HP High Court: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट की टिप्पणी- मौजूदा पदोन्नति प्रणाली बीमार, सुधार की सख्त जरूरत
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि पुलिस विभाग की अपनी रिपोर्ट्स ही यह बताती हैं कि मौजूदा पदोन्नति प्रणाली बीमार है और इसे सुधार की सख्त जरूरत है। जानें क्यों अदालत ने की ये टिप्पणी...
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हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने पुलिस विभाग में कांस्टेबल से हेड कांस्टेबल की पदोन्नति के लिए मौजूदा बी-1 टेस्ट प्रणाली में खामियों और विसंगतियों को देखते हुए एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया है, जो हेड कांस्टेबल के पदों पर पदोन्नति की पूरी प्रक्रिया की समीक्षा करेगी। हाईकोर्ट ने उच्च स्तरीय समिति का गठन प्रधान सचिव (गृह) की अध्यक्षता में समिति गठित की है।
इस समिति में प्रधान सचिव कार्मिक, पुलिस महानिदेशक, विधि सचिव, एडीजीपी सीआईडी कानून-व्यवस्था, प्रशिक्षण और आईजी उत्तरी, मध्य और दक्षिणी रेंज इसके सदस्य होंगे। यह कमेटी कांस्टेबलों की पदोन्नति से जुड़े सभी पहलुओं और पिछले 10 वर्षों से लंबित मुद्दों की गहराई से जांच करेगी। विशेष रूप से बी-1 टेस्ट की आवश्यकता और इसके वर्तमान स्वरूप की प्रासंगिकता पर रिपोर्ट तैयार की जाएगी। न्यायाधीश ज्योत्स्ना रिवॉल दुआ की अदालत ने समिति को अपनी विस्तृत रिपोर्ट 6 मार्च 2026 तक न्यायालय में पेश करने के आदेश दिए हैं। कोर्ट ने पाया कि वर्तमान में 60 फीसदी पद बी-1 टेस्ट के माध्यम से भरे जाते हैं। 30 फीसदी पद वरिष्ठता के आधार पर भरे जाते हैं, लेकिन कई पुलिसकर्मी रिटायरमेंट की उम्र तक पहुंचने के बावजूद पदोन्नति का इंतजार ही करते रह जाते हैं।
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यद्यपि पदोन्नति का कोई मौलिक अधिकार नहीं है, लेकिन पदोन्नति के लिए उचित विचार का अधिकार समानता के अधिकार का हिस्सा है। कोर्ट ने कहा है कि पुलिस विभाग की अपनी रिपोर्ट्स ही यह बताती हैं कि मौजूदा पदोन्नति प्रणाली बीमार है और इसे सुधार की सख्त जरूरत है। सरकार को इसे एक विरोधी मुकदमेबाज की तरह नहीं, बल्कि एक कल्याणकारी नियोक्ता की तरह देखना चाहिए।
अदालत के इस फैसले से राज्य के हजारों पुलिस कांस्टेबलों में पदोन्नति की नई उम्मीद जगी है। अदालत ने फैसले में कहा है कि हिमाचल पुलिस आज भी 1934 के पंजाब पुलिस नियमों का पालन कर रही है, जबकि राज्य का अपना हिमाचल प्रदेश पुलिस अधिनियम 2007 लागू हो चुका है। राज्य सरकार की ओर से अपने नियम न बनाए जाने के कारण पुराने और अप्रासंगिक नियमों से ही काम चल रहा है। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिए हैं कि यह टेस्ट अन्यायपूर्ण है और फील्ड ड्यूटी में तैनात कांस्टेबलों के पदोन्नति के हक को प्रभावित करता है।
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने लोक निर्माण विभाग के सहायक अभियंता को बड़ी राहत देते हुए विभाग को उनकी सेवानिवृत्ति से पहले पदोन्नति प्रक्रिया पूरी करने का आदेश दिया है। न्यायाधीश संदीप शर्मा की एकल पीठ ने फैसले में स्पष्ट किया है कि किसी योग्य कनिष्ठ कर्मचारी की पदोन्नति सिर्फ इसलिए नहीं रोकी जा सकती कि उससे वरिष्ठ अधिकारियों ने अभी तक निर्धारित सेवा अवधि पूरी नहीं की है। अदालत ने पाया कि याचिकाकर्ता धर्म चंद शर्मा जो 31 दिसंबर को सेवानिवृत्त होने वाले हैं, पिछले दो वर्षों से अधिशासी अभियंता के पद पर पदोन्नति के लिए पात्र थे। विभाग ने यह तर्क देते हुए उनकी पदोन्नति रोकी थी कि उनसे वरिष्ठ 6 अधिकारी अभी 8 वर्ष की नियमित सेवा पूरी नहीं कर पाए हैं। अदालत ने प्रतिवादी विभाग को निर्देश दिया कि अधिशासी अभियंता के पद के लिए 30 अक्टूबर और 4 नवंबर 2025 को शुरू हुई विभागीय पदोन्नति समिति की कार्यवाही को 31 दिसंबर 2025 तक तार्किक अंत तक पहुंचाया जाए और सुनिश्चित किया जाए कि याचिकाकर्ता को उनकी सेवानिवृत्ति से पूर्व पदोन्नति का लाभ मिले, ताकि उनके साथ कोई अन्याय न हो।
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट में पंचायत चुनाव को समय पर कराने को लेकर दायर याचिका पर अब 2 जनवरी को सुनवाई होगी। जनहित याचिका पर प्रतिवादी पंचायती राज और राज्य निर्वाचन आयोग की ओर से जवाब दाखिल कर दिया गया है। मंगलवार को यह मामला मुख्य न्यायाधीश गुरमीत सिंह संधावालिया और न्यायाधीश जिया लाल भारद्वाज की खंडपीठ के समक्ष सुनवाई के लिए लगा था, लेकिन प्रतिवादियों के नाम की सूची सही न होने की वजह से सुनवाई न हो सकी। खंडपीठ ने याचिकाकर्ताओं को अमेंडेड मेमों आफ पार्टी दायर करने को कहा है,जिसमें सभी प्रतिवादियों के नाम क्रम वाइज दुरुस्त करें।
जनहित याचिका में पंचायती राज चुनाव को समय पर करवाने के आदेश जारी करने की मांग की गई है। याचिका में चुनाव टालने को संविधान के प्रावधानों के विरुद्ध बताते हुए कहा गया था कि पंचायत चुनाव हर 5 साल के बाद करवाए जाने अनिवार्य हैं। पंचायत प्रतिनिधियों का मौजूदा कार्यकाल जनवरी में समाप्त हो।
हाईकोर्ट ने बिजली बोर्ड की ओर से एक औद्योगिक इकाई के खिलाफ जारी 4.55 करोड़ रुपये के प्रोविजनल असेसमेंट आदेश को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि बिजली अधिनियम की धारा 126 के तहत कार्रवाई करने के लिए निर्धारित प्रक्रिया का पालन करना अनिवार्य है, जिसका इस मामले में उल्लंघन किया गया था।
यह मामला बद्दी के एक उद्योग से जुड़ा है। बिजली बोर्ड ने 15 मार्च 2021 को एक नोटिस जारी कर कंपनी पर आरोप लगाया था कि अगस्त 2014 से मई 2015 के बीच बिजली मीटर से छेड़छाड़ कर अनधिकृत बिजली का उपयोग किया गया है। बोर्ड ने इसके आधार पर 4,55,18,952 रुपये की मांग की थी। न्यायाधीश अजय मोहन गोयल की अदालत ने पाया कि बिजली अधिनियम की धारा 126 के अनुसार, असेसमेंट नोटिस तभी जारी किया जा सकता है, जब अधिकारी ने परिसर का निरीक्षण किया हो या उपकरणों की जांच की हो। इस मामले में बोर्ड ने कोई साइट विजिट नहीं की थी। बोर्ड ने यह नोटिस अपने स्वयं के पास उपलब्ध एमआरआई डेटा के आधार पर जारी किया था।
हाईकोर्ट ने माना कि निर्धारित सप्लाई कोड के तहत मौके पर निरीक्षण रिपोर्ट तैयार करना, फोटो या वीडियो बनाना और उपभोक्ता को उसकी कॉपी देना अनिवार्य है। बोर्ड ने इन वैधानिक प्रावधानों का पालन नहीं किया। वहीं, बिजली बोर्ड ने तर्क दिया था कि याचिका समय से पहले है, क्योंकि अभी केवल प्रोविजनल आदेश जारी हुआ था और उपभोक्ता के पास आपत्ति दर्ज करने का मौका था।