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लाल किला विस्फोट: धमाके के बाद घट गई पर्यटकों की संख्या, आसपास के बड़े बाजारों में ग्राहकों की आमद पर असर
सिमरन, नई दिल्ली
Published by: दुष्यंत शर्मा
Updated Wed, 10 Dec 2025 06:30 AM IST
सार
इस बात की तस्दीक सैलानियों की संख्या में आई कमी और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अनुमानित आंकड़े भी कर रहे हैं।
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लाल किला
- फोटो : Adobe Stock
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विस्तार
लाल किला के पास फिदायीन हमले के एक माह बाद धमाके के जख्म आज भी पर्यटकों की जेहन में ताजा हैं। इस बात की तस्दीक सैलानियों की संख्या में आई कमी और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के अनुमानित आंकड़े भी कर रहे हैं। पहले लाल किला देखने के लिए रोजाना सात से आठ हजार पर्यटक आते थे लेकिन अब यह संख्या घट गई है।
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टूर एंड ट्रैवल एजेंटों का दावा है कि दिल्ली भ्रमण करने वाले विदेशी पर्यटक पहले लाल किला को अपनी 10 सबसे मनपसंदीदा लिस्ट में में रखते थे लेकिन धमाके के बाद ट्रेंड बदल गया है। विदेशी पर्यटक अब लाल किला जाने से कतरा रहे हैं। इसकी जगह वह दिल्ली के अन्य ऐतिहासिक इमारतों का रुख कर रहे हैं। इसमें कुतुब मीनार उनकी पहली पसंद हैं। ट्रैवल एजेंट रमेश कुमार ने बताया कि बीते नवंबर माह में उनके पास 25 फीसदी विदेशी पर्यटकों की संख्या में गिरावट आया है, जो दिल्ली आ भी रहे हैं, तो कई पर्यटक लाल किला नहीं जा रहे हैं। हालांकि, कुछ पर्यटक ऐसे भी हैं, जो अभी भी लाल किला जाना चा रहे हैं। लेकिन, इनकी संख्या कम है।
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साल 2024-25 में स्वदेशी पर्यटक की संख्या 28,84,399 लाख रही
केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय के अनुसार, साल 2024-25 में लाल किला का दीदार करने वाले स्वदेशी पर्यटक की संख्या 28,84,399 लाख रही है। ऐसे में देश के टॉप 10 पर्यटक स्थलों में चौथे स्थान के साथ 5.32 फीसदी भागीदारी रही। विदेशी पर्यटकों की 79, 311 हजार रही है। देश के टॉप 10 पर्यटक स्थलों में नौवें स्थान के साथ 3.28 फीसदी भागीदारी रही।
स्कूलों ने भी बनाई दूरी
लाल किला के पास स्थानीय दुकानदार और गाइड सबसे ज्यादा परेशान हैं। लाल किले के सामने चांदनी चौक में चाय-नाश्ते की दुकान चलाने वाले राजू कहते हैं कि ग्राहक 30 प्रतिशत कम हो गए। पहले दिन के 8-10 हजार रुपये होते थे, अब 2 हजार भी मुश्किल से। कई स्कूलों ने भी दिल्ली टूर से लालकिला हटा दिया है। ऑटो और ई-रिक्शा वाले भी परेशान हैं। मंगलवार को लखनऊ से इंडिया गेट पर आए एक परिवार ने बताया कि बच्चे लाल किला देखना चाहते थे, लेकिन हमने मना कर दिया। खबरों में देखा कि वहां बम ब्लास्ट हुआ था, अब मन नहीं करता।
मोदी जी के डंडे का खौफ है...सुरक्षा तो है, पर ग्राहक नहीं
मोदी जी के डंडे का खौफ है मैडम.... सरकार आतंकवादियों के नाक में नकेल तो कस रही है लेकिन शादी के सीजन में इन कलमुहे आतंकियों ने रोजगार पर लात मार दी। बाहरी ग्राहक छिन गए। स्थानीय ग्राहक तो रोजाना आते थे और अब भी आ रहे हैं। यह बातें राजकुमार ने बताई, जिनकी दुकान लाल किले की ठीक सामने चांदनी चौक में है। लगभग चार हफ्ते पहले, 10 नवंबर को लालकिला मेट्रो स्टेशन के पास हुए धमाके ने पुरानी दिल्ली के बाजारों की रौनक को एक झटके में बदल दिया। उस हादसे में दर्जनों लोग मरे और घायल हुए, विस्फोट की आवाज और भय ने करीब-करीब हर दुकानदार और ग्राहक को हिला कर रख दिया।
बोले दुकानदार...
दुकान तो हमने खोले ही रखी, लेकिन बाहरी ग्राहकों का आना बंद हो गया था। शादी का सीजन चल रहा है, ऐसे में बाहरी ग्राहकों पर हमारी निर्भरता रहती है। लेकिन बीते महीने हुए बंब ब्लास्ट की वजह से बाहरी खरीदारों और थोक विक्रेताओं का आना बंद हो गया है। स्थानीय लोग आते तो हैं लेकिन खरीदारी उतनी नहीं जितनी पहले थी।
-गिरधारी लाल, साड़ी विक्रेता
हमने तो कभी दुकान बंद ही नहीं की। मोदी सरकार है तो किस बात की डर। लेकिन हां उस भयावह घटना ने कई बाहरी खरीदारों को छीन लिया। बाहर से कम लोग आ रहे हैं। आज भी उसका प्रभाव बाजार में दिख रहा है। काम धंधा मंदा हो गया है। खासकर ऐसे सीजन में जो कि व्यापारियों के लिए त्योहार जैसा है। उम्मीद है कि जख्मों की तरह यह भी भर जाएंगें।
-राजकुमार, बिजली दुकानदार
उस घटना से बाहरी खरीदारों का विश्वास डगमगा गया है। अब पता नहीं कब तक लोग इससे उभर पाएंगे, और गाड़ी फिर पटरी पर आएगी। वैसे उम्मीद थी कि दो-तीन हफ्तों में हालात बदलेंगे, लेकिन आज एक महीने बाद भी बाजार पहले सा गुलजार नहीं है। शादी के महिनों में यह बाजार बाहरी लोगों के लिए खरीदारी का हब होता था मैडम। लेकिन आज देख लीजिए, कितने बाहरी खरीदार हैं।
-शिवम सिंह, लहंगा विक्रेता
एक मैडम झुमके खरीद रहीं थीं। तभी जोर से धम्म करके आवाज आई। वो डरावनी आवाज आज भी कानों में गूंजती है मैडम। मैं पिछले तीन साल से यहां झूमके, बाली और श्रृंगार का सामान बेचता हूं। जितना डाउनफॉल अभी आया है उतना तो ऑफ सीजन भी नहीं आता। बाजार 30 फीसदी ही है। बाकी लाल किले की भीड़ कह सकते हैं।
-विपिन खतरी, श्रृंगार सामग्री विक्रेता