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Kurukshetra News: अश्लील वीडियो वायरल के सात साल चले मामले में सास-ससुर, ननद और देवर बरी

Amar Ujala Bureau अमर उजाला ब्यूरो
Updated Wed, 26 Nov 2025 02:08 AM IST
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Mother-in-law, father-in-law, sister-in-law and brother-in-law acquitted in seven-year-old case of viral pornographic video
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कुरुक्षेत्र। न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी जप जी सिंह की अदालत ने सात वर्ष से अधिक समय तक चले एक संवेदनशील आपराधिक मामले में फैसला सुनाया है। अदालत ने सास-ससुर, ननद और देवर को अश्लील वीडियो बनाने, उसे वायरल करने, स्टॉकिंग, धमकी देने और आपराधिक षड्यंत्र रचने जैसे गंभीर आरोपों से पूरी तरह बरी कर दिया।
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मामला पिहोवा थाना क्षेत्र के एक गांव का है। शिकायतकर्ता महिला की शादी फरवरी 2016 में हुई थी। शादी के कुछ समय बाद उसने ससुराल वालों पर दहेज के लिए प्रताड़ित करने, मारपीट करने और घर से निकालने का आरोप लगाया। 26 दिसंबर 2017 को महिला थाना में दूसरी एफआईआर दर्ज कराई गई जिसमें ससुर, सास, ननद और देवर पर फर्जी अश्लील वीडियो बनवाने, गांव में दिखाने और दहेज का केस वापस न लेने पर इंटरनेट पर वायरल करने की धमकी देने का आरोप लगाया गया।
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जांच पूरी होने के बाद चालान अदालत में पेश किया गया और मुकदमा नियमित रूप से सात वर्षों तक चला। अभियोजन पक्ष ने कुल 12 गवाह पेश किए जिनमें शिकायतकर्ता महिला, उसके माता-पिता मुख्य रहे। जांच के दौरान आरोपी देवर के पास से एक आई-फोन बरामद हुआ लेकिन उसमें कोई आपत्तिजनक सामग्री नहीं मिली और न ही फॉरेंसिक जांच (एफएसएल) कराई गई। वीडियो वाली पेन ड्राइव न तो चार्जशीट के साथ संलग्न की गई और न ही कभी अदालत में पेश हुई।
क्रॉस-एग्जामिनेशन के दौरान शिकायतकर्ता अपने कई बयानों से मुकर गई। उसने स्वीकार किया कि ससुराल वालों ने कभी मारपीट नहीं की और वह स्वेच्छा से मायके आई थी। व्हाट्सएप चैट भी उसने खुद अपने मित्रों से की थी। पंचायत के तटस्थ गवाहों ने स्पष्ट कहा कि पंचायत में कोई वीडियो नहीं दिखाया गया। जिन लोगों से वीडियो वायरल होने की सूचना होने की बात कही गई थी, उन्हें न गवाह बनाया गया और न ही जांच में शामिल किया गया। जांच अधिकारी ने भी अदालत में कहा कि महिला ने कभी कोई पेन ड्राइव सौंपी ही नहीं। इससे पहले दहेज उत्पीड़न और घरेलू हिंसा से संबंधित मामला भी पिहोवा कोर्ट ने खारिज कर दिया था।
अदालत ने 35 पृष्ठों के विस्तृत निर्णय में न्यायिक मजिस्ट्रेट ने कहा कि अभियोजन पक्ष अपना मामला संदेह से परे साबित करने में पूरी तरह असफल रहा। कोई प्रत्यक्ष साक्ष्य नहीं मिला, वीडियो का अस्तित्व ही साबित नहीं हुआ और आरोप सुनी-सुनाई बातों पर आधारित थे। अदालत ने माना कि प्रथम दृष्टया यह मामला दबाव बनाने और प्रतिशोध की भावना से प्रेरित लगता है। अदालत ने सभी चार आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए सभी धाराओं से बरी कर दिया।
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