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Hisar News: बढ़ते तापमान ने बढ़ाईं पशुधन की मुश्किलें, उत्पादन और स्वास्थ्य पर असर
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डॉ.बृजेश।
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हिसार। पूरे विश्व में जलवायु परिवर्तन तेजी से बढ़ रहा है। वैज्ञानिकों के अनुसार तापमान में 1.5 से 4 डिग्री सेल्सियस तक वृद्धि की आशंका है। चिंताजनक बात यह है कि 1.5 डिग्री तापमान वृद्धि का लक्ष्य, जो वर्ष 2030 तक पहुंचना अनुमानित था, जनवरी 2025 में ही पार हो चुका है। बढ़ते तापमान का गंभीर असर अब पशुधन पर भी स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है। यह जानकारी पं. दीन दयाल उपाध्याय पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय, मथुरा के शोधकर्ता डॉ. बृजेश यादव ने दी।
क्रॉसब्रिड पशु सबसे अधिक प्रभावित
डॉ. बृजेश के अनुसार विश्वविद्यालय में स्थापित विशेष जलवायु परिवर्तन लैब में विभिन्न तापमान पर पशुओं की सहनशीलता और उत्पादन क्षमता पर अध्ययन किया गया। इसमें पाया गया कि तापमान का सबसे अधिक नकारात्मक प्रभाव जर्सी, एचएफ व क्रॉस ब्रिड पर पड़ता है। देशी नस्लें गर्मी को अपेक्षाकृत बेहतर सहन कर लेती हैं। हरियाणा और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में दूध उत्पादन का अधिकांश हिस्सा भैंसों पर निर्भर है, हरियाणा में लगभग 90 प्रतिशत और यूपी में 70 प्रतिशत से ज्यादा। खास बात ये है कि भैंसों पर तापमान का असर अपेक्षाकृत कम देखा गया।
गर्मी से प्रजनन चक्र प्रभावित, हीट में आना कम
शोध में पाया गया कि पहले वर्ष में लगभग 4 महीने गर्मी रहती थी, लेकिन अब यह अवधि बढ़कर 6-7 महीने हो चुकी है। अत्यधिक गर्मी के कारण गाय व भैंसों का हीट में आना कम हो गया है, कई बार लक्षण दिखाई ही नहीं देते। सामान्य तौर पर 21 दिन में आने वाला हीट चक्र अब 4-6 महीने तक खिंच जाता है। इससे किसानों की प्रजनन प्रक्रिया में देरी और आर्थिक नुकसान बढ़ रहा है।
इसके अलावा दूध उत्पादन में 10 से 30 प्रतिशत तक की कमी उत्पादन पर भी भारी असर देखा गया है। देशी गायों व भैंसों में उत्पादन 10-20 प्रतिशत तक घटा। क्रॉस ब्रिड पशुओं में यह कमी 30 प्रतिशत तक पहुंच गई। उच्च तापमान का प्रभाव केवल बड़े पशुओं पर ही नहीं, बल्कि बछड़ों के वजन, उनकी वृद्धि क्षमता और भविष्य के उत्पादन पर भी नकारात्मक रूप से पड़ रहा है।
नए रोगों का बढ़ता खतरा
डॉ. बृजेश ने बताया कि बढ़ते तापमान के साथ कई नए रोग पशुधन में देखने को मिल रहे हैं, जिनका कारण स्पष्ट रूप से समझ नहीं आ रहा। उनका कहना है कि यह सभी परिवर्तन जलवायु असंतुलन की ही देन हैं। तापमान में असामान्य बदलाव रोगजनकों की वृद्धि को बढ़ाता है।
दूध और मांस की गुणवत्ता भी प्रभावित
गर्मी का प्रभाव दूध की गुणवत्ता पर भी स्पष्ट दिखाई देने लगा है। गर्मी के मौसम में दूध की पौष्टिकता कम होती है, जिससे भविष्य में मानव स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक असर पड़ सकता है।ब्रायलर मुर्गियों में भी उत्पादन घटता है और मीट की गुणवत्ता खराब हो जाती है, जो पोल्ट्री उद्योग के लिए चिंता का विषय है।
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क्रॉसब्रिड पशु सबसे अधिक प्रभावित
डॉ. बृजेश के अनुसार विश्वविद्यालय में स्थापित विशेष जलवायु परिवर्तन लैब में विभिन्न तापमान पर पशुओं की सहनशीलता और उत्पादन क्षमता पर अध्ययन किया गया। इसमें पाया गया कि तापमान का सबसे अधिक नकारात्मक प्रभाव जर्सी, एचएफ व क्रॉस ब्रिड पर पड़ता है। देशी नस्लें गर्मी को अपेक्षाकृत बेहतर सहन कर लेती हैं। हरियाणा और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में दूध उत्पादन का अधिकांश हिस्सा भैंसों पर निर्भर है, हरियाणा में लगभग 90 प्रतिशत और यूपी में 70 प्रतिशत से ज्यादा। खास बात ये है कि भैंसों पर तापमान का असर अपेक्षाकृत कम देखा गया।
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गर्मी से प्रजनन चक्र प्रभावित, हीट में आना कम
शोध में पाया गया कि पहले वर्ष में लगभग 4 महीने गर्मी रहती थी, लेकिन अब यह अवधि बढ़कर 6-7 महीने हो चुकी है। अत्यधिक गर्मी के कारण गाय व भैंसों का हीट में आना कम हो गया है, कई बार लक्षण दिखाई ही नहीं देते। सामान्य तौर पर 21 दिन में आने वाला हीट चक्र अब 4-6 महीने तक खिंच जाता है। इससे किसानों की प्रजनन प्रक्रिया में देरी और आर्थिक नुकसान बढ़ रहा है।
इसके अलावा दूध उत्पादन में 10 से 30 प्रतिशत तक की कमी उत्पादन पर भी भारी असर देखा गया है। देशी गायों व भैंसों में उत्पादन 10-20 प्रतिशत तक घटा। क्रॉस ब्रिड पशुओं में यह कमी 30 प्रतिशत तक पहुंच गई। उच्च तापमान का प्रभाव केवल बड़े पशुओं पर ही नहीं, बल्कि बछड़ों के वजन, उनकी वृद्धि क्षमता और भविष्य के उत्पादन पर भी नकारात्मक रूप से पड़ रहा है।
नए रोगों का बढ़ता खतरा
डॉ. बृजेश ने बताया कि बढ़ते तापमान के साथ कई नए रोग पशुधन में देखने को मिल रहे हैं, जिनका कारण स्पष्ट रूप से समझ नहीं आ रहा। उनका कहना है कि यह सभी परिवर्तन जलवायु असंतुलन की ही देन हैं। तापमान में असामान्य बदलाव रोगजनकों की वृद्धि को बढ़ाता है।
दूध और मांस की गुणवत्ता भी प्रभावित
गर्मी का प्रभाव दूध की गुणवत्ता पर भी स्पष्ट दिखाई देने लगा है। गर्मी के मौसम में दूध की पौष्टिकता कम होती है, जिससे भविष्य में मानव स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक असर पड़ सकता है।ब्रायलर मुर्गियों में भी उत्पादन घटता है और मीट की गुणवत्ता खराब हो जाती है, जो पोल्ट्री उद्योग के लिए चिंता का विषय है।