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मुद्दा: जब पूरी व्यवस्था ही विफल हो जाती है, नेपाल घटनाक्रम के कुछ अहम बिंदु
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नेपाल के हालात
- फोटो : PTI
दक्षिण एशिया के युवा अब अपनी बात कहने के लिए लंबा इंतजार नहीं कर रहे हैं। काठमांडो में युवा प्रदर्शनकारियों ने बड़े स्तर पर उग्र प्रदर्शन किए। कुछ ने नेपाल की संसद, पुलिस थानों और राजनेताओं के घरों को आग के हवाले कर दिया। पिछले साल ढाका में छात्रों ने राजनीतिक वंश को उखाड़ फेंकने में योगदान दिया। अर्थव्यवस्था के ध्वस्त होने और भ्रष्टाचार की वजह से वर्ष 2022 में श्रीलंका के युवाओं की अगुवाई में चले अरागालया आंदोलन ने राष्ट्रपति गोतबाया राजपक्षे की सरकार को गिरा दिया।
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राजनीतिक उथल-पुथल के लिए नेपाल कोई अजनबी जगह नहीं है, लेकिन नेपाल के जेन-जी विरोध ने उजागर कर दिया कि लंबे समय तक अभिजात वर्ग द्वारा की जाने वाली उपेक्षा के कारण युवाओं की दबी हुई हताशा किस तरह अप्रत्याशित रूप से फट पड़ती है। वर्ष 1997 से 2012 के बीच पैदा हुई पीढ़ी, जिसे जेन-जी कहते हैं, डिजिटल कुशलता और आर्थिक अनिश्चितता से प्रभावित एक हाइपरकनेक्टेड दुनिया में पली-बढ़ी है। विद्रोह का तात्कालिक कारण सरकार द्वारा 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर प्रतिबंध माना जा रहा है, लेकिन व्यापक रूप से इसे असहमति को दबाने के रूप में देखा जा रहा है। लेकिन, इसका गहरा कारण व्यवस्थागत विफलता है। नेपाल के युवाओं ने सिर्फ सेंसरशिप का ही विरोध नहीं किया, बल्कि उन्होंने विरासत में मिले विशेषाधिकार और दंडमुक्ति पर आधारित राजनीतिक व्यवस्था को भी नकार दिया।
भ्रष्टाचार के खिलाफ बड़े स्तर पर नाराजगी थी। डिजिटल अधिकारों को लेकर शुरू हुआ प्रदर्शन पीढ़ीगत विद्रोह में बदल गया। नेपाल से प्रकाशित अंग्रेजी के अखबार द अन्नपूर्णा एक्सप्रेस ने फरवरी 2025 को लिखा था, ‘नेपाल चिंताजनक प्रवृत्ति देख रहा है-देश की रीढ़ कहे जाने वाले इसके युवा बेहतर अवसरों की तलाश में बड़ी संख्या में विदेश जा रहे हैं। यह सामूहिक पलायन सिर्फ प्रवास की कहानी नहीं है; यह आर्थिक असमानता, सीमित अवसरों और प्रतिभाशाली युवाओं को बनाए रखने में व्यवस्थागत विफलता का परिणाम है।’ लेख में लिखा था, ‘यद्यपि बीते कुछ दशकों में प्रतिव्यक्ति औसत आय 7,690 से बढ़कर 1,36,707 रुपये हो गई है, लेकिन यह वृद्धि बेहद असमान है। बीस फीसदी सबसे अमीरों की प्रति व्यक्ति औसत आय 19,325 से बढ़कर 2,59,867 रुपये पहुंच गई, जबकि बीस फीसदी सबसे गरीबों की औसत आय बढ़कर 2,020 से 61,335 रुपये ही हुई। यह भारी असमानता बढ़ती बेरोजगारी और युवाओं के बड़े पैमाने पर पलायन का प्रमुख कारण है।’
बीस लाख से अधिक नेपाली युवा विदेश में काम करते हैं। वित्त वर्ष 2024-25 में नेपाल के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में विदेश से भेजे गए धन (रेमिटेंस) का 32.9 फीसदी योगदान था। नेपाल के युवा व्यापक रूप से दो समूहों में बंटे हैं। एक संघर्षशील युवा-जो शहरी, शिक्षित और डिजिटल रूप से कुशल हैं तथा इंस्टाग्राम, टिकटॉक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स का इस्तेमाल कर भ्रष्टाचार को उजागर कर रहे हैं। दूसरे पलायन करने वाले युवा-ग्रामीण, आर्थिक रूप से वंचित और विदेश में कम आय पर नौकरी कर रहे हैं। यद्यपि ये दोनों अलग-अलग हैं, फिर भी इनकी शिकायत एक है : टूटी हुई व्यवस्था को नकारना।
यह सही है कि कई बार ‘छात्रों की अगुवाई’ में होने वाले विरोध-प्रदर्शनों का नेतृत्व वास्तव में छात्र नहीं करते, बल्कि इस आड़ में अराजक तत्व घुसकर पूरे आंदोलन को हथिया लेते हैं, लेकिन नेपाल के मामले में असल मुद्दा कुछ और ही दिख रहा है। वैश्विक युवा डिजिटल रूप से कुशल और हाइपरकनेक्टेड है और यह एक उभरता हुआ वैश्विक युवा इकोसिस्टम भी है। जब असमानता बढ़ती है और एक फीसदी लोग अपने विशेषाधिकारों का दिखावा करते हैं, तब सब्र का बांध टूट जाता है और बस एक खटका दबाने की जरूरत होती है। यह हम एक के बाद दूसरे देश में देख रहे हैं।
गहराती असमानताओं को नजरअंदाज करना और युवा आलोचकों को ब्रेनवॉश बताकर खारिज करना खतरनाक होता है। सभी देशों को इन चेतावनी भरे संकेतों पर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए। नेपाल का संकट सिर्फ काठमांडो का संकट न होकर असमानता और विशेषाधिकार के साथ साझा क्षेत्रीय संघर्षों का है। यह उन विकल्पों के बारे में है, जिन्हें हम चुनते हैं-नीति में, व्यवसाय में और एकजुटता में। नई दिल्ली को अब सभी हितधारकों के समक्ष यह स्पष्ट कर देना चाहिए कि उसकी मित्रता सबसे पहले और खासकर नेपाल के लोगों के साथ है, न कि किसी विशिष्ट राजनीतिक समूह के साथ।