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Bhiwani News: सफर बेमिसाल... शिक्षा, खेल और स्वास्थ्य क्षेत्र में दिखा कमाल
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शहर के तिगड़ाना मोड़ पर बना रिंग चौक
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भिवानी। पिछले 53 सालों में भिवानी जिले ने शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनाई है। वहीं जिले के छोरे और छोरियों ने विदेशों में खेलों का डंका बजा कर पूरी दुनिया का ध्यान भिवानी की तरफ खिंचा है। एक लाख की आबादी के साथ 22 दिसंबर 1972 को हिसार जिले से अलग होकर भिवानी अस्तित्व में आया था। भिवानी से ही बाद में चरखी दादरी भी अलग जिला बना। फिलहाल भिवानी जिले में करीब 15 लाख से अधिक की आबादी है लेकिन सुविधाओं की अभी भी कमी खल रही है।
भौगोलिक परिस्थितियों की बात करें तो जिले की अधिकांश भूमि मरुस्थली और राजस्थान की सीमा से सटी है। भिवानी के जवान देश की सीमाओं पर सुरक्षा प्रहरी बने हैं वहीं खेल मैदान में भी जिले के लड़के-लड़कियां विदेशों में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुके हैं। जिले में खासकर मुक्केबाजी, पहलवानी, फुटबाल और हॉकी में खिलाड़ी विश्वभर में नाम कमा चुके हैं। धार्मिक नगरी छोटी काशी के बाद भिवानी को खेलों में भी ‘मिनी क्यूबा’ कहा जाता है। अलखपुरा की बेटियों की बदौलत भिवानी को ‘मिनी ब्राजील’ का खिताब भी मिला है।
प्राचीन काल में भिवानी के थे 12 दरवाजे
भिवानी। प्राचीन काल में भिवानी शहर एक चहारदीवारी से बंद था। शहर के 12 दरवाजों में हांसी गेट, घंटाघर गेट, दिनोद गेट, देवसर गेट, हालुवास गेट, पतराम गेट, हनुमान गेट, दादरी गेट, बावडी गेट, रोहतक गेट, महम गेट शामिल थे जिससे शहर सुरक्षित था। शहर में पुरातन शैली की हवेलियां भी पहचान थीं। देश के विभाजन से पहले भिवानी पंजाब का महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र था। औद्योगिक, शैक्षणिक और व्यापारिक दृष्टि से विकसित होने के साथ-साथ शहर में धार्मिक स्थलों, धर्मशालाओं और मंदिरों का निर्माण हुआ। शहर में करीब 300 मंदिर थे जिसकी वजह से भिवानी को ‘छोटी काशी’ कहा जाता है।
प्रदेश की राजनीति में भी भिवानी अग्रणी
भिवानी ने प्रदेश को तीन मुख्यमंत्री दिए। इनमें गोलागढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी बंसीलाल, गांव मानहेरू के पूर्व मुख्यमंत्री स्वतंत्रता सेनानी बीड़ी गुप्ता और वर्तमान में दादरी जिले के मास्टर हुकम सिंह शामिल हैं। भिवानी के स्वतंत्रता सेनानी पंडित नेकीराम ने भी देश की आजादी के आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। उनके नाम पर शहर का घंटाघर चौक ‘पंडित नेकीराम शर्मा चौक’ के नाम से जाना जाता है।
गांव बापोड़ा के पूर्व सेनाध्यक्ष पहुंचे राज्यपाल के पद तक
भिवानी जिले से सेना में सबसे अधिक सैनिक व पूर्व सैनिक गांव बापोड़ा से हैं। गांव बापोड़ा पूर्व सेनाध्यक्ष वीके सिंह का गांव रहा है जो वर्तमान में ओडिशा राज्य के राज्यपाल के रूप में कार्यरत हैं। इसके अलावा भी जिले में कई गांव ऐसे हैं जहां के अधिकांश युवा सेना में सेवा दे चुके हैं।
ऐसे बनी भानी से भ्याणी और फिर भिवानी
पुरानी मान्यता के अनुसार नीम सिंह नामक जाटू राजपूत वर्तमान भिवानी नगर के समीप गांव कॉट में बसने आया। वहां के निवासियों ने विरोध किया और उसे मारने का षड्यंत्र रचा। नीम सिंह को भानी नामक महिला ने आगाह किया। बाद में नीम सिंह ने भानी से शादी की। पत्नी के निधन के बाद नीम सिंह ने नगर ‘भानी’ बसाया। समय के साथ यह भ्याणी बना और वर्तमान में इसे भिवानी कहा जाता है।
1810 में झज्जर के नवाब के नियंत्रण में था भिवानी
19वीं शताब्दी की शुरुआत में भिवानी दादरी परगना का महत्वपूर्ण गांव था जो झज्जर के नवाब के नियंत्रण में था। सन 1810 में अंग्रेजों ने इसे अपने अधिकार में लिया और नगर का दर्जा प्रदान किया। 1817 में इसे मंडी के लिए चुना गया। भिवानी का जिक्र आइन-ए-अकबरी में भी मिलता है।
प्लास्टिक दाना और कपड़े का भी है भिवानी मिनी हब
जिले में करीब 550 लघु औद्योगिक इकाइयां हैं। इसमें बड़ा कपड़ा उद्योग भी शामिल है। जिला बनने के बाद दो बड़े कपड़ा उद्योग बंद हो चुके हैं लेकिन भिवानी प्लास्टिक दाना और कपड़ा उद्योग में मिनी हब की पहचान बना रहा है। नया औद्योगिक सेक्टर स्थापित होने का इंतजार अभी है।
दूध उत्पादन में श्वेत क्रांति का अहम योगदान
भिवानी के हांसी रोड पर वीटा चिलिंग प्लांट स्थित है। पहले यह मिल्क प्लांट था। भिवानी और चरखी दादरी सहित आसपास के इलाके की दुग्ध समितियां जुड़ी थीं। वर्तमान में चिलिंग प्लांट में करीब 400 दुग्ध समितियां जुड़ी हैं जो रोजाना 85 हजार लीटर दूध उत्पादन कर रही हैं।
2014 में बना चौधरी बंसीलाल विश्वविद्यालय
चौधरी बंसीलाल विश्वविद्यालय ने स्थापना के दस वर्षों में शिक्षा, खेल और तकनीकी क्षेत्र में कई कीर्तिमान स्थापित किए। विश्वविद्यालय में वाणिज्य, प्रबंधन, शिक्षा, मानविकी, जीवन विज्ञान, भौतिक विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, अर्थशास्त्र, पत्रकारिता, राजनीति विज्ञान, मनोविज्ञान, फार्मेसी, शारीरिक शिक्षा, जैव प्रौद्योगिकी आदि में पढ़ाई होती है। विश्वविद्यालय की टीम ने इंटर यूनिवर्सिटी में भी कई मेडल जीते। स्वर्ण जयंती महाविद्यालय में नई शिक्षा नीति के तहत रोजगार परक कोर्स भी चल रहे हैं।
53 सालों में मुक्केबाजी का गढ़ बन चुका भिवानी जिला
हाल ही वर्षों में जिले के खिलाड़ियों ने ओलंपिक, विश्व चैंपियनशिप, राष्ट्रीय और एशियन खेलों में नाम रोशन किया। मुख्य खिलाड़ियों में ओलंपिक विजेता बॉक्सर बिजेंद्र, विश्व चैंपियन नीतू घणघस, ओलंपिक प्रतिभागी व विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप विजेता जैस्मिन लंबोरिया व प्रीति पंवार शामिल हैं। इसी वजह से भिवानी को ‘मिनी क्यूबा’ के नाम से जाना जाता है।
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भौगोलिक परिस्थितियों की बात करें तो जिले की अधिकांश भूमि मरुस्थली और राजस्थान की सीमा से सटी है। भिवानी के जवान देश की सीमाओं पर सुरक्षा प्रहरी बने हैं वहीं खेल मैदान में भी जिले के लड़के-लड़कियां विदेशों में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुके हैं। जिले में खासकर मुक्केबाजी, पहलवानी, फुटबाल और हॉकी में खिलाड़ी विश्वभर में नाम कमा चुके हैं। धार्मिक नगरी छोटी काशी के बाद भिवानी को खेलों में भी ‘मिनी क्यूबा’ कहा जाता है। अलखपुरा की बेटियों की बदौलत भिवानी को ‘मिनी ब्राजील’ का खिताब भी मिला है।
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प्राचीन काल में भिवानी के थे 12 दरवाजे
भिवानी। प्राचीन काल में भिवानी शहर एक चहारदीवारी से बंद था। शहर के 12 दरवाजों में हांसी गेट, घंटाघर गेट, दिनोद गेट, देवसर गेट, हालुवास गेट, पतराम गेट, हनुमान गेट, दादरी गेट, बावडी गेट, रोहतक गेट, महम गेट शामिल थे जिससे शहर सुरक्षित था। शहर में पुरातन शैली की हवेलियां भी पहचान थीं। देश के विभाजन से पहले भिवानी पंजाब का महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र था। औद्योगिक, शैक्षणिक और व्यापारिक दृष्टि से विकसित होने के साथ-साथ शहर में धार्मिक स्थलों, धर्मशालाओं और मंदिरों का निर्माण हुआ। शहर में करीब 300 मंदिर थे जिसकी वजह से भिवानी को ‘छोटी काशी’ कहा जाता है।
प्रदेश की राजनीति में भी भिवानी अग्रणी
भिवानी ने प्रदेश को तीन मुख्यमंत्री दिए। इनमें गोलागढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी बंसीलाल, गांव मानहेरू के पूर्व मुख्यमंत्री स्वतंत्रता सेनानी बीड़ी गुप्ता और वर्तमान में दादरी जिले के मास्टर हुकम सिंह शामिल हैं। भिवानी के स्वतंत्रता सेनानी पंडित नेकीराम ने भी देश की आजादी के आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। उनके नाम पर शहर का घंटाघर चौक ‘पंडित नेकीराम शर्मा चौक’ के नाम से जाना जाता है।
गांव बापोड़ा के पूर्व सेनाध्यक्ष पहुंचे राज्यपाल के पद तक
भिवानी जिले से सेना में सबसे अधिक सैनिक व पूर्व सैनिक गांव बापोड़ा से हैं। गांव बापोड़ा पूर्व सेनाध्यक्ष वीके सिंह का गांव रहा है जो वर्तमान में ओडिशा राज्य के राज्यपाल के रूप में कार्यरत हैं। इसके अलावा भी जिले में कई गांव ऐसे हैं जहां के अधिकांश युवा सेना में सेवा दे चुके हैं।
ऐसे बनी भानी से भ्याणी और फिर भिवानी
पुरानी मान्यता के अनुसार नीम सिंह नामक जाटू राजपूत वर्तमान भिवानी नगर के समीप गांव कॉट में बसने आया। वहां के निवासियों ने विरोध किया और उसे मारने का षड्यंत्र रचा। नीम सिंह को भानी नामक महिला ने आगाह किया। बाद में नीम सिंह ने भानी से शादी की। पत्नी के निधन के बाद नीम सिंह ने नगर ‘भानी’ बसाया। समय के साथ यह भ्याणी बना और वर्तमान में इसे भिवानी कहा जाता है।
1810 में झज्जर के नवाब के नियंत्रण में था भिवानी
19वीं शताब्दी की शुरुआत में भिवानी दादरी परगना का महत्वपूर्ण गांव था जो झज्जर के नवाब के नियंत्रण में था। सन 1810 में अंग्रेजों ने इसे अपने अधिकार में लिया और नगर का दर्जा प्रदान किया। 1817 में इसे मंडी के लिए चुना गया। भिवानी का जिक्र आइन-ए-अकबरी में भी मिलता है।
प्लास्टिक दाना और कपड़े का भी है भिवानी मिनी हब
जिले में करीब 550 लघु औद्योगिक इकाइयां हैं। इसमें बड़ा कपड़ा उद्योग भी शामिल है। जिला बनने के बाद दो बड़े कपड़ा उद्योग बंद हो चुके हैं लेकिन भिवानी प्लास्टिक दाना और कपड़ा उद्योग में मिनी हब की पहचान बना रहा है। नया औद्योगिक सेक्टर स्थापित होने का इंतजार अभी है।
दूध उत्पादन में श्वेत क्रांति का अहम योगदान
भिवानी के हांसी रोड पर वीटा चिलिंग प्लांट स्थित है। पहले यह मिल्क प्लांट था। भिवानी और चरखी दादरी सहित आसपास के इलाके की दुग्ध समितियां जुड़ी थीं। वर्तमान में चिलिंग प्लांट में करीब 400 दुग्ध समितियां जुड़ी हैं जो रोजाना 85 हजार लीटर दूध उत्पादन कर रही हैं।
2014 में बना चौधरी बंसीलाल विश्वविद्यालय
चौधरी बंसीलाल विश्वविद्यालय ने स्थापना के दस वर्षों में शिक्षा, खेल और तकनीकी क्षेत्र में कई कीर्तिमान स्थापित किए। विश्वविद्यालय में वाणिज्य, प्रबंधन, शिक्षा, मानविकी, जीवन विज्ञान, भौतिक विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, अर्थशास्त्र, पत्रकारिता, राजनीति विज्ञान, मनोविज्ञान, फार्मेसी, शारीरिक शिक्षा, जैव प्रौद्योगिकी आदि में पढ़ाई होती है। विश्वविद्यालय की टीम ने इंटर यूनिवर्सिटी में भी कई मेडल जीते। स्वर्ण जयंती महाविद्यालय में नई शिक्षा नीति के तहत रोजगार परक कोर्स भी चल रहे हैं।
53 सालों में मुक्केबाजी का गढ़ बन चुका भिवानी जिला
हाल ही वर्षों में जिले के खिलाड़ियों ने ओलंपिक, विश्व चैंपियनशिप, राष्ट्रीय और एशियन खेलों में नाम रोशन किया। मुख्य खिलाड़ियों में ओलंपिक विजेता बॉक्सर बिजेंद्र, विश्व चैंपियन नीतू घणघस, ओलंपिक प्रतिभागी व विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप विजेता जैस्मिन लंबोरिया व प्रीति पंवार शामिल हैं। इसी वजह से भिवानी को ‘मिनी क्यूबा’ के नाम से जाना जाता है।