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Rewari News: आर्थिक मजबूरियों ने छीन ली बच्ची की जिंदगी

Rohtak Bureau रोहतक ब्यूरो
Updated Tue, 25 Nov 2025 11:40 PM IST
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Financial constraints took away the girl's life.
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रेवाड़ी। धारूहेड़ा के हाउसिंग बोर्ड पार्ट-2 में रहने वाली 14 वर्षीय आठवीं कक्षा की छात्रा रिंकू की आत्महत्या ने सभी को झकझोर कर रख दिया है। रिंकू पढ़ाई में होनहार थी और पढ़-लिखकर परिवार की आर्थिक स्थिति सुधारने का सपना देखती थी लेकिन परिवार की आर्थिक मजबूरियों ने उसे अंदर से तोड़ दिया और उसने सोमवार को घर में किसी के न होने पर पंखे से फंदा लगाकर आत्महत्या कर ली। घटनास्थल से रिकू का कोई सुसाइड नोट बरामद नहीं हुआ है।
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पिता अखिलेश के अनुसार रिंकू को पांच महीने पहले आर्थिक तंगी के कारण स्कूल छोड़ना पड़ा था। वह एक निजी स्कूल में पढ़ती थी जहां मासिक फीस और अन्य खर्चे परिवार के लिए लगातार बोझ बनते जा रहे थे। पिता अखिलेश इलेक्ट्रिशियन का काम करते हैं, जिनकी आय अनियमित रहती है।
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वहीं, मां सब्जी की रेहड़ी लगाकर घर का खर्च चलाने में मदद करती है। बढ़ती महंगाई और सीमित आमदनी के कारण परिवार रिंकू की फीस नियमित रूप से जमा नहीं कर पा रहा था। मजबूरन उन्हें बेटी की पढ़ाई रुकवानी पड़ी जो रिंकू के लिए किसी सदमे से कम नहीं था। स्कूल छूटने के 5 माह बाद अचानक से उठाए इस कदम से परिवार भी हैरान है।
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भाई बहनों को मम्मी के पास भेज लगा लिया फंदा
रिंकू के परिवार ने बताया कि सोमवार शाम को सब्जी बेच रही मां के पास से लौटने के बाद रिंकू ने बच्चों से कहा कि वे लोग मां के पास चले जाएं। मां उनको बुला रही है। बच्चों के निकलते ही उसने दरवाजा बंद कर लिया और आत्महत्या कर ली। बच्चे जब लौटे और दरवाजा नहीं खुला तो उन्होंने मम्मी-पापा को सूचना दी। जब दरवाजा तोड़ा गया तो रिंकू फंदे पर लटकी मिली। उसे निजी अस्पताल ले जाया गया जहां चिकित्सकों ने उसे मृत घोषित कर दिया। आत्महत्या की सूचना मिलने पर पहुंची पुलिस ने पोस्टमार्टम करा शव परिजनों को सौंप दिया।
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स्थिति सुधरने का इंतजार करते रहे परिजन, चल बसी लड़की
परिवार का कहना है कि रिंकू को पढ़ाई से बेहद लगाव था। घर पर भी पढ़ाई जारी रखने की कोशिश करती थी। लेकिन धीरे-धीरे उसकी मानसिक स्थिति बिगड़ती गई। उसे लगता था कि अब उसके भविष्य का रास्ता बंद हो गया है। रिंकू सवाल करती थी कि उसकी सहपाठी स्कूल जा रही हैं, लेकिन वह क्यों नहीं जा सकती। माता-पिता उसे समझाने की पूरी कोशिश करते रहे कि हालात जल्द सुधरेंगे, लेकिन वह हिम्मत हार बैठी।

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गलतफहमी बिल्कुल ठीक नहीं : मनोचिकित्सक
मनोचिकित्सक डॉ. पवन यादव ने बताया कि यह गलतफहमी बिल्कुल ठीक नहीं है कि सिर्फ निजी स्कूलों में ही अच्छी पढ़ाई होती है, लेकिन कई परिवारों में यह मानसिकता इतनी गहरी बैठी है कि बच्चा भी इस बदलाव को असफलता की तरह ले लेता है। अचानक स्कूल छूट जाने से बच्चे का दोस्ती का दायरा टूट जाता है, दिनचर्या बदल जाती है और वह खुद को अलग-थलग महसूस करने लगता है। रिंकू के साथ भी ऐसा ही हुआ। दोस्तों से दूर हो जाने और स्कूल न जाने की वजह से वह अंदर ही अंदर टूटती चली गई। ये एक मानसिक स्थिति होती है। बच्चा परेशान रहने लगता है।

14 वर्ष की उम्र मानसिक विकास का बेहद महत्वपूर्ण दौर
डॉ. पवन ने बताया कि 14 वर्ष की उम्र बच्चों के मानसिक विकास का बेहद महत्वपूर्ण दौर होता है। ऐसे में किसी भी बड़े बदलाव को समझाने के लिए संवाद जरूरी है। कई बार बच्चे को यह मालूम ही नहीं होता कि परिवार आर्थिक संकट में है। पैसा न होना उसकी समझ से परे होता है, इसलिए वह स्कूल छुड़वाने के निर्णय को अपनी गलती समझ बैठता है। इस मामले में भी माता-पिता और बच्चे के बीच संवाद का अभाव बड़ी कमजोरी साबित हुआ।
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