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Wrestlers Protest: नया नहीं है नदी में पदक बहाना, इस महान खिलाड़ी ने रंगभेद के खिलाफ फेंक दिया था अपना मेडल
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: शिवेंद्र तिवारी
Updated Wed, 31 May 2023 04:52 PM IST
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महान मुक्केबाज मुहम्मद अली
- फोटो :
AMAR UJALA
विस्तार
भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यूएफआई) के अध्यक्ष और भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ आंदोलन कर रहे पहलवान मंगलवार को हरिद्वार पहुंचे। इन पहलवानों ने अपने पदक गंगा में बहाने का एलान किया था। हालांकि, किसान नेता नरेश टिकैत के समझाने पर पहलवानों ने अपने मेडल टिकैत को दे दिए। उन्होंने पहलवानों को आश्वासन दिया कि वह पहलवानों को इंसाफ दिलाने के लिए वार्ता करेंगे। नरेश टिकैत की बात मानने के बाद पहलवान करीब पौने दो घंटे के बाद वापस दिल्ली लौट गए।पहलवानों के इस तरह के विरोध के बाद खेल जगत में पांच दशक पहले हुई एक घटना को फिर से चर्चा में ला दिया। दरअसल उस वक्त महान बॉक्सर मोहम्मद अली ने रंगभेद के खिलाफ विरोध जताने के लिए अपना पदक ओहियो नदी में फेंक दिया था।

हरिद्वार पहुंचे पहलवान खिलाड़ी
- फोटो :
अमर उजाला
पहले जानते हैं अभी क्या हुआ है?
भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह की गिरफ्तारी की मांग को लेकर पहलवान हफ्तों से प्रदर्शन कर रहे हैं। उन्होंने सांसद पर महिला पहलवानों का यौन उत्पीड़न करने का आरोप लगाया है। इसी विरोध की कड़ी में मंगलवार को विनेश फोगाट, साक्षी मलिक, बजरंग पुनिया गंगा में मेडल प्रवाहित करने हरिद्वार पहुंचे। हालांकि, प्रदर्शनकारी पहलवान गंगा तट पर गए।
इससे पहले पहलवान विनेश फोगाट ने एक ट्वीट में कहा था, 'हमें अब ये मेडल नहीं चाहिए क्योंकि जब हम इन्हें पहनते हैं तो प्रशासन हमें मास्क की तरह इस्तेमाल करता है, लेकिन बाद में हमारा शोषण करता है। अगर हम शोषण के खिलाफ बोलते हैं तो यह हमें जेल में डालने को कहता है। हम उन्हें मां गंगा में विसर्जित करेंगे। हम गंगा को पवित्र मानते हैं - हमने इन पदकों को जीतने के लिए उतनी ही पवित्रता के साथ कड़ी मेहनत की थी।'
भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह की गिरफ्तारी की मांग को लेकर पहलवान हफ्तों से प्रदर्शन कर रहे हैं। उन्होंने सांसद पर महिला पहलवानों का यौन उत्पीड़न करने का आरोप लगाया है। इसी विरोध की कड़ी में मंगलवार को विनेश फोगाट, साक्षी मलिक, बजरंग पुनिया गंगा में मेडल प्रवाहित करने हरिद्वार पहुंचे। हालांकि, प्रदर्शनकारी पहलवान गंगा तट पर गए।
इससे पहले पहलवान विनेश फोगाट ने एक ट्वीट में कहा था, 'हमें अब ये मेडल नहीं चाहिए क्योंकि जब हम इन्हें पहनते हैं तो प्रशासन हमें मास्क की तरह इस्तेमाल करता है, लेकिन बाद में हमारा शोषण करता है। अगर हम शोषण के खिलाफ बोलते हैं तो यह हमें जेल में डालने को कहता है। हम उन्हें मां गंगा में विसर्जित करेंगे। हम गंगा को पवित्र मानते हैं - हमने इन पदकों को जीतने के लिए उतनी ही पवित्रता के साथ कड़ी मेहनत की थी।'

महान मुक्केबाज मुहम्मद अली
- फोटो :
SOCIAL MEDIA
मुहम्मद अली के साथ क्या हुआ था?
भारत में खिलाड़ियों का प्रदर्शन भले ही ताजा है लेकिन दुनियाभर में पहले कई खिलाड़ियों ने अलग-अलग कारणों से विरोध किया है। ऐसी ही एक बाक्या महान अमेरिकी मुक्केबाज मुहम्मद अली के साथ हुआ था। दरअसल, अली का जन्म लुइसविले, केंटकी में एक अश्वेत अमेरिकी परिवार में हुआ था। उस वक्त यहां नस्लवाद अपने चरम पर था। अली का मूल नाम कैसियस क्ले था। उन्होंने 12 साल की उम्र में बॉक्सिंग में शुरू की थी जिसके पीछे एक दिलचस्प बाकया था। दरअसल, एक बार उनकी बाइक चोरी हो गई जिसका गुस्सा उन्होंने एक पुलिसकर्मी पर चिल्लाकर निकाला। पुलिसकर्मी ने पहले तो उनके गुस्से को सुना और बाद में अली को बॉक्सिंग क्लास में उस गुस्से को निकालने के लिए बुलाया।
इस घटना के छह साल के भीतर कैसियस क्ले ने बॉक्सिंग की दुनिया में कमाल किया। उन्होंने 1960 के रोम में हुए ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीत लिया। महज 18 साल की उम्र में स्वर्ण पदक जीतकर अली काफी खुश थे। उन्होंने एक बयान में कहा था, 'मैंने 48 घंटे तक वह पदक नहीं हटाया। मैंने इसे सोते हुए भी पहना था। मैं ठीक तरह से सो नहीं पाया क्योंकि मुझे अपनी पीठ के बल सोना पड़ा ताकि पदक मेरे सीने से अलग न हो जाए। लेकिन मैंने परवाह नहीं की, मैं ओलंपिक चैंपियन था।'
हालांकि, चीजें जल्द ही बदल गईं। कहा जाता है कि जब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति पा चुके अली लुइसविले में घर लौटे, तो शहर उन्हें उनके काले रंग से परे नहीं देख सका। अली जब एक ऐसे रेस्तरां में खाना खाने गए तो उन्हें खाना देने से मना कर दिया गया और कहा गया कि यहां केवल गोरे लोगों को खाना दिया जाता है। अली के अपने वृत्तांत के अनुसार, नस्लवाद से परेशान होकर उन्होंने अपना पदक ओहियो नदी में फेंक दिया।
भारत में खिलाड़ियों का प्रदर्शन भले ही ताजा है लेकिन दुनियाभर में पहले कई खिलाड़ियों ने अलग-अलग कारणों से विरोध किया है। ऐसी ही एक बाक्या महान अमेरिकी मुक्केबाज मुहम्मद अली के साथ हुआ था। दरअसल, अली का जन्म लुइसविले, केंटकी में एक अश्वेत अमेरिकी परिवार में हुआ था। उस वक्त यहां नस्लवाद अपने चरम पर था। अली का मूल नाम कैसियस क्ले था। उन्होंने 12 साल की उम्र में बॉक्सिंग में शुरू की थी जिसके पीछे एक दिलचस्प बाकया था। दरअसल, एक बार उनकी बाइक चोरी हो गई जिसका गुस्सा उन्होंने एक पुलिसकर्मी पर चिल्लाकर निकाला। पुलिसकर्मी ने पहले तो उनके गुस्से को सुना और बाद में अली को बॉक्सिंग क्लास में उस गुस्से को निकालने के लिए बुलाया।
इस घटना के छह साल के भीतर कैसियस क्ले ने बॉक्सिंग की दुनिया में कमाल किया। उन्होंने 1960 के रोम में हुए ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीत लिया। महज 18 साल की उम्र में स्वर्ण पदक जीतकर अली काफी खुश थे। उन्होंने एक बयान में कहा था, 'मैंने 48 घंटे तक वह पदक नहीं हटाया। मैंने इसे सोते हुए भी पहना था। मैं ठीक तरह से सो नहीं पाया क्योंकि मुझे अपनी पीठ के बल सोना पड़ा ताकि पदक मेरे सीने से अलग न हो जाए। लेकिन मैंने परवाह नहीं की, मैं ओलंपिक चैंपियन था।'
हालांकि, चीजें जल्द ही बदल गईं। कहा जाता है कि जब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति पा चुके अली लुइसविले में घर लौटे, तो शहर उन्हें उनके काले रंग से परे नहीं देख सका। अली जब एक ऐसे रेस्तरां में खाना खाने गए तो उन्हें खाना देने से मना कर दिया गया और कहा गया कि यहां केवल गोरे लोगों को खाना दिया जाता है। अली के अपने वृत्तांत के अनुसार, नस्लवाद से परेशान होकर उन्होंने अपना पदक ओहियो नदी में फेंक दिया।

महान मुक्केबाज मुहम्मद अली
- फोटो :
SOCIAL MEDIA
सेना में शामिल होने से इनकार करने पर हुई सजा
1964 में, उन्होंने कैसियस क्ले वाली अपनी पहचान छोड़ दी और इस्लाम कबूल लिया। इसके बाद उनका नाम मुहम्मद अली पड़ गया। साल 1967 में अपने धार्मिक मूल्यों का हवाला देते हुए, अली ने वियतनाम में युद्ध के चरम पर अमेरिकी सेना में शामिल होने से इनकार कर दिया। इस इनकार के बाद अली ने एक बयान दिया: 'मेरी उनके साथ कोई लड़ाई नहीं है।' कई अमेरिकियों ने अली के रुख की कड़ी निंदा की क्योंकि यह टिप्पणी ऐसे समय में आई थी जब अमेरिका में अधिकांश लोग युद्ध का समर्थन कर रहे थे।
कुछ समय बाद अली से उनकी चैंपियनशिप छीन ली गई और साढ़े तीन साल के लिए अमेरिका में सभी राज्य एथलेटिक आयोगों द्वारा उनकी बॉक्सिंग पर रोक लगा दी गई। इसके अलावा, उन पर आपराधिक आरोप लगाया गया और 1967 में अमेरिकी सशस्त्र बलों में शामिल होने से इनकार करने का दोषी ठहराया गया और पांच साल की जेल की सजा सुनाई गई। हालांकि, वह जमानत पर मुक्त रहे और चार साल बीत जाने के बाद यूएस सुप्रीम कोर्ट द्वारा फैसले को पलट दिया गया।
अली ने अपना सारा जीवन समान और न्यायपूर्ण दुनिया के लिए काम किया। 1996 में अटलांटा खेलों में अली ने ओलंपिक लौ जलाई और यहीं उन्हें अपना रिप्लेसमेंट मेडल मिला।
1964 में, उन्होंने कैसियस क्ले वाली अपनी पहचान छोड़ दी और इस्लाम कबूल लिया। इसके बाद उनका नाम मुहम्मद अली पड़ गया। साल 1967 में अपने धार्मिक मूल्यों का हवाला देते हुए, अली ने वियतनाम में युद्ध के चरम पर अमेरिकी सेना में शामिल होने से इनकार कर दिया। इस इनकार के बाद अली ने एक बयान दिया: 'मेरी उनके साथ कोई लड़ाई नहीं है।' कई अमेरिकियों ने अली के रुख की कड़ी निंदा की क्योंकि यह टिप्पणी ऐसे समय में आई थी जब अमेरिका में अधिकांश लोग युद्ध का समर्थन कर रहे थे।
कुछ समय बाद अली से उनकी चैंपियनशिप छीन ली गई और साढ़े तीन साल के लिए अमेरिका में सभी राज्य एथलेटिक आयोगों द्वारा उनकी बॉक्सिंग पर रोक लगा दी गई। इसके अलावा, उन पर आपराधिक आरोप लगाया गया और 1967 में अमेरिकी सशस्त्र बलों में शामिल होने से इनकार करने का दोषी ठहराया गया और पांच साल की जेल की सजा सुनाई गई। हालांकि, वह जमानत पर मुक्त रहे और चार साल बीत जाने के बाद यूएस सुप्रीम कोर्ट द्वारा फैसले को पलट दिया गया।
अली ने अपना सारा जीवन समान और न्यायपूर्ण दुनिया के लिए काम किया। 1996 में अटलांटा खेलों में अली ने ओलंपिक लौ जलाई और यहीं उन्हें अपना रिप्लेसमेंट मेडल मिला।