सब्सक्राइब करें
Hindi News ›   Columns ›   Opinion ›   Bangladesh at dangerous turning point over Sheikh Hasina decision

शेख हसीना: खतरनाक मोड़ पर बांग्लादेश, पहले से मौजूद तनाव को और बढ़ा और भड़का सकता है

Anand Kumar आनंद कुमार
Updated Tue, 18 Nov 2025 05:58 AM IST
सार
न्यायाधिकरण का मृत्युदंड का फैसला न्याय की पुनर्स्थापना से अधिक एक ज्वलनशील राजनीतिक कार्रवाई प्रतीत होता है, जो पहले से मौजूद तनाव को और भड़का सकता है। इससे हसीना समर्थकों में रोष, विपक्षी उग्रता में वृद्धि और सत्ता संघर्ष में खतरनाक मोड़ आने की आशंका है।
विज्ञापन
loader
Bangladesh at dangerous turning point over Sheikh Hasina decision
शेख हसीना, बांग्लादेश की पूर्व पीएम - फोटो : ANI

विस्तार
Follow Us

बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (आईसीटी) द्वारा सुनाई गई मृत्युदंड की सजा देश के राजनीतिक इतिहास का अभूतपूर्व क्षण है। बांग्लादेश में इससे पहले किसी पूर्व प्रधानमंत्री को मानवता के विरुद्ध अपराधों के लिए दोषी ठहराने का कोई उदाहरण नहीं रहा है, और न ही किसी मुकदमे ने ऐसे व्यापक राजनीतिक विभाजन को जन्म दिया है। जुलाई-अगस्त, 2024 के छात्र आंदोलन के बाद जिस नाटकीय ढंग से हसीना का पंद्रह वर्षीय शासन खत्म हुआ, उन्हें देश छोड़कर भारत में शरण लेनी पड़ी, और फिर नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में बने अंतरिम प्रशासन ने सत्ता संभाली, उस पूरी पृष्ठभूमि ने मुकदमे को और अधिक विवादित बना दिया है। इसे बांग्लादेश और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के एक बड़े हिस्से ने राजनीतिक प्रतिशोध की कार्रवाई के रूप में देखा है। इस धारणा की जड़ें हसीना के पतन की परिस्थितियों, अंतरिम सरकार की कार्यप्रणाली, 2024 के बाद उभरे राजनीतिक गठबंधनों और स्वयं न्यायाधिकरण की कार्यवाही में निहित हैं।


यह वही न्यायाधिकरण है, जिसे 2010 में शेख हसीना की सरकार ने 1971 के युद्ध अपराधों के लिए जमात-ए-इस्लामी के नेताओं पर मुकदमा चलाने हेतु पुनर्जीवित किया था। विडंबना यह है कि आज हसीना स्वयं उसी के निशाने पर हैं। वर्षों पहले जिस जमात-ए-इस्लामी की राजनीतिक प्रासंगिकता खत्म मान ली गई थी, वह हसीना के पद से हटने के बाद अचानक सक्रिय और प्रभावशाली दिखाई देने लगी है। संकेत हैं कि जमात अब अंतरिम प्रशासन के साथ कई मामलों में एक साझा राजनीतिक उद्देश्य की ओर बढ़ रही है। यह स्थिति हसीना समर्थकों के संदेह को और पुख्ता करती है कि उन्हें दोषी ठहराने की प्रक्रिया का वास्तविक उद्देश्य राजनीतिक समीकरणों को बदलना है।


मोहम्मद यूनुस और शेख हसीना के बीच लंबे समय से चले आ रहे तनाव और प्रतिस्पर्धा भी इस पूरे संकट का एक केंद्रीय तत्व है। 2007 में जब यूनुस ने राजनीति में आने की इच्छा जताई थी, तो हसीना ने इसे सीधी चुनौती के रूप में देखा। फिर माइक्रो फाइनेंस संस्थानों पर सरकारी जांच, प्रशासनिक प्रतिबंध और सार्वजनिक आलोचना ने दोनों के बीच अविश्वास की खाई को और गहरा किया। 2024 में जब छात्र आंदोलन के बाद यूनुस विजयी मुद्रा में ढाका लौटे, तो तेजी से सत्ता का केंद्रीकरण शुरू हुआ। अंतरिम सरकार के गठन के तुरंत बाद अवामी लीग पर प्रतिबंध लगाकर उसके हजारों नेताओं व कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया, और हसीना के खिलाफ कई मामलों को फिर से खोला गया। ऐसे में न्यायाधिकरण की विश्वसनीयता पर सवाल उठना स्वाभाविक था।

मुकदमे की प्रक्रिया भी विवादों से घिरी रही। हसीना और पूर्व गृहमंत्री असदुज्जमान खान कमाल को अनुपस्थिति में मुकदमे का सामना करना पड़ा, जो कानूनी रूप से संभव है, पर इसे न्यायिक असमानता के रूप में देखा जाता है। अभियोजन पक्ष का मुख्य आधार पूर्व पुलिस महानिरीक्षक चौधरी अब्दुल्ला अल-मामून का बयान रहा, जिन्होंने पहले स्वयं आरोपों का सामना किया और फिर सरकारी गवाह बन गए। उनकी गवाही स्वेच्छा से दी गई या दबाव में-इस पर व्यापक संदेह है। अभियोजन द्वारा लगाए गए कई गंभीर आरोप स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच से प्रमाणित नहीं हो पाए हैं। ऐसे मामलों में, जहां राजनीतिक झुकाव स्पष्ट दिखता हो, वहां केवल कुछ बयानों के आधार पर मृत्युदंड जैसी कठोर सजा देना न्यायिक मानकों पर खरा नहीं उतरता। फैसले का लाइव प्रसारण भी पारदर्शिता से अधिक राजनीतिक कवायद प्रतीत हुआ, जिसका उद्देश्य जनभावना को प्रभावित करना था।

फैसले से देश में शांति नहीं लौटी, बल्कि हिंसा में और वृद्धि हुई है। अवामी लीग द्वारा किए गए राष्ट्रव्यापी बंद के आह्वान ने कई शहरों को ठप कर दिया है। ढाका और अन्य बड़े शहरों में कच्चे बमों के धमाके, बसों में आगजनी और लगातार झड़पों की खबरें सामने आई हैं। विपक्षी गठबंधन, जिसमें बीएनपी और कई इस्लामी संगठन शामिल हैं, फैसले के बाद सड़कों पर और आक्रामक दिख रहे हैं। हसीना के प्रतीकों, यहां तक कि धानमंडी स्थित ऐतिहासिक 32 नंबर आवास पर हमलों की कोशिशें भी सामने आई हैं। अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय पर भी हमलों की घटनाएं बढ़ी हैं, जो इस बात का संकेत है कि देश में उग्रवादी और बहुसंख्यकवादी ताकतें फिर से सक्रिय हो रही हैं।

अंतरिम प्रशासन ने रैपिड एक्शन बटालियन, बॉर्डर गार्ड और सेना को तैनात किया है, लेकिन स्थिति पर नियंत्रण अब भी कमजोर दिखता है। सबसे बुरी बात यह है कि अवामी लीग को राजनीतिक रूप से पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया गया है। इससे उसके लाखों समर्थक राजनीतिक प्रक्रिया से बाहर हो गए हैं। फरवरी, 2026 में चुनाव कराने की घोषणा की गई है। उसी दिन सांविधानिक सुधारों पर जनमत-संग्रह कराने की योजना को विपक्ष और कई विश्लेषक राजनीतिक इंजीनियरिंग के रूप में देख रहे हैं, जिसका उद्देश्य अंतरिम सरकार का कार्यकाल बढ़ाना हो सकता है। इस तरह के कदम लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को गहरी चोट पहुंचाते हैं और सत्ता में बैठे लोगों के उद्देश्यों पर गंभीर प्रश्न उठाते हैं।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इसका प्रभाव स्पष्ट दिखाई दे रहा है। 2024 में सरकार बदलने के बाद से बांग्लादेश की विदेश नीति में तेजी से बदलाव आया है। चीन के साथ रक्षा सहयोग पर नई चर्चाएं, खासकर जे-10 सी जैसे उन्नत लड़ाकू विमानों की संभावित खरीद, पाकिस्तान से बढ़ते संपर्क और भारत के साथ संबंधों में ठंडापन क्षेत्रीय राजनीति को नई दिशा दे रहा है। शेख हसीना भारत को ‘सबसे महत्वपूर्ण साझेदार’ कहती रही हैं, जबकि अंतरिम प्रशासन के कदम इसके विपरीत दिखाई देते हैं। न्यायाधिकरण का फैसला और हसीना का भारत में होना, दोनों ही नई दिल्ली और ढाका के बीच संवेदनशीलता बढ़ा रहे हैं।

ऐसे में, न्यायाधिकरण का मृत्युदंड का फैसला न्याय की पुनर्स्थापना से अधिक एक ज्वलनशील राजनीतिक कार्रवाई प्रतीत होता है, जो पहले से मौजूद तनाव को और भड़का सकता है। इससे हसीना समर्थकों में रोष, विपक्षी उग्रता में वृद्धि और सत्ता संघर्ष में खतरनाक मोड़ आने की आशंका है। शेख हसीना के खिलाफ यह फैसला न केवल सामाजिक ध्रुवीकरण को गहरा करेगा, बल्कि बांग्लादेश की लोकतांत्रिक दिशा पर भी गंभीर प्रश्नचिह्न लगा देगा। edit@amarujala.com
विज्ञापन
विज्ञापन
Trending Videos
विज्ञापन
विज्ञापन

Next Article

Election

Followed