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उत्पादन बढ़ा, किसानों की हालत नहीं सुधरी: असंतोष का एकमात्र उपाय- पूर्वाग्रह छोड़ लाभकारी मूल्य, कानूनी गारंटी
केसी त्यागी, भूतपूर्व सांसद
Published by: दीपक कुमार शर्मा
Updated Wed, 29 Jan 2025 06:00 AM IST
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केसी त्यागी और धरने पर बैठे किसान
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अमर उजाला
विस्तार
नई पीढ़ी की जानकारी में यह लाना आवश्यक है कि ब्रिटिश उपनिवेशवाद के चलते किसानों की हालत दिन-प्रतिदिन बदतर हो गई थी। 1947 के सत्ता हस्तांतरण के बाद देश में भुखमरी के हालात थे। गेहूं, चावल, शक्कर समेत कई रोजमर्रा की आवश्यक जरूरतों के लिए दूसरे देशों की तरफ टकटकी लगाने के सिवाय कोई चारा नहीं था। संतोष एवं गर्व का विषय है कि बीते 75 वर्षों में किसानों एवं वैज्ञानिकों के प्रयत्न से आज भारत विश्व का दूसरे नंबर का गेहूं, प्रथम नंबर का चावल और शक्कर का उत्पादक देश बन चुका है। किसी भी प्राकृतिक आपदा से निपटने हेतु हमारे अन्न भंडार भरे हुए हैं, लेकिन अन्नदाता के चेहरे की चिंता की लकीरें कम होने का नाम ही नहीं ले रही हैं।
राष्ट्रीय आपदा रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों से पता चलता है कि 1995 से 2014 के बीच 2,96,438 किसानों ने खुदकुशी की। नाबार्ड के आंकड़ों के अनुसार, मौजूदा समय में किसानों पर देश के सभी तरह के बैंकों का 21 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है यानी प्रति किसान कर्ज 1.35 लाख रुपये है। केंद्र सरकार किसानों की स्थिति को बेहतर बनाने के लिए योजनाओं और सब्सिडी के तौर पर सालाना हजारों करोड़ रुपये खर्च कर रही है, लेकिन हकीकत यह है कि किसान परिवार खेती से रोजाना 150 रुपये भी नहीं कमा पा रहे हैं। नेशनल बैंक ऑफ रूरल एंड एग्रीकल्चर डेवलपमेंट की रिपोर्ट के अनुसार, किसान परिवारों की खेती से औसत कमाई महज 4,476 रुपये है। रिपोर्ट के मुताबिक, 2021-22 में प्रति किसान परिवार सभी स्रोतों से मासिक कमाई 13,661 रुपये थी। किसान परिवार इसमें से 11,710 रुपये खर्च कर देता है, इसका अर्थ है कि किसान परिवार हर माह सिर्फ 1951 रुपये ही बचा पाता है।
देश में 2021 के किसान आंदोलन की गूंज रही और तीनों कृषि कानूनों को समाप्त कर दिया गया। लेकिन आंदोलन और असंतोष खत्म नहीं हो रहा। पंजाब और हरियाणा के कुछ किसान संगठन पुनः आंदोलित हैं। सरकार ने किसान नेताओं को वार्ता के लिए बुलाया है। संभव है कि किसानों की प्रमुख मांगों पर निर्णायक वार्ता होगी, जिनमें न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी, स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के मुताबिक (सी2+50%) एमएसपी, किसानों पर दर्ज केस वापसी और आंदोलन में जान गंवाने वाले किसानों के मुआवजे के मुद्दे अहम हैं। सरकार की ओर से गठित कृषि सचिव संजय अग्रवाल कमेटी द्वारा करीब चालीस बैठकें देश के विभिन्न भागों में आयोजित हो चुकी हैं, लेकिन संयुक्त किसान मोर्चा के सदस्यों द्वारा इसमें शामिल न होने से सभी बैठक बेनतीजा रहीं।
किसानों की समस्याओं के समाधान के लिए बीते 60 वर्षों में एक दर्जन आयोग एवं समितियां बनी हैं, जिनमें बलवंत राय मेहता समिति, राष्ट्रीय कृषि आयोग, शिवरामन समिति, राष्ट्रीय किसान आयोग, कृषि नीति कार्यक्रम आयोग, शरद जोशी कमेटी, नाथूराम मिर्घा कमेटी, भानुप्रताप आयोग, रंगराजन समिति, शांताकुमार समिति, दलवी आयोग शामिल हैं। सबसे अहम सुझाव नाथूराम मिर्घा, भानुप्रताप और डॉ. एमएस स्वामीनाथन आयोग ने प्रस्तुत किए, जिनके क्रियान्वयन के लिए किसान संगठन निरंतर संघर्षरत हैं। वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट द्वारा न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) नवाब सिंह की अध्यक्षता में पैनल गठित हुआ है, उसकी अनुशंसाओं की भी काफी चर्चा है, जिसमें उन्होंने फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी मान्यता देने की किसानों की मांग पर गंभीरता से विचार करने की सिफारिश की है, जिसमें उन्होंने उभरते आर्थिक, सामाजिक संकट से जूझते हुए सवालों पर रोशनी डाली है।
इसी बीच संसद की कृषि संबंधित संसदीय कमेटी ने भी एमएसपी को गारंटी से जोड़ने की संस्तुति की है। समिति ने शांताकुमार कमेटी की रिपोर्ट का उल्लेख करते हुए स्वीकारा है कि 14 प्रतिशत किसान ही एमएसपी का लाभ उठा पाते हैं, शेष 86 फीसदी बाजार में अपनी फसल बेचते हैं। एनडीए एवं यूपीए सरकारों के नीति निर्धारक कई अवसरों पर स्वामीनाथन आयोग की अनुशंसाओं को लागू करने की संस्तुति कर चुके हैं।
डॉ. स्वामीनाथन फॉर्मूले के अनुसार, किसानों को फसल की कुल कीमत यानी सी2 और 50 फीसदी मुनाफे के हिसाब से एमएसपी देना चाहिए। सी2 का मतलब (उत्पादन की व्यापक लागत), जिसमें खेती करने की लागत पूंजी की अप्रयुक्त लागत और खेती की जमीन का किराया शामिल हो। विश्व खाद्य संगठन द्वारा निरंतर अन्न संकट को लेकर चिंता व्यक्त की जा रही है, खाद्यान्न संकट विश्वव्यापी रूप धारण कर सकता है, जिस तरह विश्व की जनसंख्या में निरंतर बढ़ोतरी हो रही है, लिहाजा सभी पूर्वाग्रहों को छोड़, लाभकारी मूल्य के साथ कानूनी गारंटी देने का अब सही समय आ पहुंचा है, किसान असंतोष का हल निकालने का एकमात्र यही उपाय भी है।