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असफलता से सफलता तक: डिलीवरी बॉय से 160 करोड़ की कंपनी के मालिक तक का सफर, जानें बिहार के इस लाल की कहानी

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: शुभम कुमार Updated Mon, 07 Jul 2025 09:30 AM IST
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सार

अभावों के बीच एक कमरे में पूरे कुनबे के साथ पले-बढ़े शैलेश कुमार ने सारी जमापूंजी गंवाने के बावजूद डिलीवरी बॉय की नौकरी करते हुए सीएबीटी लॉजिस्टिक्स की स्थापना की, जो आज तकरीबन 160 करोड़ रुपये की कंपनी बन चुकी है...कुछ इस तरह समस्तीपुर के एक शिक्षक के बेटे शैलेश कुमार ने गरीबी और असफलताओं से हार मानने के बजाय उन्हें अपनी ताकत बना लिया। 

The journey from delivery boy to the owner of a company worth Rs 160 crore, know the story of shailesh kumar
शैलेश कुमार - फोटो : अमर उजाला

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समस्तीपुर, बिहार राज्य का एक जाना-माना शहर है। एक समय की बात है। यहां के एक मास्टर साहब छात्रों को बीजगणित का एक सिद्धांत सिखा रहे थे। उन्होंने योग के विनिमेय गुण को समझाते हुए छात्रों को बताया कि भले आप संख्याओं का क्रम बदल दें, लेकिन इससे उन संख्याओं का योग या परिणाम नहीं बदलेगा। उदाहरण के लिए तीन और चार को जोड़ने पर उत्तर वही आएगा, जो चार व तीन को जोड़ने पर। इसी तरह, कई संख्याओं के समूह के क्रम में बदलाव करने से भी परिणाम नहीं बदलता है।
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उन छात्रों में एक लड़का ऐसा भी था, जो यह सब सुनकर मुस्कुरा रहा था। इसका कारण यह था कि उसने बाकी बच्चों से पहले ही वह टॉपिक पढ़ लिया था। वह लड़का कोई और नहीं सीएबीटी लॉजिस्टिक्स के संस्थापक शैलेश कुमार थे। सीएबीटी लॉजिस्टिक्स को खड़ा करने के सफर में वह कई बार गिरे, लेकिन उन्होंने परिस्थितियों के सामने घुटने टेकने से मना कर दिया। उनके इसी हौसले का परिणाम है कि सीएबीटी लॉजिस्टिक्स आज लगभग 160 करोड़ रुपये की कंपनी बन चुकी है। संसाधनों के अभाव में पले-बढ़े शैलेश कुमार की यात्रा उनके संघर्ष, जिज्ञासा और दृढ़ संकल्प की प्रेरणादायक मिसाल है। लगातार मिल रही असफलताओं के बावजूद लॉजिस्टिक दिग्गजों में शुमार होने की शैलेश कुमार की कहानी महत्वाकांक्षी आन्त्रप्रन्योर बनने के लिए प्रेरणा का काम करती है।
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एक कमरे में रहता था पूरा कुनबा
शैलेश कुमार का जन्म साल 1986 में एक सामान्य परिवार में हुआ था। उनके पिता गणित के शिक्षक थे, जिनकी पगार महज 1,400 रुपये थी। शैलेश कुमार के तीन भाई-बहन भी थे और सभी एक कमरे के छोटे-से घर में रहते थे। शैलेश को बचपन में ही समझ में आ गया था कि शिक्षा ही एकमात्र ऐसा तरीका है, जिससे इस गरीबी के दुष्चक्र से बाहर निकला जा सकता है। वह शिक्षा को ही अपने जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने का एकमात्र जरिया मानकर जिंदगी में आगे बढ़े।

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नौकरी की जद्दोजहद
शुरुआती तालीम लेने के बाद उन्होंने कोटा जाकर आईआईटी की तैयारी की, लेकिन कई प्रयासों के बावजूद सफलता हाथ नहीं लगी। निराश होकर घर लौटे शैलेश ने पिता की सलाह पर पंजाब टेक्निकल यूनिवर्सिटी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की और 2011 में इंजीनियर बने। अब चुनौती थी एक बढ़िया नौकरी पाना। कई छोटी-मोटी नौकरियां करने के बाद आखिरकार उन्हें डेल में 32,000 रुपये की नौकरी मिल गई। सबसे पहले यहीं उन्होंने अपने कैब ड्राइवर की 60,000 रुपये की कमाई देख कर खुद का कैब बिजनेस शुरू करने का फैसला किया।

शुरुआती दो धंधे हुए असफल
उन्होंने लोन लेकर एक टोयोटा इनोवा कार खरीदी और यात्रा डॉट कॉम से जुड़ गए। कारोबार बढ़ाने के लिए उन्होंने उधार लेकर और गाड़ियां खरीदीं। सब कुछ ठीक चल रहा था, तभी डीजल वाहनों पर प्रतिबंध लगने के कारण उन्हें यह व्यापार बंद करना पड़ा। शैलेश रुके नहीं। उन्होंने एचसीएल में नौकरी पकड़ी और वहां मैनेजर बन गए। हालांकि, उन्हें नौकरी रास नहीं आई और उन्होंने एक ई-कॉमर्स स्टार्टअप शुरू किया। एक समय बाद इसमें भी माल बिके बिना लौटने से घाटा होने लगा, तो उन्हें इसे भी बंद करना पड़ा।

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मैनेजर से बने डिलीवरी बॉय
शुरुआती दो धंधे असफल होने के बाद वह लगभग सारी जमापूंजी गंवा चुके थे। अब उनके पास न कोई रोजगार था और न ही आय का कोई दूसरा स्रोत। पैसे कमानेे के लिए वह फ्लिपकार्ट में डिलीवरी बॉय बन गए। इसके लिए उन्हें 17, 000 रुपये मेहनताना मिलता था। इसी दौरान उन्हें महसूस हुआ कि लॉजिस्टिक्स का पूरा तंत्र ही गड़बड़ है। इसके बाद उन्होंने भारत के अव्यवस्थित डिलीवरी इकोसिस्टम की समस्या को दूर करने के लिए सीएबीटी लॉजिस्टिक्स की शुरुआत करने का सोचा। 2018 में, उन्होंने इंट्रा-सिटी लॉजिस्टिक्स फर्म सीएबीटी लॉजिस्टिक्स की स्थापना करके अपना खुद का ब्रांड बनाया।

युवाओं को सीख
  •  जब इन्सान खुद हार मान लेता है तो दुनिया की कोई ताकत उसे जीता नहीं सकती।
  •  आपकी मेहनत ही आपकी पहचान है, वरना एक नाम के तो लाखों व्यक्ति हैं।
  •  कामयाबी तजुर्बे से मिलती है और तजुर्बा गलतियों से सबक लेने से।
  •  सफलता का असली आनंद तब आता है, जब उसे हासिल करने के लिए हालात बदल जाएं, लेकिन इरादे नहीं।
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