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सियासत: वंशवादी राजनीति की हार में 'जीत' गई भाजपा की सियासत
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सार
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रेवंत रेड्डी
- फोटो :
पीटीआई
विस्तार
पांच में से जिन चार राज्यों के चुनावी नतीजे आए हैं, उनमें से तीन में नरेंद्र मोदी का जादू जबर्दस्त तरीके से चला है। शीत सत्र की आज से हो रही शुरुआत के बीच विधानसभा चुनावों के ये नतीजे भाजपा की मजबूती के बारे में ही बताते हैं। तेलंगाना का नतीजा हालांकि भाजपा के अनुकूल नहीं है, जहां कांग्रेस को विजय मिली है। लेकिन बीआरएस (भारत राष्ट्र समिति) और केसीआर परिवार को राजनीतिक रूप से ध्वस्त करने में भाजपा की भूमिका रही।
तेलंगाना में कांग्रेस की जीत की वजह राज्य में केसीआर की वंशवादी राजनीति के प्रति मतदाताओं की नाराजगी है। केसीआर के बेटे केटीआर और बेटी कविता को लगातार जिस तरह महत्व मिलता रहा, उससे आम मतदाता ही नहीं, पार्टी में भी बहुत सारे लोग असहज थे। इसके अलावा यह याद रखना चाहिए कि कांग्रेस ने आंध्र प्रदेश को विभाजित कर जिस तरह स्वतंत्र तेलंगाना राज्य बनाया, उसके लिए राज्य के लोग कांग्रेस के प्रति कृतज्ञ हैं और सोनिया गांधी की छवि वहां अम्मा की है।
तेलंगाना में स्थानीय कांग्रेस नेता रेवंत रेड्डी ने अपने चुनाव अभियानों में केसीआर परिवार के खिलाफ जबर्दस्त माहौल बनाया था। उन्होंने यहां तक कहा कि अगर कांग्रेस सत्ता में आती है, तो केसीआर की गिरफ्तारी तय है। राहुल गांधी और प्रियंका के चुनाव अभियानों का भी मतदाताओं पर प्रभाव पड़ा। मुस्लिम वोट तो केसीआर और ओवैसी की पार्टियों से खिसककर कांग्रेस की झोली में गया ही, हिंदू वोट भी भाजपा से खिसक गए। लिहाजा सही अर्थों में तेलंगाना में कांग्रेस की जीत को रेवंत रेड्डी के पक्ष में चली लहर का नतीजा कह सकते हैं। बताया यह जा रहा था कि राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो यात्रा' का तेलंगाना में कोई खास असर नहीं था, लेकिन सच्चाई यह है कि मतदाताओं ने राहुल की उस यात्रा को बेहद सकारात्मकता के साथ लिया। पड़ोसी आंध्र प्रदेश की तुलना में तेलंगाना में राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो यात्रा' के प्रति स्थानीय लोगों में भारी उत्साह था।
पार्टी द्वारा रेवंत रेड्डी को समुचित महत्व देना, राज्य इकाई में व्याप्त आपसी फूट सुलझा लेना, कर्नाटक की जीत को भुनाना, बीआरएस की योजनाओं की तीखी आलोचना करना और बीआरएस-भाजपा-एआईएमआईएम को साझेदार बताना चुनाव में कांग्रेस के पक्ष में काम कर गया। यह अलग बात है कि 2014 में पृथक राज्य बने तेलंगाना में पहली बार अपनी सरकार बनाने के बारे में कांग्रेस इस साल की शुरुआत में भी उतनी आश्वस्त नहीं थी। तेलंगाना में केसीआर की वंशवादी राजनीति की हार ने चूंकि वंशवाद और भ्रष्टाचार के आपसी रिश्ते को रेखांकित किया, लिहाजा यह नतीजा अखिलेश यादव, एमके स्टालिन और उद्धव ठाकरे जैसों के लिए एक संदेश भी है, जिन्हें राजनीति विरासत में मिली।
चार राज्यों के चुनावी नतीजे एक बार फिर लोकतंत्र की शक्ति के बारे में बताते हैं, जिसमें वोट की ताकत सरकार बदलने में सक्षम है। चार में से तीन राज्य जीतकर भाजपा और नरेंद्र मोदी अब बेहद आश्वस्ति के साथ 2024 के लोकसभा चुनाव पर अपना ध्यान केंद्रित करेंगे।
कांग्रेस ने भले ही तेलंगाना जीता हो, लेकिन छत्तीसगढ़ और राजस्थान में उसने अपनी सरकार गंवा दी। दरअसल चुनावी हिंदुत्व से कांग्रेस को लाभ नहीं, बल्कि नुकसान ही होता है। विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' से जुड़े द्रमुक के उदयनिधि ने सनातन धर्म के खिलाफ जो टिप्पणी की, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान जैसे हिंदी भाषी प्रदेशों के मतदाताओं ने उसके लिए कांग्रेस को दंडित किया। आदिवासी वोटरों के भाजपा के पाले में जाने से भी कांग्रेस का नुकसान हुआ और छत्तीसगढ़ में जल, जंगल, जमीन का राहुल गांधी का नारा विफल साबित हुआ। राहुल गांधी के लगातार विदेश दौरों का हिंदी प्रदेश के इन तीन चुनावी राज्यों के मतदाताओं पर अच्छा संदेश तो नहीं ही गया, अदाणी के खिलाफ उनके आक्रामक रुख के कारण भी उत्तर भारतीय मतदाताओं ने कांग्रेस के प्रति बेरुखी दिखाई हो, तो आश्चर्य नहीं। कुल मिलाकर, यह नतीजा विपक्ष के लिए बेहद निराशाजनक है।