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Fatehabad News: ठंड में उम्मीद और राहत की गरमाहट
संवाद न्यूज एजेंसी, फतेहाबाद
Updated Sat, 20 Dec 2025 12:00 AM IST
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जवाहर चौक पर दुकान के बाहर जरूरतमंद लोगों के लिए रखे कपड़े दिखाते गुरदीप सिंह बग्गा। संवाद
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फतेहाबाद। ठंड के मौसम में ठिठुर रह लोगों को शहर निवासी गुरदीप सिंह बग्गा उम्मीद की गरमाहट दे दे रहे हैं। जवाहर चौक में स्थित क्राकरी शॉप के संचालक गुरदीप सिंह बग्गा ने पांच साल पहले एक अनूठी पहल शुरू की। उन्होंने अपनी दुकान के बाहर एक विशेष रैक लगाया, जिसमें जैकेट, स्वेटर, शॉल, कंबल, टोपी और जूते रखे जाते हैं। इस रैक की खासियत यह है कि कोई बिल या सेल्समैन नहीं होता। अधिक कपड़े रखने वाले उन्हें छोड़ देते हैं और जरूरतमंद ले जाते हैं।
बग्गा ने बताया कि यह पहल कोरोना काल में शुरू हुई थी, जब कई मजदूर और प्रवासी लोग सर्दियों में ठंड से बचाव के लिए पर्याप्त कपड़े नहीं खरीद पा रहे थे। शुरुआत में उन्होंने अपने परिवार के पुराने कपड़े रखे, लेकिन धीरे-धीरे शहर के अन्य लोग भी इसमें जुड़ने लगे। अब लोग पुराने कपड़े धोकर और प्रेस करवाकर रैक पर छोड़ते हैं, कुछ तो नए कंबल और दस्ताने भी दान करते हैं।
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रात को गाड़ी में कंबल लेकर घूमते हैं बग्गा
गुरदीप सिंह बग्गा ने जैसे गुरुघर में सुबह-शाम जैसे खाने के लिए लंगर लगता है उसी सोच के साथ ही उन्होंने इस अभियान की शुरुआत की।कहा कि उनका मकसद केवल कपड़े बांटना नहीं, बल्कि यह सुनिश्चित करना है कि किसी की मजबूरी का तमाशा न बने। लोग रैक से अपनी जरूरत का सामान उठाते हैं और खुशी-खुशी चले जाते हैं। रात को मैं अपनी गाड़ी में कंबल लेकर घूमता हूं और सड़क पर किसी को भी जरूरत होती है तो तुरंत दे देता हूं।
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बग्गा ने बताया कि यह पहल कोरोना काल में शुरू हुई थी, जब कई मजदूर और प्रवासी लोग सर्दियों में ठंड से बचाव के लिए पर्याप्त कपड़े नहीं खरीद पा रहे थे। शुरुआत में उन्होंने अपने परिवार के पुराने कपड़े रखे, लेकिन धीरे-धीरे शहर के अन्य लोग भी इसमें जुड़ने लगे। अब लोग पुराने कपड़े धोकर और प्रेस करवाकर रैक पर छोड़ते हैं, कुछ तो नए कंबल और दस्ताने भी दान करते हैं।
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रात को गाड़ी में कंबल लेकर घूमते हैं बग्गा
गुरदीप सिंह बग्गा ने जैसे गुरुघर में सुबह-शाम जैसे खाने के लिए लंगर लगता है उसी सोच के साथ ही उन्होंने इस अभियान की शुरुआत की।कहा कि उनका मकसद केवल कपड़े बांटना नहीं, बल्कि यह सुनिश्चित करना है कि किसी की मजबूरी का तमाशा न बने। लोग रैक से अपनी जरूरत का सामान उठाते हैं और खुशी-खुशी चले जाते हैं। रात को मैं अपनी गाड़ी में कंबल लेकर घूमता हूं और सड़क पर किसी को भी जरूरत होती है तो तुरंत दे देता हूं।