हिमाचल प्रदेश: सूखे जैसे हालात और चिलिंग आवर्स की कमी से बागवानों की बढ़ी चिंता
हिमाचल प्रदेश में बारिश और बर्फबारी न होने से किसान और बागवान परेशान हैं। सेब के लिए जरूरी चिलिंग आवर्स पूरे नहीं हो पा रहे हैं। किसानों और बागवानों को भारी नुकसान का डर सता रहा है। पढ़ें पूरी खबर...
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हिमाचल प्रदेश की सेब बागवानी इस समय गंभीर संकट के दौर से गुजर रही है। बदलते मौसम के मिजाज और लंबे समय से बारिश व बर्फबारी न होने के कारण न केवल सेब के लिए जरूरी चिलिंग आवर्स पूरे नहीं हो पा रहे हैं, बल्कि बागवानी से जुड़े अन्य जरूरी कार्य भी ठप पड़ गए हैं। हालात ऐसे हैं कि कई इलाकों में बीते दो महीनों से सूखे जैसी स्थिति बनी हुई है।
राज्य के ऊपरी और मध्य पर्वतीय क्षेत्रों में आमतौर पर इस समय तक पर्याप्त ठंड और नमी मिल जाती थी, जिससे बागवान गोबर की खाद डालने, कटाई-छंटाई और नए पौधरोपण का काम शुरू कर देते हैं, लेकिन इस बार नमी की भारी कमी के चलते बागवान इन कार्यों से भी गुरेज कर रहे हैं। मिट्टी सूखी होने के कारण खाद डालने से लाभ के बजाय नुकसान का डर सता रहा है। बागवानी विशेषज्ञों के अनुसार सेब के लिए 1400 से 1600 चिलिंग आवर्स आवश्यक होते हैं, लेकिन कई क्षेत्रों में यह आंकड़ा अब तक काफी पीछे है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण सेब बागवानी के पारंपरिक क्षेत्र लगातार दबाव में आ रहे हैं। यदि समय रहते हालात नहीं सुधरे तो सेब उत्पादन के साथ-साथ हजारों बागवान परिवारों की आजीविका पर भी गहरा संकट खड़ा हो सकता है।
बागवान हरीश चौहान का कहना है कि मौसम में आया बदलाव अब साफ नजर आने लगा है। पहले दिसंबर-जनवरी में अच्छी ठंड और बर्फ मिल जाती थी, जिससे चिलिंग आवर्स पूरे हो जाते थे। इस बार न ठंड है और न नमी। गोबर की खाद डालना भी जोखिम भरा लग रहा है, क्योंकि सूखी जमीन में इसका असर नहीं होगा। हरीश चौहान के अनुसार यदि यही हालात रहे तो आने वाले सीजन में सेब की पैदावार पर सीधा असर पड़ेगा। बागवान कुलदीप कांत शर्मा का कहना है कि नए पौधरोपण की योजना भी फिलहाल टालनी पड़ी है। उन्होंने इस साल बगीचे के विस्तार के लिए नए पौधे मंगवाने की तैयारी की थी, लेकिन बारिश न होने से रोपण संभव नहीं है।
संयुक्त किसान मंच ने कहा है कि मुक्त व्यापार समझौते के तहत न्यूजीलैंड के सेब पर आयात शुल्क में 25 फीसदी कटौती सेब बागवानों के लिए डेथ वारंट है। प्रदेश सरकार को इस फैसले पर विरोध दर्ज करवाना चाहिए। संयुक्त किसान मंच इस मांग को लेकर 27 दिसंबर को प्रदेश सचिवालय में बागवानी मंत्री से मिलेगा। मंच ने अपने स्तर पर भी केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय के समक्ष विरोध दर्ज करने का निर्णय लिया है। मंच के संयोजक हरीश चौहान का कहना है कि बागवानों के हितों को ताक पर रखकर यह समझौता किया गया है। यह देश के सेब किसानों का डेथ वारंट जारी करने जैसा है। देश की सेब इंडस्ट्री को बचाने के लिए आयात शुल्क 50 फीसदी से 100 फीसदी करने की मांग उठाई जा रही थी, लेकिन सरकार उल्टा शुल्क कम करने जा रही है। सेब के रियायती शुल्क पर आयात से बागवानों को नुकसान होगा।