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दिवाकर भट्ट: जब आत्मघाती निर्णय से साबित की विश्वसनीयता, हमेशा याद रहेगा राज्य आंदोलन का सबसे आक्रामक चेहरा

विपिन बनियाल वरिष्ठ पत्रकार Published by: रेनू सकलानी Updated Wed, 26 Nov 2025 12:01 PM IST
सार

दिवाकर भट्ट को ऐसे ही फील्ड मार्शल नहीं कहा गया, वह अलग राज्य आंदोलन हो या फिर जन सरोकरों से जुड़े मुद्दे इन सबके लिए लड़ने भिड़ने वालों में से थे। 

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Diwakar Bhatt will always remain in our memories as most aggressive face of state movement Uttarakhand news
दिवाकर भट्ट - फोटो : अमर उजाला ब्यूरो
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विस्तार
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यह वर्ष 1995 की बात है। श्रीनगर के श्रीयंत्र टापू में चले राज्य आंदोलन में दो आंदोलनकारी बलिदान हो गए थे। इस आंदोलन का नेतृत्व दिवाकर भट्ट कर रहे थे। दस नवंबर को आंदोलनकारियों पर पुलिस बर्बरता हुई। दिवाकर भट्ट एक दिन पहले ही आंदोलनस्थल से गायब हो गए। उनकी भूमिका पर सवाल उठे तो विश्वसनीयता साबित करने के लिए वह अपनी जान पर खेल गए।

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आत्मघाती कदम उठा लिया और बैठ गए दस हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित उस खैट पर्वत पर, जिसे अछरियों यानी परियों का देश कहा जाता था। अति दुर्गम स्थान पर बैठकर उन्होंने सवाल उठाने वालों को जवाब दिया और साबित किया कि वह उत्तराखंड के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। चाहे श्रीयंत्र टापू हो या फिर खैट पर्वत, आंदोलन के लिए दिवाकर भट्ट ने ऐसे स्थानों को चुना, जहां पर बैठकर उन्होंने तत्कालीन सरकार और पुलिस-प्रशासन के पसीने छुड़ाकर रखे।
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दिवाकर भट्ट की आंदोलन की परिभाषा शायद सबसे अलग थी। शॉर्टकट के लिए उसमें कोई जगह नहीं थी। उत्तराखंड राज्य निर्माण के एकमेव लक्ष्य को हासिल करने के लिए वह कठोर आंदोलन के पक्षपाती थे। इसीलिए पहले श्रीयंत्र टापू और फिर खैट पर्वत जैसी दुरूह स्थिति वाली जगह को उन्होंने आंदोलन का केंद्र बनाया।

जब पुलिस प्रशासन ने उन्हें निशाने पर लेना चाहा
श्रीयंत्र टापू पर चले आंदोलन में दिवाकर भट्ट पूरे समय आक्रामक ढंग से नेतृत्व करते दिखाई दिए। अमर उजाला के लिए इस आंदोलन को कवर करते वक्त मैंने खुद उनके जिद और जुनून से भरे व्यक्तित्व को महसूस किया। इसी वजह से पुलिस प्रशासन उन्हें निशाने पर लेना चाहता था। इन मंसूबों को भांपकर ही आंदोलनकारियों के दबाव में वह पुलिस कार्रवाई से एक दिन पहले ही गायब हो गए थे। उत्तराखंड आंदोलनकारियों को तब यह अंदेशा था कि दिवाकर भट्ट की जान को पुलिस कार्रवाई के दौरान खतरा हो सकता है। श्रीयंत्र टापू आंदोलन समाप्त हो जाने के बाद दिवाकर भट्ट की खूब घेराबंदी हुई। उनकी विश्वसनीयता को लेकर सवाल उठे। कहा गया-यह कैसा 'फील्ड मार्शल', जो राज्य आंदोलनकारियों को संकट में डालकर खुद 'भाग * गया। इसके जवाब में दिवाकर भट्ट खुद खैट पर्वत पर जाकर अनशन पर बैठ गए। उस बैट पर्वत पर, जहां पहुंचना ही आसान नहीं था। कठिन भौगोलिक स्थितियों के कारण वहां आंदोलन की तो सोची भी नहीं जा सकती थी।

एक ही जगह महीने भर तक आंदोलन करने से हो गए थे कमजोर केंद्र सरकार तक पहुंची बात
दिवाकर भट्ट के साथ आंदोलन में करीबी रहे राज्य आंदोलन के प्रमुख चेहरे डॉ. एसपी सती के अनुसार-अपनी विश्वसनीयता साबित करने के लिए दिवाकर भट्ट ने जो कदम उठाया था वह आत्मघाती था। महीने भर तक उस जगह पर आंदोलन करने की वजह से वे बेहद कमजोर हो गए थे। तब केंद्र सरकार तक भी बात पहुंच गई थी। स्थितियां संभलीं तो वह खैट पर्वत से नीचे उतरने को तैयार हुए और उनकी जान बची। डॉ. सती की दिवाकर भट्ट को लेकर एक टिप्पणी काबिलेगौर है। उनका कहना है आंदोलन में जब-जब हम लोग दिवाकर भट्ट के साथ होते थे तो उस वक्त अपने को बेहद सुरक्षित सुरक्षित महसूस करते थे। ठीक उसी तरह, जैसे घर में पिता के मौजूद रहने पर किया करते थे। कीर्तिनगर के तीन बार के ब्लॉक प्रमुख, उत्तराखंड क्रांति दल के अध्यक्ष, खंडूरी सरकार के कैबिनेट मंत्री सहित दिवाकर भट्ट की कई रूपों में पहचान रही है। मगर आंदोलन में तप कर अपने लोगों के बीच 'फील्ड मार्शल' की जो पहचान उन्हें मिली, वह बेजोड़ है। अलविदा 'फील्ड मार्शल' ! उत्तराखंड भावपूर्ण श्रद्धांजलि।

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(01 अगस्त 1946 से 25 नवंबर 2025)
 
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