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आम बजट 2025: आय और खर्च करने की क्षमता पर ध्यान देना बेहद जरूरी, बदलाव का असर दिखने में वक्त लगेगा...

नारायण कृष्णमूर्ति Published by: दीपक कुमार शर्मा Updated Sat, 08 Feb 2025 05:51 AM IST
सार
पिछले सप्ताह बजट में आयकर में दी गई छूट और अब रेपो दर में की गई कटौती, ये इस बात के संकेत हैं कि सरकार लोगों की क्रय क्षमता बढ़ाने का लक्ष्य बना रही है। हालांकि, इन नीतिगत बदलावों से रातों-रात किसी जादू की अपेक्षा नहीं की जानी चाहिए, लेकिन इनसे आर्थिक विकास के लिए माहौल तैयार होने की उम्मीद जरूर है।
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Union Budget 2025 RBI Monetary Policy focus on income and spending vital later see visible effect of changes
सांकेतिक तस्वीर - फोटो : अमर उजाला

विस्तार
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बजट और शेयर बाजार सूचकांकों के बाद भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति ही है, जो इन दिनों ज्यादातर लोगों को काफी आकर्षित करती है। आपकी आय, सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) और बदलती नीतिगत दरों के प्रभाव के बीच के संबंध को देखते हुए आपके लिए यह जानना जरूरी हो जाता है कि ये सभी बदलाव आपकी जिंदगी पर क्या असर डालते हैं।



आरबीआई के नए गवर्नर संजय मल्होत्रा की अध्यक्षता में मौद्रिक नीति समिति की पहली बैठक में नीतिगत दर में 25 आधार अंकों की कटौती की उम्मीद की जा रही थी और यही हुआ भी। बीते पांच वर्षों से नीतिगत दर में कटौती की जो उम्मीदें लगाई जा रही थीं, उनमें से यह पहली है, जो पूरी हुई है। यह शीर्ष बैंक की पिछली टीम के नक्शेकदम पर है, जिसने मुद्रास्फीति को सफलतापूर्वक चार फीसदी के वांछित लक्ष्य के करीब लाया था, कल की बैठक महंगाई को नियंत्रण में लाने की दिशा में एक और कदम है।


केंद्रीय बैंक के इस कदम से काफी उम्मीदें हैं, खासकर यह देखते हुए कि अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए उपभोग के जरिये खर्च को बढ़ावा देने के लिए सरकार पूरी कोशिश कर रही है। नीतिगत दर में जब भी कटौती की जाती है, तो उधार लेने की लागत कम होने की उम्मीद होती है, जिसका अर्थ है कि कर्ज की दरें अब कम होनी शुरू होंगी। हालांकि, नीतिगत दरों में बदलाव के बावजूद एमपीसी ने अपने तटस्थ रुख में कोई बदलाव नहीं किया है। इससे आगे चलकर दर में कटौती की सीमा के प्रति अधिक सतर्क दृष्टिकोण रखने का संकेत मिलता है। इस रुख से यह भी पता चलता है कि केंद्रीय बैंक द्वारा व्यवस्था को पर्याप्त क्षणिक व टिकाऊ तरलता तो दी जाएगी, लेकिन इस मामले में कोई बोनस मिलने वाला नहीं है।

दर में कटौती का अन्य आर्थिक कारकों, विशेषकर जीडीपी पर वांछित परिणाम दिखाने में एक या दो तिमाही का समय लगेगा। इसके अलावा, आयकर दरों में कटौती के जरिये भी घरेलू स्तर पर पैसा बढ़ेगा, जिससे आमजन की खर्च क्षमता बढ़ने और जिससे अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलने की भी उम्मीद है।

जीडीपी एक निर्दिष्ट अवधि में देश की सीमाओं के भीतर उत्पादित सभी तैयार वस्तुओं और सेवाओं के कुल मूल्य को मापती है और इसे समग्र आर्थिक स्वास्थ्य का संकेतक माना जाता है। भारत की जीडीपी वर्तमान में उचित गति से बढ़ रही है, जो इन सभी प्रयासों से और बढ़ सकती है। कृषि और विनिर्माण में सकारात्मक गति देखने को मिल रही है, जबकि शहरी मांग कमजोर बनी हुई है, जिसके लिए और प्रोत्साहन की आवश्यकता है। इससे उम्मीद लगाई जा सकती है कि आरबीआई इस वर्ष आगे भी दरों में कटौती करेगा, जिससे आर्थिक विकास का माहौल बनेगा और खपत को बढ़ावा मिलने के भी पूरे आसार हैं। ये सभी ऐसे कदम हैं, जिनका रोजगार की स्थिति में सुधार के अलावा व्यक्तिगत आय और खर्च करने की क्षमता पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

याद रहे कि जब जीडीपी बढ़ती है, तो व्यवसाय अधिक वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करते हैं, जिससे रोजगार और मजदूरी बढ़ती है और घरेलू आमदनी में भी वृद्धि होती है। नीतिगत दरों का उपयोग केंद्रीय बैंक द्वारा धन आपूर्ति, महंगाई और आर्थिक गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है। इन सभी कारकों के बीच एक चक्रीय संबंध है, जो लोगों, उनकी आय और आर्थिक गतिविधियों में उनके योगदान को सशक्त ढंग से प्रभावित करता है। चूंकि, प्रत्येक व्यक्ति की स्थिति अलग-अलग होती है, पिछले सप्ताह में करदाताओं के हाथों में अधिक पैसा प्रदान करने का निर्णय और अब रेपो दर में की गई कटौती, ये सभी इस बात के संकेत हैं कि सरकार लोगों की क्रय क्षमता बढ़ाने का लक्ष्य बना रही है। हालांकि, इन नीतिगत बदलावों से रातों-रात किसी जादू की उम्मीद नहीं लगाई जानी चाहिए, क्योंकि ऐसे बदलावों का असर देखने के लिए एक या दो तिमाही का वक्त लगता है।

महंगाई एक और आर्थिक संकेतक है, जो किसी निर्णय को सफल या निराशाजनक बना सकता है। मुश्किल यह है कि महंगाई अब भी पूरी तरह से काबू में नहीं है। वस्तुओं और सेवाओं की बढ़ती लागत खासकर जीएसटी के जरिये किस तरह से हमारी जिंदगी पर असर डाल रही है, यह अभी पूरी तरह से समझना बाकी है। हमारे पास आयकर दाखिल करने वाले बमुश्किल आठ करोड़ से कुछ कम लोग हैं, तो जीएसटी का भुगतान करने वाली आबादी इससे कहीं अधिक है। इसलिए, कोई भी तर्क जो यह कहे कि आयकर के मोर्चे पर छूट दिए जाने से सरकार के राजस्व में कमी आएगी, बढ़ते जीएसटी संग्रह से नकार दिया जाएगा।

हम सब उस दिलचस्प दौर में जी रहे हैं, जहां अमेरिका के नए राष्ट्रपति आए दिन ऐसी नई-नई घोषणाएं कर रहे हैं, जो इस धरती पर रहने वाले प्रत्येक इन्सान के जीवन को प्रभावित करती हैं। अमेरिका के संभावित टैरिफ को लेकर चिंताएं पहले से ही हमारे देश द्वारा अमेरिका को किए जाने वाले निर्यात पर असर डाल रही हैं। इसके अलावा, रुपये के मुकाबले डॉलर के मजबूत होने से वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) भी प्रभावित होता है।
इन परिस्थितियों में, एक सामान्य व्यक्ति के रूप में हम केवल उन कारकों पर ध्यान दे सकते हैं, जो हमारी आय और खर्च करने की क्षमता को प्रभावित करते हैं। बचत करने और अधिक निवेश करने के तरीकों पर गौर करें, साथ ही अपने खर्चों पर इस तरह नजर रखें कि आपको अपने आवश्यक खर्चों के साथ समझौता न करना पड़े। जैसे-जैसे अनौपचारिक क्षेत्रों में अधिक अवसरों के साथ रोजगार परिदृश्य बदलता है, उन तरीकों पर ध्यान दें, जिनसे आप बदलती हुई परिस्थितियों से लाभान्वित हो सकें और अपने आसपास के बदलावों को अपना सकें।

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