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Kurukshetra News: रात भर जेल की बैरक में बेचैनी में कटी हत्यारों की पहली रात
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कुरुक्षेत्र। डॉ. विनीता अरोड़ा हत्याकांड में फांसी की सजा सुनाए जाने के बाद पांचों दोषियों की पहली रात जेल में बेहद बेचैनी भरी गुजरी। कुरुक्षेत्र जेल में शिफ्ट किए गए चारों दोषियों को रात भर नींद नहीं आई और बैरक में इधर-उधर टहलते रहे। जेल सूत्रों के अनुसार दोषियों ने रात का खाना भी बहुत कम खाया और पूरी रात चुपचाप या बेचैन बैठे नजर आए।
शनिवार शाम सजा सुनाए जाने के तुरंत बाद पांचों दोषियों पूनम, विक्रम उर्फ विक्की, विक्रमजीत उर्फ बिट्टू, सुनील कुमार और मनीष कुमार को कड़ी सुरक्षा में कुरुक्षेत्र जेल पहुंचाया गया। जेल पहुंचते ही नियम के अनुसार जेल चिकित्सकों ने सभी का स्वास्थ्य परीक्षण किया। जांच में सभी को शारीरिक रूप से स्वस्थ पाया गया, हालांकि मानसिक तनाव उनके चेहरों पर साफ झलक रहा था।
जेल प्रशासन ने दोषियों को अलग-थलग रखने के बजाय आम कैदियों वाली बैरक में ही रखा है ताकि वे अकेलेपन का शिकार न हो। फिर भी रात भर बैरक में ये दोषी इधर-उधर घूमते नजर आए। चार पुरुष दोषियों ने आपस में भी बहुत कम बातचीत की और ज्यादातर समय अलग-अलग कोनों में बैठे या टहलते रहे। पूनम को महिला बैरक में रखा गया है, जहां वह भी पूरी रात बेचैन रही। मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. सुरेंद्र मढ़ाण ने बताया कि फांसी की सजा मिलने के बाद दोषियों में इस तरह की बेचैनी सभाविक है।
अब दोषियों की निगाहें हाईकोर्ट पर टिकी हैं, जहां 60 दिनों के अंदर अपील दायर की जा सकती है। इस बीच जेल प्रशासन इनकी सुरक्षा और मानसिक स्थिति पर विशेष नजर रखे हुए है। मामले में दोषियों के वकीलों से आगे हाईकोर्ट में अपील के बारे में जानने के लिए बातचीत करने का प्रयास किया गया, लेकिन रविवार होने के चलते व कोर्ट में नहीं मिल पाए व फोन पर भी संपर्क नहीं हो पाया।
अंबाला व हिसार सेंट्रल जेल में ही फांसी पर लटकाने का चबूतरा, जल्लाद एक भी नहीं
- प्रदेश में अंबाला सेंट्रल जेल को ही दोषी को फंदे पर लटकाने के लिए माना जाता है सबसे उपयुक्त
- महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को भी 1949 में अंबाला जेल में दी गई थी फांसी
प्रदीप पिलानियां
कुरुक्षेत्र। डॉ. विनीता अरोड़ा हत्याकांड में पांच दोषियों को फांसी की सजा सुनाए जाने के बाद शहर में चर्चा शुरू हो गई कि कुरुक्षेत्र जिला जेल में फांसी देने की कोई व्यवस्था है या नहीं। अगर सजा अंतिम रूप लेती है तो फांसी कहां होगी। शहर के कई अधिवक्ताओं के मुताबिक दोषियों के फंदे तक पहुंचने का सफर अभी बहुत लंबा है। हाईकोर्ट से सजा की पुष्टि जरूरी है और उसके बाद भी सुप्रीम कोर्ट में अपील और दया याचिका के अधिकार बाकी हैं।
जिला जेल अधीक्षक धर्मवीर के मुताबिक प्रदेश में फांसी पर लटकाने का चबूतरा सिर्फ दो जेलों अंबाला सेंट्रल जेल और हिसार सेंट्रल जेल में ही उपलब्ध है। पहले रोहतक जेल में भी यह व्यवस्था थी, लेकिन नवीनीकरण के दौरान चबूतरे को तोड़ दिया गया। प्रदेश की अन्य जिला जेलों में ऐसी कोई सुविधा नहीं है। अंबाला सेंट्रल जेल को फांसी के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है। यहीं पर 1949 में महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को फांसी दी गई थी।
प्रदेश में फिलहाल वर्तमान में कोई स्थायी जल्लाद नहीं है। फांसी की जरूरत पड़ने पर अन्य राज्यों से जल्लाद बुलाए जाते हैं। लंबे समय से राज्य में कोई फांसी नहीं हुई है, इसलिए यह व्यवस्था निष्क्रिय है। कई वकीलों ने कहा कि यह मामला रेयर ऑफ रेयरेस्ट श्रेणी में आता है या नहीं यह भी चर्चा का विषय, लेकिन कानूनी प्रक्रिया पूरी होने में वर्षों लग सकते हैं। तब तक फांसी की चर्चा महज अटकलें ही रहेंगी।
हत्याकांड को कोर्ट के रेयर ऑफ रेयरेस्ट मानने पर वकीलों में छिड़ी बहस
- कोई पक्ष में तो कोई बोला ये मामला रेयर ऑफ रेयरेस्ट में नहीं आता
संवाद न्यूज एजेंसी
कुरुक्षेत्र। डॉ. विनीता अरोड़ा हत्याकांड में जिला अदालत द्वारा पांच दोषियों को फांसी की सजा सुनाए जाने के बाद कानूनी जानकारों में रेयर ऑफ रेयरेस्ट सिद्धांत को लेकर बहस छिड़ गई है। कुछ वकील इसे जघन्य अपराध मानकर सजा को उचित ठहरा रहे हैं, जबकि अधिकांश का मानना है कि यह मामला लूट के दौरान हुई हत्या का है, जो रेयर ऑफ रेयरेस्ट की श्रेणी में नहीं आता। सुप्रीम कोर्ट के बाचन सिंह केस में निर्धारित सिद्धांत के अनुसार, फांसी केवल तब दी जाती है जब अपराध अत्यंत क्रूर हो और सुधार की कोई गुंजाइश न हो।
लेकिन यह मामला 2023 में घर में घुसकर लूटपाट के दौरान डॉ. विनीता की हत्या का है, जहां पूर्व नौकरानी पूनम ने साजिश रची थी। अदालत ने इसे रेयर ऑफ रेयरेस्ट मानते हुए मौत की सजा सुनाई, लेकिन वकीलों का कहना है कि इसमें यौन उत्पीड़न, आतंकवाद या सामाजिक घृणा जैसे तत्व नहीं हैं। कुछ वकीलों ने तो यहां तक कहा कि हाईकोर्ट इसे फांसी की पुष्टि तक नहीं करेगी और पहली तारीख में ही सजा पर नए सिरे से विचार किया जाएगा। दूसरी ओर दोषी भी अब हाईकोर्ट में अपील कर सकते हैं। ऐसे में सभी की निगाहें हाईकोर्ट पर टिकी हुई हैं।
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योजनाबद्ध हत्या समाज में पैदा करती है दहशत : दीनानाथ
मामले की डॉ. अरोडा की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता दीनानाथ अरोडा का कहना है कि यह मामला निश्चित रूप से रेयर ऑफ रेयरेस्ट है। घर के अंदर घुसकर विश्वासघात करते हुए एक सम्मानित डॉक्टर की योजनाबद्ध हत्या की गई। पूर्व नौकरानी की साजिश और क्रूर तरीका समाज में दहशत पैदा करता है। अदालत का फैसला सही है, जो अपराधियों को कड़ा संदेश देता है।
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लूट के इरादे से हुई हत्या को रेयर नहीं मान सकते : अरनवीर सिंह
वहीं मामले में बरी किए गए आरोपी उमेश के अधिवक्ता केएल अरनवीर सिंह ने कहा कि यह लूट के इरादे से हुई हत्या है, न कि पूर्वनियोजित क्रूर हत्या। सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों में ऐसे मामलों में जीवन कारावास ही पर्याप्त है। रेयर ऑफ रेयरेस्ट का दुरुपयोग हो रहा है, जो सजा को असंतुलित बनाता है। इससे कई क्रूर तरीके की गई हत्याओं के मामले में भी कोर्ट ने आजीवन सजा को पर्याप्त माना है।
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फांसी देने से सुधार की संभावना के सिद्धांत का उल्लंघन
वहीं अधिवक्ता सुनील ने बताया कि मामले में यौन अपराध या सामाजिक घृणा का कोई तत्व नहीं। यह साधारण डकैती-हत्या है। फांसी देने से सिद्धांत का उल्लंघन होता है, जहां सुधार की संभावना को नजरअंदाज किया गया। हाईकोर्ट इसे बदल सकता है।
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दोषियों की मंशा सिर्फ लूट थी, क्रूरता सीमित थी : धर्मेंद्र अत्री
जिला बार एसोसिएशन के प्रधान धर्मेंद्र अत्री ने कहा कि पांच लोगों को एक साथ फांसी देना असामान्य है। दोषियों की मंशा सिर्फ लूट थी। मामले में क्रूरता सीमित थी। बाचन सिंह और माच्छी सिंह केस के मानकों पर यह फिट नहीं बैठता। जीवन कारावास ही न्यायोचित होता।
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शनिवार शाम सजा सुनाए जाने के तुरंत बाद पांचों दोषियों पूनम, विक्रम उर्फ विक्की, विक्रमजीत उर्फ बिट्टू, सुनील कुमार और मनीष कुमार को कड़ी सुरक्षा में कुरुक्षेत्र जेल पहुंचाया गया। जेल पहुंचते ही नियम के अनुसार जेल चिकित्सकों ने सभी का स्वास्थ्य परीक्षण किया। जांच में सभी को शारीरिक रूप से स्वस्थ पाया गया, हालांकि मानसिक तनाव उनके चेहरों पर साफ झलक रहा था।
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जेल प्रशासन ने दोषियों को अलग-थलग रखने के बजाय आम कैदियों वाली बैरक में ही रखा है ताकि वे अकेलेपन का शिकार न हो। फिर भी रात भर बैरक में ये दोषी इधर-उधर घूमते नजर आए। चार पुरुष दोषियों ने आपस में भी बहुत कम बातचीत की और ज्यादातर समय अलग-अलग कोनों में बैठे या टहलते रहे। पूनम को महिला बैरक में रखा गया है, जहां वह भी पूरी रात बेचैन रही। मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. सुरेंद्र मढ़ाण ने बताया कि फांसी की सजा मिलने के बाद दोषियों में इस तरह की बेचैनी सभाविक है।
अब दोषियों की निगाहें हाईकोर्ट पर टिकी हैं, जहां 60 दिनों के अंदर अपील दायर की जा सकती है। इस बीच जेल प्रशासन इनकी सुरक्षा और मानसिक स्थिति पर विशेष नजर रखे हुए है। मामले में दोषियों के वकीलों से आगे हाईकोर्ट में अपील के बारे में जानने के लिए बातचीत करने का प्रयास किया गया, लेकिन रविवार होने के चलते व कोर्ट में नहीं मिल पाए व फोन पर भी संपर्क नहीं हो पाया।
अंबाला व हिसार सेंट्रल जेल में ही फांसी पर लटकाने का चबूतरा, जल्लाद एक भी नहीं
- प्रदेश में अंबाला सेंट्रल जेल को ही दोषी को फंदे पर लटकाने के लिए माना जाता है सबसे उपयुक्त
- महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को भी 1949 में अंबाला जेल में दी गई थी फांसी
प्रदीप पिलानियां
कुरुक्षेत्र। डॉ. विनीता अरोड़ा हत्याकांड में पांच दोषियों को फांसी की सजा सुनाए जाने के बाद शहर में चर्चा शुरू हो गई कि कुरुक्षेत्र जिला जेल में फांसी देने की कोई व्यवस्था है या नहीं। अगर सजा अंतिम रूप लेती है तो फांसी कहां होगी। शहर के कई अधिवक्ताओं के मुताबिक दोषियों के फंदे तक पहुंचने का सफर अभी बहुत लंबा है। हाईकोर्ट से सजा की पुष्टि जरूरी है और उसके बाद भी सुप्रीम कोर्ट में अपील और दया याचिका के अधिकार बाकी हैं।
जिला जेल अधीक्षक धर्मवीर के मुताबिक प्रदेश में फांसी पर लटकाने का चबूतरा सिर्फ दो जेलों अंबाला सेंट्रल जेल और हिसार सेंट्रल जेल में ही उपलब्ध है। पहले रोहतक जेल में भी यह व्यवस्था थी, लेकिन नवीनीकरण के दौरान चबूतरे को तोड़ दिया गया। प्रदेश की अन्य जिला जेलों में ऐसी कोई सुविधा नहीं है। अंबाला सेंट्रल जेल को फांसी के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है। यहीं पर 1949 में महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को फांसी दी गई थी।
प्रदेश में फिलहाल वर्तमान में कोई स्थायी जल्लाद नहीं है। फांसी की जरूरत पड़ने पर अन्य राज्यों से जल्लाद बुलाए जाते हैं। लंबे समय से राज्य में कोई फांसी नहीं हुई है, इसलिए यह व्यवस्था निष्क्रिय है। कई वकीलों ने कहा कि यह मामला रेयर ऑफ रेयरेस्ट श्रेणी में आता है या नहीं यह भी चर्चा का विषय, लेकिन कानूनी प्रक्रिया पूरी होने में वर्षों लग सकते हैं। तब तक फांसी की चर्चा महज अटकलें ही रहेंगी।
हत्याकांड को कोर्ट के रेयर ऑफ रेयरेस्ट मानने पर वकीलों में छिड़ी बहस
- कोई पक्ष में तो कोई बोला ये मामला रेयर ऑफ रेयरेस्ट में नहीं आता
संवाद न्यूज एजेंसी
कुरुक्षेत्र। डॉ. विनीता अरोड़ा हत्याकांड में जिला अदालत द्वारा पांच दोषियों को फांसी की सजा सुनाए जाने के बाद कानूनी जानकारों में रेयर ऑफ रेयरेस्ट सिद्धांत को लेकर बहस छिड़ गई है। कुछ वकील इसे जघन्य अपराध मानकर सजा को उचित ठहरा रहे हैं, जबकि अधिकांश का मानना है कि यह मामला लूट के दौरान हुई हत्या का है, जो रेयर ऑफ रेयरेस्ट की श्रेणी में नहीं आता। सुप्रीम कोर्ट के बाचन सिंह केस में निर्धारित सिद्धांत के अनुसार, फांसी केवल तब दी जाती है जब अपराध अत्यंत क्रूर हो और सुधार की कोई गुंजाइश न हो।
लेकिन यह मामला 2023 में घर में घुसकर लूटपाट के दौरान डॉ. विनीता की हत्या का है, जहां पूर्व नौकरानी पूनम ने साजिश रची थी। अदालत ने इसे रेयर ऑफ रेयरेस्ट मानते हुए मौत की सजा सुनाई, लेकिन वकीलों का कहना है कि इसमें यौन उत्पीड़न, आतंकवाद या सामाजिक घृणा जैसे तत्व नहीं हैं। कुछ वकीलों ने तो यहां तक कहा कि हाईकोर्ट इसे फांसी की पुष्टि तक नहीं करेगी और पहली तारीख में ही सजा पर नए सिरे से विचार किया जाएगा। दूसरी ओर दोषी भी अब हाईकोर्ट में अपील कर सकते हैं। ऐसे में सभी की निगाहें हाईकोर्ट पर टिकी हुई हैं।
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योजनाबद्ध हत्या समाज में पैदा करती है दहशत : दीनानाथ
मामले की डॉ. अरोडा की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता दीनानाथ अरोडा का कहना है कि यह मामला निश्चित रूप से रेयर ऑफ रेयरेस्ट है। घर के अंदर घुसकर विश्वासघात करते हुए एक सम्मानित डॉक्टर की योजनाबद्ध हत्या की गई। पूर्व नौकरानी की साजिश और क्रूर तरीका समाज में दहशत पैदा करता है। अदालत का फैसला सही है, जो अपराधियों को कड़ा संदेश देता है।
बॉक्स
लूट के इरादे से हुई हत्या को रेयर नहीं मान सकते : अरनवीर सिंह
वहीं मामले में बरी किए गए आरोपी उमेश के अधिवक्ता केएल अरनवीर सिंह ने कहा कि यह लूट के इरादे से हुई हत्या है, न कि पूर्वनियोजित क्रूर हत्या। सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों में ऐसे मामलों में जीवन कारावास ही पर्याप्त है। रेयर ऑफ रेयरेस्ट का दुरुपयोग हो रहा है, जो सजा को असंतुलित बनाता है। इससे कई क्रूर तरीके की गई हत्याओं के मामले में भी कोर्ट ने आजीवन सजा को पर्याप्त माना है।
बॉक्स
फांसी देने से सुधार की संभावना के सिद्धांत का उल्लंघन
वहीं अधिवक्ता सुनील ने बताया कि मामले में यौन अपराध या सामाजिक घृणा का कोई तत्व नहीं। यह साधारण डकैती-हत्या है। फांसी देने से सिद्धांत का उल्लंघन होता है, जहां सुधार की संभावना को नजरअंदाज किया गया। हाईकोर्ट इसे बदल सकता है।
बॉक्स
दोषियों की मंशा सिर्फ लूट थी, क्रूरता सीमित थी : धर्मेंद्र अत्री
जिला बार एसोसिएशन के प्रधान धर्मेंद्र अत्री ने कहा कि पांच लोगों को एक साथ फांसी देना असामान्य है। दोषियों की मंशा सिर्फ लूट थी। मामले में क्रूरता सीमित थी। बाचन सिंह और माच्छी सिंह केस के मानकों पर यह फिट नहीं बैठता। जीवन कारावास ही न्यायोचित होता।