Congress Prez Poll: 80 वर्षीय खरगे कांग्रेस में कैसे फूंकेंगे नई जान? इस दांव से लग सकती है दिग्विजय की लॉटरी!
Congress Prez Poll: दक्षिण भारत की राजनीति पर नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार आर. राजगोपालन अमर उजाला से चर्चा में कहते हैं कि पेशे से वकील रहे खरगे दक्षिण भारत से होने के बावजूद सदन में हिंदी में ही अपनी बातें रखते रहे। अंग्रेजी, मराठी, कन्नड़ सहित अन्य भाषाओं पर भी उनकी अच्छी पकड़ है...

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कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव के नामांकन के आखिरी दिन गांधी परिवार के नए संकटमोचक कहे जाने वाले मल्लिकार्जुन खरगे ने अपना पर्चा दाखिल कर दिया है। गांधी परिवार के समर्थन के साथ खरगे का अध्यक्ष बनना लगभग तय माना जा रहा है। करीब 24 साल बाद वे गैर-गांधी चेहरा होंगे, जो पार्टी की कमान संभालेंगे। 51 वर्ष बाद वे दूसरे दलित कांग्रेस अध्यक्ष बनेंगे। बाबू जगजीवन राम 1970-71 में पार्टी के अध्यक्ष रह चुके हैं। इधर, कांग्रेस में बदलाव की वकालत करने वाले जी-23 समूह के नेता आनंद शर्मा और मनीष तिवारी भी खरगे के प्रस्तावकों में शामिल रहे। इसके अलावा करीब 30 बड़े नेता खरगे प्रस्ताव बने।

छात्र राजनीति से शुरुआत करने वाले 80 वर्षीय खरगे ने एक लंबी पारी यूनियन पॉलिटिक्स की भी खेली। वह संयुक्त मजदूर संघ के एक प्रभावशाली नेता रहे है। उन्होंने मजदूरों के अधिकारों के लिए किए गए कई आंदोलनों का नेतृत्व किया। 50 वर्षों से कांग्रेस राजनीति में सक्रिय खरगे को पहली बार 1969 में कर्नाटक के गुलबर्गा शहर की कांग्रेस अध्यक्ष की जिम्मेदारी मिली थी। 1972 में पहली बार कर्नाटक की गुरमीतकल विधानसभा सीट से विधायक बने। खरगे करीब 8 बार विधायक,दो बार लोकसभा सांसद भी रह चुके है। अभी वे राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी संभाल रहे है।
इन कारणों से सोनिया-राहुल के करीब आए खरगे
खरगे 2009 में कर्नाटक की गुलबर्गा सीट से लोकसभा पहुंचे। 2013 में कर्नाटक विधानसभा चुनाव के बाद खरगे का नाम प्रदेश मुख्यमंत्री के तौर पर रेस में सबसे आगे था। लेकिन उनकी जगह सिद्धारमैया को सीएम बनाया गया। इसके बाद मनमोहन सिंह सरकार में उन्हें श्रम विभाग के बाद रेल मंत्रालय का भी जिम्मा दिया गया। 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में कांग्रेस पार्टी हार सामना करना पड़ा। इसमें कई दिग्गज चुनाव हार गए, लेकिन कर्नाटक के गुलबर्गा से आने वाले खरगे ने अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे। इसके बाद पार्टी ने उन्हें लोकसभा में नेता विपक्ष की जिम्मेदारी भी सौंपी। 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद कांग्रेस नेतृत्व ने एक बार फिर खरगे पर विश्वास जताते हुए उन्हें राज्यसभा भेजा और गुलाम नबी आजाद को हटाकर खरगे को राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी सौंपी।
दक्षिण भारत की राजनीति पर नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार आर. राजगोपालन अमर उजाला से चर्चा में कहते हैं कि पेशे से वकील रहे खरगे दक्षिण भारत से होने के बावजूद सदन में हिंदी में ही अपनी बातें रखते रहे। अंग्रेजी, मराठी, कन्नड़ सहित अन्य भाषाओं पर भी उनकी अच्छी पकड़ है। राफेल, नोटबंदी और महंगाई के मुद्दे पर उन्होंने लोकसभा में नेता विपक्ष होते हुए खूब जोर शोर से उठाया। इसके बाद से ही वे गांधी परिवार के करीबी हो गए। इसी साल नेशनल हेराल्ड केस मामले में कांग्रेस नेता राहुल गांधी, सोनिया गांधी के साथ ईडी ने उनसे भी पूछताछ की थी। उन पर हेराल्ड केस में मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप है। हालांकि अब तक उन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है।
ऐसे खुल सकती है दिग्विजय सिंह की लॉटरी
राजगोपालन आगे कहते हैं कि खरगे गांधी परिवार के यस मैन हैं। लेकिन हाल ही में कई मौके पर वे पार्टी के नए संकटमोचन के तौर पर भी उभरे हैं। 2019 में जब महाराष्ट्र में धुर-विरोधी उद्धव ठाकरे के साथ सरकार बनाने की बात आई, तो पार्टी ने खरगे को ही प्रभारी बनाकर वहां भेजा। खरगे सोनिया के इस मिशन को वहां कामयाब करने में सफल रहे। इसके बाद वे हाल ही में राजस्थान में भी पर्यवेक्षक बनकर पहुंचे थे। लेकिन खरगे को अध्यक्ष बनाने से कांग्रेस को फायदा नहीं मिलेगा। गांधी परिवार ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव को देखकर अगर निर्णय लिया है, तो इससे भविष्य में मुश्किल बढ़ेगी। क्योंकि कर्नाटक में पहले से ही पूर्व सीएम सिद्धारमैया और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार के गुट हैं। अब वहां नया खरगे का गुट भी तैयार हो जाएगा। दक्षिण भारत से खरगे के अलावा पी. चिदंबरम, शशि थरूर जैसे कई बड़े चेहरे पार्टी के पास हैं। कांग्रेस उत्तर भारत में बेहद कमजोर स्थिति में है। सहयोगी दल के साथ कांग्रेस दक्षिण में ठीकठाक काम कर रही है। खुद राहुल गांधी वायनाड (केरल) से सांसद हैं। ऐसे में खरगे को अध्यक्ष बनाने पर पार्टी को खास फायदा नहीं मिलेगा। इस पूरे घटनाक्रम में सबसे ज्यादा फायदा अशोक गहलोत और दिग्विजय सिंह को मिला है। हो सकता है कि आने वाले दिनों में थरूर भी नामांकन वापस ले लें। अगर खरगे पार्टी अध्यक्ष बनते हैं तो उदयपुर संकल्प के अनुसार उन्हें राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद छोड़ना पड़ेगा। ऐसे में दिग्विजय सिंह की लॉटरी लग सकती है।
10 करोड़ की संपत्ति, एक बेटा विधायक
खरगे का जन्म कर्नाटक के बीदर जिले के वारावत्ती इलाके में एक किसान परिवार में हुआ। गुलबर्गा के नूतन विद्यालय से अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की और गुलबर्गा के सरकारी कॉलेज से स्नातक की डिग्री ली। फिर गुलबर्गा के ही सेठ शंकरलाल लाहोटी लॉ कॉलेज से एलएलबी करने के बाद वकालत करने लगे। कांग्रेस का हाथ खरगे ने साल 1969 में थामा। खरगे के परिवार में पत्नी राधा बाई के अलावा तीन बेटियां और दो बेटे हैं। एक बेटा कर्नाटक के बेंगलुरु में स्पर्श हॉस्पिटल का मालिक है, जबकि दूसरा बेटा प्रियांक दो बार के विधायक हैं।
2019 चुनाव के दौरान खरगे ने अपनी संपत्ति करीब 10 करोड़ के आसपास बताई थी। खरगे खुद को भले ही कर्नाटक का मानते हों, लेकिन उनकी जड़ें मूल रूप से महाराष्ट्र में हैं। यही कारण है कि खरगे बखूबी मराठी बोल और समझ लेते हैं। उनकी खेलों खासकर किक्रेट, हॉकी व फुटबॉल में खासी रूचि है। 50 वर्ष के राजनीतिक करियर में खरगे का नाम दो बड़े विवादों में आ चुका है। साल 2000 में कन्नड़ सुपरस्टार डॉ. राजकुमार का चंदन तस्कर वीरप्पन ने अपहरण कर लिया था। उस वक्त खरगे प्रदेश के गृह मंत्री थे, जिसके बाद विपक्ष ने उनकी भूमिका पर सवाल उठाए। इसके अलावा इसी वर्ष नेशनल हेराल्ड केस में ईडी ने उनसे पूछताछ की थी। हेराल्ड केस में मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप है।