विश्व साहित्य का आकाश: लस्ट फॉर लाइफ- त्रासद जीवन
‘लस्ट फॉर लाइफ’ के लिए इर्विंग स्टोन ने बहुत गहराई तथा विस्तार से शोध किया। मेहनत से तैयार किताब को प्रकाशकों ने सात बार नकार दिया था। जब प्रकाशित हुई तो तहलका मच गया।
विस्तार
जब इर्विंग स्टोन लिखित क्लासिक फिक्शनल जीवनी ‘लस्ट फॉर लाइफ’ पढ़ी तो उसका असर एक पाठक के नाते ऐसा पड़ता है कि ताजिंदगी भूलना नहीं हो सकता है। विंसेंट वॉन गॉग के ऊपर काफी लिखा गया है, कई बार फिल्म और डॉक्यूमेंट्री बनी हैं। इस आलेख में मुख्यरूप से इर्विंग स्टोन रचित उसकी जीवनी ‘लस्ट फॉर लाइफ’ किताब की बात करूंगी।
पहली बार यह किताब 1934 में प्रकाशित हुई और इसके 16 बार प्रिंट बने, फिर 1938 में प्रकाशित हुई इस बार इसकी प्रिंटिंग 7 बार हुई, 1939 संस्करण 10 बार प्रिंट हुआ। इसके बाद ही इसका पॉकेटबुक संस्करण 1945 में प्रकाशित हुआ। 11 साल बाद जब इसका पॉकेटबुक संस्करण आया तो इर्विंग स्टोन बहुत खुश हुए, क्योंकि अब यह अधिक लोगों को उपलब्ध होगी, छोटी-छोटी दुकानों, कैफे में मिलेगा।
पॉकेटबुक का यह संस्करण 447 पन्नों का है और यही मेरे पास है। स्टोन ने अपनी यह किताब ‘लस्ट फॉर लाइफ’, अपनी मां पॉउलीन स्टोन को समर्पित की है। किताब का अब तक अनगिनत भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। अब तक हार्डबाउंड तथा पेपरबैक के न मालूम कितने संस्करण हुए हैं।
‘लस्ट फॉर लाइफ’ को प्रकाशकों ने कई बार नकारा
14 जुलाई 1903 को सेन फ्रांसिस्को में जन्मे इर्विंग स्टोन ने कैलीफोर्निया यूनिवर्सिटी, बेर्केले से बीए. तथा फिर 1924 में सदर्न कैलीफोर्निया यूनिवर्सिटी से मास्टर की डिग्री प्राप्त की। ‘बायो-हिस्ट्री’ ‘लस्ट फॉर लाइफ’ लिखने के पूर्व वे नाटक तथा जासूसी कहानियां लिख रहे थे। ‘लस्ट फॉर लाइफ’ के लिए उन्होंने बहुत गहराई तथा विस्तार से शोध किया। मेहनत से तैयार किताब को प्रकाशकों ने 7 बार नकार दिया। जब प्रकाशित हुई तो तहलका मच गया।
इसके बाद इर्विंग स्टोन ने कई प्रसिद्ध लोगों की जीवनियां लिखीं। 1962 में उन्होंने एकेडमी ऑफ अमेरिकन पोएट्स तथा कई अन्य साहित्यिक संस्थाओं की स्थापना की। ब्रिटानिका इस लेखक को जीवनीकार-इतिहासकार कहता है। लॉस एंजेल्स में 26 अगस्त 1989 को इर्विंग स्टोन की मृत्यु हुई।
विंसेंट की जिंदगी त्रासद थी, उसका अंत और भी त्रासद था। बीस साल में अपने छोटे भाई थियो को उसने सात सौ पत्र लिखे और छोटे भाई थियो ने वे सारे पत्र संभाल कर सिलसिलेवार रखे और यथासंभव भाई की सहायता तथा देखभाल की। अंत समय वह विंसेट का हाथ थामे रहा। 29 जुलाई 1890 को विंसेंट के गुजरने के छ: महीने बाद थियो 25 जनवरी 1891 को मर गया। दोनों भाइयों को आसपास दफनाया गया।
थियो ने विंसेंट की पेंटिंग भी संभाल कर रखी हुई थी, जिनसे उसका घर भरा हुआ था। मानसिक अस्पताल से लौटने के बाद एक बार विंसेंट ने इन पेंटिंग को बड़ी सावधानी से छांटी, उन्हें स्केच तथा पेंटिंग में भांटा। हर पेंटिंग अपने स्थान, लोगों, पूरे वातावरण को सजीव कर रही थी। प्रत्येक चित्र वातावरण की आत्मा को प्रतिबिंबित कर रहा था। विंसेंट ने उन्हें कालानुसार अलग-अलग किया और थियो के पूरे घर में अलग-अलग तरह की पेंटिंग के अनुसार टांग दिया।
फॉयर (अपनी करीब 30 पहली पेंटिंग, जिसमें खनिक जीवन चित्रित था ‘चारकोल रूम’ नाम से), बाथरूम (इटेन तथा ब्रैबंट किसान ‘कारपेंटर का पेंसिल कमरा’ नाम से, किचेन ‘चेम्बर थ्री’ तथा वाटर-कलर रूम’ नाम से समुद्र तट, बालु के ढ़ेर, अपनी खिड़की से देखे गए दृश्य), अपने तथा अन्य बेडरूम (पोटेटो ईटर्स आदि चित्र) यानि पूरे घर में पेंटिंग की प्रदर्शनी लगा दी।
काम समाप्त कर उसने फर्श साफ किया, अपना कोट-हैट पहना और सीढ़ियां उतर कर अपने हमनाम भतीजे- थियो के बेटे को बच्चा गाड़ी में ले जॉहाना के साथ अपनी मातृभाषा डच में बात करता हुआ धूप में टहलता रहा। 12 बजे के बाद जब थियो आया तो वह उन्हें खुशी से हाथ हिलाता हुआ घर की ओर चला। गोद में उसने शिशु उठाया हुआ था। जब सब हंसते-बोलते सामने के दरवाजे पर पहुंचे तो उसने उन्हें रोक कर ‘थियो और जो, मैं तुम्हें वॉन गॉग प्रदर्शनी में ले चल रहा हूं,’ कहा, ‘अत: खुद को अग्नि परीक्षा केलिए तैयार कर लो।’
‘विंसेण्ट, प्रदर्शनी?’ थियो ने पूछा, ‘कहां?’
‘अपनी आंखें बंद करो’, विंसेंट बोला।
उसने दरवाजा खोल दिया तीनो फॉयर में घुसे। थियो और जोहाना चकित थे।
सूरजमुखी पेंटिंग
खेतों के बीच बैठ कर विंसेंट ने जो चित्र बनाया है, वे आज विंसेंट के बेहिसाब कीमती पेंटिंग्स हैं। सूरजमुखी नामक पेंटिंग अमूल्य है अभी हाल में उसकी नीलामी हुई थी। सूरजमुखी पेनल को उसने चित्रकार-मूर्तिकार यूजीन हेनरी पॉल गॉगिन के लिए पेंट किया था। मानसिक अस्पताल से निकलने के बाद विंसेंट ने डॉक्टर गाशे की देखरेख में अपने अंतिम दिन बिताए थे। इस डॉक्टर के अनुसार, ‘मिस्टर वॉन गॉग महान कलाकार है। कला के इतिहास में अभी तक ऐसे पीले सूरजमुखी नहीं हुए हैं। मात्र ये कैनवस उसे अमर कर देंगे।’
इसी डॉक्टर ने विंसेंट का मृत्यु लेख पढ़ा, थियो बोलने की स्थिति में न था। कुछ दिन बाद डॉक्टर ने विंसेंट की कब्र के आसपास सूरजमुखी के पौधे लगा दिए। उसने कहा, ‘विंसेंट मरा नहीं है। वह कभी नहीं मरेगा। उसका प्रेम, उसकी बौद्धिकता, उसका सृजित महान सौंदर्य सदैव रहेगा, संसार को समृद्ध करेगा, वह विशाल था...एक महान पेंटर...महान दार्शनिक... अपने कला-प्रेम के लिए शहीद।’
इर्विंग स्टोन लिखते हैं, पाठक पूछ सकता है, ‘इस कहानी कितनी सत्य कितना है?’ उत्तर में वे लिखते हैं, संवाद उन्होंने दोबारा रचे हैं, इसमें कभी कदा कल्पना का सहारा लिया है। उन्होंने कुछ तकनीकि स्वतंत्रंता ली हैं, अन्यथा किताब पूर्णरूपेण सत्य है।
विंसेंट वॉन गॉग का जन्म 30 मार्च 1853 को एक महान परिवार में हुआ था। गॉग परिवार यूरोप में पेंटिंग बेचने का सर्वाधिक प्रसिद्ध डीलर था। थियोडोर गॉग तथा आना कोएनेलिया की तीन बेटियां तथा दो बेटे थे। विंसेंट बड़ा बेटा था। दोनों भाई पहले इसी व्यापार में लगे हुए थे। मगर विंसेंट खुद चित्रकारी की दिशा में मुड़ गया। चित्रकारी जिसके लिए बहुत रकम की आवश्यकता होती है। ब्रश, कैनवस, रंग खरीदने होते हैं। तिस पर विंसेंट पागलों की तरह पेंट करता था।
उसने दस साल की अवधि में बहुत मैच्योर पेंटिंग की और करीब छ: पेंटिंग तथा आठ सौ से ऊपर ड्रॉइंग बनाईं। कभी पैसों की चिंता नहीं की। वह केवल और केवल जिंदगी को समझना चाहता था और उसे पेंट करना चाहता था।
ऐसा सरल हृदय था, चित्रकार विंसेंट वॉन गॉग। जिंदगी भर पैसों की किल्लत रही, मरने के बाद दूसरों को अमीर बना रहा है। हो सके तो ‘लस्ट फॉर लाइफ’ अवश्य पढ़ें और ‘डियर थियो’ डॉक्यूमेंट्री देखें।
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