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Gorakhpur News: एनएचसी लिगैंड को मिला पेटेंट, दवा और कृषि उद्योग के लिए अहम
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गोरखपुर विश्वविद्यालय के डॉ. आनंद रत्नम ने किया है आविष्कार
लिगैंड एक विशेष एन-हेटेरोसाइक्लिक कार्बीन (एनएचसी) संरचना है, जिसमें पाइरीडीन-क्रियाशील गुण हैं सम्मिलित
गोरखपुर। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के रसायन विज्ञान विभाग के शोधकर्ता डॉ. आनंद रत्नम को आविष्कार पर पेटेंट प्राप्त हुआ है। उनका शोध कार्य “एक मिश्रित प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष पाइरीडीन-क्रियाशील इमिडाजोलियम लवण (एनएचसी लिगैंड) और इसकी तैयारी की विधि” विषय पर आधारित है।
डॉ. रत्नम द्वारा विकसित यह लिगैंड एक विशेष एन-हेटेरोसाइक्लिक कार्बीन (एनएचसी) संरचना है, जिसमें पाइरीडीन-क्रियाशील गुण सम्मिलित हैं। इस नई संरचना का उद्देश्य ऐसे उत्प्रेरक तैयार करना है जो अधिक स्थिर, कुशल और पर्यावरण अनुकूल हों। रसायन विज्ञान की दुनिया में उत्प्रेरक की भूमिका अहम है क्योंकि वे दवाओं, कृषि रसायनों और नई सामग्रियों के उत्पादन में गति, चयनात्मकता और टिकाऊपन प्रदान करते हैं। डॉ. रत्नम ने दावा किया कि यह आविष्कार दवा, उद्योग और कृषि रसायन उद्योग के लिए संभावनाओं के नए द्वार खोल सकता है। इस पद्धति से तैयार उत्प्रेरक न केवल रासायनिक प्रक्रियाओं को तेज और प्रभावी बनाएंगे बल्कि अपव्यय को भी कम करेंगे। परिणामस्वरूप भविष्य में नई दवाओं, उन्नत सामग्रियों और टिकाऊ रासायनिक तकनीकों के विकास की राह खुलेगी।
विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. पूनम टंडन ने बधाई देते हुए कहा कि यह उपलब्धि विश्वविद्यालय की शोध क्षमता और गुणवत्ता को नई ऊंचाइयों तक ले जाएगी। रसायन विज्ञान विभागाध्यक्ष प्रो. यूएन त्रिपाठी, प्रो. सुधा यादव और अन्य प्राध्यापकों ने भी उन्हें शुभकामनाएं दी हैं।

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लिगैंड एक विशेष एन-हेटेरोसाइक्लिक कार्बीन (एनएचसी) संरचना है, जिसमें पाइरीडीन-क्रियाशील गुण हैं सम्मिलित
गोरखपुर। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के रसायन विज्ञान विभाग के शोधकर्ता डॉ. आनंद रत्नम को आविष्कार पर पेटेंट प्राप्त हुआ है। उनका शोध कार्य “एक मिश्रित प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष पाइरीडीन-क्रियाशील इमिडाजोलियम लवण (एनएचसी लिगैंड) और इसकी तैयारी की विधि” विषय पर आधारित है।
डॉ. रत्नम द्वारा विकसित यह लिगैंड एक विशेष एन-हेटेरोसाइक्लिक कार्बीन (एनएचसी) संरचना है, जिसमें पाइरीडीन-क्रियाशील गुण सम्मिलित हैं। इस नई संरचना का उद्देश्य ऐसे उत्प्रेरक तैयार करना है जो अधिक स्थिर, कुशल और पर्यावरण अनुकूल हों। रसायन विज्ञान की दुनिया में उत्प्रेरक की भूमिका अहम है क्योंकि वे दवाओं, कृषि रसायनों और नई सामग्रियों के उत्पादन में गति, चयनात्मकता और टिकाऊपन प्रदान करते हैं। डॉ. रत्नम ने दावा किया कि यह आविष्कार दवा, उद्योग और कृषि रसायन उद्योग के लिए संभावनाओं के नए द्वार खोल सकता है। इस पद्धति से तैयार उत्प्रेरक न केवल रासायनिक प्रक्रियाओं को तेज और प्रभावी बनाएंगे बल्कि अपव्यय को भी कम करेंगे। परिणामस्वरूप भविष्य में नई दवाओं, उन्नत सामग्रियों और टिकाऊ रासायनिक तकनीकों के विकास की राह खुलेगी।
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विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. पूनम टंडन ने बधाई देते हुए कहा कि यह उपलब्धि विश्वविद्यालय की शोध क्षमता और गुणवत्ता को नई ऊंचाइयों तक ले जाएगी। रसायन विज्ञान विभागाध्यक्ष प्रो. यूएन त्रिपाठी, प्रो. सुधा यादव और अन्य प्राध्यापकों ने भी उन्हें शुभकामनाएं दी हैं।