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Aravalli: अरावली क्यों जरूरी, पर्यावरणविद किस कारण इतना चिंतित, इसको हानि पहुंचने से क्या नुकसान? जानें सब

अमर उजाला ब्यूरो, दिल्ली Published by: आकाश दुबे Updated Fri, 26 Dec 2025 12:00 PM IST
सार

अरावली के आसपास करीब 5 करोड़ लोग रहते हैं। यह आबादी राजस्थान, हरियाणा, गुजरात और दिल्ली में फैली हुई है। इन इलाकों में ग्रामीण और शहरी दोनों आबादी अरावली पर निर्भर है। विस्तार से पढ़ें पूरी खबर-

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Why is Aravali important and Why are environmentalists so concerned about this
अरावली पर्वत शृंखला। - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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दिल्ली-एनसीआर की हवा, पानी और हरियाली को संतुलन देने वाली दुनिया की सबसे पुरानी पर्वत शृंखला अरावली इस क्षेत्र के लिए प्राकृतिक सुरक्षा दीवार का काम करती है। यह न केवल थार मरुस्थल के विस्तार को रोकती है, बल्कि करोड़ों लोगों को सांस लेने के लिए शुद्ध हवा का भी स्रोत है। अंधाधुंध विकास और खनन के बीच, 20 नवंबर 2025 को आए सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद पर्यावरणविद् इस प्राचीन पर्वतमाला के अस्तित्व को लेकर और अधिक आक्रांत व आशंकित हो गए हैं। हालांकि 24 दिसंबर को केंद्र सरकार ने संरक्षित क्षेत्र का विस्तार करने की जो बात कही है उससे कुछ उम्मीद जगी है। आइए विस्तार से जानें सबकुछ-

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जानें क्यों जरूरी है अरावली
दिल्ली-एनसीआर की हवा पहले से जहरीली और दमघोंटू है। लोगों का खुली हवा में सांस लेना तक इन दिनों दूभर है। अगर अरावली पहाड़ियां नहीं रहीं तो राजस्थान से आने वाली रेत और धूल की आंधी दिल्ली की हवा को अैर नर्क बना देगी। पर्यावरण विशेषज्ञों, डॉक्टरों का कहना है कि यह पर्यावरण ढाल के रूप में काम करती है। लगातार हो रहे खनन, पहाड़ियों के कटाव से यह प्राकृतिक दीवार कमजोर होती जा रही है। 

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इसलिए चिंतित हैं पर्यावरणविद
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर, 2025 में अरावली की परिभाषा बदल दी, जिसमें 100 मीटर से ऊंची जगहों को ही पहाड़ी माना जाएगा। इस आदेश से सिर्फ राजस्थान के 15 जिलों में 20 मीटर से ऊंची 12,081 पहाड़ियों में से केवल 1,048 (8.7 फीसदी) ही इस मानक को पूरा कर सकेंगी और 90% से अधिक क्षेत्र संरक्षण के दायरे से बाहर हो जाएगा। इससे बड़े इलाकों में माइनिंग शुरू हो सकती है, जो पर्यावरणविदों को चिंता में डाल रही है। 

विशेषज्ञों का कहना है कि यह फैसला पर्यावरण की अनदेखी है। इस फैसले के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, क्योंकि इससे दिल्ली का प्रदूषण और बढ़ सकता है। दिल्ली-एनसीआर की हवा बचाने के लिए अरावली को संरक्षित करना जरूरी है वरना आने वाली पीढ़ियां जहरीली हवा में सांस लेंगी।

पर्यावरण प्रेमियों के डर की वजह 
आशंका 1:- जमीन ऊंची करना 
खनन माफिया 100 मीटर या उससे अधिक ऊंचाई वाली पहाड़ी के बगल में मलबा या मिट्टी डालकर उसे ऊंचा कर सकते हैं ताकि पहाड़ी सुप्रीम कोर्ट के मानक से कम दिखे। इससे पहाड़ी की वास्तविक ऊंचाई कम हो जाएगी और माफिया खनन का दावा कर सकेंगे। 

आशंका 2 :- साइट पर बदलाव 
माफिया उस क्षेत्र के आसपास की भौगोलिक संरचना बदल सकते हैं, जैसे पहाड़ी के नीचे से भूमि का कुछ हिस्सा खोदकर या पहाड़ी के कुछ हिस्से को काटकर उसे छोटे आकार में बदल सकते हैं। इससे पहाड़ी की ऊंचाई कम हो सकती है। 

आशंका 3 :- नकली भूगोल 
खनन माफिया नकली भूगोल रिपोर्ट तैयार कर सकते हैं, जिसमें यह दिखाया जा सकता है कि पहाड़ी की ऊंचाई 100 मीटर से कम है। इसके लिए वे विशेषज्ञों या स्थानीय अधिकारियों के साथ मिलकर झूठी रिपोर्ट भी तैयार कर सकते हैं।

जगी उम्मीद...
अरावली को लेकर जारी विवाद के बीच केंद्र सरकार ने सभी राज्यों में अरावली क्षेत्र में खनन पट्टे रद्द कर दिए। साथ ही, राज्य सरकारों को नए पट्टे जारी करने पर भी रोक लगा दी। सरकार ने स्पष्ट किया कि संरक्षित क्षेत्र का विस्तार किया जाएगा। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि सरकार अरावली के दीर्घकालिक संरक्षण के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है।

अब 7 जनवरी को सुनवाई से उम्मीद
सुप्रीम कोर्ट में इस आदेश पर पुनर्विचार के लिए पूर्व वन संरक्षक डॉ. आरपी बलवान ने इंटरलोक्यूटरी एप्लीकेशन भेजी है जिस पर सुनवाई सात जनवरी को है। अरावली विरासत जन अभियान ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर पुनर्विचार याचिका के लिए हस्ताक्षर अभियान चलाया हुआ है। हरियाणा में अरावली की उपस्थिति मेवात, फरीदाबाद, पलवल, गुरुग्राम, महेंद्रगढ, रेवाड़ी, चरखी दादरी और भिवानी में है।

...तो घुटेगा दिल्ली-एनसीआर का दम
अरावली पहाड़ियां राजस्थान से दिल्ली तक फैली हुई हैं और ये दिल्ली-एनसीआर के लिए फेफड़ों की तरह काम करती हैं। एक अध्ययन के मुताबिक, धूल दिल्ली के वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) में 30-40 फीसदी तक योगदान देती है। काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर (सीईईडब्ल्यू) की रिपोर्ट के अनुसार, सड़क की धूल अकेले पीएम10 के 65% तक जिम्मेदार हो सकती है। 

गुरु तेग बहादुर अस्पताल की यूसीएमएस रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग की प्रो. डॉ. अंकिता गुप्ता के अनुसार, प्रदूषण से सांस की बीमारियां बढ़ रही हैं। अरावली की तबाही से जहरीली हवा फेफड़ों को नुकसान पहुंचाएगी, जिससे दिल और श्वसन रोग बढ़ेंगे। उन्होंने अरावली को बचाने के लिए अरावली ग्रीन प्रोजेक्ट की मांग की है, क्योंकि क्षतिग्रस्त इलाके दिल्ली के पीएम10 प्रदूषण में 15-20 फीसदी योगदान देते हैं और तापमान 1.5-2 डिग्री बढ़ा देते हैं। 

सुप्रीम आदेशों से ऐसे संरक्षित रही अरावली
30 नवंबर 2002 को सुप्रीम कोर्ट ने अरावली पर किसी भी प्रकार के खनन पर रोक लगा दी थी। इससे पहले 1990 से 1999 तक पंचायत की कम्यूनिटी लैंड वन विभाग के पास थी। वन विभाग के गार्ड इसका संरक्षण कर रहे थे। वर्ष 1999-2000 में अरावली के साथ की जमीनें पंचायतों को दे दी गई। 

अवैध खनन की शिकायतों के बाद सुप्रीम कोर्ट के सेंटर्ड इम्पावर्ड कमेटी ने इसकी जांच कराई। शिकायत मिली कि खनन को राजनीतिक संरक्षण मिलता है। 18 मार्च 2004 को सुप्रीम कोर्ट ने अरावली के पास डीम्ड फॉरेस्ट पर वन अधिनियम 1980 के लागू होने का फैसला सुनाया था। इससे पहले 12 दिसंबर 1996 के गोदावर्मन निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने वन क्षेत्र की परिभाषा स्पष्ट करते हुए निर्देशित किया कि किसी प्रकार का मालिकाना हक वन भूमि को वन संरक्षण अधिनियम 1980 की अनुमति के बिना गैर वानिकी कार्यों के लिए प्रयोग नहीं किया जाएगा।

राजस्थान में खत्म हो चुकी हैं 31 पहाड़ियां 
द अरावली इको सिस्टम मिस्ट्री ऑफ सिविलाइजेशन पुस्तक लिखने वाले डॉ. आरपी बलवान बताते हैं कि तर्क दिया जा रहा है कि राजस्थान में ऐसा आदेश 2006 से लागू है। सुप्रीम कोर्ट के सेंट्रल इंपावर्ड कमेटी की 2018 की रिपोर्ट के अनुसार अरावली की 31 पहाड़ियां खनन से खत्म हो गईं। कमेटी ने राजस्थान के 15 जिलों को इससे प्रभावित बताया था। इस फैसले के बाद हरियाणा और दिल्ली से अरावली खत्म हो जाएगी। पर्यावरण के नुकसान को धता बताते हुए खनन से हर साल करीब 5000 करोड़ की रॉयलिटी विभिन्न माइनिंग कंपनियों को मिलती है।

छेड़छाड़ हुई तो उजड़ जाएंगे गांव, बिगड़ जाएगा संतुलन
अरावली पर्वत शृंखला आसपास बसी आबादी के लिए प्राकृतिक धरोहर के साथ हवा, पानी, आजीविका और सांस्कृतिक परंपराओं की रीढ़ है। फरीदाबाद में ही अरावली क्षेत्र के अंतर्गत करीब 20 गांव बसे हैं, जिनमें पाली, धौज, मांगर, सिलाखरी, मेवला महाराजपुर, अनखीर, बड़खल, कोट, सिरोही, खोरी जमालपुर, मोहबताबाद समेत कई गांव इस पर्वतमाला पर निर्भर हैं। 

मवेशियों के लिए चारा, पानी और खुले चरागाह अरावली से मिलते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि यदि अरावली को नुकसान पहुंचा तो पशुपालन सबसे पहले प्रभावित होगा, जिससे हजारों परिवारों की आजीविका संकट में पड़ जाएगी। जंगली जड़ी-बूटियों और प्राकृतिक तत्वों से होकर गुजरने वाला यह पानी मिट्टी की उपजाऊ क्षमता को भी बढ़ाता है।

2.5 अरब वर्ष पूर्व बनी अरावली
अरावली पर्वत शृंखला दुनिया की सबसे प्राचीन फोल्ड माउंटेन रेंज में से एक है, जो मुख्य रूप से प्रोटेरोजोइक युग लगभग 2.5 अरब वर्ष पूर्व बनी हैं। इनका निर्माण टेक्टोनिक प्लेट्स के टकराव और ओरोजेनी (पर्वत निर्माण) प्रक्रियाओं से हुआ। भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) और अन्य वैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार, यह भारतीय शील्ड का हिस्सा है, जो प्राचीन क्रेटॉन्स के टकराव से बना है। 

ऋषि पराशर की तपोभूमि 
फरीदाबाद से सटी अरावली की पहाड़ियों में पांच हजार साल पुराना परसोन मंदिर है। मंदिर के महंत का कहना है कि ऋषि पराशर की तपोभूमि है। मान्यता है कि महर्षि वेद व्यास का जन्म भी इसी स्थल पर हुआ था। 

उर्वरक की जरूरत नहीं 
कुछ किसानों का कहना है बारिश के मौसम में अरावली से नीचे उतरने वाला पानी इतना पोषक होता है कि फसलों में अलग से उर्वरक डालने की जरूरत नहीं पड़ती। 

ग्रामीणों को दिखता है खनन... अधिकारियों को नहीं
पुन्हाना उपमंडल के गोधोला, तुसैनी, जखोकर और हथनगांव गांवों में अवैध खनन रुकने का नाम नहीं ले रहा है। प्रशासन और खनन विभाग की सुस्ती के चलते खनन माफिया बेखौफ होकर अरावली की पहाड़ियों को छलनी करने में जुटा है। हैरानी की बात यह है कि जखोकर गांव के सरपंच मजलिस द्वारा बीते दिनों खनन अधिकारियों को लिखित शिकायत देने के बावजूद अब तक कोई ठोस कार्रवाई अमल में नहीं लाई गई है।

ग्रामीणों का आरोप है कि अवैध खनन का कार्य मुख्य रूप से रात के अंधेरे में किया जा रहा है, ताकि विभागीय कार्रवाई से बचा जा सके। गोधोला गांव के लोगों का कहना है कि खनन से भरी ट्रैक्टर-ट्रॉलियां रात के समय गांव के बीचोंबीच से होकर गुजरती हैं। इससे न केवल ग्रामीणों की नींद प्रभावित हो रही है, बल्कि दुर्घटना की आशंका भी बनी रहती है। भारी वाहनों की आवाजाही से गांव की सड़कों को नुकसान पहुंच रहा है और घरों में कंपन महसूस किया जा रहा है। बृहस्पतिवार दोपहर बाद जब तुसैनी गांव की अरावली शृंखला का दौरा किया तो वहां पर दिन में ही ट्रैक्टर ट्रालियों में पत्थर भरने का काम किया जा रहा था।

भूजल का रिचार्ज इंजन...हरियाणा और राजस्थान के लिए संजीवनी
देश की सबसे प्राचीन पर्वत शृंखला अरावली भूजल संरक्षण के साथ ही जैव विविधता को भी सहारा देती है। इसकी चट्टानों में मौजूद प्राकृतिक दरारें बारिश के पानी को जमीन के भीतर संग्रहीत करने में मदद करती हैं, जिससे प्रति हेक्टेयर करीब 20 लाख लीटर पानी सुरक्षित हो सकता है। यही वजह है कि पानी की कमी से जूझ रहे दिल्ली-एनसीआर, हरियाणा और राजस्थान के लिए अरावली बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है। दिल्ली-एनसीआर, हरियाणा और राजस्थान के लिए अरावली पर्वत श्रृंखला केवल प्राकृतिक सुंदरता ही नहीं, बल्कि जीवनरक्षक संसाधनों का भी खजाना है।

खनन से बिगड़ेगा बादलों का संतुलन
यह पर्वतमाला भूजल बैंक को समृद्ध बनाकर रखती है। इसलिए दिल्ली के खंडावप्रस्त, हरियाणा के काला पहाड़, गुड़गांव फरीदाबाद, नूंह को भू-जल संरक्षित क्षेत्र घोषित करने की बात चली थी। हरियाणा में जहां पहाड़ियां हैं, वहां मीठा पेयजल उपलब्ध है। शेष क्षेत्रों में खारा पानी है। पर्यावरणविद कहते हैं कि यदि पहाडि़यां नहीं रहीं तो बादलों का संतुलन बिगड़ जाएगा। बेमौसम वर्षा चक्र या सूखे से खेती का उत्पादन घटेगा, खाद्य व पेयजल सुरक्षा पर संकट बढ़ेगा। 

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