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Chandigarh-Haryana News: 24 साल पुराने विवाद में प्रिंटिंग एवं स्टेशनरी विभाग के कर्मचारी को राहत
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-एसीआर में दर्ज नकारात्मक टिप्पणी हटाने का हाईकोर्ट ने दिया आदेश
-निलंबन अवधि को ड्यूटी मानना होगा व सभी लाभ जारी करने होंगे
अमर उजाला ब्यूरो
चंडीगढ़। पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार के प्रिंटिंग एवं स्टेशनरी विभाग के कर्मचारी मौजी राम के 24 साल पुराने विवाद में उसकी एसीआर में दर्ज नकारात्मक टिप्पणी हटाने का आदेश दिया है। कोर्ट ने याची की निलंबन अवधि को ड्यूटी माना, ईमानदारी पर लगाए गए प्रतिकूल रिमार्क हटाए और उसके खिलाफ जारी विभाग के कई निर्णय रद्द कर दिए।
कोर्ट ने कहा कि 13 नवंबर 1997 से 5 मई 1998 तक की पूरी अवधि को ड्यूटी मानी जाए और मौजी राम को पूरी तनख्वाह व भत्ते दिए जाए। यह आदेश जस्टिस अश्विनी कुमार मिश्रा और जस्टिस रोहित कपूर की खंडपीठ ने जारी किया। मौजी राम 1971 में क्लर्क के रूप में विभाग में आए थे और 1990 के दशक में विभाग में भारी भ्रष्टाचार की शिकायत देने के बाद उनसे जुड़े विवाद शुरू हुए। याची के वकील डी आर रावत ने कोर्ट को बताया कि उनकी शिकायतों से घोटाला उजागर हुआ और इसी का बदला लेने के लिए उनके खिलाफ लगातार तीन चार्जशीट जारी की गई, उन्हें निलंबित किया गया और एसीआर में ईमानदारी संदिग्ध जैसी टिप्पणियां लिख दी गई। यह भी सामने आया कि प्रतिकूल एसीआर लिखने वाले वही अधिकारी थे जिनके खिलाफ मौजी राम ने शिकायत भेजी थीं। कोर्ट ने रिकार्ड देखने के बाद पाया कि विभाग ने ही सभी चार्जशीट ड्राप कर दीं, न मौजी राम किसी विभागीय जांच में दोषी पाए गए और न ही किसी आपराधिक मामले में। इसके बावजूद निलंबन अवधि का निर्णय 24 साल तक लंबित रखा गया। कोर्ट ने कहा कि यहां काम नहीं वेतन नहीं की नीति लागू ही नहीं होती, क्योंकि निलंबन कर्मचारी की गलती से नहीं हुआ था। इसलिए पूरी अवधि को ड्यूटी मानना ही न्यायोचित है।
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-निलंबन अवधि को ड्यूटी मानना होगा व सभी लाभ जारी करने होंगे
अमर उजाला ब्यूरो
चंडीगढ़। पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार के प्रिंटिंग एवं स्टेशनरी विभाग के कर्मचारी मौजी राम के 24 साल पुराने विवाद में उसकी एसीआर में दर्ज नकारात्मक टिप्पणी हटाने का आदेश दिया है। कोर्ट ने याची की निलंबन अवधि को ड्यूटी माना, ईमानदारी पर लगाए गए प्रतिकूल रिमार्क हटाए और उसके खिलाफ जारी विभाग के कई निर्णय रद्द कर दिए।
कोर्ट ने कहा कि 13 नवंबर 1997 से 5 मई 1998 तक की पूरी अवधि को ड्यूटी मानी जाए और मौजी राम को पूरी तनख्वाह व भत्ते दिए जाए। यह आदेश जस्टिस अश्विनी कुमार मिश्रा और जस्टिस रोहित कपूर की खंडपीठ ने जारी किया। मौजी राम 1971 में क्लर्क के रूप में विभाग में आए थे और 1990 के दशक में विभाग में भारी भ्रष्टाचार की शिकायत देने के बाद उनसे जुड़े विवाद शुरू हुए। याची के वकील डी आर रावत ने कोर्ट को बताया कि उनकी शिकायतों से घोटाला उजागर हुआ और इसी का बदला लेने के लिए उनके खिलाफ लगातार तीन चार्जशीट जारी की गई, उन्हें निलंबित किया गया और एसीआर में ईमानदारी संदिग्ध जैसी टिप्पणियां लिख दी गई। यह भी सामने आया कि प्रतिकूल एसीआर लिखने वाले वही अधिकारी थे जिनके खिलाफ मौजी राम ने शिकायत भेजी थीं। कोर्ट ने रिकार्ड देखने के बाद पाया कि विभाग ने ही सभी चार्जशीट ड्राप कर दीं, न मौजी राम किसी विभागीय जांच में दोषी पाए गए और न ही किसी आपराधिक मामले में। इसके बावजूद निलंबन अवधि का निर्णय 24 साल तक लंबित रखा गया। कोर्ट ने कहा कि यहां काम नहीं वेतन नहीं की नीति लागू ही नहीं होती, क्योंकि निलंबन कर्मचारी की गलती से नहीं हुआ था। इसलिए पूरी अवधि को ड्यूटी मानना ही न्यायोचित है।
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