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Hisar News: हवेलियां, तालाब और आश्रम से पहचान, बड़वा गांव में कभी जहांगीर ने डाला था पड़ाव
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बड़वा गांव की हवेलियां, जो धरोहर हैं।
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पवन प्रेम सारस्वत
सिवानी मंडी। भिवानी जिले के उपमंडल सिवानी का गांव बड़वा विकास के साथ-साथ अपनी धार्मिक और सांंस्कृतिक विविधता को जीवित रखे हुए हैं। गांव में प्राचीन इतिहास,अध्यात्म और लोककला का संगम दिखाई देता है। लगभग 400 वर्ष पूर्व बसा यह गांव मंदिरों, आश्रम और हवेलियों के कारण विशेष पहचान रखता है।
जिला मुख्यालय से 72 और सिवानी से 8 किलोमीटर दूरी पर बसे इस गांव की आबादी करीब 25000 है और 9500 के आसपास मतदाता हैं। गांव में लड़के-लड़कियों के लिए अलग-अलग हाई स्कूल है। उच्च शिक्षा के लिए बच्चे हिसार और भिवानी का रुख करते हैं। गांव में स्थित झांग आश्रम, जहां गिरी संप्रदाय के छह संतों की समाधियां हैं, लोगों की अटूट आस्था का केंद्र है। लोक श्रुतियों के अनुसार मुगल बादशाह जहांगीर ने इस जगह अपना पड़ाव डाला था। 20 से अधिक हवेलियों और सदियों पुरानी लोक परंपराओं के कारण इसे संग्रहालय माना जा सकता है। हवेलियां देखने लायक हैं। हरियाणवी सिनेमा की दो प्रसिद्ध फिल्में चंद्रावल और बैरी के कई दृश्य केसर व रूसहड़ा जोहड़ के पनघटों पर फिल्माए गए थे। केसर तालाब के निकट कुंड के पास बनी छतरियों की दीवारों पर राधा-कृष्ण की रासलीला के अप्रतिम चित्र सबका ध्यान आकर्षित करते हैं। लाल, पीले और नीले रंगों से सजी यह प्राचीन कलाकृतियां, ढोलक, नगाड़े, बांसुरी की लोकधुनों की छाप और मोर, तोते, चिड़ियों के जीवंत अंकन गांव की विरासत है। संवाद
खेल क्षेत्र में गांव ने पहचान की स्थापित
राजनीतिक और खेल प्रतिभाओं ने गांव के गौरव को बढ़ाया है। गांव के ओमप्रकाश गोरा 2014 से 2019 तक विधायक रहे और क्षेत्र की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वहीं, खेलों में गांव के युवाओं ने राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई है। ताइक्वांडो खिलाड़ी विनीत कुमार, एथलीट आदित्य, फुटबालर अंकित, एथलीट प्रिया, कोमल, कविता, पहलवान प्रदीप और वुशु खिलाड़ी अनिल व संदीप ने राज्यस्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर पदक हासिल किए हैं।
सीवर लाइन अधूरी, खेतों के रास्ते कच्चे
ग्रामीण कई समस्याओं से लंबे समय से जूझ रहे हैं। सीवर लाइन बिछाने का कार्य अधूरा पड़ा है। इस कारण गलियों में गंदगी फैली रहती है। खेतों के रास्ते कच्चे होने से किसानों को आवागमन में परेशानी झेलनी पड़ रही है।
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झांग आश्रम में गिरी संप्रदाय के छह संतों की समाधियां
ठाकुर अभय सिंह बताते हैं कि गांव से करीब दो किलोमीटर दूर स्थित झांग आश्रम गिरी संप्रदाय के छह संतों की समाधियों, भव्य कुंड, तालाब और घने जंगलों से घिरा आस्था स्थल है। मुगल बादशाह जहांगीर ने राजपूताना विजय अभियान के दौरान यहां सात दिन का पड़ाव डाला था। इसके बाद यह स्थान ‘झांग आश्रम’ नाम से विख्यात हुआ। लोलनगिरी महाराज की जीवंत समाधि और बिशम्बर गिरी महाराज के चमत्कारों ने इस आश्रम को विशेष पहचान दी।
केसर जोहड़ गांव की पहचान
सामाजिक कार्यकर्ता रवि चावला बताते हैं कि प्राचीन केसर जोहड़ अनोखी बनावट, चारों दिशाओं में बने प्रवेश द्वार के कारण दर्शनीय है। इसका निर्माण सेठ परशुराम ने कराया था, जबकि इसे आकार मामा-भांजा कारीगरों की जोड़ी ने दिया था। मान्यता है कि कारीगरों ने सेठ को चेताया कि इस जोहड़ में इतना धन लगेगा कि आपकी पूंजी खत्म हो जाएगी। सेठ ने जवाब दिया मेरी पूंजी खत्म नहीं होगी पर तुम बनाते-बनाते बूढ़े हो जाओगे और तुम्हारी समाधि भी यहीं बनेगी। दोनों कारीगरों की समाधियां जोहड़ के पास ही बनी हैं।
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खेतों की ओर जाने वाले रास्ते कच्चे हैं, जिससे किसानों से दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। नई सीवर लाइन का काम लंबे समय से अधूरा है और इसकी धीमी गति के कारण गलियों में कीचड़, गंदगी फैली है। रेलवे अंडरपास में बारिश का पानी भरने से राहगीरों को परेशानी झेलनी पड़ती है। यह सब कार्य हो जाए तो लोगों को बड़ी सुविधा मिलेगी। - साहबराम पूनिया
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गांव की प्राचीन हवेलियां सामाजिक समृद्धि, स्थापत्य कला और सांस्कृतिक चेतना की अमिट धरोहर है। गांव में 20 से अधिक हवेलियां हैं। विशाल दरवाजे, ऊंची छतरियां, नक्काशीदार खिड़कियां और कलात्मक से पता चलता है कि यह गांव कभी आर्थिक रूप से समृद्ध और सांस्कृतिक रूप से उन्नत रहा है। - डॉ. सत्यवान सौरभ
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तीन साल में विकास के कई कार्य करवाए
गांव में पिछले तीन सालों में करीब ढाई करोड़ रुपये की लागत से गलियों, नालों, चौपालों, स्कूलों के सुंदरीकरण, श्मशान भूमि के सुधार आदि के कार्य करवाए गए हैं। सीवर लाइन का अधूरा कार्य समस्या बना हुआ है। यह काम तीन साल में पूरा होना था, लेकिन ठेकेदार की ढिलाई के कारण अधूरा है। खेतों की ओर जाने वाले कच्चे रास्तों को पक्का करवा दिया जाएगा। - धोलूराम वर्मा, सरपंच प्रतिनिधि
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सिवानी मंडी। भिवानी जिले के उपमंडल सिवानी का गांव बड़वा विकास के साथ-साथ अपनी धार्मिक और सांंस्कृतिक विविधता को जीवित रखे हुए हैं। गांव में प्राचीन इतिहास,अध्यात्म और लोककला का संगम दिखाई देता है। लगभग 400 वर्ष पूर्व बसा यह गांव मंदिरों, आश्रम और हवेलियों के कारण विशेष पहचान रखता है।
जिला मुख्यालय से 72 और सिवानी से 8 किलोमीटर दूरी पर बसे इस गांव की आबादी करीब 25000 है और 9500 के आसपास मतदाता हैं। गांव में लड़के-लड़कियों के लिए अलग-अलग हाई स्कूल है। उच्च शिक्षा के लिए बच्चे हिसार और भिवानी का रुख करते हैं। गांव में स्थित झांग आश्रम, जहां गिरी संप्रदाय के छह संतों की समाधियां हैं, लोगों की अटूट आस्था का केंद्र है। लोक श्रुतियों के अनुसार मुगल बादशाह जहांगीर ने इस जगह अपना पड़ाव डाला था। 20 से अधिक हवेलियों और सदियों पुरानी लोक परंपराओं के कारण इसे संग्रहालय माना जा सकता है। हवेलियां देखने लायक हैं। हरियाणवी सिनेमा की दो प्रसिद्ध फिल्में चंद्रावल और बैरी के कई दृश्य केसर व रूसहड़ा जोहड़ के पनघटों पर फिल्माए गए थे। केसर तालाब के निकट कुंड के पास बनी छतरियों की दीवारों पर राधा-कृष्ण की रासलीला के अप्रतिम चित्र सबका ध्यान आकर्षित करते हैं। लाल, पीले और नीले रंगों से सजी यह प्राचीन कलाकृतियां, ढोलक, नगाड़े, बांसुरी की लोकधुनों की छाप और मोर, तोते, चिड़ियों के जीवंत अंकन गांव की विरासत है। संवाद
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खेल क्षेत्र में गांव ने पहचान की स्थापित
राजनीतिक और खेल प्रतिभाओं ने गांव के गौरव को बढ़ाया है। गांव के ओमप्रकाश गोरा 2014 से 2019 तक विधायक रहे और क्षेत्र की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वहीं, खेलों में गांव के युवाओं ने राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई है। ताइक्वांडो खिलाड़ी विनीत कुमार, एथलीट आदित्य, फुटबालर अंकित, एथलीट प्रिया, कोमल, कविता, पहलवान प्रदीप और वुशु खिलाड़ी अनिल व संदीप ने राज्यस्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर पदक हासिल किए हैं।
सीवर लाइन अधूरी, खेतों के रास्ते कच्चे
ग्रामीण कई समस्याओं से लंबे समय से जूझ रहे हैं। सीवर लाइन बिछाने का कार्य अधूरा पड़ा है। इस कारण गलियों में गंदगी फैली रहती है। खेतों के रास्ते कच्चे होने से किसानों को आवागमन में परेशानी झेलनी पड़ रही है।
झांग आश्रम में गिरी संप्रदाय के छह संतों की समाधियां
ठाकुर अभय सिंह बताते हैं कि गांव से करीब दो किलोमीटर दूर स्थित झांग आश्रम गिरी संप्रदाय के छह संतों की समाधियों, भव्य कुंड, तालाब और घने जंगलों से घिरा आस्था स्थल है। मुगल बादशाह जहांगीर ने राजपूताना विजय अभियान के दौरान यहां सात दिन का पड़ाव डाला था। इसके बाद यह स्थान ‘झांग आश्रम’ नाम से विख्यात हुआ। लोलनगिरी महाराज की जीवंत समाधि और बिशम्बर गिरी महाराज के चमत्कारों ने इस आश्रम को विशेष पहचान दी।
केसर जोहड़ गांव की पहचान
सामाजिक कार्यकर्ता रवि चावला बताते हैं कि प्राचीन केसर जोहड़ अनोखी बनावट, चारों दिशाओं में बने प्रवेश द्वार के कारण दर्शनीय है। इसका निर्माण सेठ परशुराम ने कराया था, जबकि इसे आकार मामा-भांजा कारीगरों की जोड़ी ने दिया था। मान्यता है कि कारीगरों ने सेठ को चेताया कि इस जोहड़ में इतना धन लगेगा कि आपकी पूंजी खत्म हो जाएगी। सेठ ने जवाब दिया मेरी पूंजी खत्म नहीं होगी पर तुम बनाते-बनाते बूढ़े हो जाओगे और तुम्हारी समाधि भी यहीं बनेगी। दोनों कारीगरों की समाधियां जोहड़ के पास ही बनी हैं।
खेतों की ओर जाने वाले रास्ते कच्चे हैं, जिससे किसानों से दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। नई सीवर लाइन का काम लंबे समय से अधूरा है और इसकी धीमी गति के कारण गलियों में कीचड़, गंदगी फैली है। रेलवे अंडरपास में बारिश का पानी भरने से राहगीरों को परेशानी झेलनी पड़ती है। यह सब कार्य हो जाए तो लोगों को बड़ी सुविधा मिलेगी। - साहबराम पूनिया
गांव की प्राचीन हवेलियां सामाजिक समृद्धि, स्थापत्य कला और सांस्कृतिक चेतना की अमिट धरोहर है। गांव में 20 से अधिक हवेलियां हैं। विशाल दरवाजे, ऊंची छतरियां, नक्काशीदार खिड़कियां और कलात्मक से पता चलता है कि यह गांव कभी आर्थिक रूप से समृद्ध और सांस्कृतिक रूप से उन्नत रहा है। - डॉ. सत्यवान सौरभ
तीन साल में विकास के कई कार्य करवाए
गांव में पिछले तीन सालों में करीब ढाई करोड़ रुपये की लागत से गलियों, नालों, चौपालों, स्कूलों के सुंदरीकरण, श्मशान भूमि के सुधार आदि के कार्य करवाए गए हैं। सीवर लाइन का अधूरा कार्य समस्या बना हुआ है। यह काम तीन साल में पूरा होना था, लेकिन ठेकेदार की ढिलाई के कारण अधूरा है। खेतों की ओर जाने वाले कच्चे रास्तों को पक्का करवा दिया जाएगा। - धोलूराम वर्मा, सरपंच प्रतिनिधि