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सांसों में जहर : बच्चों के फेफड़ों में मिली प्रदूषण की काली परत, सीएसई की रिपोर्ट में कई अन्य खतरे भी उजागर

अमर उजाला नेटवर्क, दिल्ली Published by: दुष्यंत शर्मा Updated Fri, 31 Oct 2025 03:57 AM IST
सार

भारत में वायु प्रदूषण अब अदृश्य खतरा नहीं रहा। यह बच्चों के फेफड़ों में काले धब्बों के रूप में दिखाई दे रहा है।

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Breathing poison: Black layer of pollution found in children's lungs
demo - फोटो : Adobe Stock
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विस्तार
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सुबह खेलते बच्चों की जगह मास्क पहने, खांसते, हांफते छोटे चेहरे दिखाई दें तो यह केवल मौसम का बदलना नहीं, बल्कि भविष्य का डर है। भारत में वायु प्रदूषण अब अदृश्य खतरा नहीं रहा। यह बच्चों के फेफड़ों में काले धब्बों के रूप में दिखाई दे रहा है। वैज्ञानिक और डॉक्टर स्पष्ट संकेत दे रहे हैं कि धूम्रपान न करने वाले बच्चों के फेफड़ों तक में काला जमाव पाया जा रहा है, जो धीरे-धीरे सांसों को खत्म कर सकता है।



देश की पूरी 1.4 अरब आबादी ऐसी हवा में सांस ले रही है, जिसमें पीएम 2.5 स्तर डब्ल्यूएचओ के मानकों से अधिक है। उत्तर भारत में रहने वाले लोगों की औसत जीवन प्रत्याशा में 7.6 वर्ष तक की कमी का अनुमान है। लखनऊ जैसे शहरों में यह नुकसान 9.5 वर्ष तक पहुंच सकता है और यह भार सबसे ज्यादा बच्चों पर पड़ रहा है। 
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सीएसई की रिपोर्ट सांसों का आपातकाल बताती है कि देश की 63% आबादी राष्ट्रीय मानक 40 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर से अधिक प्रदूषण झेल रही है। इंडो-गैंगेटिक क्षेत्र बिहार, चंडीगढ़, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल की करीब 40% आबादी औसतन 7.6 वर्ष की जीवन अवधि खो रही है। 1998 से 2023 के बीच भारत में पीएम 2.5 स्तर में 61.4% की वृद्धि हुई है। वैश्विक प्रदूषण वृद्धि में 44% योगदान अकेले भारत का है।

कानूनी रूप से स्वीकारा गया प्रदूषण जनित मौत का मामला
लंदन की 9 वर्ष की बच्ची एला किस्सी डेब्राह की 2013 में अस्थमा से मौत हुई थी। 2020 में अदालत ने पहली बार आधिकारिक रूप से कहा कि उसकी मौत का कारण वायु प्रदूषण था। यह दुनिया का पहला मामला है जिसने प्रदूषण को मृत्यु का प्रत्यक्ष कारण माना। भारत की पर्यावरण स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. कल्पना बालाकृष्णन कहती हैं, प्रमाण की अनुपस्थिति, अनुपस्थिति का प्रमाण नहीं होती। 

विशेषज्ञों की सलाह- बच्चों को घर के अंदर रखें
विशेषज्ञों के अनुसार, अत्यधिक प्रदूषण वाले दिनों में बच्चों को घर के अंदर रखें। सुबह-शाम बाहर खेलने से बचाएं। इस समय प्रदूषण अधिक होता है। बच्चों को बाहरी गतिविधियों में मास्क एन-95 या समतुल्य पहनाएं। घर में एयर प्यूरीफायर का उपयोग संभव हो तो करें। पोषण पर ध्यान दें।विटामिन सी, ओमेगा थ्री और एंटीऑक्सीडेंट फेफड़ों की रक्षा में मदद करते हैं। स्कूलों में क्लीन एयर प्रोटोकॉल लागू हों। 

दिल्ली और केंद्रीय अस्पताल हर सर्दी में विशेष निगरानी, प्रदूषण-ओपीडी और आपात तैयारियां कर रहे हैं। लेकिन डॉक्टर मानते हैं कि यह अब मौसमी संकट नहीं, साल भर का स्वास्थ्य आपातकाल बन चुका है।

  • भारत का वायु संकट अब अदृश्य नहीं रहा। यह हर बच्चे के फेफड़ों में देखा जा सकता है। आज अगर हवा साफ करने पर युद्ध स्तर पर कदम नहीं उठाए गए तो आने वाली पीढ़ी का बचपन धुंध में खो जाएगा
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