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Interview: वेंकटेश बोले- खिलाड़ियों को टीम से निकाले जाने का डर; मेरे ट्वीट सुधार के लिए, किसी पर निशाना नहीं

स्पोर्ट्स डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: स्वप्निल शशांक Updated Wed, 09 Aug 2023 08:13 PM IST
सार

Former Cricketer Venkatesh Prasad Exclusive Interview: वेंकटेश प्रसाद ने कहा कि जिस तरह से कपिल देव ने 1983 वर्ल्ड कप जीतकर हमारी पीढ़ी को प्रेरित किया था, मैं कहूंगा कि उसी तरह कुंबले-श्रीनाथ ने भारत का प्रतिनिधित्व कर कर्नाटक के खिलाड़ियों को टीम इंडिया के लिए खेलने के लिए प्रेरित किया। 

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Cricketer Venkatesh Prasad Exclusive Interview Said on Indian Cricket Team Performances News in Hindi
वेंकटेश प्रसाद से खास बातचीत - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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भारतीय क्रिकेट में कई जोड़ियां मशहूर रही हैं। बल्लेबाजों में सचिन-गांगुली, सचिन-सहवाग, रोहित-धवन की जोड़ियां इसमें शामिल रहीं। स्पिन गेंदबाजी में तो एक दौर में बेदी-प्रसन्ना-चंद्रशेखर और  वेंकटराघवन की चौकड़ी का जादू चलता था। तो एक दौर कुंबले-हरभजन का रहा। मौजूदा दौर में अश्विन-जडेजा का सिक्का चलता है।
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ऐसे ही तेज गेंदबाजी में भारत की सबसे मशहूर जोड़ियों में एक थी श्रीनाथ और वेंकटेश प्रसाद की जोड़ी। इस जोड़ी में शामिल रहे वेंकटेश प्रसाद ने अमर उजाला संवाद में शिरकत की। अमर उजाला से उन्होंने तेज गेंदबाजों की फिटनेस से लेकर अपनी फिटनेस तक हर पहलू पर बातचीत की। पढ़ें अमर उजाला से वेंकटेश प्रसाद की बातचीत के कुछ अंश...
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when Venkatesh Prasad arrived without a kitbag to play the first match for  Team India, Javagal Srinath helped, read this funny anecdoteजवागल श्रीनाथ और वेंकटेश प्रसाद

सवाल: क्रिकेट के प्रति आपका लगाव कैसे शुरू हुआ? अपने घर-गांव और बचपन के बारे में बताइए?
वेंकटेश: मैं पढ़ाई में कुछ खास नहीं था, लेकिन मैं हर क्लास में पास होने में कामयाब हो जाता था। मैं बहुत अच्छा स्टूडेंट नहीं था और मेरा रुझान स्पोर्ट्स के प्रति काफी था। मुझे खेलने की बहुत इच्छा थी। शुरुआत में मुझे क्रिकेट के प्रति नहीं हॉकी के प्रति लगाव था। स्कूल में मैं हॉकी खेलता था। मेरे पिताजी बेंगलुरु में इंडियन टेलिफोन इंडस्ट्रीज में काम करते थे। उसके अंदर हर तरह की सुविधा थी। क्रिकेट, फुटबॉल और हॉकी ग्राउंड भी था। मेरे घर के सामने ही क्रिकेट ग्राउंड था, लेकिन उस फील्ड का हम हर खेल के लिए इस्तेमाल करते थे। फुटबॉल खेलते थे, गिल्ली-डंडा खेलते थे, कबड्डी खेलते थे। मेरे कहने का मतलब है कि बचपन में मैंने हर तरह का खेल खेला है। क्रिकेट सीजनल स्पोर्ट था। जैसे अगर फुटबॉल वर्ल्ड कप होता था तो हम फुटबॉल खेलने लगते थे, क्रिकेट वर्ल्ड कप होता था तो क्रिकेट खेलने लगते थे। हालांकि, किसी वजह से मेरे मन में हमेशा क्रिकेट खेलने की चाह रहती थी। 1983 क्रिकेट वर्ल्ड कप के बाद क्रिकेट खेलने को लेकर मेरी चाह काफी बढ़ गई। 1983 क्रिकेट वर्ल्ड कप में भारत की जीत के बाद देश का माहौल ही बदल गया। हर बच्चा क्रिकेट खेलने को लेकर उत्साहित था। मुझे हमेशा से क्रिकेट पसंद था। मुझे पेस बॉलिंग में काफी दिलचस्पी थी। उस वक्त हमारे पासे टेनिस बॉल हुआ करते थे, लेदर बॉल नहीं थी। 

लेदर बॉल से खेलना मैं 17-18 वर्ष की उम्र से शुरू किया। मैं अंडर-19 नहीं खेला। आज कल अंडर-19 ही नींव है, चाहे आप देश के लिए खेलें या कोई भी कॉम्पिटिटिव क्रिकेट खेलें, लेकिन मैंने अंडर-19 नहीं खेला। मैंने यूनिवर्सिटी क्रिकेट खेली। मैंने बैंगलोर यूनिवर्सिटी का प्रतिनिधित्व किया। यह मेरे लिए एक अहम पड़ाव साबित हुआ। इसके बाद मैंने अंडर-21 और अंडर-23 में अपने राज्य का प्रतिनिधत्व किया। यह एक यात्रा थी। आपने जवागल श्रीनाथ की बात की। उन्होंने तो सिर्फ अंडर-23 खेला और उसमें सीधे राज्य का प्रतिनिधित्व किया और अगले ही साल वह देश का प्रतिनिधित्व करते दिखे। श्रीनाथ एक शानदार और बेहद तेज गेंदबाज थे। आज तक मैंने उनकी तरह तेज गेंद फेंकने वाला गेंदबाज नहीं देखा। मुझे लगता है कि वह भारत के सबसे तेज गेंद फेंकने वाले गेंदबाज रहे हैं। मैंने श्रीनाथ से काफी कुछ सीखा। 

जब मैंने क्रिकेट खेलना शुरू किया तो मेरा एक जुनून था कि मुझे काफी तेज गेंद फेंकनी है और हर मैच में पांच विकेट लेने हैं। कभी-कभी ये होता था और कभी-कभी इसमें सफल नहीं हो पाता था, लेकिन इससे जुनून कभी कम नहीं हुआ। हम आमतौर पर यह सुनते हैं तेज गेंदबाजी के गुण बचपन से ही आते हैं, उन्हें बनाया नहीं जा सकता। तेज गेंदबाजी आपके अंदर से आती है।

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सवाल: जब आपका इंडिया टीम में चयन हुआ तो वह कहानी क्या थी? आप कितने उत्साहित थे?
वेंकटेश: एक समय था जब मेरा एक साल घरेलू क्रिकेट में अच्छा गुजरा था और मुझे उम्मीद थी कि मेरा चयन हो जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। मुझे कॉल नहीं आया। थोड़ा दुखी हुआ, लेकिन जैसा कि मैंने कहा कि मैंने अपने जुनून को कम नहीं होने दिया। मेरे लिए हर मैच महत्वपूर्ण था। मैं हर मैच को जीतना चाहता था और खुद को बेहतर करना था। मैं अपने प्रदर्शन में निरंतरता बनाए रखना चाहता था। मुझे पता था कि मुझे टीम इंडिया से जरूर कॉल आएगा। अनिल कुंबले और जवागल श्रीनाथ, हम सबने एक समय पर घरेलू क्रिकेट साथ खेला था। कुंबले और श्रीनाथ हम जैसे कर्नाटक के खिलाड़ियों के लिए ट्रेंड सेटर्स थे। चाहे मैं हूं या राहुल द्रविड़, सुनील जोशी, डोडा गणेश, डेविड जॉनसन, विजय भारद्वाज, सुजीत सोमसुंदर, हम सभी के लिए कुंबले और श्रीनाथ ट्रेंड सेटर्स थे। उनलोगों ने जो प्रथा शुरू की और भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व किया, उसे हम सभी फॉलो करना चाहते थे। एक समय 1996, 1997 और 1998 में लगभग तीन साल भारतीय टीम आधे खिलाड़ी कर्नाटक से थे। वह हमारा टैलेंट था।

जिस तरह से कपिल देव ने 1983 वर्ल्ड कप जीतकर हमारे जनरेशन को प्रेरित किया था, मैं कहूंगा कि उसी तरह कुंबले-श्रीनाथ ने भारत का प्रतिनिधित्व कर कर्नाटक के खिलाड़ियों को टीम इंडिया के लिए खेलने के लिए प्रेरित किया। 

सवाल: जिस स्थिति में भारतीय टीम है, ऐसा लगता है कि कहीं खो गई है। टीम में काफी प्रयोग हो रहे हैं। विराट कोहली वेस्टइंडीज जाते हैं पर खेलते नहीं हैं। जिसको देखो वह चोटिल है। पहले सिर्फ गेंदबाज चोटिल होते थे, लेकिन अब बल्लेबाज भी चोटिल होने लगे हैं। इस पर क्या कहेंगे?
वेंकटेश: मुझे लगता है कि टीम में प्रयोग हो रहे हैं। मुझे लगता है कि टीम में खिलाड़ियों को सही तरीके से भूमिकाएं और जिम्मेदारियां नहीं दी जा रही हैं। जब ज्यादा प्रयोग होता है तो कोई खिलाड़ी सेटल नहीं हो पाता। एक खिलाड़ी जिसके पास आत्मविश्वास नहीं है और उसे टीम से निकाल दिए जाने का डर है। वह हमेशा दबाव में रहेगा। वह कोई फैसला लेने में भी हिचकिचाएगा। जैसे कोई खिलाड़ी यह सोचेगा कि कवर ड्राइव मारूं या नहीं मारूं। कहीं कवर ड्राइव मारते हुए आउट हो गया तो टीम से निकाल दिया जाऊंगा। यही शायद मेरे ख्याल से अभी हो रहा है।

मैं पूरी तरह से अपने खिलाड़ियों के साथ हूं। उन्हें मेरा पूरा समर्थन है। मुझे लगता है कि जब भी कोई खिलाड़ी देश के लिए खेलता है तो उसका मनोभाव पूरी तरह से देश के लिए कुछ कर गुजरने का होता है। मैं आपके माध्यम से यह भी बताना चाहूंगा कि जो भी मैं ट्वीट करता हूं, उसमें मैं किसी खिलाड़ी पर निशाना नहीं साधता हूं। यह किसी को गिराने के लिए नहीं होता है। यह हमेशा क्रिकेट की तरक्की, टीम की तरक्की और सुधार के लिए है। मैं सिर्फ अपनी राय दे रहा हूं, जो कि टीम और खिलाड़ियों में सुधार ला सकता है।

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सवाल: अभी भी टीम इंडिया एक अच्छे पेस अटैक के लिए तरस रहा है। कुछ गेंदबाज हैं जो अच्छे हैं, लेकिन उनमें धार नहीं है। जो भी युवा गेंदबाज प्रैक्टिस कर रहे हैं, उनके लिए आपका क्या मैसेज है? वह कैसे प्रैक्टिस करें ताकि भविष्य के वेंकटेश प्रसाद, जवागल श्रीनाथ और कपिल देव बन सकें?
वेंकटेश: मैं यह कहना चाहूंगा कि सिर्फ टीम इंडिया के लिए खेलने का सोचो, न कि किसी और चीज में ध्यान लगाओ। आपकी प्राथमिकता यह होनी चाहिए की भारत के लिए खेलना है। मेरे ख्याल से क्या हो रहा है कि कई गेंदबाज जिम में ट्रेनिंग कर रहे हैं फिट होने के लिए और न की गेंदबाजी करके फिट होने की कोशिश कर रहे हैं। अभी गेंदबाज ज्यादा चोटिल होते हैं कि क्योंकि वह जिम में ट्रेन करते हैं और बॉलिंग फिट नहीं होते। जब मैं श्रीनाथ के बारे में बात करता हूं, तो वह प्रैक्टिस सेशन में कम से कम एक घंटे बॉलिंग करते थे। वहीं, कुंबले कम से कम नेट्स में दो घंटे बॉलिंग करते थे। मैं नेट्स में कम से कम तीन घंटे गेंदबाजी करता था। इसके बाद फील्डिंग प्रैक्टिस अलग से होती थी।

अब क्या हो रहा है कि गेंदबाज फील्ड में बॉलिंग प्रैक्टिस करने में कम समय बिता रहे हैं। मुझे लगता है कि इस चीज में कमी की वजह से ही अब पहले जैसी बात नहीं रह गई है। अब गेंदबाज मेहनत तो कर रहे हैं, लेकिन जिम में कर रहे हैं, मैदान में नहीं। वह मजबूत तो हैं, लेकिन बॉलिंग फिट नहीं हैं। वहीं, हम बल्लेबाज की बात करें तो आज के समय में वह इतना अच्छा क्यों कर रहे हैं, क्योंकि वह बार-बार में नेट्स में बैटिंग करते रहते हैं। थ्रो डाउंस होता है, फिर बॉलिंग मशीन से बैटिंग प्रैक्टिस करते हैं, फिर गेंदबाजों को खेलते हैं और स्टांस और नॉकिंग प्रैक्टिस करते हैं, तो वह लगातार बैटिंग प्रैक्टिस करते रहते हैं। गेंदबाजों में यह जज्बा नहीं दिखता कि वह बार-बार गेंदबाजी कर रहे हैं। आप अपनी लाइन लेंथ और स्किल तभी हासिल कर पाएंगे जब बार-बार लगातार गेंदबाजी करते रहेंगे। 

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सवाल: आपकी फिटनेस का राज क्या है? अभी भी कितना वर्कआउट करते हैं आप?
वेंकटेश: मैं अभी भी हर दिन कम से कम एक घंटे वर्कआउट करता हूं। छह दिन का यह रुटीन होता है। एक दिन मैं ब्रेक लेता हूं क्योंकि इसकी जरूरत होती है। अभी मैं एक हफ्ते में चार दिन जिम में समय बिताता हूं और दो दिन रनिंग करता हूं। इस दौरान मैं 10 किमी दौड़ता हूं। मैं वेजिटेरियन हूं और दिन में दो बार खाता हूं। फास्टिंग करता हूं। सबसे अहम बात अपने इस रुटीन को लेकर अनुशासित रहता हूं। हर दिन एक घंटे आपको कसरत करनी चाहिए और जीवन में अनुशासित रहना चाहिए। इस तरह से आप फिट रह सकते हैं। आप हमेशा सीखते रहें, चाहे फिटनेस हो या कोई जानकारी हो। मैंने दो साल पहले ही लंदन यूनिवर्सिटी से इंटरनेशनल स्पोर्ट्स मैनेजमेंट में पोस्ट ग्रेजुएशन किया है। यह मैंने स्पोर्ट्स के बारे में और जानने के लिए किया। पिछले साल जून में मैं अपने पोस्ट-ग्रेजुएशन सेरेमनी के लिए लंदन में था। यह एक शानदार अनुभव था।

सवाल: पोस्ट ग्रेजुएशन में कितनी मेहनत करनी पड़ी? परिवार को कैसे समय दिया? कोर्स के बारे में कुछ बताएं?
वेंकटेश: यह एक साल का कोर्स था। चार सब्जेक्ट मुझे क्लीयर करने थे। इसमें दो कोर सब्जेक्ट और दो इलेक्टिव्स थे। इन्हें क्लीयर करने के बाद ही आपको पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री मिलती है। मैं हर रोज पांच से छह घंटे पढ़ने में बिताता था इस कोर्स को खत्म करने के लिए। यह मेरी दिलचस्पी थी, जुनून था। आप जो भी करते हैं, वह अपने परिवार के समर्थन के बिना हासिल नहीं कर सकते। इसमें भी मुझे मेरी पत्नी और मेरे बेटे का पूरा समर्थन मिला। यही कारण है कि मैं कोर्स पूरा कर पाया। 

मुझे परिवार के साथ समय बिताना काफी पसंद है। जब भी मैं घर जाता हूं तो ज्यादा बाहर नहीं निकलता। मुझे देर रात तक जगना या पार्टी करना पसंद नहीं है। मैं सुबह चार बजकर 50 मिनट पर उठ जाता हूं। एक घंटे में तैयार होकर मैं ट्रेनिंग के लिए निकल जाता हूं। वहां करीब एक-दो घंटे ट्रेनिंग करने के बाद घर आता हूं और अपने पालतू कुत्ते को टहलाने निकल जाता हूं। मैं ब्रेकफास्ट नहीं करता हूं। मुझे साफ-सफाई भी काफी पसंद है। भारतीय टीम में मेरे साथी मेरे साथ रूम शेयर करने में डरते थे, क्योंकि मुझे साफ सुथरा रहना काफी पसंद है।

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सवाल: अपने बेटे के बारे में बताएं। वह क्रिकेट नहीं खेल रहे?
वेंकटेश: मेरा बेटा 26 साल का है और उनका नाम पृथ्वीराज प्रसाद है। उनका खुद का स्टार्ट अप है। पहले उसे भी क्रिकेट खेलने का शौक था, लेकिन एक समय उसने कहा कि मुझे नहीं खेलना है। स्पोर्ट्स आसान नहीं है। इसके लिए आपको काफी त्याग करना पड़ता है। लेकिन वह भी काफी फिट है। वह काफी ट्रेनिंग करता है और अब अपने स्टार्टअप में व्यस्त है। मैंने उस पर कभी किसी चीज के लिए दबाव नहीं डाला। मैंने उस पर कभी खेलने या खेल छोड़ने के लिए नहीं कहा। वह 16 साल की उम्र तक खेल को लेकर काफी जुनूनी था। इसके बाद उसने कहा कि उसे क्रिकेट नहीं खेलना है। मैंने बस उससे ये कहा कि अगर क्रिकेट खेलना है और कुछ बड़ा करना है तो तुम्हें काफी कुछ छोड़ना होगा। तुम्हें अनुशासित होना होगा, कड़ी मेहनत करनी होगी। कुछ भी आसानी से नहीं मिलता। कुछ भी हो जाए अपने जुनून का अनुसरण करो। चाहे वह साइंस हो, आर्ट्स हो, कॉमर्स हो या कुछ भी हो अपने जुनून को फॉलो करो। अगर तुमने कोई भी चीज जुनून के साथ किया तो कुछ भी हासिल कर सकते हो।

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रैपिड राउंड के कुछ सवाल
  • पसंदीदा डिश: बिसी बेले भात।
  • पसंदीदा फिल्म: गंधादा गुड़ी (कन्नड़)।
  • पसंदीदा एक्टर्स: टॉम क्रूज, जूलिया रॉबर्ट्स, टॉम हैंक्स।
  • पसंदीदा एक्टर्स भारतीयों में: आमिर खान, अमिताभ बच्चन, माधुरी दीक्षित।
  • पसंदीदा टूरिस्ट डेस्टिनेशन: इंग्लैंड।
  • पसंदीदा किताब: फ्रीडम एट मिडनाइट।
  • पसंदीदा क्रिकेटर: कपिल देव, सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़, अनिल कुंबले, जवागल श्रीनाथ।
  • क्रिकेट के इतर पसंदीदा स्पोर्ट्स पर्सन: राफेल नडाल।
  • अगर आप क्रिकेटर नहीं होते तो क्या होते: एयरफोर्स में होता।

सवाल: युवाओं को लगता है कि क्रिकेट में बहुत पैसा है, बहुत शोहरत है, क्रिकेट में टी20 आने से करोड़ों रुपये जल्दी मिल जाते हैं। यह मिथक है या सच्चाई?
वेंकटेश: मैं मिथक है या सच्चाई उस मामले पर नहीं जाना चाहूंगा, लेकिन यह कहना चाहूंगा कि अपने देश का प्रतिनिधित्व करने के बारे में सोचो। अगर आप अच्छे हैं तो जरूर एक दिन देश का प्रतिनिधित्व करते दिखेंगे। साथ ही आईपीएल और दूसरे टी20 लीग में खेल पाएंगे। हालांकि, कुछ आसान नहीं है। अगर आपको लगता है कि आईपीएल में ज्यादा पैसा है, टी20 में ज्यादा पैसा है तो आप सिर्फ इसमें एक-दो साल गुजार सकते हो, लेकिन काफी समय तक नहीं खेल पाएंगे। चाहे आप अपने जीवन में किसी भी स्पोर्ट्स में जाएं, चाहे वह क्रिकेट हो, फुटबॉल हो या हॉकी हो हमेशा अपने जुनून का पीछा करें। उसी के लिए बस मेहनत करें। क्रिकेट में पैसा है, लेकिन अगर स्किल नहीं है तो पैसे कहां मिलेंगे। बस अपने जुनून के पीछे भागो। इसक लिए खूब मेहनत करो, क्योंकि कुछ भी आसानी से नहीं मिलता है। 
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