Bilaspur News: गाद और पानी से जूझ रहे हैं छठी से 17वीं सदी के शिखर शैली के मंदिर, जलस्तर घटने से लगे दिखने
जिला बिलासपुर में कहलूर रियासत के ऐतिहासिक मंदिर एक बार फिर सांडू मैदान क्षेत्र में बाहर निकलने लगे हैं। वर्ष 1960 में कहलूर रियासत के दर्जनों ऐतिहासिक मंदिर गोबिंद सागर झील में समा गए थे। इनमें से आज भी आठ मंदिर किसी तरह अस्तित्व बचाए हुए हैं। पढ़ें पूरी खबर...
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गोबिंद सागर झील का जलस्तर में कम होने लगा है, इसके साथ ही कहलूर रियासत के ऐतिहासिक मंदिर एक बार फिर सांडू मैदान क्षेत्र में बाहर निकलने लगे हैं। बीते चार माह से जल समाधि में रहे ये मंदिर धीरे-धीरे पानी और गाद से मुक्त हो रहे हैं। झील का पानी कम होने से भाखड़ा बांध पर भी दबाव घटने की उम्मीद है। हर साल की तरह इस बार भी फरवरी के अंत तक ये मंदिर पूरी तरह दिखाई देने लगेंगे। भाखड़ा बांध बनने के बाद वर्ष 1960 में कहलूर रियासत के दर्जनों ऐतिहासिक मंदिर गोबिंद सागर झील में समा गए थे। इनमें से आज भी आठ मंदिर किसी तरह अस्तित्व बचाए हुए हैं।
रंगनाथ मंदिर, खनेश्वर, नारदेश्वर, गोपाल मंदिर, मुरली मनोहर मंदिर, बाह का ठाकुरद्वारा, ककड़ी का ठाकुरद्वारा, नालू का ठाकुरद्वारा और खनमुखेश्वर मंदिर हर साल जलस्तर बढ़ने पर डूब जाते हैं और पानी उतरते ही फिर उभर आते हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग कीरतपुर–मनाली से गुजरने वाले यात्रियों के लिए यह दृश्य किसी इतिहास के जीवित पन्ने जैसा होता है। गर्मियों में जब झील का जलस्तर न्यूनतम होता है, तब ये शिखर शैली के मंदिर अपनी पूरी भव्यता और नक्काशी के साथ नजर आते हैं।

छठी से 17वीं सदी की स्थापत्य कला आज भी इन मंदिरों की दीवारों और शिखरों से इतिहास बयां करती है। हालांकि चिंता की बात यह है कि हर साल आधा से एक फुट तक बढ़ रही गाद मंदिरों के अस्तित्व के लिए बड़ा खतरा बनती जा रही है। पानी उतरने के बाद संरक्षण के अभाव में ये स्थल असामाजिक तत्वों और नशेड़ियों का अड्डा बन जाते हैं। न तो नियमित देखरेख होती है और न ही सुरक्षा के ठोस इंतजाम।
पूर्व भाजपा सरकार ने इन ऐतिहासिक मंदिरों के संरक्षण और शिफ्टिंग के लिए करीब 1500 करोड़ रुपये की परियोजना पर कार्य शुरू किया था। इसके तहत नाले के नौण क्षेत्र में टापू बनाकर प्रमुख मंदिरों को लिफ्ट करने ,नाव घाट, वॉकवे, संपर्क सड़कें और पर्यटन सुविधाएं विकसित करने की योजना थी। वर्ष 2022 में मिट्टी के सैंपल और ब्लूप्रिंट भी तैयार हुए, लेकिन सत्ता परिवर्तन के बाद यह परियोजना ठप पड़ी है।
विशेषज्ञों का कहना है कि यदि जल्द ही संरक्षण और शिफ्टिंग की ठोस योजना पर अमल नहीं हुआ, तो हर साल बढ़ती गाद के कारण ये मंदिर भी स्थायी रूप से झील में समा सकते हैं। तब कहलूर रियासत की यह अमूल्य धरोहर भी इतिहास के पन्नों में ही सिमट कर रह जाएगी।