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भाजपा की नकल करता विपक्ष:  दिल्ली के स्कूलों के पाठ्यक्रम में देशभक्ति, राहुल का मंदिरों का दौरा

Surendra Kumar सुरेंद्र कुमार
Updated Mon, 18 Oct 2021 05:51 AM IST
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सार
चाहे वह पिछले लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी का मंदिरों का दौरा रहा हो, छत्तीसगढ़ में बघेल सरकार द्वारा राम वन गमन परिपथ का लोकार्पण या दिल्ली के स्कूलों के पाठ्यक्रम में देशभक्ति को शामिल करना हो-ये सब भाजपा की नीतियों की नकल हैं, पर विपक्ष भाजपा को इसका श्रेय भी नहीं देता।
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Opposition copying BJP Patriotism in Delhi school curriculum Rahul Gandhi visits temples
अरविंद केजरीवाल - फोटो : Agency (File Photo)

विस्तार
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मध्यमार्गी दक्षिणपंथी भाजपा, जिसकी छवि कभी ब्राह्मण और व्यापारियों की पार्टी के रूप में थी, नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अभूतपूर्व ऊंचाई पर पहुंची है। मोदी सरकार ने आम लोगों के कल्याण के लिए स्वच्छ भारत से आयुष्मान भारत और जन-धन योजना से उज्ज्वला तक सैकड़ों योजनाओं की शुरुआत की है।



दूसरी ओर, अनेक अप्रासंगिक हो चुके कानूनों को खत्म करके, जीएसटी को लागू कर, कर ढांचे का सरलीकरण कर, रक्षा समेत दूसरे संवेदनशील क्षेत्रों को छोड़कर बाकी सब को निजी क्षेत्र के लिए खोलकर, डिजिटल इंडिया अभियान को आगे बढ़ाकर, भ्रष्टाचार और बिचौलियों को खत्म कर मोदी ने खुद को उद्योग क्षेत्र का सच्चा हितैषी साबित किया है, यह अलग बात है कि उद्योग क्षेत्र जब-तब शिकायत करता है कि अगली पीढ़ी के आर्थिक सुधारों को अभी तक लागू नहीं किया गया है। एयर इंडिया को टाटा को लौटाने जैसे फैसले और कई औद्योगिक क्षेत्रों में अंबानी और अदाणी की पहले से ही मजबूत पैठ को देखते हुए सूट-बूट की सरकार का विपक्ष का आरोप नहीं मिटने वाला। भाजपा के इस अभूतपूर्व विस्तार में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्वाभाविक ही बड़ी भूमिका है।


भाजपा पर बढ़ते अधिनायकवाद, विरोधी विचारों के प्रति असहिष्णुता, मीडिया पर दबाव बनाने, प्रमुख संस्थाओं पर नियंत्रण स्थापित करने, आलोचना करने वाले पत्रकारों की विवादास्पद तरीके से गिरफ्तारी, गौरक्षा के नाम पर गुंडागर्दी, भीड़ द्वारा पीट-पीटकर की जाने वाली हत्या, भाजपा शासित राज्यों में अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के साथ दुर्व्यवहार आदि के आरोप तो हैं ही, विदेशों में भी धार्मिक स्वतंत्रता और मानवाधिकार के मुद्दे पर भाजपा की आलोचना की जाती है। लेकिन इसकी अनदेखी भला कैसे की जा सकती है कि भाजपा आज दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी है? वस्तुतः यह चीन की कम्युनिस्ट पार्टी से दोगुनी है और देश के 18 राज्यों में यह खुद या सहयोगियों के साथ सत्ता में है।

अगर भाजपा पर लगाए गए तमाम आरोप सही हैं और पिछले सात साल में उसके द्वारा हासिल की गई उपलब्धियां मीडिया प्रचार, प्रबंधन कौशल और फेक न्यूज का ही नतीजा हैं, तो फिर वह एक के बाद एक चुनाव जीतकर पूर्वोत्तर समेत पूरे देश में अपना विस्तार कैसे कर पा रही है? जाहिर है कि सच कहीं और है। मोदी सरकार द्वारा घोषित तमाम योजनाएं भले सौ फीसदी सफल न हुई हों, पर उनकी सफलता की दर कम से कम 60 प्रतिशत तो है ही और उनसे लाखों भारतीयों का जीवन बेहतर हुआ है। लिहाजा असहिष्णुता, दमन तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में कटौती व अल्पसंख्यकों पर अत्याचार के आरोप अतिरंजित ही हैं। विगत नौ अक्तूबर को नई दिल्ली के ताज पैलेस में इंडिया टुडे कॉन्क्लेव के मंच से किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत ने कहा कि किसान आंदोलन के बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश और देश के बाहर झूठ बोलते हैं, और झूठ रोकने की कोई दवा नहीं है। प्रेस पर अगर वाकई दबाव होता, तो क्या टिकैत की यह टिप्पणी सार्वजनिक हो पाती?

जितिन प्रसाद, ज्योतिरादित्य सिंधिया, टॉम वडक्कन और खुशबू सुंदर जैसे व्यक्तित्वों ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थामा है, तो यह नरेंद्र मोदी के जादुई प्रभाव तथा दूसरी ओर, देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी की बदहाली की स्वीकारोक्ति है। कांग्रेस के जिन वरिष्ठ नेताओं ने अपना ज्यादातर समय नेहरू-गांधी परिवार का समर्थन करते हुए बिताया, उन्होंने बेहद निराशा के बीच पिछले साल जी-23 का गठन किया। पर तब भी सांगठनिक चुनाव करवाने, स्थायी पार्टी अध्यक्ष चुनने तथा पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र की बहाली के लिए समय-समय पर अंतरिम अध्यक्ष को चिट्ठी लिखने के अलावा वे और कुछ नहीं कर पाए। लेकिन जिस पार्टी में नवजोत सिंह सिद्धू हों और जहां युवा कांग्रेस के कार्यकर्ता ही अपने नेता कपिल सिब्बल के घर पर विरोध स्वरूप टमाटर फेंकते हों, वहां भाजपा के लिए अलग से कुछ करने की जरूरत ही नहीं है। पहले नोटबंदी और फिर महामारी के समय लगाए गए लॉकडाउन से असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले लाखों लोगों को परेशानी हुई, और इनसे भारतीय अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हुआ, जिससे उबरने में उसे अब भी संघर्ष करना पड़ रहा है। लेकिन विपक्षी पार्टियां इसका लाभ नहीं उठा पाईं। अभी तक सिर्फ पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी और दिल्ली में अरविंद केजरीवाल ही मोदी-शाह की ताकतवर जोड़ी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तथा केंद्र सरकार की मशीनरी को परास्त करने में सक्षम हुए हैं। यह आश्चर्यजनक ही है कि कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियां भाजपा को परास्त करने के लिए अभी तक विचार-विमर्श में ही लगी हुई हैं।

यह विद्रूप ही है कि भाजपा को परास्त करने के लिए विपक्ष उसी का अनुसरण भी कर रहा है और उसका शुक्रिया भी अदा नहीं कर रहा। पिछले लोकसभा चुनाव के समय कमलनाथ या दिग्विजय सिंह की सलाह पर राहुल गांधी का 200 से अधिक मंदिरों में दर्शन के लिए जाने को भला और क्या कहा जाए! इसके बावजूद उस चुनाव में कांग्रेस को मात्र 52 सीटें मिलीं, जिसका अर्थ साफ था कि ईश्वर का भी उसे आशीर्वाद नहीं मिला। कांग्रेस नेता शशि थरूर की किताबें- व्हाई आई एम ए हिंदू तथा द हिंदू वे भाजपा के हिंदुत्व विमर्श का ही विस्तार हैं।

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल चतुर राजनेता हैं, जो भाजपा को उसी के खेल में परास्त करना चाहते हैं। भाजपा जहां रामलला की बात कर रही है, वहीं बघेल ने उससे भी एक कदम आगे बढ़कर छत्तीसगढ़ में  2,260 किलोमीटर लंबी 'राम वन गमन पर्यटन परिपथ' के प्रथम चरण का लोकार्पण करते हुए भक्तों को चंदखुरी स्थित माता कौसल्या के आश्रम में आने के लिए आमंत्रित किया है! इसी तरह भाजपा का अनुकरण करते हुए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपने यहां के स्कूलों में देशभक्ति की कक्षाओं की शुरुआत की है। इस पुरानी कहावत में सच तो है ही कि अगर आप किसी को हरा नहीं सकते, तो उसके साथ हो जाओ। केजरीवाल भाजपा के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी हैं, लेकिन अपने कामकाज को प्रभावशाली बनाने के लिए उन्हें भाजपा की नीतियों की नकल करने में गुरेज नहीं है। क्या यह राहुल गांधी के लिए सबक नहीं होना चाहिए?

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