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Chamba News: एक साल में 700 रुपये बढ़े ठांगी के दाम, पांगीवासियों की हुई पौहबारह
संवाद न्यूज एजेंसी, चम्बा
Updated Thu, 04 Dec 2025 10:40 PM IST
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चंबा के पांगी की ठांगी।संवाद
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चंबा। जनजातीय क्षेत्र पांगी के मशहूर सूखे मेवे ठांगी इस साल पांगीवासियों के लिए खूब लाभदायक साबित हो रही है। बीते वर्ष जहां ठांगी 2000 से 2300 रुपये प्रति किलोग्राम तक बिक रही थी, वहीं इस वर्ष इसके दाम बढ़कर 2500 से 3000 रुपये प्रति किलोग्राम पहुंच गए हैं। एक वर्ष में 500 से 700 रुपये प्रति किलो की बढ़ोतरी हुई है।
सितंबर-अक्तूबर में निकली है फसल, यह है विशेषता
पांगी घाटी के जंगलों में ठांगी के पेड़ बड़ी मात्रा में पाए जाते हैं और कई लोगों ने इसे अपने खेतों में भी लगाया है। ठांगी की फसल सितंबर-अक्तूबर में निकलती है। बादाम की तरह यह एक ड्राई फ्रूट है, जिसे लोग जंगलों से इकट्ठा कर बाजार में बेचते हैं। इसका स्वाद और तासीर इसे खास बनाती है। यह न ज्यादा गर्म, न ज्यादा ठंडी और कम तेल वाली विशिष्ट मेवा मानी जाती है।
प्रशंसा से बढ़ी पहचान
ठांगी सिर्फ स्थानीय नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान बना रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इसकी प्रशंसा कर चुके हैं। अक्तूबर 2022 में पीएम ने ठांगी का जिक्र किया। इसके बाद देशभर में इसे लेकर लोगों में उत्सुकता बढ़ी है। पहले चंबा चुख, चंबा रुमाल, चंबा चप्पल और मिंजर मेले की पहचान थी, लेकिन ठांगी के उल्लेख से यह भी लोकप्रिय हो रही है।
अच्छे बाजार की कमी अब भी चुनौती
स्थानीय लोगकेवल चंद, किशन चंद, विरेंद्र कुमार, रविंद्र कुमार और प्यार चंद का कहना है कि बढ़े हुए दाम जरूर राहत दे रहे हैं, लेकिन अभी तक ठांगी को व्यापक और स्थायी बाजार नहीं मिल पाया है। अगर इसे अच्छी मार्केटिंग और स्थायी प्लेटफॉर्म मिल जाए, तो यह स्थानीय लोगों के लिए बड़े आर्थिक लाभ का जरिया बन सकता है।
पेटेंट की योजना अधूरी
2017 में तत्कालीन आवासीय आयुक्त रोहित राठोर ने ‘नेस्ले’ कंपनी के साथ ठांगी का पेटेंट करवाने की योजना बनाई थी, लेकिन उनके स्थानांतरण और बाद में 2019 में कोरोना महामारी आने के कारण यह योजना आगे नहीं बढ़ पाई।
महिलाओं की अहम भूमिका
ठांगी जंगलों से इकट्ठा करने का अधिकांश कार्य स्थानीय महिलाएं करती हैं, जिससे यह स्थानीय अर्थव्यवस्था और महिलाओं की आय का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है।
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पांगी घाटी के जंगलों में ठांगी के पेड़ बड़ी मात्रा में पाए जाते हैं और कई लोगों ने इसे अपने खेतों में भी लगाया है। ठांगी की फसल सितंबर-अक्तूबर में निकलती है। बादाम की तरह यह एक ड्राई फ्रूट है, जिसे लोग जंगलों से इकट्ठा कर बाजार में बेचते हैं। इसका स्वाद और तासीर इसे खास बनाती है। यह न ज्यादा गर्म, न ज्यादा ठंडी और कम तेल वाली विशिष्ट मेवा मानी जाती है।
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प्रशंसा से बढ़ी पहचान
ठांगी सिर्फ स्थानीय नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान बना रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इसकी प्रशंसा कर चुके हैं। अक्तूबर 2022 में पीएम ने ठांगी का जिक्र किया। इसके बाद देशभर में इसे लेकर लोगों में उत्सुकता बढ़ी है। पहले चंबा चुख, चंबा रुमाल, चंबा चप्पल और मिंजर मेले की पहचान थी, लेकिन ठांगी के उल्लेख से यह भी लोकप्रिय हो रही है।
अच्छे बाजार की कमी अब भी चुनौती
स्थानीय लोगकेवल चंद, किशन चंद, विरेंद्र कुमार, रविंद्र कुमार और प्यार चंद का कहना है कि बढ़े हुए दाम जरूर राहत दे रहे हैं, लेकिन अभी तक ठांगी को व्यापक और स्थायी बाजार नहीं मिल पाया है। अगर इसे अच्छी मार्केटिंग और स्थायी प्लेटफॉर्म मिल जाए, तो यह स्थानीय लोगों के लिए बड़े आर्थिक लाभ का जरिया बन सकता है।
पेटेंट की योजना अधूरी
2017 में तत्कालीन आवासीय आयुक्त रोहित राठोर ने ‘नेस्ले’ कंपनी के साथ ठांगी का पेटेंट करवाने की योजना बनाई थी, लेकिन उनके स्थानांतरण और बाद में 2019 में कोरोना महामारी आने के कारण यह योजना आगे नहीं बढ़ पाई।
महिलाओं की अहम भूमिका
ठांगी जंगलों से इकट्ठा करने का अधिकांश कार्य स्थानीय महिलाएं करती हैं, जिससे यह स्थानीय अर्थव्यवस्था और महिलाओं की आय का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है।