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रक्षा-सुरक्षा : सैन्य खरीद व्यवस्था बदलें, तभी लगेगी बाड़मेर जैसी घटनाओं पर लगाम

Arunendra Nath Verma अरुणेंद्र नाथ वर्मा
Updated Tue, 02 Aug 2022 08:23 AM IST
सार
देश के पास धन की कमी तो है ही, लेकिन सही फैसले लेने की इच्छाशक्ति की कमी सर्वोपरि लगती है। सेवारत अधिकारियों को त्वरित सलाह देने के लिए पुरस्कृत किया जाना चाहिए और टाल-मटोल करने वालों को समयपूर्व सेवानिवृत्ति।
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Defense Security: Change military procurement system
MIG-21 - फोटो : Social Media

विस्तार
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बाड़मेर के निकट हुई दुखद घातक दुर्घटना में भारतीय वायुसेना के दो युवा पायलटों के जीवन की बलि लेकर उड़न ताबूत के नाम से कुख्यात मिग 21 लड़ाकू विमान एक बार फिर से सुर्खियों में है। हमारी वायुसेना में 1963 में शामिल किया गया मिग 21 अब तक वायुसेना के दो सौ लड़ाकू विमान चालकों की शहादत ले चुका है। कुल 874 मिग विमान पिछले साठ वर्षों में वायुसेना में शामिल किए गए, उनमें से चार सौ अब तक स्वयं हवाई दुर्घटनाओं में ध्वस्त हो चुके हैं। 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्धों में सफल रहे मिग को अब सेवानिवृत्ति मिलनी ही चाहिए। 



हर विमान दुर्घटना के बाद यही सवाल उठता है कि इस बूढ़े हो चुके विमान का कब तक इस्तेमाल किया जाएगा। वर्ष 1959 में आधुनिक जेट लड़ाकू विमान के रूप में तैयार और भारतीय वायुसेना में 1963 में शामिल बूढ़े मिग 21 विमान को आज लगभग साठ साल बाद भी वायुसेना की चार स्क्वाड्रनें इस्तेमाल करने के लिए मजबूर हैं। आज वायुसेना में इस्तेमाल किए जा रहे मिग 21 भारत में एचएएल द्वारा बनाए गए हैं और ऐसे सत्तर विमानों का कागजी जीवन अभी शेष है। 


विमान चालकों को उड़ान के लिए सौंपने से पहले वायुसेना के तकनीशियन इनका सावधानी से निरीक्षण करते हैं। आधुनिकतम लड़ाकू विमानों की गुणवत्ता की कसौटी में उनकी मारक क्षमता, गति, ऊंचाई, हथियारों और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की उपयोगिता के साथ ही उन्हें उड़ाने की सरलता भी शामिल होती है। लेकिन इस आखिरी बिंदु पर मिग 21 बुरी तरह मार खाता है। प्रशिक्षण अकादमी से निकलने के बाद ऑपरेशनल प्रशिक्षण के लिए विमान चालक उसी का प्रयोग करने के लिए मजबूर हैं। 

देश की अग्रिम सीमा पर आज भी मिग 21 तैनात हैं। भारतीय वायुसेना की घोषित स्थापना 45 स्क्वाड्रन की है। इससे कम स्क्वाड्रन संख्या हमारी आकाशीय सीमाओं की सुरक्षा को कमजोर करेगी। पर जब तक पूरे नए विमान नहीं मिलते, वायुसेना उन्हीं पुराने विमानों का इस्तेमाल करने के लिए बाध्य है, जिनका कार्यकारी जीवन अभी कम से कम कागजों पर समाप्त न हुआ हो। 

नतीजा यह है कि विश्व की सबसे बड़ी सैन्य शक्ति चीन के मुकाबले खड़ी भारतीय वायुसेना उन मिग 21  विमानों का प्रयोग करने के लिए बाध्य है, जो अब केवल अंगोला, अजरबैजान, क्यूबा और क्रोशिया जैसे छोटे-छोटे साधनहीन देश देशों की वायुसेनाओं में कार्यरत हैं। संतोष की बात है कि 2025 तक वायुसेना से सभी मिग विमानों को सेवामुक्त करने का निर्णय सरकार ने अब अंततः ले लिया है। 

आखिर क्यों हम अपने पुराने सैन्य साज-ओ-सामान को इतनी लंबी आयु तक इस्तेमाल करते चले जाते हैं? क्या केवल आर्थिक संसाधनों की कमी इसके लिए जिम्मेदार है? हर बड़ी सैन्य खरीद के बाद जिस तरह से भ्रष्टाचार के आरोप लगते हैं, उनकी पृष्ठभूमि में सरकार को निर्णय लेने में सहायता करने वाले अधिकारियों की हिचक स्वाभाविक है। लेकिन यदि सेना का हर शीर्ष अधिकारी यही सोचे कि फाइलें सरकाते हुए किसी तरह अपना कार्यकाल पूरा करना है, तो पुराने सैन्य उपकरणों की जगह नए उपकरण और विमान खरीदने का फैसला कौन लेगा? 

देश के पास धन की कमी तो है ही, लेकिन सही फैसले लेने की इच्छाशक्ति की कमी सर्वोपरि लगती है। सेवारत अधिकारियों को त्वरित सलाह देने के लिए पुरस्कृत किया जाना चाहिए और टाल-मटोल करने वालों को समयपूर्व सेवानिवृत्ति। इसके अलावा, जब भी भ्रष्टाचार के आरोप लगें, तो सर्वोच्च न्यायालय स्वतः संज्ञान लेकर जल्दी से जल्दी जांच करवाए। आरोप सिद्ध होने पर संबंधित नेताओं, मंत्रियों और सरकार के शीर्ष अधिकारियों को दंडित किया जाए और आरोप बेबुनियाद साबित हों, तो झूठा आरोप लगाने वालों को भी उतनी ही तत्परता से दंड दिया जाए। 

केवल मिग 21 को सेवानिवृत्ति देने से समस्या हल नहीं होने वाली। आज मिग बूढ़े हुए हैं, कल राफेल भी हो जाएगा। इसलिए सैन्य खरीद व्यवस्था में सुधार लाना होगा। उसे पारदर्शी बनाने का काम जारी है, लेकिन झूठे आरोप इस व्यवस्था को बेबस और कमजोर बनाए रख सकते हैं। (-लेखक सेवानिवृत्त विंग कमांडर हैं।)

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