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टाइम मशीन : जीवन अपना रहस्य खुद ही खोल देता है, काम में तल्लीन होने पर उधड़ने लगती हैं इसकी परतें
डेविड ब्रुक्स, द न्यूयॉर्क टाइम्स
Published by: दीपक कुमार शर्मा
Updated Sun, 04 May 2025 06:22 AM IST
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सांकेतिक तस्वीर
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विस्तार
हारुकी मुराकामी एक औसत दर्जे के विद्यार्थी थे। जीवन में आगे चलकर बड़ी उपलब्धियां हासिल करने वाली तमाम शख्सियतों की तरह, भविष्य के इस महान उपन्यासकार का शिक्षकों की बातों में बिल्कुल मन नहीं लगता था; वह केवल वही पढ़ते थे, जिसमें उनकी रुचि होती थी। गिरते-पड़ते वह कॉलेज पहुंच गए और मजे की बात यह है कि स्नातक करने से पहले ही उन्होंने टोक्यो में एक छोटा-सा जैज क्लब भी खोल लिया। एक बार 1978 में, मुराकामी जापान के एक स्टेडियम में बेसबाल का मैच देख रहे थे, तभी उनके दिमाग में एक विचार आया, ‘मैं उपन्यास लिखने की कोशिश कर सकता हूं।’
उन्होंने क्लब बंद होने के बाद के समय में लिखना शुरू किया और अंततः एक साहित्यिक पत्रिका को पांडुलिपि भेजी। उन्हें इसके लिए पुरस्कार मिला और रचना प्रकाशित हुई। फिर उन्होंने अपनी आय के एकमात्र विश्वसनीय स्रोत बार को बेचने का फैसला किया, और लेखन को आगे बढ़ाया। 2008 में अपने एक संस्मरण में उन्होंने लिखा, ‘मैं उस तरह का व्यक्ति हूं, जिसे जो करना है, उसे लेकर वह पूरी तरह से प्रतिबद्ध हो जाता है।’ बार चलाने जैसे कठिन काम से दूर रहने के कारण उनका वजन बढ़ने लगा। तब उन्होंने कोई खेल अपनाने का फैसला किया और दौड़ना उन्हें एक अच्छा विकल्प लगा। उनके घर के पास ही एक ट्रैक था। दौड़ने का फैसला उन्होंने इसलिए भी किया, क्योंकि इसके लिए किसी उपकरण की जरूरत नहीं थी और वह इसे खुद ही कर सकते थे। उन्होंने अपनी प्रतिबद्धता को लेकर जो लिखा था, वह गलत नहीं था। 2000 के दशक के अंत तक वह साल के हर हफ्ते, हफ्ते में छह दिन, प्रतिदिन छह मील दौड़ रहे थे, और 23 मैराथन, कई अन्य लंबी दूरी की दौड़, एक अल्ट्रामैराथन और कुछ ट्रायथलॉन में भाग ले चुके थे। हालांकि, वह अपने प्रदर्शन से खुश नहीं थे। अपने संस्मरण व्हाट आई टॉक अबाउट व्हेन आई टॉक अबाउट रनिंग में वह एक के बाद एक अपनी पीड़ा का वर्णन करते हैं : ‘लगभग 23 मील दौड़ने के बाद मुझे हर चीज से नफरत होने लगती थी’, ‘मैं प्रतियोगिता पूरी कर लेता हूं, फिर भी मुझे किसी उपलब्धि का एहसास नहीं होता। उल्टा मैं राहत की सांस लेता कि मुझे और नहीं दौड़ना पड़ेगा’, ‘यह शारीरिक रूप से इतना थका देने वाला होता था कि मुझे दौड़ने से नफरत होने लगी थी और मैं हमेशा सोचता था कि अब कभी नहीं दौड़ूंगा।’
मेरे दिमाग में जो पहला सवाल उठता है, वह यह है कि वह ऐसा क्यों करते थे, जो नियमित तौर पर उन्हें इतना कष्ट देता था? लेकिन जब आप अपने चारों तरफ देखते हैं, तो पाते हैं कि ऐसे बहुत-से लोग होते हैं, जो अप्रिय चीजें करने का विकल्प चुनते हैं। मेरा आशय उन रोमांच प्रेमियों से नहीं है, जो माउंट एवरेस्ट चढ़ने, अंटार्कटिका पार करने या ऐसे ही बेहद मुश्किल कार्यों में आनंद महसूस करते हैं, बल्कि ऐसे आम लोगों से है, जो अपनी सामान्य जिंदगी जी रहे होते हैं। लोग वायलिन सीखते हैं, स्केट बोर्ड चलाना सीखते हैं, नौकरी करते हैं, बिजनेस करते हैं, इनमें से कुछ भी आसान नहीं है, फिर भी लोग करते हैं। मैंने खुद लेखन का पेशा चुना। लिखने से मुझे पैसे मिलते हैं, हालांकि मैंने लिखना तब से शुरू किया, जब मुझे इसके लिए कोई पैसा नहीं मिलता था। पैसा पर्याप्त प्रेरणा नहीं है। पिछले चालीस वर्षों से मैं हर दिन सुबह दफ्तर जाकर 1,200 शब्द लिखता हूं। लिखना मुझे पसंद हो, ऐसी बात नहीं है। किसी रचना के लिए सही शिल्प चुनना कभी-कभी आप सोच भी नहीं सकते, इतना मुश्किल हो जाता है। यह रोज कुआं खोदने जैसा है, अनुभव भी इसमें कोई मदद नहीं करता। दरअसल, मुझे लिखना पसंद नहीं, लेकिन मैं लिखना चाहता हूं। इस फर्क को समझने की जरूरत है। यह मेरे लिए रोजाना की गतिविधि है, जो जीवन को संरचना और अर्थ देती है। इसमें मजा आए या न आए, मैं इसकी परवाह करता हूं।
अमूमन इन्सान कम मेहनत और ज्यादा फायदे वाले काम ढूंढता है। लेकिन जब बात उन चीजों की आती है, जिनकी हम वाकई परवाह करते हैं, जैसे-पेशा, परिवार, पहचान, जो भी हमारे जीवन को उद्देश्य देता है-हम एक अलग तर्क से काम कर रहे होते हैं। तब हम दर्द सहकर भी काम करते हैं। नौकरी मजबूरी बन जाती है। लेकिन मुझे नहीं लगता कि नीरस मानसिकता से महान कार्य होते हैं। लोग महान परियोजनाओं के लिए प्रतिबद्ध होते हैं, क्योंकि वे मंत्रमुग्ध होते हैं। किसी महान विचार ने उन्हें जकड़ लिया होता है, कुछ संभावनाएं जगा दी होती हैं, कल्पना को प्रज्वलित कर दिया होता है। मंत्रमुग्धता के इस क्षण की शुरुआत अचानक हो सकती है। बेसबाल मैच के दौरान मुराकामी को उपन्यास लिखने का ख्याल आया और शांत जुनून भड़क गया और एक मुश्किल यात्रा शुरू हो गई। लेकिन यह सबके साथ नहीं होता। कुछ लोग पूरी जिंदगी निर्देशों के इंतजार में बिताते हैं, वे आनंद के लिए खुले नहीं होते और उनका सिर हमेशा नीचे होता है। दूसरी तरफ वे लोग होते हैं, जो इन क्षणों को लपकने के लिए तैयार होते हैं। वे आश्चर्यचकित होने के लिए तैयार रहते हैं, और जैसा महान दार्शनिक देकार्त कहते हैं, हमारी ज्यादातर महान यात्राएं आश्चर्य से शुरू होती हैं। लेकिन सवाल यह है कि वे कौन-से अनुभव होते हैं, जो जीवन को बदल देने वाला आकर्षण जगा सकते हैं? एक भावी खगोलशास्त्री ब्रह्मांड की सुंदरता और एक भावी मैकेनिक किसी गाड़ी की सुंदरता से मोहित हो सकता है। यहूदी मेनुहिन, जब तीन साल के थे, तब अपने माता-पिता के साथ एक वायलिन वादन कार्यक्रम में गए और लौटते ही बोले कि अपने चौथे जन्मदिन के लिए उन्हें वायलिन चाहिए। आइंस्टीन चार साल की उम्र से ही, ब्रह्मांड की तरफ आकर्षित होने लगे थे।
आखिर कैसे कोई उत्कट प्रतिबद्धता बढ़ती है, जो आपके जीवन पर कब्जा कर लेती है और आपको स्वैच्छिक दर्द सहने के लिए प्रेरित करती है? मुझे लगता है कि यह प्रक्रिया रहस्य से शुरू होती है। प्यार में पड़ने की तरह, ये प्रज्वलन क्षण हमारी अचेतनता की सबसे गहरी परत पर होते हैं-वह अंधेरा क्षेत्र, जहां रुचियां प्रज्वलित होती हैं, इच्छाएं बनती हैं, हमारे अस्तित्व का प्रेरक केंद्र। यह वह हिस्सा है, जिसे हम आसानी से नहीं देख सकते। जब भी आप सुधार की तलाश में होते हैं, तो आप खुद को अपनी क्षमताओं के किनारे पर, जीवन की खतरनाक चट्टान के किनारे पर रखते हैं। इसके बाद मिलता है निपुणता का प्रथम स्वाद। किसी चीज को रचने, बनाने और उसमें और अधिक सक्षम होने की यह इच्छा ही है, जिसके कारण बिल ब्रैडली ने अपने चश्मे के नीचे कार्डबोर्ड चिपकाकर बास्केटबाल ड्रिबल करना सीखा, ताकि उन्हें दृष्टि की तुलना में अंतर्ज्ञान पर अधिक भरोसा हो। जब आप किसी बड़े काम के लिए प्रतिबद्ध होते हैं, तो दर्द के प्रति आपका रिश्ता बदल जाता है। मुराकामी ने स्पष्ट रूप से दर्द सहने की अपनी क्षमता पर गर्व और संतुष्टि महसूस करना सीख लिया। उन्होंने लिखा, दर्द अनिवार्य है, पीड़ा वैकल्पिक है। नीत्शे की प्रसिद्ध उक्ति है, जिसके पास जीने का मकसद होता है, वह किसी भी तरह से टिक सकता है। अगर आप किसी गहरी इच्छा से जकड़े हुए हैं, तो आप मुश्किलों को झेल सकते हैं, लेकिन दृढ़ संकल्प के साथ आगे बढ़ें। मुराकामी का तर्क है कि किसी भी लेखक में तीन सबसे महत्वपूर्ण गुण-प्रतिभा, ध्यान और धीरज हैं। शायद उपन्यास लेखन या सिंफनी रचना जैसे प्रेरणा से भरे क्षेत्रों में यह सही क्रम है, लेकिन हमारे अधिकांश व्यवसायों में, धीरज या सहनशक्ति सबसे अधिक मायने रखती है। मुझे नफरत होगी, अगर कोई मेरे जीवन से लिखने का दर्द छीन ले। प्रकृति हमें उम्मीद देती है कि अगली पहाड़ी के पार सबकुछ बेहतर है। यह प्रेरणा मानवीय अस्थिरता की वजह होती है। मूर्तिकार हेनरी मूर कहते हैं कि जीवन का रहस्य उस कार्य में छिपा है, जिसे आप पूरी तल्लीनता के साथ करते हैं, उस असंभव लक्ष्य में छिपा है, जिसके लिए आप पूरा जीवन समर्पित कर देते हैं।