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World Environment Day 2019: कौन हैं ग्रेटा जिन्होंने जलवायु मुद्दे पर संसद के बाहर अकेले दिया धरना?

Priyamvada Sahay प्रियंवदा सहाय
Updated Thu, 06 Jun 2019 12:36 PM IST
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World Environment Day 2019: Climate change is becoming challenges for whole world
विश्व पर्यावरण दिवस
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इस बार के लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद यह अनुमान लगा पाना कि जलवायु परिवर्तन का मुद्दा भारत की राजनीति में कितना मायने रखता है, फिलहाल मुश्किल है। शायद ही कोई पार्टी पर्यावरण के मसले को गंभीरता से ले रही है या उस ओर ईमानदारी से कदम उठा रही है। पर्यावरण प्रदूषण भारत की सबसे गंभीर समस्या बन चुकी है, लेकिन इस ओर कोई ठोस क़दम नहीं उठ रहे हैं। यह मुद्दा सिर्फ़ हमारा या आपका ध्यान अपनी ओर नहीं खींच रही है बल्कि पर्यावरण संरक्षण को लेकर स्कूल स्टूडेंट्स स्ट्राइक अभियान छेड़ चुकी स्वीडिश छात्रा ग्रेटा थनबर्ग भी चिंतित हैं।

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ग्रेटा ने फरवरी माह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को वीडियो संदेश भेजकर इस दिशा में ठोस क़दम उठाने की अपील भी की है। वे कहती हैं कि केवल छोटी- छोटी सफलताओं का जश्न मनाते रहे तो फ़ेल हो जाएंगे। जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर अब भी क़दम नहीं उठाये गये तो इसके भयंकर परिणाम भुगतने होंगे। और इसके लिये इतिहास माफ नहीं करेगा। उन्होंने इस तरह की चेतावनी भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत विश्व के सभी प्रमुख नेताओं को भी दी है।  
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कौन हैं ग्रेटा थनबर्ग?
जलवायु परिवर्तन के मुद्दे को लेकर पिछले साल सोलह वर्षीय स्वीडिश छात्रा ग्रेटा थनबर्ग ने स्वीडिश पार्लियामेंट के बाहर अकेले जाकर धरना दिया। उन्होंने अपने चुने हुए जन प्रतिनिधियों का ध्यान जलवायु परिवर्तन की ओर खींचते हुए भविष्य के चिंताजनक परिणामों से आगाह कराया। यही नहीं ग्रेटा के आह्वान पर इस वर्ष मार्च महीने में लगभग 105 देशों में क़रीब 1500 शहरों के स्कूली छात्रों ने पर्यावरण बचाने के लिये सामूहिक हड़ताल किया। इसमें भारतीय शहरों के छात्र भी शामिल थे। वे पर्यावरण बचाने के लिए इतनी कम उम्र में दुनिया भर में जागरूकता फैला रही हैं। ग्रेटा पिछले साल दिसंबर में संयुक्त राष्ट्र की क्लाइमेट चेंज कांफ्रेंस और इस वर्ष दावोस में वर्ल्ड इकॉनॉमिक फोरम में अपने विचार रख चुकी हैं। इन्हीं कोशिशों और अभियानों की वजह से ग्रेटा को इस वर्ष नोबेल पुरस्कारों के लिए नामित भी किया गया है। वे इसके लिए अबतक के सबसे कम उम्र की दावेदार हैं। 
 

World Environment Day 2019: Climate change is becoming challenges for whole world
विश्व पर्यावरण दिवस

भारत के लिए ज़रूरी है राष्ट्रीय ग्रीन पार्टी का बनना
पर्यावरणविद् मानते हैं कि भारत में प्रदूषण का स्तर ख़तरे की घंटी बजा चुका है। इसकी चपेट में बच्चे -बूढ़े ही नहीं बल्कि वे भी आ चुके हैं जो अभी माँ के कोख में हैं। इसके बावजूद यह विषय राजनीतिक दलों के लिए बदलाव का हिस्सा नहीं बन पाया है। राष्ट्रीय पार्टी या क्षेत्रीय दल इस बारे में नहीं सोचते हैं। जबकि भारत जैसे देश के लिए एक राष्ट्रीय ग्रीन पार्टी का बनना ज़रूरी है। ग्रीन पार्टी यानी एक ऐसी पार्टी जो देश के विकास व उत्थान के कदम पर्यावरण को ध्यान में रखकर बढ़ाए।यह पार्टी पर्यावरण के लिए लड़ाई लड़े।
   
आपको बता दूं कि पिछले कुछ सालों में यूरोप में जलवायु परिवर्तन का मुद्दा काफ़ी बड़ा हो चुका है। पिछले साल स्वीडन में रिकॉर्ड गर्मी पड़ने से लोगों की चिंताएँ बढ़ी है। यही वजह है कि पर्यावरण असंतुलन का मसला यूरोप में प्राथमिकता से लिया जा रहा है। हालाँकि अधिकांश यूरोपीय देश पर्यावरण के प्रति काफ़ी जागरूक हैं लेकिन स्थिति यहाँ भी बिगड़ रही है। यही वजह है कि हाल के वर्षों में ग्रीन पार्टी का क़द इस महादेश में बढ़ा है।समूचे यूरोप में इस बार ग्रीन पार्टी को तक़रीबन दोगुना वोट मिला।अब यूरोपियन पार्लियामेंट में ग्रीन पार्टी के 71 सांसद है जबकि पिछली दफ़ा 52 सांसद थे। यह पार्टी यूरोपियन पार्लियामेंट में चौथी बड़ी पार्टी के रूप में उभरने की तैयारी में है। साल दर साल यूरोप में ग्रीन पार्टी के समर्थक बढ़ रहे हैं। हालाँकि ग्रीन पार्टी की अपनी चुनौतियाँ हैं। औद्योगिकीकरण और व्यवसायिकरण की वजह से पार्टी अपने वादों को शत प्रतिशत पूरा नहीं कर पा रही है। जिससे यूरोप के कुछ देशों में वोट प्रतिशत कम हुआ है। लेकिन समूचे यूरोप में इस पार्टी को पसंद करने वालों की तादाद बढ़ रही है। 

स्वीडन के लोग कहते हैं कि जो लोग राष्ट्रवादी होने का दावा करते हैं उन्हें पर्यावरण के मुद्दे पर अपनी आवाज ग्रेटा की तरह बुलंद करनी चाहिए। एक बेहतर राष्ट्र को पर्यावरण से मुक्त होना ज़रूरी है।स्वीडन में रह रहे भारतीयों का कहना है कि ग्रीन पार्टी का उदय भारत में भी होना चाहिए। लोगों को पर्यावरण के मुद्दे को गंभीरता से लेना मौजूदा समय की माँग है। यह मामला अब राजनीतिक दलों के एजेंडे में होना ज़रूरी है।   हालांकि यह ज़रूरी नहीं कि सारे मसले केवल राजनीतिक दल ही उठाए या उनसे ही इसका हल माँगा जाए। इसके बारे में सोचना और ईमानदार क़दम उठाना आम जनता का भी कर्तव्य है। भारत में लोगों की औसत आयु घट रही है। इसके जड़ में प्रदूषण एक महत्वपूर्ण कारण है। जिसका हल निकालना हम सभी का भी दायित्व बनता है।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। आप भी अपने विचार हमें blog@auw.co.in पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।

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