मिक स्वतंत्रता को मजबूती देगी, बल्कि वैश्विक भू-राजनीति पर भी गहरा प्रभाव डालेगी।
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ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
दलाई लामा, तिब्बती बौद्ध धर्म के गेलुग संप्रदाय के सर्वोच्च नेता, करुणा के बोधिसत्त्व अवलोकितेश्वर के अवतार माने जाते हैं। यह उपाधि पहली बार 1578 में मंगोल शासक अल्तान खान द्वारा तीसरे दलाई लामा, सोनम ग्यात्सो को दी गई थी। 17वीं शताब्दी में पांचवें दलाई लामा ने गदेन फोड़्रांग सरकार के माध्यम से तिब्बत में आध्यात्मिक और राजनीतिक सत्ता स्थापित की।
वर्तमान 14वें दलाई लामा, तेनजिन ग्यात्सो, का जन्म 6 जुलाई 1935 को उत्तर-पूर्वी तिब्बत में एक किसान परिवार में हुआ था। दो वर्ष की आयु में उन्हें 13वें दलाई लामा के पुनर्जन्म के रूप में पहचाना गया। 1959 में चीनी आक्रमण के बाद वे भारत में निर्वासन में आए और धर्मशाला को तिब्बती निर्वासित सरकार का केंद्र बनाया। 1989 में उन्हें शांति और अहिंसा के लिए नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जिसने उन्हें वैश्विक स्तर पर शांति का प्रतीक बनाया।
उत्तराधिकार की प्रक्रिया
तिब्बती बौद्ध परंपरा में दलाई लामा का चयन पुनर्जन्म के सिद्धांत पर आधारित है। वर्तमान दलाई लामा के देहांत के बाद उनकी आत्मा एक नवजात शिशु में पुनर्जन्म लेती है, जिसकी खोज वरिष्ठ लामाओं द्वारा संकेतों, सपनों, और भविष्यवाणियों के माध्यम से होती है।
संभावित बच्चे को पूर्ववर्ती दलाई लामा की वस्तुओं, जैसे माला या छड़ी, को पहचानने की परीक्षा दी जाती है, जिसके बाद उसे बौद्ध धर्म, तिब्बती संस्कृति, और दर्शन की गहन शिक्षा दी जाती है। 14वें दलाई लामा ने संकेत दिया है कि पारंपरिक पुनर्जन्म के अलावा 'उद्भव' (emanation) भी उत्तराधिकार का एक वैकल्पिक तरीका हो सकता है।
इसका अर्थ है कि वे अपने जीवनकाल में भी उत्तराधिकारी चुन सकते हैं, जिससे चीनी हस्तक्षेप से बचा जा सके। उन्होंने यह भी कहा कि उनका उत्तराधिकारी 'स्वतंत्र दुनिया' में जन्म लेगा, संभवतः भारत, उत्तराखंड, हिमाचल, या लद्दाख जैसे क्षेत्रों में, न कि चीन के नियंत्रण वाले क्षेत्र में। यह प्रक्रिया गदेन फोड़्रांग ट्रस्ट द्वारा संचालित होगी, जो 2015 में स्थापित किया गया था और तिब्बती बौद्ध परंपराओं के प्रमुखों के परामर्श से कार्य करेगा।
भू-राजनीतिक महत्व
दलाई लामा का उत्तराधिकार केवल धार्मिक नहीं, बल्कि वैश्विक भू-राजनीति का एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। 1951 में तिब्बत पर चीन के कब्जे के बाद से, बीजिंग ने तिब्बती बौद्ध धर्म को नियंत्रित करने का प्रयास किया है। 1995 में, जब दलाई लामा ने गेधुन चोएक्यी न्यिमा को 11वें पंचेन लामा के रूप में मान्यता दी, तो चीन ने उस बच्चे को हिरासत में ले लिया, जिसका ठिकाना आज तक अज्ञात है। इसके बजाय, चीन ने अपने चुने हुए पंचेन लामा को स्थापित किया, जिसे तिब्बती समुदाय ने अस्वीकार कर दिया।
चीन का दावा है कि उसे 1793 के किंग राजवंश की 'गोल्डन अर्न' प्रक्रिया के तहत दलाई लामा के उत्तराधिकारी को मंजूरी देने का अधिकार है, लेकिन दलाई लामा और तिब्बती समुदाय इसे धार्मिक स्वायत्तता पर हमला मानते हैं।
दलाई लामा की हालिया घोषणा, जिसमें उन्होंने गदेन फोड़्रांग ट्रस्ट को उत्तराधिकारी चयन की जिम्मेदारी सौंपी, चीन के लिए एक सीधी चुनौती है। अगर अगला दलाई लामा भारत के तवांग क्षेत्र में चुना जाता है, जहां छठा दलाई लामा जन्मे थे, तो यह भारत-चीन संबंधों में नए तनाव का कारण बन सकता है।
तिब्बतियों को चीन के हस्तक्षेप की आशंका
चीन तिब्बती बौद्ध धर्म को नियंत्रित करना चाहता है ताकि तिब्बत, जिसे अब "ज़िज़ांग" कहते हैं, पर अपनी सत्ता मजबूत कर सके। उसने दलाई लामा जैसे जीवित बुद्धों के चयन के लिए कानून बनाए हैं और कहता है कि केवल उसका चुना 15वां दलाई लामा ही वैध होगा।
"ज़िज़ांग में मानवाधिकार" श्वेत पत्र में "वैधानिक" धार्मिक गतिविधियों पर जोर है। 2016 से चीन ने पुनर्जनन की पहचान के लिए ऑनलाइन सिस्टम शुरू किया है। वह गोल्डन urn विधि या राजनीतिक प्रक्रिया से अपने चुने उत्तराधिकारी की निष्ठा सुनिश्चित कर सकता है। 1959 से धर्मशाला में रह रहे 14वें दलाई लामा ने चीन के दावे को खारिज किया।
अपनी पुस्तक वॉयस फॉर द वॉयसलेस में उन्होंने कहा कि उनका उत्तराधिकारी "स्वतंत्र दुनिया" में, चीन के बाहर जन्मेगा। उन्होंने गदेन फोदरांग ट्रस्ट को उत्तराधिकारी चुनने की जिम्मेदारी दी और चीन के चुने को अवैध माना।
इससे दो दलाई लामाओं की स्थिति बन सकती है। चीन को विरोधों की चिंता नहीं, क्योंकि तिब्बत में उसकी सेना मजबूत है। वह केंद्रीय तिब्बती प्रशासन को अमेरिकी समर्थन को भी नजरअंदाज करता है। बीजिंग का लक्ष्य तिब्बती बौद्ध धर्म के भविष्य पर नियंत्रण है, जो धार्मिकता से ज्यादा राजनीति को प्राथमिकता देता है।
भारत की संवेदनशील स्थिति
भारत, जो 1959 से दलाई लामा और तिब्बती निर्वासित सरकार को शरण दे रहा है, एक नाजुक संतुलन बनाए रखता है। एक ओर वह चीन के आक्रामक रवैये का सामना करता है, वहीं दूसरी ओर तिब्बती लोगों के सांस्कृतिक और धार्मिक अधिकारों का समर्थन करता है।
भारत में लगभग 1,00,000 तिब्बती शरणार्थी रहते हैं, और धर्मशाला निर्वासित सरकार का केंद्र है। अगर 15वें दलाई लामा की खोज भारत में होती है, तो यह तिब्बती स्वतंत्रता आंदोलन को मजबूती देगा और भारत-चीन संबंधों में एक नया विवाद पैदा कर सकता है।
अमेरिका और पश्चिमी जगत की भूमिका
अमेरिका ने "तिब्बती नीति एवं समर्थन अधिनियम, 2020" और हाल के एक द्विदलीय प्रस्ताव के माध्यम से स्पष्ट किया है कि दलाई लामा के उत्तराधिकारी का चयन केवल तिब्बती बौद्ध परंपराओं के अनुसार होगा।
यह अधिनियम अमेरिका को उन चीनी अधिकारियों पर प्रतिबंध लगाने का अधिकार देता है जो इस प्रक्रिया में हस्तक्षेप करेंगे। दलाई लामा की घोषणा ने अमेरिका को नैतिक और कूटनीतिक समर्थन प्रदान किया है, जिससे वह चीन पर दबाव बढ़ा सकता है।
तिब्बती समुदाय में आशा और आशंका
दलाई लामा ने अपने हालिया वीडियो संदेश में स्पष्ट किया कि उनके पुनर्जन्म की प्रक्रिया में परंपरा का पालन होगा। बीते 14 वर्षों में इस विषय पर उनकी चुप्पी से तिब्बती समुदाय में चिंता थी कि यह परंपरा समाप्त हो सकती है।
उनकी इस घोषणा ने न केवल आश्वासन दिया, बल्कि आध्यात्मिक उत्तराधिकार की निरंतरता का मार्ग भी प्रशस्त किया। गदेन फोड़्रांग ट्रस्ट इस प्रक्रिया को कई वर्षों तक चला सकता है, जिसमें धर्म रक्षक, भविष्यवाणी करने वाले संकेत, और तिब्बती बौद्ध संस्थानों की सलाह शामिल होगी।
आध्यात्मिकता, सांस्कृतिक पहचान, और स्वतंत्रता की लड़ाई
दलाई लामा की यह घोषणा न केवल तिब्बती बौद्ध धर्म की परंपरा की पुनर्पुष्टि है, बल्कि चीन जैसे अधिनायकवादी शासन के खिलाफ एक शांतिपूर्ण प्रतिरोध का प्रतीक भी है। यह आध्यात्मिकता, सांस्कृतिक पहचान, और स्वतंत्रता की लड़ाई का एक अनूठा संगम है।
6 जुलाई 2025 को धर्मशाला में होने वाला महायोजन और उसमें होने वाली संभावित घोषणा तिब्बती समुदाय और वैश्विक शांति के लिए एक ऐतिहासिक क्षण हो सकता है। आगामी वर्षों में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि 15वें दलाई लामा की पहचान कैसे होती है और वैश्विक शक्तियां इस धार्मिक और भू-राजनीतिक संतुलन को किस तरह स्वीकार करती हैं।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें blog@auw.co.in पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।