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Corona Vaccine: वायरस के सभी वैरिएंट्स पर कारगर साबित होगी ये वैक्सीन, ऐसे काम करेंगे स्पाइक प्रोटीन टीके

डिजिटल ब्यूरो, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: Harendra Chaudhary Updated Thu, 29 Sep 2022 02:49 PM IST
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सार

Corona Vaccine: आईआईटी मद्रास के नतीजे बताते हैं कि डेल्टा प्लस, गामा, जीटा, मिंक और ओमीक्रोन जैसे चुनिंदा स्वरूप के संक्रमण से टीके और टी-सेल प्रतिक्रिया की मदद से बचा जा सकता है। टी-सेल, श्वेत रक्त कोशिकाएं हैं जो हमें कोविड-19 जैसी बीमारियों से बचाने में मदद करने के लिए अलग-अलग तरीके से काम करती हैं...

Corona Vaccine: spike protein vaccines will work on all variants of the coronavirus
corona vaccine - फोटो : istock

विस्तार
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देश में कोरोना वायरस के प्रकोप के बाद इसके वैरिएंट से बचाव के लिए कई तरह के रिसर्च की जा रही है। हाल ही में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मद्रास (आईआईटी मद्रास) के शोधकर्ताओं के एक अध्ययन में पता चला है कि स्पाइक प्रोटीन टीके कोरोना वायरस (सार्स कोव-2) के कई वैरिएंट को रोकने और फैलने के खिलाफ असरदार साबित हो सकते हैं। शोध में सामने आया कि वायरस के कुछ वैरिएंट्स- डेल्टा प्लस, गामा, जीटा, मिंक और ओमिक्रॉन को वैक्सीन द्वारा शरीर में निर्मित टी-सेल से रोका जा सकता है। हालांकि एंटीबॉडी की प्रतिरोधात्मक क्षमता में कमी देखी गई। दरअसल, स्पाइक प्रोटीन कोरोना वायरस में पाए जाने वाले चार प्रमुख प्रोटीनों में से एक है। जिससे यह सार्स-कोव-2 वायरस को एक मेजबान कोशिका पर ही रोकने में मदद करता है और इसकी वजह से आखिरकार पूरा शरीर संक्रमित हो जाता है।

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आईआईटी मद्रास के नतीजे बताते हैं कि डेल्टा प्लस, गामा, जीटा, मिंक और ओमीक्रोन जैसे चुनिंदा स्वरूप के संक्रमण से टीके और टी-सेल प्रतिक्रिया की मदद से बचा जा सकता है। टी-सेल, श्वेत रक्त कोशिकाएं हैं जो हमें कोविड-19 जैसी बीमारियों से बचाने में मदद करने के लिए अलग-अलग तरीके से काम करती हैं। इस शोध से यह भी पता चलता है कि ये कोशिकाएं बीमारी से बचाव में दीर्घकालिक प्रतिरोधक क्षमता तैयार कर सकती हैं। हालांकि प्रयोगात्मक तरीके से इसकी पुष्टि करने की आवश्यकता है। शोधकर्ताओं का मानना है कि मौजूदा स्पाइक प्रोटीन टीकाकरण, कोरोना वायरस (सार्स कोव -2) के संक्रमण फैलाने वाले स्वरूप के खिलाफ अधिक प्रभावी हो सकता है।

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इसमें शोधकर्ताओं ने यह पता लगाने की कोशिश की है कि टीकाकरण के बाद भी वायरस के मूल वुहान स्ट्रेन के अलावा भी किसी अन्य स्वरूप से संक्रमित होने की घटना होती है। अब उससे भी निपटने की तैयारी की जा रही है। आईआईटी मद्रास के एक बयान में कहा गया है कि सार्स कोव-2 के स्वरूपों में वायरस के स्पाइक प्रोटीन में आणविक स्तर में बदलाव होते हैं और इन विविधताओं में प्रोटीन अनुक्रम शामिल हो सकते हैं जिन्हें एपीटोप्स नाम की टी-कोशिकाओं द्वारा पहचाना जाता है। जैसे-जैसे वायरस में रूप परिवर्तन यानी म्यूटेशन होता है, यह मेजबान कोशिका को संक्रमित करने की अपनी क्षमता में सुधार करने के साथ ही पर्यावरण के अनुकूल हो रहा है। यह अपनी विकास की प्रक्रिया में अधिक संक्रामक और कम घातक होता जा रहा है।

इस शोध के प्रमुख निष्कर्षों पर के बारे में जैव प्रौद्योगिकी विभाग की सहायक प्रोफेसर वाणी जानकीरमण, स्कूल ऑफ बायोसाइंसेज, आईआईटी मद्रास के भूपत और ज्योति मेहता ने कहा, इस मामले में, स्पाइक प्रोटीन आधारित टीकों के विभिन्न रूपों में टीके का प्रभाव इस बात पर निर्भर करता है कि यह केवल एंटीबॉडी प्रतिक्रिया बल्कि टी सेल प्रतिक्रिया को भी बढ़ावा देता है या नहीं। 'वायरस के कई स्वरूपों से बचाव में प्रभावी रहने का आकलन म्यूटेशन के विभिन्न स्वरूप के एपिटोप सीक्वेंस का विश्लेषण करके किया जा सकता है और यह भी पता लगाया जा सकता है कि टीकाकरण प्रक्रिया से टी-कोशिकाओं पर प्रभावी ढंग से असर डाला जा सकता है या नहीं।

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